हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
आगे बढ़ें अपनी उन्नति के लिए

आगे बढ़ें अपनी उन्नति के लिए

by pallavi anwekar
in अवांतर, ट्रेंडींग, महिला, महिला विशेषांक मार्च २०२४, विशेष, संपादकीय
0

विश्व महिला दिवस पर प्रतिवर्ष अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महिलाओं की स्थिति पर चर्चा की जाती है। भारत में महिलाओं की स्थिति पर चर्चा करने के लिए उसे कालानुरुप तीन भागों में बांटना होगा। पुरातन काल, मध्यकाल और वर्तमान काल। पुरातन काल में महिलाओं की स्थिति बहुत अच्छी थी। उन्हें ज्ञान और शौर्य से परिपूर्ण देवी की उपमा प्राप्त थी। मध्य काल में यह स्थिति कुछ बाहरी आक्रांताओं के कारण और कुछ भारतीय पुरुषों के पथभ्रष्ट होने के कारण रसातल में चली गई थी, परंतु अब पिछले कुछ वर्षों में अगर भारत में महिलाओं की स्थिति को देखें तो एक बड़े स्तर पर परिवर्तन दिखाई देता है। कई क्षेत्रों में महिलाएं पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर काम करने लगी हैं। ऐसे क्षेत्रों में भी काम करने लगी हैं, जो कभी पुरुष प्रधान माने जाते थे। कई क्षेत्रों में तो वे पुरुषों से आगे भी निकल रही हैं। समाज में हो रहे ये परिवर्तन महिला पुरुष समानता की बानगी होने चाहिए थे, परंतु अब ये धीरे-धीरे महिला और पुरुष की प्रतिस्पर्धा के मापदंड बनते जा रहे हैं।

समानता और संतुलन का सबसे उत्तम उदाहरण है तराजू। बिना वजन रखे जिसके दोनों पलड़े बराबर हों वह तराजू। तराजू के जिस ओर भार अधिक होता है, वह पलड़ा झुका हुआ होता है और फिर जैसे-जैसे दूसरे पलड़े पर भार बढ़ता जाता है, वह पहले की बराबरी पर आता जाता है। फिर एक स्थिति ऐसी आती है जब दोनों पलड़े संतुलित हो जाते हैं, समानता पर आ जाते हैं। इसी सिद्धांत को अगर समाज पर लागू किया जाए तो तराजू के एक ओर महिलाएं होंगी और एक ओर पुरुष होंगे। पहले पुरुषों के पलड़े पर गुणवत्ता का, कार्यक्षमता का, अवसरों का, बौद्धिकता का वजन था; जिसके कारण उनका पलड़ा भारी था और समाज का तराजू एक ओर झुका हुआ था, परंतु धीरे-धीरे ये बातें महिलाओं के पलड़े में भी आने लगीं। उन्होंने अपने गुणों को निखारा, अपनी कार्यक्षमता को सिद्ध किया, अपनी बौद्धिकता को बढ़ाया और प्राप्त अवसरों का लाभ उठाया, जिससे उनका पलड़ा भी भारी होने लगा। हालांकि अभी यह प्रक्रिया चल रही है, पूर्ण नहीं हुई है।

समानता आने की यह प्रक्रिया बहुत लम्बी और निरंतर चलने वाली है, क्योंकि महिलाएं अगर आगे बढ़ रहीं हैं तो पुरुष भी रुके नहीं हैं, वे भी प्रगति कर ही रहे हैं, नए-नए आयाम विकसित कर रहे हैं। ऐसे में प्रतिस्पर्धा होना तय है, परंतु यह प्रतिस्पर्धा उचित मानकों पर होनी चाहिए। अंग्रेजी में इसे ‘हेल्दी कॉम्पीटीशन’ कहा जाता है।

