कुंकल्ली का युद्ध

गोवा में पुर्तगालियों ने हिंसा, क्रूरता कन्वर्जन के लिए अमानुष कृत्यों की पराकाष्ठा कर दी थी। परंतु उन्हें ग्रामवासियों का भी प्रतिकार सहन करना पड़ा था। कुंकल्ली का युद्ध इन दोनों ही बातों का उत्कृष्ठ उदाहरण है।

गोवा के इतिहास में कुंकल्ली का युद्ध अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह उतना ही महत्वपूर्ण है जितनी 1857 की क्रांति है और इसमें जिन लोगों ने बलिदान दिया था वे सभी हुतात्मा भी उतने ही वंदनीय हैं।

यह वह समय था जब पुर्तिगालियों ने चर्च के साथ मिलकर बलपूर्वक कब्जा करके कन्वर्जन की शुरुआत की। उन पर कोई कानूनी रोक नहीं थी। ‘गोवा इंक्विजीशन’ तथा धर्मसमीक्षण सभा का काम तथाकथित संत फ्रांसिसी जेवियर के प्रयत्न से गोवा में शुरु किया गया। हिंदुओं के साथ-साथ, जो नवईसाई अपनी संस्कृति छोडने के लिए तैयार नहीं थे उनपर अत्याचार किया गया, उन्हें जिंदा जलाया गया, फांसी दी गयी। धार्मिक अनुष्ठानों को प्रतिबंधित कर दिया गया। कुंकल्ली और कुंकल्लीकरों (कुंकल्लीवासियों) पर भी यह बर्बरता की गई। कुंकल्ली के साथ असोलना, आंबेली, वेल्ली और वेरोड जैसे पांच पड़ोसी गांवों ने इन प्रतिबंधों के उल्लंघन करने का फैसला किया। उन्होंने असहयोग आंदोलन का आह्वान किया। यह पहला असहयोग आंदोलन है जो 1583 में हमारे देश में शुरु किया गया। उन्होंने कर देने से इंकार कर दिया। रायचुर किला के न्यायमंडल का बहिष्कार किया।

पुर्तगालियों द्वारा नियुक्त एक दुष्ट अधिकारी रॉड्रिग्ज ने लोगों पर अमानवीय अत्याचार शुरु किया। कुंकल्ली गांवों के लोगों ने इसका विरोध किया और रॉड्रिग्ज का देह छिन्न-विछिन्न कर दी। कुंकल्लीकरों ने एकजुट होकर पुलिस चौकी व रायचुर किले पर हमला बोल दिया। जिससे क्रोधित होकर पुर्तगाालियों ने सेना बुला दी और सेना ने नरसंहार शुरु कर दिया और उसके आधार पर वहां कुछ समय के लिए दिखावटी शांति प्रस्थापित की।

1583 में एक दूसरी घटना घटी। इन पांच गांव के लोगों ने पुर्तगाली सत्ता को चुनौती देते हुए अपनी धार्मिक गतिविधयां फिर से शुरु कर दीं। ऐसे में पुर्तगाली वायसराय का एक दूत कुंकल्ली गांव आया। उस पर शक कर गांव के लोगों ने उसके पास से एक संदिग्ध पत्र जब्त किया और फिर उसे पकड़कर मार डाला। इस घटना से पादरी भड़क गए। उन्होंने वायसराय पर कुंकल्लीकरों के खिलाफ मुहिम चलाने का दवाब बनाया। इसके बाद जनरल दों गिबान्से व रायचूर किले के कप्तान फिवरेंदो को तैनात किया गया। रात के समय पुर्तगाली सेना ने कुंकल्ली में प्रवेश किया और गांव के घर व मंदिर जला दिए। पूरे असोलना गांव को जलाया। कोलवा के पादरी फादर पेरु बेरनो ने स्वयं ही कुंकल्ली के भव्य मंदिर में आग लगा दी। लोग अपना गांव-घर छोड़कर पलायन को मजबूर हो गये। कुछ समय बाद गांव छोड़कर जाने वाले लोग वापस आए और उन्होंने अपने घरों और मंदिरों का पुननिर्माण किया। इस बात का पता चलते ही जनरल गिबान्से ने फिर से गांव में सेना भेजी और वहां तबाही मचा दी। घर, मंदिर व फसलें जला दी गई। इस बार सेना ने गांव में रहने का फैसला किया। जेजुईट पादरियों ने एक गाय का वध किया और उसकी अंतड़ियों और खून को कुंकल्ली गांव के एक पवित्र तालाब में डाल दिया। इतना सब होने पर भी ग्रामीणों ने आत्मसमर्पण नहीं किया और अन्त में सेना को पीछे हटना पड़ा।

