विभिन्न जायकोंसे महकता गोवा

एक हिन्दू मांसाहारी व्यक्ति के आहार में मुख्य रूप से चिकन, अंडे और मछली शामिल होते है। गोवा में मटन का प्रयोग आमतौर पर कम ही होता है क्योंकि मछली प्रचुर मात्रा में होती है। किसी ने सच ही कहा है कि गोवा के लोगों को फिश करी और तली हुई मछलियां स्वर्गीय आनंद देती हैं।

गोवा की खाद्य संस्कृति स्थानीय हिन्दु और पुर्तगाल दोनों की अलग-अलग संस्कृतियों का अत्यंत सुन्दर मिश्रण है। हिन्दु और ईसाई संस्कृति दोनों का प्रभाव खाद्य संस्कृति पर पडा है। कुछ स्थानों पर इन दोनों तरीकों का संयोजन है, जो गोवा के भोजन को विशेष बनाता है। खाना पकाने के लिए उपयोग किए जाने वाले बर्तनों में, धातु के बर्तनों के साथ, बांस की टोकनी, पकी हुई मिट्टी के बर्तन, खप्पर, नारियल के खोल से बनाया गया विशेष चम्मच जिसे ‘डावलो’ कहा जाता है, आदि शामिल होते हैं। इन बर्तनों का आमतौर पर व्यंजन तैयार करने के लिए उपयोग किया जाता है। मिट्टी के बर्तन और नारियल की खोल का खास स्वाद हर व्यंजन में उभर कर आता है।

गोवावासी अलग-अलग उद्देश्यों के लिए अलग-अलग व्यंजन बनाते हैं। रोजाना के खाने के लिए अलग, त्योहारों के लिए अलग, धार्मिक आयोजनों के लिए अलग, देवताओं के चढ़ावे के लिए अलग और मौसमों के हिसाब से अलग-अलग खाद्य पदार्थ बनाए जाते हैं। दैनिक भोजन में चावल, आमटी(दाल), मछली/सब्जियां और अचार शामिल हैं। भोजन के अंत में सोलकढ़ी जरूरी होती है। इसे अमूमन नारियल के दूध से बनाया जाता है, परंतु कभी-कभी पाचक के रूप में कोंकम की खुटी कढ़ी अर्थात बिना नारियल के दूध की सोलकढ़ी भी बनाई जाती है।

गोवावासियों का मुख्य भोजन चावल, नारियल और मछली है, जो यहां प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। गोवावासियों को मछली पकड़ने और खाने का बहुत शौक है। उन्हें इस्वान (सुरमई), सुंगट, मोरी, तारली, पापलेट, केकड़ा, तिसारे, खुबे जैसी कई तरह की मछलियों के स्वादिष्ट व्यंजन खिलाना और खाना पसंद है। यह व्यंजन केवल करी या फ्राइज़ तक ही सीमित नहीं है बल्कि यहां मछली का अचार और सलाद भी बनाया जाता है। ज्यादातर हिंदू धार्मिक त्योहारों पर मांस नहीं खाते हैं, पर गोवा में अधिकतर लोग ऐस हैं जिन्हें हर रोज सुबह शाम मछली चाहिए ही होती है।

सिंपले(सीप), कालव, कोलोम्बी (सुंगटा), केकड़े (कुर्ल्या) और अन्य विभिन्न प्रकार की मछलियां और चावल नित्य के खानपान में खाए जाते हैं। गोवावासियों को जब बारिश के समय में ताजी मछली नहीं मिलती तब वे धूप में सुखा कर स्टोर की गई मछली का उपयोग अपने खान-पान में करते हैं। यह बिलकुल वैसा ही है जैसे अन्य राज्योेंं में बारिश के दिनों में जब ताजी सब्जियां न मिलें तो अंकुरित अनाज, पापड, बरी-बिजौरे बनाया जाता है। दोपहर को मछली के व्यंजनों का पेटभर आस्वाद लेने के बाद आराम फरमाना गोवावासियों का शौक है। इसी कारण उन्होंने ‘सुशेगात’ कहा जाता है। गोवा के लोगों के इस सुशेगात स्वभाव के कारण वहां के काम भी आराम से होते हैं।