महिला-पुरुष समानता को यदि व्यावहारिक धरातल पर देखें तो यह साफ दिखता है कि घर-परिवार की चार दीवारी से बाहर निकलकर जब से महिलाओं ने काम करना शुरु किया तब से वे दोहरा उत्तरदायित्व निभा रही हैं। ऐसा नहीं हुआ कि अगर घर की महिला बाहर काम करने निकली है तो पुरुष घर संभाल रहे हों। यह व्यावहारिक भी नहीं है क्योंकि आज दोनों का अर्थार्जन करना आवश्यक हो गया है। अत: संतुलन तब होगा जब दोनों घर के कर्तव्यों को बांट लें और दोनों अर्थार्जन के लिए बाहर निकलें। परस्पर सहयोग के ऐसे मानक कार्यालय या अन्य स्थानों पर भी लागू होंगे। अपने से वरिष्ठ अधिकारी का केवल इसलिए असहयोग करना, उसे नीचा दिखाने की कोशिश करना या उसके विरुद्ध वातावरण तैयार करना, क्योंकि वह महिला है, सही नहीं है। इससे पुरुषों को अपने दंभ को सहलाने के अलावा कुछ भी प्राप्त नहीं होगा, वरन उस महिला की तरह या उससे अधिक गुणवान होकर आगे बढ़ना श्रेयस्कर होगा।

वर्तमान में महिलाओं के पक्ष में कई कानून तथा योजनाएं बनाई जा रही हैं, जो उन्हें अत्याचार, दुर्व्यवहार, प्रताडना से सुरक्षित रखने के लिए हैं, परंतु महिलाओं द्वारा इसका गलत तरह से उपयोग किया जाने लगा है। कई बार महिलाओं द्वारा पुरुषों पर ऐसे आरोप लगाए जाते हैं, जिन्हें गलत भी सिद्ध नहीं किया जा सकता और निरपराध पुरुष फंस जाता है। जहां महिला दोषी है उसे दंड मिले और जहां पुरुष दोषी है उसे भी समान दंड मिले। न्याय की यही उचित व्याख्या होगी। इसी से समाज में संतुलन भी रहेगा और समानता भी रहेगी।

पुरुषों के बिना महिलाएं और महिलाओं के बिना पुरुष अधूरे हैं। महिलाओं के द्वारा अपनी उपादेयता सिद्ध करने के लिए पुरुषों के अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह उठाना या उसे नकारना समाज के संतुलन को हिला देगा।

महिलाओं को प्रगति करते समय यह ध्यान रखना होगा कि उन्हें किसी को नीचा दिखाने के लिए नहीं वरन स्वयं ऊपर उठने के लिए आगे बढ़ना है और भारतीय समाज का ताना-बाना इसके लिए पोषक है, उन्हें किसी भी तथाकथित ‘फेमिनिज्म’, ‘वोक कल्चर’ या ‘पितृसत्तात्मक पद्धति’ के विरोध को अपनाने की आवश्यकता नहीं है। उन्हें केवल स्वयं को गढ़ते जाना है। पुरानी वर्जनाएं टूट रही हैं, नई परिभाषाएं बन रही हैं। इन नई परिभाषाओं को गढ़ते समय कुछ ऐसे मानक तय किए जाने की आवश्यकता है जो आने वाली पीढ़ियों के लिए दिशादर्शक हों। जिस तरह हमने अपने इतिहास की कई वीरांगनाओं, विदुषियों के चरित्र पढ़े हैं, उससे प्रेरणा ली है, उसी तरह हमें अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए नया इतिहास लिखना होगा, जिसका आधार हमारे सांस्कृतिक मूल्य, हमारी परम्पराओं का जतन तथा हमारी परिवार और सामाजिक संरचना होगा, क्योंकि तभी भारतीय समाज की आत्मा भारतीय रह सकेगी।

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp

pallavi anwekar

Next Post
भाजपा विजय का फार्मूला राष्ट्रवाद और विकास का एजेंडा

भाजपा विजय का फार्मूला राष्ट्रवाद और विकास का एजेंडा

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0