साष्टी कॉलेज के रेक्टर फादर रोडाल्फ आक्वाविवा के नेतृत्व में 11 जुलाई सन 1583 को वेर्णे गांव के सांताक्रूज में तहसील के सभी पादरियों की एक बैठक हुई, जिसमें कुंकल्ली गांव का ईसाईकरण कैसे किया जाए इस पर षडयंत्र रचा गया। गांव के प्रमुख स्थान पर चर्च बनाने का निर्णय भी लिया गया। इस निर्णय पर अमल के लिए ओडली गांव के सेंट मिंगेल चर्च में प्रवचन के निमित्त से मिलने का निर्णय हुआ।

15 जुलाई 1583 को लगभग 50 पादरियों ने गांव में प्रवेश किया। नवईसाईयों को छोड़कर किसी कुंकल्लीकर ने उनका स्वागत नहीं किया। साल नदी के तट पर एक विशेष मंडप में पादरियों का कन्वर्जन मंडल स्थापित किया गया था।

इसी बीच, कुंकल्लीकरों ने हिंदू मंदिरों को जलाने और अमानवीयता के लिए पादरियों से बदला लेने की भी ठान ली थी। अत: जेजुईट पादरियों को इस बार कुंकल्लीकरों पर हमला करने या उनके मंदिरों, घरों आदि को जलाने का अवसर नहीं मिलने वाला था। नियति ने उनपर पलटवार किया। उन सभी पर कुंकल्लीकरों द्वारा हमला किया गया और उन्हें मार दिया गया। जहां पादरियों की हत्या की गई उस जगह को तलयेभाट के नाम से जाना जाता है। इस घटना के बाद पुर्तगालियों ने कभी भी कुंकल्ली गांव में प्रवेश तो नहीं किया पर बदला लेने की कुछ और तरकीब उन्होंने ढूंढ़ ली थी। गोवा में आदिलशाह के दूत जेबेरक्यू को उन्होंने इस एडयंत्र में लगा दिया।

स्थायी शांति स्थापित करने के लिए कुंकल्ली के ग्रामीणों और पुर्तगालियों के बीच सुलह कराने के लिए जेबेरक्यू के द्वारा ग्रामीणों से अपील की गई। गांववाले भी लगातार अशांति से तंग आ गये थे। कुंकल्ली के सोलह प्रमुख नेताओं को शांति प्रस्ताव के लिए साल नदी पर असोलाना किले में बुलाया गया। इस बार पुर्तगाली उनकी जान न लेने का अश्वासन देना नहीं भूले। परंतु अंतिम चर्चा के दौरान पुर्तगालियों ने किले के दरवाजे बंद कर दिए और सभी 16 नेताओं को मारा। यह धोखे का उत्कृष्ट नमूना था। कुंकल्ली के नेताओं में से एक नेता कालू उर्फ कल्गो नाइक नदी में कूदकर भाग गया जबकि बाकी सभी मारे गए। कोई एक गांव भी यदि एकजुट हो जाए तो कितना बडा संघर्ष खडा कर सकता है, यह कुंकल्ली के युद्ध से पता चलता है। भारत में ऐसे संघर्ष प्रत्येक स्थान पर हुए थे। इतिहास में भले ही उनमें से कुछ दर्ज नही हैं परंतु वे प्रेरणा स्रोत तो हैं ही। कुंकल्लीकरों का पुर्तगालियों से हुआ यह सम्पूर्ण युद्ध सभी के लिए गर्व की बात है और इसे सदैव स्मरण किया जाएगा।

                    सूर्यकांत आयरे

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