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राष्ट्रीय पत्रकारिता का मापदंड प्रस्थापित करती पुस्तक ‘मुद्दा’

राष्ट्रीय पत्रकारिता का मापदंड प्रस्थापित करती पुस्तक ‘मुद्दा’

by हिंदी विवेक
in राजनीति, विशेष, सामाजिक
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हरियाणा राज्य उच्च शिक्षा परिषद के अध्यक्ष प्रो. बृजकिशोर कुठियाला ने ‘मुद्दा’ नामक पुस्तक की प्रस्तावना लिखी है. जिसमें उन्होंने कहा है कि अच्छे लेखन का मूल निष्कर्ष यह होता है कि वह देश और समाज का प्रमाणिक दर्पण होना चाहिए और साथ ही नागरिकों में कर्तव्यबोध जागृत करनेवाला होना चाहिए.

लेखन के विविध प्रकारों में से पत्रकारिता को सर्वथा उपयुक्त माना जाता है. पत्रकारिता से राष्ट्रीय विचारधारा को बल मिलना चाहिए. समाज को जागरूक कर उसे सही दिशा देना ही वैचारिक पत्रकारिता है. यही कार्य विगत एक दशक से अमोल पेडणेकर अपनी लेखनी से सतत करते आ रहे है. दिग्भ्रमित, फेक न्यूज और गुमराह करनेवाली पत्रकारिता के दौर में अमोल पेडणेकर द्वारा लिखित पुस्तक ‘मुद्दा’ सही अर्थों में राष्ट्रीय पत्रकारिता का मापदंड कही जा सकती है.

मानवीय मूल्य, पारिवारिक, सामाजिक, राजनीतिक आदि अनेकानेक विषयों पर विस्तार से उन्होंने उल्लेखनीय लेखन किया है. अपने प्रचुर लेखन में एक अनुभवी डॉक्टर की भांति उन्होंने समाज की नस-नस की जांच की है और समाज की समस्याओं के साथ ही उसका समाधान भी सुझाया है. हिंदी विवेक मासिक पत्रिका के माध्यम से बीते १ दशक से उत्कृष्ट तरीके से समाज प्रबोधन कर उन्होंने सकारात्मक पत्रकारिता के उच्चतम दर्जे को प्रस्थापित किया है. इस कार्यकाल के दौरान उनके द्वारा लिखे गए चुनिंदा लेखों को समाहित कर  पुस्तक की रचना की गई है. मुझे पूर्ण विश्वास है कि उनकी यह पुस्तक, पत्रकारिता एवं वैचारिक क्षेत्र से जुड़े लोगों का मार्गदर्शन करने में सहायक सिद्ध होगी.

उनकी लेखनी ने मानवता पर संकट बने आतंकवाद पर करारा प्रहार किया है. पंजाब में खालिस्तानी अलगाववाद हो या माओवाद हो, जंगल में छुपे नक्सलवाद हो या केरल को हिंसक गतिविधियों में झोंकने वाला साम्यवाद हो, आतंकवाद के इन सभी प्रकार और उसके दुष्परिणाम को बहुत ही संवेदनशीलता एवं गंभीरता से अधोरेखित किया है. पूर्वोत्तर के त्रिपुरा, नागालैंड व मेघालय में दुर्दांत नक्सलियों द्वारा किए गए हिंसा, उत्पात, कोहराम से लेकर शहरी नक्सलवादियों का उन्होंने बखूबी पर्दाफाश किया है. उन्होंने इस ओर भी इंगित किया कि नक्सलवादी जब गुरिल्ला युद्ध में कमजोर पड़ने लगते है तब उनकी सहायता के लिए बुद्धिजीवी अर्बन नक्सली आगे आते है. इनका उद्देश्य देश की अर्थव्यवस्था को नष्ट कर राजनैतिक अस्थिरता व अराजकता फैलाना है.

आतंकवाद परिस्थिति के अनुसार नहीं बल्कि षड्यंत्र पर आधारित होते है. इसकी वास्तविकता पर ध्यान आकर्षित करते हुए लेखक ने यह तथ्य उजागर किया है कि आतंकवादी गुमराह हुए युवा नहीं है, वे पागल भी नहीं है, वे मानसिक रूप से बीमार भी नहीं है, निराशा से हैरान परेशान नहीं है, बल्कि वे पूरी तरह से मारने-मरने को तैयार है. बाहर किसी को पता न चले इसके लिए शांति से बैठकर सोच विचार कर वह अपनी विध्वंशक योजना बनाते है और सुरक्षा एजेंसियों को चकमा देकर अपने नापाक इरादों को पूरा करने के लिए कटिबद्ध है.

इसके अलावा मातृभाषा का महत्व, इसका संरक्षण व संवर्धन करने पर भी लेखक ने जोर दिया है और लिखा है कि अपनी मातृभाषा कैसे टिकाए इसके लिए जापान, वियतनाम, चीन, इजराइल, आदि विश्व के अनेक यूरोपीय देशों से सीखना चाहिए. जब तक प्राथमिक विद्यालय स्तर पर हम मातृभाषा नहीं सीखेंगे और उच्च शिक्षा में उसे प्राथमिकता नहीं देंगे तब तक मातृभाषा को उचित सम्मान नहीं मिलेगा. साथ ही जब तक भाषा को रोजगार के साथ नहीं जोड़ा जाएगा तब तक भाषा व संस्कृति के बारे में बोलना सार्थक सिद्ध नहीं होगा.

विदेशनीति के संदर्भ में प्रत्येक राष्ट्र सतर्क रहते हुए अपने हितों को प्राथमिकता देता है और वह देना भी चाहिए. व्यापार और कूटनीति विदेशी सम्बन्धों में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है. लेखक ने इन दोनों पहलुओं पर भारत की बदलती भूमिका पर विपुल लेखन किया है. वे लिखते है कि शस्त्र के मामले में अन्य देशों पर निर्भर रहना भारत के लिए आर्थिक व रक्षा की दृष्टि से हितकारी नहीं है. जल्द से जल्द भारत को पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर होना आवश्यक है.

‘मुद्दा’ अपने इस पुस्तक में लेखक अमोल पेडणेकर लिखते है कि बीते १० वर्षों में देश-विदेश से जुड़े विविध क्षेत्रों में सकारात्मक, नकारात्मक, सामाजिक, राजनीतिक, राष्ट्रीय, अंतररराष्ट्रीय, आध्यात्मिक आदि क्षेत्रों में हुए उथलपुथल के चलते मेरे मन में जो भाव आए, वहीँ मैंने समय-समय पर हिंदी विवेक मासिक पत्रिका के पाठकों के समक्ष रखने का प्रयत्न किया है. इसके साथ ही विविध विषयों पर नियमित रूप से मैं लेख लिखता रहा. मेरे आंतरिक विचारों को लेख के रूप में पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करने का मुझे मौका मिला. उनमें से कुछ चुनिंदा लेखों का संकलन ही ‘मुद्दा’ पुस्तक के रूप में सामने आई है.

 

 

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