हमेशा की ही भांति चीन ने एक बार फिर सीमा पर अपनी कुटिल नीतियों का जाल बिछाने का प्रयत्न किया है। तवांग घाटी में भारतीय सैनिकों के साथ झड़प के माध्यम से चीन ने एक तीर से दो शिकार करने की कोशिश की। एक ओर अपने देश में कोरोना की नई लहर के बीच विरोध का मुंह अलग दिशा में मोड़ने का प्रयत्न किया, दूसरी ओर अपनी विस्तारवादी नीति का पोषण करने की कोशिश की।
चीन ने अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर में अभी हाल में आक्रामक हरकत करके वास्तविक नियंत्रण रेखा (एल.ओ.सी.) पर अपने शत्रुतापूर्ण इरादे एक बार फिर उजागर कर दिये हैं। तवांग में तनातनी और तनाव के साथ ही चीन की कुटिल चाल को समझना बेहद जरूरी है और समय पर उसे मुंहतोड़ जवाब देना भी आवश्यक हो गया है। भारत व चीन के सैनिक विगत 9 दिसम्बर को अरुणाचल प्रदेश के तवांग के यांग्त्से क्षेत्र में एक बार फिर भिड़े। चालाक चीन 1962 के युद्ध के बाद से अपनी सामरिक स्थिति और बौद्ध धर्म से घनिष्ठ सम्बंधों के फलस्वरूप पूर्वोत्तर राज्यों पर अपनी नापाक निगाहें लगाये हुए हैं। तिब्बत पर कब्जा करने के साथ ही उसने नेपाल, भूटान, लद्दाख, सिक्किम तथा अरुणाचल प्रदेश पर भी अपनी लालची व विस्तारवादी नजरें लगायी हुई हैं। वास्तव में यह चीन के ‘फाइव फिंगर’ के सिद्धांत का प्रारूप है। इसके तहत वह नेपाल, भूटान, लद्दाख, सिक्किम व अरुणाचल प्रदेश सहित पांचों को उंगली (फिंगर) के रूप में तथा तिब्बत को हथेली के रूप में मानता है। सामरिक महत्व के इस क्षेत्र को अपनी मुट्ठी में करने की निरंतर फिराक में अपनी गतिविधियां करता रहता है।
उल्लेखनीय है कि गलवान की घटना और इससे पूर्व डोकलाम में चीन की शरारत ने तवांग में तनातनी करके विगत घटनाओं की तरह दोहराने का पुनः दुस्साहस किया है। लगता है कि चीन अपनी आदतों से जल्दी बाज नहीं आने वाला है। तवांग में तनातनी, तनाव के बीच भारत को ताल ठोंकने की बजाय अब आक्रामक नीति अपनाने को मजबूर होना पड़ेगा। चीन ही दुनिया का एक मात्र ऐसा देश है, जिसकी सीमायें 21 देशों से लगती हैं, जिसमें 14 देशों के साथ जमीनी सीमायें तथा 7 देशों के साथ समुद्री सीमायें संलग्न हैं। चीन की विस्तारवादी नीति के परिणामस्वरूप पाकिस्तान को छोड़कर लगभग सभी पड़ोसी देशों के साथ सीमा पर तनाव की स्थिति रही है। यह सच है कि भारत के साथ चीन का सीमा विवाद कोई नया नहीं है, किन्तु विगत कुछ वर्षों से चीन भारत की सीमा पर अतिक्रमण करने का अनवरत प्रयास कर रहा है। भले ही उसे इसमें सफलता नहीं मिल पा रही है, किंतु सीमाओं का उल्लंघन व जमीनी विस्तारवादी सोच के कारण ही शायद वह अपने को रोक नहीं पा रहा है।
यह समझना भी आवश्यक है कि आखिरकार चीन इस बार तवांग क्षेत्र में अपनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पी.एल.ए.) द्वारा अपनी घुसपैठ क्यों करना चाहता है? चूंकि तवांग सामरिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक दृष्टिकोण से अत्यन्त संवेदनशील तथा महत्वपूर्ण क्षेत्र है। सामरिक दृष्टि से तवांग का अपना एक विरोध महत्व है, यह शहर भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में एक रणनीतिक प्रवेश प्रदान करता है और तवांग के उत्तर में महत्वपूर्ण बुभला दर्रा है, जो भारत के तवांग जिले और चीन द्वारा अधिकृत तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र (टीएआर) के बीच एक सीमा पास है। 1962 के भारत-चीन युद्ध में चीनी सैनिकों ने इसी दर्रे का उपयोग करते हुए भारत पर धोखे से हमला किया था। इसके अलावा यांगत्से में 17000 फीट ऊंची चोटी है जो कि पूरी तरह भारत के नियंत्रण में है जो रणनीतिक दृष्टिकोण से विशिष्ट महत्व की है। तवांग जहां चीन-भूटान सीमा के पास स्थित है, वहां चबां, नेपाल व तिब्बत सीमा के साथ भी सटा हुआ है।
