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संकट : विपक्ष के अस्तित्व पर

संकट : विपक्ष के अस्तित्व पर

by मृत्युंजय दीक्षित
in अप्रैल -२०२४, ट्रेंडींग, राजनीति, विशेष
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जैसे-जैसे देश में जन-जागरण व राष्ट्रवाद का उभार हो रहा है और मोदी सरकार शक्तिशाली हो रही है, वैसे-वैसे कांग्रेस सहित विपक्षी गठबंधन का असली रूप एवं चरित्र सामने आ रहा है। इस बार के चुनाव में तुष्टिकरण, अलगाववाद, जाति, भाषा, प्रांत की राजनीति करने वाले वंशवादी, परिवारवादी पार्टियों का अस्तित्व संकट में है।

लोकसभा चुनाव अब दूर नहीं है। सभी दल अपनी चुनावी तैयारियों को अंतिम रूप दे रहे हैं। उत्तर भारत में राजग की उपजाऊ भूमि से लेकर, द्रविड़ राजनीति वाले तमिलनाडु और वामपंथ प्रभावित केरल तक में आई.एन.डी.आई. गठबंधन के घटक दल अपनी दलीय तथा क्षेत्रीय पहचान और एक साथ मिलकर राजग से लड़ाई लड़ने की दुविधा में हैं। गठबंधन में मिल जाएंगे तो क्षेत्रीय अस्तित्व संकट में आ जाएगा, नहीं मिलेंगे तो मोदी फिर आ जाएंगे। अब भी जब चुनाव घोषित होने को है, दलहित और नेताओं की निजी महत्वाकाक्षाएं आई.एन.डी.आई. गठबंधन की राह का रोड़ा बन रही है।

वर्ष 2023 के आरम्भ में जब विधानसभा चुनावों में हिमाचल प्रदेश व कर्नाटक में कांग्रेस को विजय प्राप्त हुई थी तब ऐसा लगने लगा था कि सम्भवतः सारा विपक्ष एकजुट होकर भाजपा को रोकने में सक्षम हो जाएगा किंतु इसी वर्ष के अंत में पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव हुए और तेलंगाना को छोड़कर सभी राज्यों में कांग्रेस को भारी पराजय का सामना करना पड़ा। उसके हाथ से राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे मजबूत राज्य निकल गए, इससे कांग्रेस का मनोबल ध्वस्त हो गया। इस समय कांग्रेस  सहयोगी दलों के दबाव में है। आई.एन.डी.आई. गठबंधन को एक बड़ा झटका बिहार के मुख्य मंत्री और जदयू नेता नीतिश कुमार के पलटी मारने से लगा जो एक बार फिर भाजपा के साथ चले गए।

अपने अस्तित्व को बचाने में विपक्ष छटपटाहट में हर दिन नई गलतियां कर रहा है। पहले उसने मुस्लिम तुष्टीकरण के नाम पर अयोध्या में 22 जनवरी 2024 को राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम को ठुकरा दिया और अब भी निरंतर किसी न किसी रूप में अयोध्या के राम मंदिर का विरोध कर रहा है। कई विपक्षी दलों तथा कांग्रेस नेतृत्व की इस हरकत का परिणाम यह हो रहा है कि अब इनके वो नेता तथा कार्यकर्ता जिनके मन में प्रभु श्रीराम के प्रति जरा सी भी श्रद्धा है इन पार्टियों में रहना नहीं चाहते। भगवान राम का विरोध करने के कारण उत्तर प्रदेश के सम्भल जिले से कांग्रेस प्रवक्ता आचार्य प्रमोद कृष्णम और विभाकर शास्त्री ने भी राम विरोध के कारण पार्टी को अलविदा कह दिया। गुजरात में कांग्रेस छोड़ने वाले कद्दावर नेता अर्जुन मोढवाडिया ने कांग्रेस नेतृत्व से स्पष्ट रूप से कहा कि वह जनमानस की इच्छा के विपरीत जा रही है और पार्टी ने रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के समारोह का बहिष्कार करके भारी गलती की है इसका नतीजा उसे भुगतना ही पड़ेगा क्योंकि आम रामभक्त कांग्रेसी कार्यकर्ता बुरी तरह से निराशा में डुबा हुआ है। आज भारत का कोई भी राज्य ऐसा नहीं बचा है जहां कांग्रेसी नेताओं में भगदड़ न मची हो।

