किसी भी देश की अपनी एक विचारधारा होती है अपनी एक संस्कृति होती है, लेकिन जब इस पर वोक कल्चर हावी होने लगे तो संस्कृति दरकने लगती है। वोकिज्म की अजगरी बांहों में युवा पीढ़ी समाने लगी है और उनकी विचारधारा भी विषाक्त होने लगी है। अब वे ‘हेलोवीन’ पार्टी मना रही है। ‘वोक’ संस्कृति की आड़ में कहीं हमारी संस्कृति पर प्रहार तो नहीं।
भारतीय संस्कृति तथा सभ्यता समावेशी है, लचीली और सभी का कल्याण चाहने वाली भी। किंतु पिछले कुछ वर्षों में इस पर प्रहार करने के लिए वामपंथियों ने ‘वोक’ संस्कृति के नाम पर नया कुचक्र रचा है। विडम्बना यह है कि लचीलेपन के नाम पर अपनी संस्कृति को कोने में पटक हम वोक होने के नाम पर तेजी से आधुनिकीकरण के जाल में फंसते जा रहे है। वर्षों से दुनिया की सबसे लचीली और प्रगतिशील संस्कृति होने के बावजूद, भारत अब ‘वोकिज्म’ के गंभीर संकट का सामना कर रहा है, एक दुर्दांत वामपंथी/मार्क्सवादी रणनीति जिसने पहले ही दुनिया भर के कई देशों के परिवारों, समाजों और संस्कृति को बर्बाद कर दिया है। यह ‘वोकिज्म’ हमारे त्योहारों को बर्बाद कर चुका है। हम प्रचलित पद्धतियां भूलकर विदेशी तरीकों को अपना चुके हैं, अपने तीज-त्योहारों को भूलकर विदेशी हेलोवीन मना रहे हैं और समझ नहीं पा रहे हैं कि हम अपने ही हाथों अपनी संस्कृति को बर्बाद कर रहे हैं।
‘वोकिज्म’ क्या है? खैर, इसकी परिभाषा बहुत ही आकर्षक लगती है, प्रणालीगत अन्याय और पूर्वाग्रहों के प्रति संवेदनशीलता की अभिव्यक्ति के रूप में उदार प्रगतिशील विचारधारा और नीति को बढ़ावा देना। लेकिन वास्तव में यह किसी समाज या राष्ट्र की संस्कृति पर हमला करने और सामाजिक सरोकारों के नाम पर छिपी व्यक्तिगत शिकायतों का हिंसक बदला लेने के लिए वामपंथियों का एक बहुत ही घातक शस्त्र है। यह असल में खोखला है, नकली भी और केवल ‘मैं’ तक ही सीमित है। ‘वोक’ शब्द अफ्रीकन-अमेरिकन इंग्लिश (एएवीई) से लिया गया है जिसका अर्थ है नस्लीय पूर्वाग्रह और भेदभाव के प्रति सतर्कता। यह सामाजिक न्याय, नस्लीय और लैंगिक मुद्दों, एलजीबीटी के रणनीति के साथ पश्चिमी देशों (मुख्य रूप से अमेरिका) में 20वीं सदी की शुरुआत से उभरा। लेकिन बाद में, कई देशों ने पाया कि कैसे इसका प्रयोग वामपंथियों द्वारा सामाजिक न्याय के नाम पर आक्रोश और हिंसा को बढ़ावा देकर एक राष्ट्र और उसके समाज को तोड़ने के अपने मूल उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए एक उपकरण के रूप में किया गया था। नई पीढ़ियों पर इसका गहरा प्रभाव डाला गया है और उनके दिमागों को जानबूझकर ऐसे विषाक्त विचारों से भर दिया गया जो उनकी अपनी संस्कृति पर प्रहार करते थे।
अब यह दुनिया की सबसे सुंदर और प्रगतिशील संस्कृति, हिंदू संस्कृति को प्रदूषित कर रहा है। ‘वोकिज्म’ के नाम पर, हमारे बच्चों पर यह प्रभाव डाला जा रहा है कि परिवार और समाज बेकार हैं, जो हमारी संस्कृति के केंद्र हैं। वे समझ ही नहीं पाते कि इस परिवार की व्यवस्था ने हमें कई बार बचाया। कोरोना काल याद है? हम सभी अपनी पारिवारिक व्यवस्था के कारण ही शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और आर्थिक रूप से बचे रह सके। वामपंथी अब हमारी इस शक्ति पर हमला कर रहे हैं। वे हमारे परिवारों को महिलाओं के प्रति पक्षपाती कहते हैं! कुछ सामाजिक समस्याएं वास्तविक हैं, लेकिन इसके कारण पूरी पारिवारिक व्यवस्था को बुरा कहना तो उचित नहीं है। उन्हें कोई बताए कि किसी भी भारतीय परिवार की आत्मा एक महिला ही होती है। वह एक