महिला अधिकारों एवं कानूनों का दुरुपयोग

महिलाओं के उत्पीड़न, उनकी सुरक्षा और अधिकार के लिए कानून तो बनाए गए है लेकिन बड़ी संख्या में महिलाएं इस कानून का दुुरुपयोग करने लगी हैं। झूठे मामले में वो अपने पति या ससुराल वालों को यौन उत्पीड़न, दहेज प्रताड़ना या घरेलू हिंसा में फंसा देती है। इसलिए अब समय की मांग है कि झूठे आरोप लगाने वाली महिलाओं को भी दंडित किया जाए।

भारतीय संविधान ने देश की महिलाओं को पुरुषों के समान ही अधिकार प्रदान किए हैं। स्वतंत्रता से लेकर अब तक महिलाओं की सुरक्षा, स्वावलम्बन तथा उन्हें समान अवसर प्रदान करने हेतु कई योजनाएं एवं कानून बनाए गए हैं। देश में संप्रति पदस्थ आदिवासी महिला राष्ट्रपति तथा गणतंत्र दिवस पर, आयोजित परेड (दिल्ली) में सेना के तीनों अंगों में महिला टुकड़ियों द्वारा किया गया प्रदर्शन देश में नारी सशक्तिकरण का जीता जागता उदाहरण है।

हालांकि औपनिवेशिक काल में तथा स्वतंत्रता के पश्चात कुछ वर्षों में महिलाओं पर अन्याय एवं अत्याचार की घटनाएं ब़ढ़ी हैं।  बाल-विवाह, दहेज तथा मातृत्व प्राप्त करने में असक्षम महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा के मामले सामने आए। 80 के दशक में महिलाओं के साथ दहेज प्रताड़ना एवं घरेलू हिंसा के मामले बढ़ रहे थे तब महिलाओं को पति एवं ससुराल वालों द्वारा शारीरिक, मानसिक अथवा अन्य तरह के उत्पीड़न से बचाने 1983 में 498 ए का कानून पारित किया गया। महिलाओं के समर्थन में बनाए गए इस तरह के नियम-कानून वास्तव में सराहनीय हैं। इससे लाखों महिलाएं लाभान्वित हुईं तथा उन्हें न्याय भी मिला। भारतीय महिलाओं ने अभूतपूर्व प्रगति की तथा पुरुषों से कंधे से कंधा मिलाकर, आर्थिक स्तर पर भी अपने परिवार की सहायता कर अपने परिवार के जीवनस्तर को अच्छा बनाया।

हालांकि कुछ महिलाओं ने इन कानूनों को अपने पति एवं ससुरालवालों के खिलाफ शस्त्र बना लिया। वे परिवार से जरा से मनमुटाव या मतभेद के चलते उन्हें सबक सिखाने की दृष्टि से उन पर झूठे आरोप लगाने लगी हैैं।

498 ए के अंतर्गत पति एवं उसके परिवार वालों के विरुद्ध (आधारहीन) शिकायत दर्ज करवाने के बाद सामाजिक प्रतिष्ठा धूमिल होने के कारण ससुराल वाले भी पुनः उस महिला को स्वीकार नहीं कर पाते। इसका सबसे बुरा असर बच्चों पर पड़ता है। विडंबना यह है कि पति एवं ससुराल वालों के दोषी पाए जाने पर उनके लिए जुर्माने/दंड का प्रावधान है लेकिन महिला की शिकायत झूठी साबित होने पर उसके लिए किसी सजा अथवा दंड का प्रावधान भी नहीं है। न्यायालय में केवल प्रकरण रद्द कर दिया जाता है। यह संतुलन वाली नहीं, एकतरफा स्थिति है। यदि हर क्षेत्र में महिला एवं पुरुष की बराबरी की बात की जाती है तो फिर शिकायत झूठी पाए जाने पर महिला के लिए दंड का प्रावधान क्यों नहीं है?