सांस्कृतिक रूप से भी यह क्षेत्र चीन के लिए बेहद महत्वपूर्ण बन गया है, क्योंकि तवांग मठ पोटाला पैलेस के पश्चात दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा तिब्बती बौद्ध मठ माना जाता है। यह तिब्बती लोगों का धार्मिक व सांस्कृतिक गढ़ है व छटे दलाई लामा का जन्म स्थान है, यहीं से नये दलाई लामा का चयन किया जाता है। इसके साथ ही होली वाटर फाल तिब्बत का पवित्र जल प्रपात्र भी स्थित है। यहां का जल गंगा नदी के जल की भांति पवित्र माना जाता है। इस जल प्रपात को चुमी ग्यांत्से भी कहा जाता है, जिसमें 108 झरनों का एक संग्रह है, जो बौद्धों के लिए पवित्र है। तवांग दक्षिण तिब्बत से मुख्य भूमि भारत का प्रवेश द्वार है और चीन के लिए अरुणाचल प्रदेश पर अपना भौतिक दावा करने का सबसे सरल मार्ग है। तवांग तिब्बत और ब्रह्मपुत्र घाटी के बीच गलियारे का एक महत्वपूर्ण बिंदु है। मोनपा आदिवासी आबादी तिब्बती बौद्ध धर्म का पालन करती है और जो तिब्बत के कुछ क्षेत्रों में भी पायी जाती है। चीन को निरंतर इस बात का भय सताता रहता है कि अरुणाचल प्रदेश में इन जनजातीय लोगों को उपस्थिति किसी भी समय बीजिंग के विरुद्ध लोकतंत्र समर्थक तिब्बती आन्दोलन को जन्म दे सकती है। इससे उसके खतरे की घंटी कभी भी बज सकती है।
भारत ने भूटान की सीमा से सटे तवांग से लेकर अपर सियांग व दाबांग घाटी से होते हुए डोंग-हवाई तक 2000 किलोमीटर लम्बा सड़क मार्ग बनाने का काम शुरू कर दिया है, ताकि चीन की किसी भी हरकत को और अधिक करारा जवाब दिया जा सके। भारत सिक्किम से लेकर अरुणाचल प्रदेश के सीमावर्ती इलाकों में पुल, टनल व सम्पर्क मार्गों का निर्माण बड़े पैमाने पर कर रहा है। भारत सरकार ने नवम्बर 2022 के शुरुआत में पूर्वोत्तर राज्यों में 1.60 लाख करोड़ की लागत से सड़कों व ढांचागत सुविधाओं के निर्माण की घोषणा की थी। इसमें से 44 हजार करोड़ रुपये की परियोजना सिर्फ अरुणाचल प्रदेश में लगायी जाने वाली है। मैकमोहन लाइन के पास बनाये जा रहे फ्रंटियर हाईवे के बन जाने के फलस्वरूप जहां भारत की पहुंच क्षमता व सतर्कता बढ़ जायेगी, वहीं चीन की घुसपैठ को यथाशीघ्र करारा जवाब दिया जा सकेगा। अब यह भय की चीन को बुरी तरह सता रहा है।
हिंद प्रशांत क्षेत्र में भारत का निरंतर बढ़ता वर्चस्व, भारत अमेरिकी गठजोड़, चतुर्भुज संवाद (क्वाड) व ‘आकस’ जैसे संगठन वाले देशों का भारत के प्रति बढ़ता लगाव, भारत का क्षेत्रीय शक्ति (रीजनल पावर) के रूप में विकास तथा क्षेत्रीय व्यापार (रीजनल ट्रेड) में भारत का बढ़ता प्रभुत्व चीन को अब हजम नहीं हो पा रहा है। रूस, यूक्रेन विवाद के बाद भारत का विश्व के देशों में और अधिक महत्व बढ़ जाने से भी चीन की परेशानी बढ़ गयी है। चूंकि रूस से भारत को अलग करने की चीन की मंशा पर भी आखिर पानी फिर गया।
भारत की निरंतर बढ़ती सामरिक क्षमता से भी चीन भयभीत बना हुआ है। अभी दिसम्बर 2022 में ही भारत ने अपने ‘ब्रह्मास्त्र’ यानी सबसे लम्बी दूरी की अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल ‘अग्नि-5’ का एक और सफल परीक्षण किया। इस प्रक्षेपास्त्र की मारक क्षमता अत्यंत व्यापक व प्रहारक है। यह 20 मिनट में 5000 किलोमीटर की दूरी तय कर लेगी। भारत ने अब 7000 किलोमीटर की सीमा से अधिक के लक्ष्य को भेदने की क्षमता विकसित कर ली है। अग्नि-5 अपने साथ एक टन वजन तक विस्फोटक ढोने की क्षमता रखती है। विशेष बात यह है कि यह देश की सामरिक रणनीति में बदलाव लायेगी। चीन सहित पूरा एशिया तथा अफ्रीका महाद्वीप और यूरोप के अधिकांश भाग भी इसकी जद में होंगे। भारत इस प्रकार के प्रक्षेपास्त्र को विकसित करने वाला दुनिया का पांचवां देश है। इस प्रक्षेपास्त्र की विशेषता यह है कि एक बार छोड़ा गया तो इसे रोका नहीं जा सकेगा। यह भारत के प्रक्षेपास्त्र तरकश में सबसे लम्बी दूरी तक प्रहार करने वाला प्रक्षेपास्त्र है।
