आदर्श स्वयंसेवक प्रतिनिधि विलास मेस्त्री

जन्मदिन विशेष (१५ दिसम्बर)

हिंदी विवेक पत्रिका को आर्थिक संबल देने में प्रतिनिधियों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. जिनके बल पर पत्रिका आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर है. हिंदी विवेक के ऐसे ही वसई-विरार के एक प्रतिनिधि है विलास मेस्त्री, जिन्हें एक आदर्श स्वयंसेवक और प्रतिनिधि के रूप में देखा जाता है. प्रतिनिधियों की बैठक में भी इन्ही का उदाहरण देकर सभी को प्रेरित किया जाता है. आगामी १५ दिसम्बर २०२३ को उनकी आयु ७५ वर्ष पूर्ण हो जाएगी. इस उपलक्ष्य में उनकी प्रेरक एवं आदर्श जीवन यात्रा का दर्शन इस लेख में दृष्टिगोचर होगा.

विलास गोपाल मेस्त्री का जन्म १५ दिसम्बर १९४८ को भिवंडी स्थित उनके ननिहाल में हुआ था. ८ सदयों के परिवार में वे पले बढ़े, जिनमें उनके माता-पिता, ३ बहन और २ भाई शामिल थे. वर्तमान समय में उनकी पत्नी श्रीमती वैशाली उनकी अच्छे से देखभाल करती है. एक बेटा और २ बिटिया, दामाद, पोता, आदि रिश्ते नातों की डोर से वे बंधे हुए है. अपने भरे पुरे परिवार के साथ वे बेहद खुश व संतुष्ट है. शुरूआती जीवन उनका संघर्षों में बिता लेकिन चुनौतियों से उन्होंने हार नहीं मानी और हम होंगे कामयाब का मन्त्र लेकर वे अपनी जिम्मेदारियों को बहुबी निभाने लगे. बीएमसी में सरकारी नौकरी लगने के बाद उनके जीवन में स्थिरता आ गई और वे सफलता की सीढियां चढ़ने लगे.

संघकार्य से समरस

बाल स्वयंसेवक से वरिष्ठ स्वयंसेवक का सफ़र तय करनेवाले विलास मिस्त्री स्वयं को बहुत ही भाग्यशाली मानते है. ७० के दशक में उन्हें मुख्य शिक्षक और कार्यवाह का दायित्व मिला. ठाणे प्रवास के दौरान श्रीगुरुजी एवं बालासाहब देवरस जी की बैठक में बौद्धिक सुनने का उन्हें सौभाग्य मिला और उनसे निवेदन करने का अवसर मिला. इसे वे अपनी जिन्दगी की सबसे बड़ी उपलब्धि मानते है. आज भी उन यादों को स्मरण कर वे फुले नही समाते है, उनका हृदय गदगद हो उठता है.

आपातकाल के समय अनेक संघ स्वयंसेवकों को गिरफ्तार कर लिया गया था. जिससे उनके परिवार की आर्थिक स्थिति डांवाडोल हो गई थी. इसलिए स्वयंसेवकों ने मिलकर यह निर्णय लिया कि इनकी आर्थिक सहायता करेंगे. इसमें विलास मिस्त्री ने भी अग्रणी भूमिका निभाई और स्वयंसेवकों के परिजनों की आर्थिक सहायता सुनिश्चित की. आपातकाल में संघर्ष के दौरान उन्हें अर्थ की शक्ति समझ में आई. अर्थ के बिना तंत्र नही चल सकता, इसलिए उन्होंने विशेष तौर पर संघकार्य की नींव को मजबूत करने हेतु निधि संकलन के लिए आजीवन कार्य करने का निश्चय किया, जो वे आज भी सतत कर रहे है.

नालासोपारा में हिंदुत्व का वातावरण बनाने और हिन्दू नववर्ष स्वागत यात्रा को विराट रूप देने के लिए उन्होंने परिश्रम की पराकाष्ठा की. बीएमसी से सेवा निवृत्त होने के बाद विगत १५ वर्षों से वसई जिला रा. स्व. संघ जनकल्याण समिति के अध्यक्ष पद का दायित्व पूर्ण निष्ठा से निभा रहे है. कोरोना काल में समिति के माध्यम से उन्होंने राशन वितरण, दवा वितरण आदि सेवा कार्य बड़े व्यापक स्तर पर नियोजित किए. शिक्षा के क्षेत्र में भी उन्होंने उल्लेखनीय कार्य किया है. जिस विद्यालय में उन्होंने शिक्षा ग्रहण की उसकी हालत जर्जर अवस्था में पहुँच गई थी इसलिए उन्होंने सर्वप्रथम उसी विद्यालय का नवीनीकरण करवाया. इसके बाद संघ से जुड़े अन्य विद्यालयों से जुड़ कर भी वे शिक्षा की अलख जगा रहे है. आज भी वे परिवार, समाज और संघकार्य में संतुलन बनाकर प्रतिदिन कुछ समय सेवाकार्यों में अवश्य देते है.

