स्वस्थ लोकतंत्र सतत जागरूकता आवश्यक


लोकतंत्र की विशेषता है कि, यहां सिर काटकर नहीं बल्कि उन्हें गिनकर सत्ता प्राप्त की जाती है। हर नागरिक के पास निश्चित अंतराल पर मौका आता है कि वह सही काम न करने वालों को हटाकर अपने मन का उम्मीदवार सामने लाए। इसलिए समय-समय पर नागरिकों के बीच जागरूकता पैदा की जानी चाहिए ताकि वे अपने अधिकारों के प्रति सचेत रहें।

वर्तमान युग लोकतंत्र का युग है। भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में लोकतंत्र ही सरकार का सर्वोत्कृष्ट रूप माना जाता है। इसीलिए शासन की यह प्रणाली विश्वव्यापी बन गयी है। लोकतंत्र से जनता के शासन का बोध परिलक्षित होता है। इस शासन-प्रणाली में जनता ही शासन व्यवस्था का संचालन करने के लिए सरकार का चुनाव करती है तथा निर्वाचित सरकार जनता के प्रति उत्तरदायी होती है। भारतीय संविधान की प्रस्तावना में भारत को लोकतांत्रिक राज्य घोषित किया गया है। भारत एक सफल एवं प्रभावी लोकतांत्रिक देश बनने के मार्ग पर निरंतर आगे बढ़ते हुए आज दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश बन गया है।

स्वतंत्रता की लम्बी लड़ाई के बाद 15 अगस्त, 1947 को देश को आजादी मिलने से एक उद्देश्य तो पूरा हो गया था, किन्तु दूसरा उद्देश्य भारत को लोकतंत्र बनाना बाकी था। संविधान निर्माताओं ने भारत का संविधान बनाते समय इस बात को ध्यान में रखते हुए प्रमुखता दी। संविधान निर्मात्री सभा में यह एकमात्र विषय था जो बिना किसी वाद-विवाद के सर्वानुमति से पारित किया गया। संविधान प्रदत्त सभी मौलिक अधिकारों में राजनीतिक भागीदारी अथवा मतदान के अधिकार को सर्वोच्च माना गया है। जनता को शांतिपूर्ण तरीके से सरकार को बदलने और नई सरकार चुनने का अधिकार है। केंद्र व राज्यों में जनता द्वारा चुनी गई सरकार प्रधान मंत्री एवं मुख्य मंत्री के नेतृत्व में शासन का संचालन करती है। भारतीय मतदाता किसी भी दल को सत्ता से वंचित रख सकता है और अपने देश की राजनीतिक संरचना तथा इतिहास के प्रवाह को अपने मताधिकार के बल पर परिवर्तित कर सकता है। यह तथ्य ही लोकतंत्र का मुख्य आधार है।  26 जनवरी 1950 को देश भर में गणतंत्र दिवस समारोह बड़े ही उत्साह व उमंग के साथ मनाया जाता है, क्योंकि इसी दिन देश का संविधान लागू हुआ था। भारत के संविधान में विशेष रूप से भारतीय नागरिकों को अनेक अधिकार प्रदान किए गए हैं, इनमें से ही एक ‘राइट टू वोट’ यानि मतदान का अधिकार भी है। भारतीय संविधान लागू होने से ठीक एक दिन पहले 25 जनवरी 1950 को भारतीय निर्वाचन आयोग का गठन हुआ था। भारतीय लोकतंत्र में मतदाता होना गौरव की बात है। संविधान द्वारा प्रदान किये गये इस अधिकार के माध्यम से मतदाता मतदान कर सिद्धांतवादी पार्टी एवं योग्य जनप्रतिनिधियों का चयन कर सकते हैं, ताकि लोकतंत्र स्वस्थ, सफल एवं मजबूत हो और देश चहुंमुखी विकास के पथ पर निरंतर आगे बढ़ता रहे। इसलिए मतदान का महत्व देश के हर नागरिक के लिए जानना व समझना जरूरी है। अगर हम सही प्रतिनिधि चुनेंगे तभी समाज के हर वर्ग का विकास हो पाएगा। लेकिन भारत में लोकतांत्रिक शासन प्रणाली लागू होने के सात दशकों के बाद भी हम अब तक शत-प्रतिशत मतदान का लक्ष्य हासिल करना तो दूर की बात है उसके आसपास भी नहीं पहुंच पाये हैं। भारत में अधिकांश लोग मतदान दिवस को मात्र एक छुट्टी का दिन मानकर अपनी जिम्मेदारियों से कतराते हैं। वे यह भूल जाते हैं कि उनके लिए अपने मत का इस्तेमाल करना बेहद जरूरी है। यही वजह है कि चुनाव आयोग को हर बार चुनावों से पूर्व मतदाता जागरूकता अभियान चलाकर नागरिकों को अपने विवेक से वोट करने के लिए प्रशिक्षित करना पड़ता है।