परिवार बनाती है और यही परिवार उसकी ताकत बनता है। परिवार एक ताकत है कमजोरी नहीं। लेकिन यहीं से वोकिज्म के नाम पर एक और रणनीति शुरू होती है! आजकल हमारी अगली पीढ़ी की लड़कियों को सिखाया जाता है कि उन्हें शादी नहीं करनी चाहिए, प्रजनन नहीं करना चाहिए आदि। उन्हें विषाक्त विचारों से भर दिया जाता है कि उनके परिवारों में उनका शोषण किया जाता है। यदि कोई हिंदू लड़की किसी गैर-हिंदू से शादी करती है, तो यह तथाकथित उदारवादियों के लिए ठीक है, लेकिन केवल हिंदू लड़के से शादी करना उनके लिए ‘रूढ़िवादी’ है। उनकी छिपी हुई वास्तविक रणनीति हमारी जनसांख्यिकी को बदलना है, जिसे बहुत कम लोग समझते हैं। किसी को इन वोकिस्टों को बताना चाहिए कि परिवार और बच्चे पैदा करना एक महिला का प्राकृतिक अधिकार है क्योंकि उसके पास कोख है जो हमारे समाज का भविष्य बनाती है! इसके अलावा, हमारे परिवार ‘हम’ के मूल दर्शन पर आधारित हैं, न कि ‘मैं’ जहां हम सभी काम खुशी-खुशी एक दायित्व के रूप में करते हैं। हम उन्हें काम नहीं मानते जिसके लिए भुगतान किया जाना चाहिए। इसके अलावा लैंगिक समानता और विविधता को बढ़ावा देने के नाम पर छोटे बच्चों को यौन प्रयोगों के लिए प्रेरित किया जा रहा है जिससे उनका शारीरिक, मानसिक तथा भावनात्मक क्षरण हो जाता है। कई बच्चों को बाद में इसका एहसास होता है और वे पछताते हैं। उन्हें भावनात्मक और मानसिक आघात का भी सामना करना पड़ता है। वोकिज्म पक्षपातपूर्ण, धोखाधड़ी और घिसी-पिटी रणनीति को बढ़ावा दे रहा है जो किसी भी राष्ट्र की सांस्कृतिक पहचान पर हमला करता है।
तो अब क्या करें? प्रगति का मुखौटा पहने हुए, वोकिज्म हमारी एकजुट सांस्कृतिक पहचान पर हमला करने, हमारी आने वाली पीढ़ियों को बर्बाद करने और इस तरह हमारे राष्ट्र को तोड़ने के लिए वामपंथियों द्वारा निर्धारित एक बहुत ही पक्षपाती हथियार है। जब हम वोकिज्म की वास्तविक छिपी हुए रणनीति को समझ चुके हैं, तो हमें अपनी भावी पीढ़ियों को वोकिज्म के खतरों के साथ-साथ अपनी महान प्रगतिशील, लचीली और वैज्ञानिक भारतीय संस्कृति के बारे में जागरुक करने की आवश्यकता है। हमें उनके साथ अपने प्राचीन साहित्य पर चर्चा करनी होगी और दुनिया को भारत के साहित्यिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक योगदान के बारे में बताना होगा। मैं आमतौर पर अपने विद्यार्थियों को बताती हूं कि हम हजारों वर्ष पहले जानते थे कि हमारे ग्रह से परे एक असीमित ब्रह्मांड है और इस ब्रह्मांड में विविध प्रजातियां पाई जाती हैं। (हमारे प्राचीन साहित्य में वर्णित यक्ष, गंधर्व, किन्नर, मानव, असुर आदि का संदर्भ याद रखें!) मैं उन्हें यह भी बताती हूं कि कैसे हमने विश्व को शून्य, चक्रावली विधि (जिसे अब फेबिनोकी अनुक्रम के रूप में जाना जाता है), शल्य चिकित्सा, जिंक और स्टील को गलाने की कला और भी बहुत कुछ दिया है। हमें उन्हें हमारी परिवार व्यवस्था के पीछे का दर्शन भी समझाना होगा। युवा लड़कियों के साथ अधिक संवाद और चर्चा की आवश्यकता है, क्योंकि वे वोकिज्म का मुख्य निशाना हैं। हमें उनके प्रश्नों और शंकाओं पर चर्चा करने और उनका समाधान करने की आवश्यकता है और उन्हें सभी पारिवारिक और सामाजिक गतिविधियों में शामिल करने की आवश्यकता है। उन्हें अपने आप से, अपने परिवार से और अपने समाज से अलग न होने दें। उनके साथ यह घनिष्ठ जुड़ाव उन्हें वोकिज्म के खतरों से बचाएगा। एक संस्कृति और दर्शन के के रूप में हिंदू हजारों वर्षों से विश्वबंधु बने रहे हैं, बने रहेंगे।