गोवा का मुख्य अनाज चावल है। चावल में उक़ड़े और सुरयी दो मुख्य प्रकार हैं, जिनमें एक विशेष प्रकार की सुगंध होती है। गोवा में विभिन्न प्रकार से चावल पकाए जाते है। चावल से कांजी व पेज भी बनाया जाता है। जब कोई बीमार पड़ जाता था तो उसे हल्के भोजन के रुप में पेज दी जाती है। चावल के आटे का उपयोग आंबोली, घावन(डोसे जैसा), भाकरी (रोटी) और अन्य प्रकार बनाने के लिए किया जाता है। जबकि गेहूं के आटे का उपयोग विभिन्न प्रकार के ब्रेड बनाने के लिए किया जाता है।

एक हिन्दू मांसाहारी व्यक्ति के आहार में मुख्य रूप से चिकन, अंडे और मछली शामिल होते है। गोवा में मटन का प्रयोग आमतौर पर कम ही होता है क्योंकि मछली प्रचुर मात्रा में होती है। किसी ने सच ही कहा है कि गोवा के लोगों को फिश करी और तली हुई मछलियां स्वर्गीय आनंद देती हैं। उसके लिए चावल, मछली की चटनी और तली हुई मछली का टुकड़ा इतना ही काफी है, कि उसे भी सब्जियां, सलाद आदि की कोई जरुरत नहीं होती।

गोवा के ज्यादातर हिंदू सोमवार और गुरुवार को शाकाहारी भोजन करते हैं, हालांकि यह भोजन उन्हें मन मारकर खाना पडता है। इस भोजन में दालें, रसीली सब्जी, कापा अर्थात सब्जी के टुकडों पर रवा लगाकर तले हुए टुकडे, अचार, नारियल या कोकम के रसे की सोलकढ़ी, मिर्च और चावल शामिल है। बहुत सारी सब्जियों के मिश्रण से बना खटखटा, बांस के कोमल अंकुरों की सब्जियां, घुइयां के पत्तों की सब्जियां या स्लाइस, बारिश में प्राकृतिक रूप से आने वाली मशरूम, गीले काजू की सब्जियां, ये सभी गोवावासियों को बहुत प्रिय हैं।

खाना पकाने में मसालों का ज्यादा इस्तेमाल नहीं किया जाता है। चिकन और मटन में गरम मसाला डाला जाता है। अधिकांश व्यंजन स्थानीय रुप से प्राप्त सामग्री जैसे प्याज, नारियल, मिर्ची, धनिया, काली मिर्च, तिरफला का प्रयोग करके बनाए जाते हैं। कुछ खाने में तो तेल भी नहीं डाला जाता। ज्यादा से ज्यादा एक चम्मच तेल ऊपर से डाल दिया जाता है। ये तेल भी नारियल का होता है।

पुर्तगाली शासन में गेहूं का आयात किया जाता था और महंगा होता था। इसलिए लोग चपाती, रोटी के शौकिन नहीं थे। नाश्ते में चावल की पेज, घावन उर्फ डोसा खाते थे। गोवा के नाम गोमांतक का अर्थ है गायों से यानी गोधन से भरा हुआ, लेकिन गोवा में अब बहुत कम गाय और भैंसे हैं। कई लोग दही और छाछ नहीं बना पाते हैं, इसलिए दूध की खपत कम होती है। त्योहारों के दौरान बनने वाली मिठाईयों में भी नारियल के दूध का इस्तेमाल किया जाता है। यहां गुड़ का इस्तेमाल चीनी से अधिक किया जाता है। ईसाई लोग बेबियांक नाम की स्वादिष्ट मिठाई बनाते हैं, जो नारियल और गुड़ से बनाई जाती है। पारंपरिक ईसाई, पुर्तगाली व्यंजनों के साथ क्रिसमस पर हिन्दू व्यंजन जैसे अंजीर, करंजी(गुजिया), शंकरपाले(शकरपारे), कलकल, दोदोल, दोस आदि बनाते हैं। देसी ब्राउन ब्रेड व कड़क पाव लोगों का पसंदीदा नाश्ता है।

गोवावासी बहुत आतिथ्यशील होते हैं। त्योहारों, उत्सवों, जन्मदिन, सगाई, शादी, हल्दी आदि अवसरों पर खूब पैसा खर्च करते हैं। गणेश चतुर्थी, गुड़ी पाड़वा, दिवाली जैसे त्योहारों के दौरान भगवान को भोग लगाने के लिए अलग-अलग व्यंजन बनाते हैं। दिवाली के दिन पोहे के विभिन्न पकवान बनाकर भगवान को भोग लगाया जाता है और मेहमानों के साथ खाया जाता है। गणेश चतुर्थी उत्सव में करंजी(गुजिया), मोदक मुख्य प्रसाद होते हैं। खतखता गणेश चतुर्थी जैसे त्योहारों के दौरान बनाया जाने वाला व्यंजन है।