आर्थिक योगदान हेतु सदैव तत्पर

कोई भी सैनिक भूखे पेट अधिक समय तक युद्ध नहीं लड़ सकता. इसलिए रशद की आपूर्ति आवश्यक होती है. इसके साथ ही किसी भी उपक्रम, परियोजना या योजना को अमल में लाने के लिए आर्थिक स्थिति मजबूत होनी चाहिए. इसी महत्वपूर्ण कार्य को स्वयं प्रेरणा से विलास मिस्त्री ने अपने हाथों में लिया और संघ परिवार से जुड़े विश्व हिन्दू परिषद, वनवासी कल्याण आश्रम, कन्याकुमारी के स्वामी विवेकानंद स्मारक शिला केंद्र, रा. स्व. संघ जनकल्याण समिति, सा. विवेक और हिंदी विवेक पत्रिका समेत अनेकों अन्य संस्थाओं को नियमित रूप से आर्थिक सहयोग देते रहे.

राष्ट्रबोध से सराबोर हिंदी विवेक पत्रिका

राष्ट्र विचार, देशभक्ति को प्राथमिकता देना यह विवेक पत्रिका की प्रमुख भूमिका एवं विशेषता है. राष्ट्रीय विचारों का जनजागरण करने के लिए विलास मेस्त्री विवेक पत्रिका का प्रचार प्रसार कर रहे है. विवेक समूह के अब अनेक आयाम स्थापित हो चुके है. विवेक के अंक, विशेषांक, ग्रन्थ, पुस्तक में राष्ट्र बोध व कर्तव्य बोध झलकता है इसलिए राष्ट्रीय विचारों को पत्रिका के माध्यम से लोगों तक पहुँचाने में उन्हें खुशी होती है, ऐसा उन्होंने कहा है.

प्रमाणिकता ही यश की कुंजी

पैसे मांगने का स्थायी भाव क्या है, हम स्वयं के लिए पैसा नहीं मांग रहे है बल्कि समाज व राष्ट्र कल्याण जैसे पवित्र कार्य के लिए पैसा मांग रहे है. जो जानते है वो स्वयं दे देते है. लेकिन एक प्रतिनिधि के रूप में हम पैसे कैसे मांगे? हम विषय का प्रस्तुतीकरण कैसे करें ? यदि वें ही इस तरह की दुविधा में रहेंगे तो उन्हें अपेक्षित सफलता नहीं मिलेगी. उन्हें पुरे आत्मविश्वास के साथ कहना चाहिए कि मैं इस उद्देश्य से आपके पास आया हूं. आपका आत्मविश्वास, विश्वसनीयता और प्रमाणिकता ही यश की कुंजी है.

हम भी तो कुछ देना सीखे

एक हाथ से दान देने पर दुसरे हाथ से मिल जाता है, देनेवाले व्यक्ति को लोग भी दिल खोलकर देते है, यह समाज का गुण है. एक स्वयंसेवक के रूप में जाने पर समाज का सकारात्मक प्रतिसाद मिलता है. समाज सेवा में अग्रणी भूमिका निभाने के चलते विलास मेस्त्री को लोगों ने तन, मन, धन से बहुत सहयोग दिया. हालांकि उनका मानना है कि उन्होंने जो भी कार्य में सफलता प्राप्त की है या समाज ने जो उन्हें दिया है वह उन्हें नहीं बल्कि संघ की संस्थाओं को दिया है. संघ की संस्थाओं के कार्य के लिए वे जहां कहीं भी जाते है बिना बोले लोग उनकी झोली में दान डाल देते है.

“देश हमें देता है सब कुछ

हम भी तो कुछ देना सीखे”

संघ गीत की इसी भावना से प्रेरित होकर वह अपने कर्तव्य का निर्वहन करते हुए जान पड़ते है. समाजसेवी विलास मेस्त्री के विधायी एवं रचनात्मक कार्यों की जितनी प्रशंसा करे, वह कम है. हिंदी विवेक परिवार की ओर से उनका अभिनंदन करते है तथा हम उनके स्वस्थ, सुखी, निरोगी एवं दीर्घायु जीवन की कामना करते है. ७५ वें जन्मदिवस की हार्दिक शुभकामनाएं.

राष्ट्रीय विचारों की श्रुंखला बनाने में योगदान

संघ के वैचारिक आयाम होने के कारण एक अच्छा अवसर होता है. उसका आर्थिक लाभ विवेक को मिले, इसके लिए प्रयास करना चाहिए. राष्ट्रीय विचार अधिकाधिक लोगों तक पहुंचे इस दृष्टि से आर्थिक सहयोग देनेवाले लोग बहुत है, इसका लाभ प्रतिनिधि कैसे ले, इस पर उन्हें स्वयं विचार करना चाहिए. यदि प्रत्येक प्रतिनिधि ने इसका संज्ञान लेकर अच्छा कार्य किया तो राष्ट्रीय विचार की माला (श्रुंखला) बनाने में विवेक और अधिक अच्छा कार्य कर सकता है.

– विलास मेस्त्री

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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