चीन में कोरोना का कहर, अर्थव्यवस्था का बुरा दौर, बढ़ती महंगाई व बेरोजगारी तथा प्रॉपर्टी बाजार का गुब्बारा फूट चुका है। बैंक दिवालिया हो रहे हैं, लोगों के पास पेट भरने के लिए पैसा नहीं है। यही कारण है कि लोग सड़कों पर उतर कर प्रदर्शन कर अपना विरोध व्यक्त कर रहे हैं। चीन का एक बड़ा वर्ग देश के भविष्य को नकारात्मक रूप से देखने लगा है। यह भी एक कारण है कि अपनी जनता के आक्रोश से तिममिलाया चीन अब उनका ध्यान दूसरी ओर भटकाने की फिराक में है और तवांग में घुसपैठ उसी का परिणाम है।
चीन ने अपनी जनता के उग्र आंदोलन का ध्यान भटकाने के लिए ही इस नई चाल का सहारा लिया है। जैसा कि चीन में इन दिनों जनता व तानाशाह शी जिनपिंग में जोरदार टकराव जारी है। जहां एक ओर चीन के तानाशाह पीछे हटने को तैयार नहीं हैं, वहीं अब जनता और अधिक सहने के मूड में नहीं है। चीन द्वारा असंतोष की ऐसी शक्ल लेनी की बात सोची भी नहीं जा सकती थी। सत्तारूढ़ चीनी शासन के लिए एक खतरे का संकेत मिल गया है। चीन में कोरोना का कहर, अर्थव्यवस्था का बुरा दौर, बढ़ती महंगाई व बेरोजगारी तथा प्रॉपर्टी बाजार का गुब्बारा फूट चुका है। बैंक दिवालिया हो रहे हैं, लोगों के पास पेट भरने के लिए पैसा नहीं है। यही कारण है कि लोग सड़कों पर उतर कर प्रदर्शन कर अपना विरोध व्यक्त कर रहे हैं। चीन का एक बड़ा वर्ग देश के भविष्य को नकारात्मक रूप से देखने लगा है। यह भी एक कारण है कि अपनी जनता के आक्रोश से तिममिलाया चीन अब उनका ध्यान दूसरी ओर भटकाने की फिराक में है और तवांग में घुसपैठ उसी का परिणाम है।
उत्तराखंड औली कीे बर्फीली चोटियों पर 17 नवम्बर से 2 दिसम्बर तक आयोजित पखवाड़े भर चलने वाले भारत अमेरिकी सेना अभ्यास युद्ध-22 ने बीजिंग में बहुत गर्मी पैदा कर दी, जिसके कारण चीन ने दोनों देशों के लड़ाकू सैनिकों के वार्षिक युद्ध अभ्यास का जोरदार विरोध किया। युद्ध अभ्यास का 18वां संस्करण चीन की सीमा से सटे राज्य उत्तराखंड में आयोजित किया गया, किंतु वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास नहीं, जैसा कि चीन ने दावा किया। ड्रैगन भारत-अमेरिका के इस युद्ध अभ्यास से इतना बौखला गया था कि चीनी सरकार ने न केवल भारत के साथ इस मुद्दे को उठाया, बल्कि अमेरिका को भारत-चीन सम्बंधों में हस्तक्षेप न करने की सलाह दी। वास्तव में यह युद्ध अभ्यास भारत व अमेरिका की सेनाओं को अपने व्यापक अनुभव व कौशल को साझा करने और अपनी सूचनाओं के आदान-प्रदान के माध्यम से अपनी तकनीकी क्षमता को बढ़ाने में सहायक सिद्ध हो रही है और जो वर्षों से चलती आ रही है। आश्चर्य, किंतु सत्य है कि चीन की बौखलाहट के कारण भी तवांग में घुसपैठ की एक वजह हो सकती है।
चालाक चीन की चुनौतियों को समय रहते मजबूती के साथ जवाब देने का समय अब आ गया है। चीन की चल रही साजिशों का न केवल अब भंडाफोड़ करना है, बल्कि उसकी भाषा में जवाब देकर आक्रामक नीति भी अपनाने की आवश्यकता हो गई है। भारतीय वायु सेना का पूर्वोत्तर क्षेत्र में किया गया बड़ा युद्ध अभ्यास इसका स्पष्ट संदेश दे रहा है कि भारत अब चीन की कुटिल चाल व गतिविधियों का मजबूती के साथ न केवल मुकाबला करेगा, बल्कि उसको नाको चने चबाने के लिए बाध्य कर देगा। चीन की दोहरी चालों से अब सब वाकिफ हो गये हैं। अतः ड्रैगन की हर नई चाल को न केवल ढाल से ही बचाना है, बल्कि हर नीति के द्वारा प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से हमें अब आक्रामक बनना होगा, क्योंकि भारतीय सेना हर स्थिति से निपटने को तैयार है।
डॉ . सुरेन्द्र कुमार मिश्र