केकड़े का रसा स्वाद की अद्भुत अनुभूति

गोवा में फिश करी, चिकन करी अत्यंत स्वादिष्ट व्यंजन माने जाते हैं। लेकिन केकडे का रसा सब पर भारी पड़ने वाला व्यंजन है। यह स्वाद से संपन्न और खाद्य रसिकों का अत्यंत मनपसंद व्यंजन है। केकड़े का रसा याने करी का स्वाद मटन- चिकन से भी अधिक स्वादिष्ट होता है। ये केकड़े बाजार में बिकते हैं, लेकिन खुद जाकर केकड़े पकड़ने का आनंद ही कुछ और है। मानसून की शुरुआत के साथ, मत्स्य प्रेमियों को ताजी मछली मिलना बंद हो जाता है। मांसाहारी भोजन करने वाले कट्टर मत्स्य प्रेमियों को सूखा बांगड़ा अथवा सुकट पर निर्भर रहना पड़ता है। ऐसे समय में केकड़े का गरम गरम रसा और चावल… लोगों कों स्वर्गीय आनंद देता है। केकड़े अमावस्या के दिन लेने चाहिए, तब वे भरे हुए होते हैं। काली पीठ वाले केकड़े हमेशा जीवित ही पकड़ने चाहिए, गोवा और कोंकण में लोग केकड़े पकड़ने के लिए रातभर जागते हैं। बारिश की शुरुआती दिनों में रातभर जाग कर केकडे पकडना गोवा और कोकण में एक महोत्सव की तरह होता है। केकड़े को कुरली नाम से भी जाना जाता है। गांवों में बारिश के दिनों में नदियां, नाले, खेत और तालाब लबालब बहने लगते हैं और यह पानी खेतों में आने लगता है, यही कारण है कि केकड़े बहते पानी के साथ नदियों, नालों, खेतों, तालाबों और खाड़ी में मिल जाते हैं।

कई तरह के रोगों को ठीक करने के लिए केकड़ों का मसालेदार रसा सबसे अच्छा उपाय माना जाता है। मटन के स्वाद वाले केकड़ा का रसा खाने का जो मजा गोवा में है वो कहीं और नहीं है। केकडा बहुआयामी है। यह शरीर को उच्च गुणवत्ता वाले प्रोटीन की आपूर्ति करता है। जिससे ब्लड शुगर का स्तर नियंत्रण में रहता है। ऐसा कहते हैं कैंसर का खतरा भी टल जाता है। इसके अलावा केकड़ा मधुमेह रोगियों के लिए अच्छा है। जोड़ों का दर्द भी कम हो जाता है। जब कभी भी गोवा जाना होगा तब केकडे के रसे का आस्वाद जरुर लेना चाहिए। केकडे का रसा एक अद्भुत अनुभूति है।

पेय पदार्थों के बारे में बात किए बिना गोवा की खाद्य संस्कृति अधूरी रह जाएगी। यहां गोवा में उत्पाद शुल्क कम होने के कारण शराब सस्ती है। शायद ऐसा इसलिए है क्योंकि शराब वहां के लोगो के व्यंजनों का एक अभिन्न अंग भी है। लेकिन नारियल के पेड़ से निकली हुई सूरा (नीरा) और काजू से तैयार की हुई फेनी अधिक लोकप्रिय है। काजू से तैयार की हुई फेनी में कई औषधीय गुण होते हैं। ऐसा माना जाता है कि फेनी कितनी भी पी लें, अल्कोहल की श्रेणी में नहीं आती, ये सही है या गलत भगवान जाने। इसके अलावा, अन्य राज्यों से आने वाले यात्रियों को विभिन्न प्रकार की शराब और कॉकटेल गोवा में सहज और सस्ते दाम पर उपलब्ध होती है। लेकिन इसके बावजूद भी गोवा के लोग खुद कितनी शराब पीते हैं? आपको कोई भी गोवावासी अत्यधिक शराब पीकर सड़क पर इधर-उधर गिरा पडा हो ऐसा कभी दिखाई नहीं देगा। बल्कि अन्य राज्यों से आए हुए यात्री ही ज्यादा शराब पी कर मदहोश होकर गिरते पडते दिखाई देते हैं।

इसमें कोई संदेह नहीं है कि समुद्र किनारों और प्राकृतिक सौंदर्य को पसंद करने वालों के लिए गोवा स्वर्ग है परंतु अलग-अलग तरह के खाद्य पदार्थों का आस्वाद लेने वालों के लिए भी यह स्वर्ग से कम नहीं।

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