कसकते इतिहास का दमकता वर्तमान

गोवा के मंदिर विश्व प्रसिद्ध हैं। हम इतिहास के पन्ने पलट कर देखें तो पुर्तगालियों द्वारा आक्रमण और धर्मांतरण के दौरान गोवा के कई हिंदू मंदिरों को नष्ट कर दिया गया था, कई मंदिरों को स्थानांतरित किया गया। इस कसकते इतिहास का वर्तमान दमकता हुआ है।

गोवा का नाम सुनते ही कई लोगों के मन में स़िर्फ दो ही विचार आते हैं। गोवा विश्व में पर्यटन के लिए प्रसिद्ध है लेकिन स़िर्फ समुद्र किनारे के अलावा यहां अनेक स्थान हैं, जहां पर लोग घूम सकते हैं। गोवा में 300 से ज़्यादा मंदिर हैं। इसके साथ ही कई चर्च, मस्जिद, संग्रहालय हैं। 100 से ज़्यादा ऐतिहासिक स्थान हैं। पुर्तगाली स्थापत्य शैली के पुराने घर हैं। गोवा में मंदिरों का प्राचीन इतिहास रहा है। गोवा के मंदिर विश्व में प्रसिद्ध हैं।

श्री मंगेश मंदिर जो प्रियोल में स्थित है, गोवा के गौड़ सारस्वत ब्राह्मण के कुलदेव (पारिवारिक देवता) हैं। कवले मठ के स्वामी इस मंदिर के आध्यात्मिक प्रमुख हैं। प्राचीन काल में यह मंदिर कुशस्थली (वर्तमान में कुट्ठाली) में स्थित था। पुर्तगालियों द्वारा आक्रमण और धर्मांतरण के दौरान गोवा के कई हिंदू मंदिरों को नष्ट कर दिया गया था। इससे बचने के लिए भगवान मंगेश के भक्तों ने मूल मंदिर से लिंग (भगवान शिव का प्रतीक) को वहां से निकालकर प्रियोल में वर्तमान स्थान पर स्थानांतरित कर दिया, जो आदिल शाह के नियंत्रण में था। यह स्थानांतरण वर्ष 1560 में हुआ था। मंदिर के आसपास का क्षेत्र पेशवाओं के दरबार में एक महत्त्वपूर्ण अधिकारी रामचंद्र सुखटणकर ने सौंदे के राजा से प्राप्त करने के बाद मंदिर को दे दिया था। स्थानांतरण के समय से, मराठा शासनकाल के दौरान मंदिर का दो बार पुनर्निर्माण और जीर्णोद्धार किया गया और दूसरी बार वर्ष 1890 में। वापस नवीनीकरण वर्ष 1973 में हुआ जब ऊंचे गुंबद के ऊपर एक स्वर्ण कलश लगाया गया था। गोवा के सबसे प्रसिद्ध और पर्यटकों द्वारा सबसे ज़्यादा बार देखे जाने वाले मंदिरों में से यह एक है। ऐसा माना जाता है कि कुशस्थली में जहां पर श्री मंगेश मंदिर का मूल स्थान है, वहां पर अभी एक चर्च है। फिर भी अब श्री मंगेश मंदिर को वापस कुट्ठाली में बनाया गया है।

श्री शांतादुर्गा देवी, कवलें मंदिर मूलतः केलोशी में था। यह गोवा के गौड़ सारस्वत ब्राह्मण की कुलदेवी (पारिवारिक देवी) हैं। केलोशी में श्री शांतादुर्गा देवी को सांतेरी देवी के नाम से जाना जाता था और इसी नाम से उनकी पूजा की जाती थी। मंगेश मंदिर की तरह इसे भी स्थानांतरित किया गया। ज़ुआरी नदी को पार कर फ़ोंडा में कवलें गांव में सुंदर परिसर में इसे स्थापित किया गया। पुर्तगाली अभिलेखों के अनुसार इन मंदिरों को 14 जनवरी 1566 और 29 नवंबर 1566 के बीच किसी समय स्थानांतरित किया गया था। स्थानांतरण के कुछ ही समय बाद, दोनों मूल मंदिरों को तोड़ा गया। अब केलोशी में जिस भूखंड पर श्री शांतादुर्गा का मूल मंदिर था, उसे देवूलभाट के नाम से जाना जाता है और यह स्थान मंदिर ट्रस्ट के पास है जहां पर वापस छोटा-सा मंदिर बनाया गया है।