उच्चतम न्यायालय ने भी धारा 498 ए को परिवर्तन करने की आवश्यकता जताई है। इस तरह के कानून के अंतर्गत 6 महीने के बच्चे से लेकर 90 वर्ष के वृद्ध तक सबको अभियुक्त पक्ष में रखा जा सकता है जो कि सर्वथा अनुचित है। कई मामलों में तो यह भी देखा गया है कि ससुराल पक्ष पर हिंसा एवं दहेज प्रताड़ना का झूठा आरोप लगाने से उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा गिर जाने के कारण उस परिवार के अन्य अविवाहित बेटे-बेटियों के विवाह एवं नौकरी में भी बाधा उत्पन्न होती है। इनके साथ कौन न्याय करेगा और कब? इसमें विवाहित ननदों तक को घसीटा जाता है जिससे उनके परिवार की सामाजिक प्रतिष्ठा पर भी प्रतिकूल असर पड़ता है। इसी तरह झूठे आरोपों के जाल में पीड़ित परिवारों के बच्चों का भी इस तरह का वातावरण देख-सुनकर आगे चलकर विवाह से ही विमुख होने की संभावना को अस्वीकार नहीं किया जा सकता। यानी एक महिला के झूठे आरोपों का असर बच्चों से लेकर वृद्ध व्यक्ति तक पूरे परिवार पर ही नहीं वरन पूरे समाज पर पड़ता है।

इसी तरह विवाह के तुरंत बाद यानी एक सप्ताह अथवा एक-दो महीने के भीतर भी अपनी मर्जी से विवाहविच्छेद करने की इच्छुक युवतियां भी पति के उच्च जीवनस्तर के हिसाब से 50,000 प्रतिमाह से लेकर से 1 करोड़ तक की राशि जो गुजारा भत्ता के तौर पर मांगती हैं, भले ही वे स्वयं कामकाजी हो या उनका विवाहपूर्व जीवनस्तर पति से कम हो। क्या यह उचित है?

इसी तरह अप्राकृतिक यौन सम्बंध बनाने के लिए धारा 377 का प्रावधान है जिसमें बेवजह पति को लपेटा जाता है। बिना किसी सत्यापन अथवा पीड़िता की मेडिकल जांच के ही, पति के विरुद्ध पुलिस थाने में रिपोर्ट दर्ज कर ली जाती है, फिर पति को अदालत में स्वयं को निर्दोष साबित करने में नाकों चने चबाने पड़ते हैं। उनके मानसिक संत्रास, न्यायालय में समय तथा पैसे नष्ट होने के संदर्भ में कोई आवाज नहीं उठाई जाती।

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार , 2021 में धारा 498- के तहत देशभर में 1.36 लाख से ज्यादा मामले दर्ज किए गए थे। आज हालत यह है कि इस तरह के 90% से अधिक प्रकरण झूठे सिद्ध हो रहे है।

इसी तरह कुछ महिलाएं अपने कार्यक्षेत्र में भी अपने स्वार्थ, लालच और ईर्ष्या के चलते अपने सहकर्मियों अथवा वरिष्ठों पर शीलभंग का झूठा आरोप लगाती हैं, आरोपी पक्ष पर दबाव बनाने के लिए ऐसा किया जाता है।

कुछ महिलाओं द्वारा इस तरह महिला अधिकारों एवं कानूनों का दुरुपयोग करने के कारण लोगों को सभी महिलाओं पर उंगली उठाने का अवसर मिल जाता है। ऐसे में वास्तव में पीड़ित महिला के प्रति भी अन्याय होता है।

सरकार एवं कानून निर्माताओं को भी इस ओर ध्यान देना चाहिए। समय-समय पर नए बनाए गए कानूनों के, समाज पर पड़ने वाले परिणामों के संदर्भ में सर्वे कराकर अथवा अन्य तरीकों से संज्ञान लेना चाहिए एवं उनमें संशोधन करना चाहिए जिससे वास्तव में पीड़ित/शोषित महिलाएं स्वयं को सुरक्षित महसूस कर लाभान्वित हो सकें।

एक स्वस्थ समाज की रचना, जन-जन का कर्तव्य है। अंततः हम एक भयमुक्त, समतायुक्त समाज चाहते हैं जिसमें प्रत्येक व्यक्ति स्वयं को सुरक्षित महसूस कर अपना सर्वांगीण विकास कर सके. परिवार समाज की इकाई है और महिला तो परिवार की धुरी मानी जाती है। जब धुरी ही अपना स्थान छोड़ दे तो बिखराव अवश्यंभावी है। अतः महिलाओं को परिवार एवं समाज में अपनी भूमिका समझते हुए, समझदारी से कदम उठाने चाहिए।

                                                                                                                                                                                    ऋचा मोहबे 

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  1. Anonymous

    सब कुछ जानते हुए भी सभी आंख मूंदे हुए बैठे हैं।

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