कांग्रेस के सामने दूसरा बड़ा संकट यह है कि जहां-जहां भाजपा विरोधी क्षेत्रीय दल मजबूत स्थिति में हैं वहां पर कांग्रेस को सीट साझा करने का फार्मूला तय करने में बहुत कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी ने कांग्रेस को जोरदार झटका दिया, वहीं पंजाब से लेकर हरियाणा व दिल्ली तक आम आदमी पार्टी के साथ सीटों का जोरदार टकराव चल रहा है। पंजाब विधानसभा में मुख्य मंत्री भगवंत मान और कांग्रेस विधायकों के बीच तीखी बहस देखने को मिली। वहीं मुख्य मंत्री भगवंत मान ने बयान दिया कि आगामी दिनों में बच्चे एक कहानी सुनेंगे ‘एक थी कांग्रेस’।

गठबंधन के कारण मुंह बंद रखने की मजबूरी कांग्रेस की एक और मुसीबत है। बंगाल के संदेशखाली की घटनाओं पर कांग्रेस सहित आई.एन.डी.आई. गठबंधन के किसी भी नेता ने महिलाओं पर अत्याचार करने वाले आरोपी शाहजहां शेख के कृत्यों पर मुंह नहीं खोला जबकि यही राहुल, प्रियंका गांधी मणिपुर की महिलाओं के नाम पर संसद से सड़क तक हंगामा करते हैं और यूपी के हाथरस में अपराध पर्यटक बनकर राजनैतिक रोटियां सेंकने के लिए निकल पड़ते हैं। इसी तरह विधानसभा चुनावों के पूर्व तमिलनाडु के मुख्य मंत्री स्टालिन के बेटे उदयानिधि मारन सनातन का लगातार अपमान कर रहे थे और कांग्रेस निंदा तक नहीं कर रही थी जिसका नतीजा कांग्रेस को मध्य प्रदेश, राजस्थान व छत्तीसगढ़ में भुगतना पड़ा था।

कांग्रेस की नकारात्मक राजनीति अब भारत को उत्तर व दक्षिण में बांटने का षड्यंत्र भी कर रही है। संसद के बजट सत्र के दौरान एक कांग्रेस सांसद ने कहा कि अंतरिम बजट में दक्षिण के राज्यों की अनदेखी की गई है। अब आई.एन.डी.आई. गठबंधन के नेताओं ने व्यापक रूप से इस तरह की बयानबाजी प्रारम्भ कर दी है। तमिलनाडु के एक द्रमुक नेता ए राजा ने बयान दिया कि  भारत एक राष्ट्र नहीं। वहीं बंगाल में तृणमूल कांग्रेस नेता रामेंदु सिंह राय ने अयोध्या में राम मंदिर को लेकर एक अशोभनीय टिप्पणी करते हुए कहा कि हिंदुओं को अपवित्र राम मंदिर में नहीं जाना चाहिए। इनका हाल इतना बेहाल हो गया है कि अब विपक्षी दलों के नेता मोदी विरोध के नाम पर लगातार भारत, भारतीयता, सनातन हिंदू संस्कृति का अपमान कर रहे हैं।

राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा जनमानस पर कोई प्रभाव नहीं छोड़ पा रही है, जिसके कारण कांग्रेस कार्यकर्ताओं का मनोबल गिरा हुआ है। जब कांग्रेस को सहयोगी दलों के साथ बैठकर अपने साझा उम्मीदवारों पर अंतिम मुहर लगानी चाहिए थी तब राहुल गांधी यात्रा निकाल रहे हैं। न्याय यात्रा में भी राहुल राम मंदिर के खिलाफ बोलकर अपनी विकृत मानसिकता उजागर कर रहे हैं। वह हिंदू जनमानस को खंड-खंड करने के लिए जातिगत जनगणना करवाने की मांग कर रहे हैं।

एक बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को सहयोगी सपा ने 17 लोकसभा सीटें दी हैं। 2014 के बाद हुए 2017 और 2022 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की स्थिति खराब थी। अब कांग्रेस ने राम मंदिर के उद्घाटन का बहिष्कार करके अपनी कमर तोड़ ली है। महाराष्ट्र में भी कांग्रेस का यही हाल है। पूर्वोत्तर के राज्यों अरुणाचल प्रदेश व त्रिपुरा में भी कांग्रेस पर विश्वास समाप्त हो रहा  है। तीव्र गति से विकास के इच्छुक छोटे राज्यों के क्षेत्रीय दल कांग्रेस के साथ नहीं जाना चाहते हैं। यही कारण है कि 2024 का चुनाव कांग्रेस सहित सभी विरोधी दलों के लिए अस्तित्व बचाने का चुनाव बन गया है।

 

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