बांदोडा में स्थित श्री रामनाथी देवस्थान गोवा का प्रसिद्ध मंदिर है। इस मंदिर का मूल स्थान लोटली में था जहां पर अब वापस नया मंदिर बनाया गया है। 16वीं शताब्दी में श्री रामनाथ की मूर्ति को वर्तमान स्थान पर स्थानांतरित कर दिया गया था। मई 2011 में, रामनाथी मंदिर ने अपने वर्तमान स्थान पर 450 वर्ष पूरे किए। श्री रामनाथ वत्स, कौंडिण्य गोत्रीय गौड़ सारस्वत ब्राह्मणों के कुलदेवता हैं।

तांबडी सुर्ला में स्थित महादेव मंदिर, कदंब शैली का 13वीं शताब्दी का भगवान शिव को समर्पित शैव मंदिर है जो सबसे प्राचीन मंदिर है। यह भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित राष्ट्रीय महत्त्व का मंदिर है। मंदिर का निर्माण कदंब शैली में बेसाल्ट से किया गया है, जिसे डेक्कन के पठार से पहाड़ों के पार ले जाया गया था और कारीगरों द्वारा नक्काशी की गई थी। यह गोवा में संरक्षित और उपलब्ध बेसाल्ट पत्थर में कदंब वास्तुकला का एकमात्र नमूना माना जाता है। यह मंदिर इस्लामी आक्रमणों और पुर्तगालियों से बच गया क्योंकि चारों ओर पश्चिमी घाट के तल पर जंगल का सुदूर इलाक़ा है।

ओल्ड मार्दोल या वेर्णा में स्थित महालसा के पुराने मंदिर को वर्ष 1567 में पुर्तगालियों द्वारा नष्ट कर दिया गया। हालांकि महालसा की मूर्ति को बचा लिया गया था। ज़बरन ईसाईकरण के दौरान विनाश से बचने के लिए इसे वेर्णा से फ़ोंडा में मार्दोल में स्थानांतरित किया गया। महालसा को स्त्री (मोहिनी के रूप में) और पुरुष (विष्णु के रूप में) दोनों के रूप में माना जाता है। उन्हें वर्ष के विभिन्न दिनों में विभिन्न विष्णु-संबंधी देवताओं के रूप में अलंकार (आभूषण, पोशाक) पहनाया जाता है। वह विष्णु की पत्नी लक्ष्मी के साथ-साथ विष्णु के पुरुष रूपों जैसे राम, कृष्ण, विठोबा, वेंकटेश्वर आदि के रूप में तैयार होती हैं। रविवार का दिन मंदिर और इष्ट देवी के लिए विशेष महत्त्व रखता है। इस दिन अन्य अनुष्ठानों के अलावा पालकी सेवा भी की जाती है। देवी को पालकी में बिठाकर मंदिर के चारों ओर घुमाया जाता है। पालकी को फूलों और पारंपरिक रंगीन सजावट से सजाया जाता है।

श्री नवदुर्गा मंदिर, मडकई, फ़ोंडा में स्थित है। यह मंदिर मूल रूप से तिसवाडी तालुका के गांवशी से स्थानांतरित किया गया है। यह मंदिर लगभग 500 वर्ष पुराना है और इसका जीर्णोद्धार सन् 1603 में किया गया था। यह गौड़ सारस्वत ब्राह्मणों की कुलदेवी हैं। नवदुर्गा मंदिर में पूजा की जाने वाली मूर्ति देवी दुर्गा का एक उग्र रूप है जिसे महिषासुरमर्दिनी के नाम से जाना जाता है। मंदिर के गर्भगृह में एक ऊंचे मंच पर देवी की पत्थर की मूर्ति रखी गई है। मूर्ति खड़ी है और चार फ़ीट ऊंची है। देवी की गरदन थोड़ी बाईं ओर झुकी हुई है जिसका भी एक प्राचीन इतिहास है। प्रत्येक माह की शुक्ल नवमी को नवदुर्गा की पालकी निकाली जाती है। इस मंदिर में नवंबर महीने (हिंदू कार्तिक माह) के दौरान विद्या चतुर्थी से दशमी तक वार्षिक मेले (जात्रा) के लिए हज़ारों लोग इकट्ठा होते हैं। नवरात्रोत्सव भी यहां धूमधाम से मनाया जाता है।

ये गोवा के कुछ प्रसिद्ध मंदिर हैं। इसके अलावा भी गोवा में 300 से ज़्यादा मंदिर हैं लेकिन जब भी आप गोवा आएं तो इन मंदिरों में अवश्य जाएं। गोवा के मंदिरों में जिस प्रकार की शांति का अनुभव मिलता है वह और कहीं नहीं मिलता।

                                                                                                                                                                            आदित्य सिनाय  भांगी

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