देश में चुनाव में जन भागीदारी बढ़ाने के लिए भारतीय निर्वाचन आयोग द्वारा वर्ष 2012 से हर साल 25 जनवरी को राष्ट्रीय मतदाता दिवस मनाने की पहल शुरू की गयी ताकि प्रत्येक युवा जो 18 साल की आयु पूरी कर चुका है, वह अपने मतदान के अधिकार के प्रति जागरूक हो और इसे प्राप्त करने के लिए अपना पंजीकरण करवाकर फोटो पहचान पत्र बनवाकर मतदान कर सके। इसका मुख्य उद्देश्य तो युवाओं की लोकतंत्र में अधिकाधिक भागीदारी सुनिश्चित करने के साथ ही उन्हें मतदान करने के लिए प्रेरित करना व जागरूक बनाना है। आयोग की इस पहल का सकारात्मक प्रभाव इस अभियान के शुरू होने के दो साल बाद 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में देखने को मिला। इस चुनाव में पहली बार देश में लगभग 66.4 प्रतिशत मतदान हुआ, जो आजादी के बाद पहले आम चुनावों से लेकर अब तक साठ प्रतिशत के आसपास ही रहता था। इस चुनाव में युवाओं की उत्साह व उमंग के साथ सक्रिय भागीदारी भी देखने को मिली। इसके परिणामस्वरूप देश में सत्ता परिवर्तन हुआ और कई दशकों के बाद किसी एक दल की पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनी। इतना ही नहीं इसके बाद वर्ष 2019 में हुए सत्रहवीं लोकसभा के चुनाव में भी पिछले चुनाव की तुलना में मतदान प्रतिशत में वृद्धि हुई। स्वस्थ लोकतंत्र के लिए मतदान में पात्र मतदाताओं की अधिकाधिक भागीदारी और बिना किसी भय, पक्षपात व प्रलोभन के अपने मताधिकार का प्रयोग करना अत्यंत आवश्यक है।

राष्ट्रीय मतदाता दिवस का दिन भारत के सभी नागरिकों को राष्ट्र के प्रति उनके कर्तव्य की याद दिलाता है। यह दिवस लोगों को बताता है कि प्रत्येक व्यक्ति के लिए मतदान करना कितना आवश्यक है। मतदान प्रक्रिया में उन सबकी भागीदारी जरूरी है जो इसके लिए पात्र हैं। जहां लोकतंत्र में निर्वाचन आयोग की यह जिम्मेदारी होती है कि वह शांतिपूर्ण, निष्पक्ष व निर्भीक रूप से चुनाव करवाने की लोकतांत्रिक परम्परा को बरकरार रखे और राजनीति में आपराधिक छवि वाले लोगों के प्रवेश, धनबल व बाहुबल के प्रयोग पर पूर्ण रूप से अंकुश लगाए। वहीं देश के मतदाताओं का भी यह दायित्व बनता है कि वे प्रत्येक चुनाव में धर्म, नस्ल, जाति, समुदाय, भाषा एवं प्रलोभन के आधार पर प्रभावित हुए बिना निर्भीक होकर मतदान करें। युवाओं को भी आगे आकर जब भी वे 18 साल की आयु पूरी कर लेते हैं तो तुरंत अपना पंजीकरण करवाकर मतदाता फोटो पहचान पत्र बनवा लेना चाहिए ताकि वे आगामी चुनावों में मतदाता के रूप में भाग ले सकें।

भारतीय निर्वाचन आयोग द्वारा मतदाता दिवस मनाने की पहल देश के प्रत्येक नागरिक के लिए महत्वपूर्ण है। इससे व्यक्ति को अपने मताधिकार के महत्व का पता चलता है। प्रत्येक व्यक्ति का मत देश के भविष्य की नींव रखता है और राष्ट्र निर्माण में उसकी भागीदारी भी सुनिश्चित करता है। मतदान न केवल नागरिकों को अपने जनप्रतिनिधियों के चयन के लिए मतदान करने में सक्षम बनाता है, बल्कि यह उन्हें नागरिकता के महत्व का आभास कराने में भी मदद करता है। अधिकांश लोग यह सोचते हुए वोट नहीं करते कि उनके एक वोट से कोई बदलाव नहीं होने वाला है, लेकिन यह धारणा बिल्कुल सही नहीं है। भारत ही नहीं बल्कि दुनिया ने एक वोट की ताकत को कई बार देखा है। फ्रांस में एक वोट के कारण ही वहां लोकतंत्र की स्थापना हो सकी, आज फ्रांस विश्व के महान लोकतांत्रिक देशों में से एक हैं। मात्र एक वोट के कारण ही हिटलर जर्मनी पर अपनी सत्ता स्थापित कर सका। एक गलत व्यक्ति को सत्ता में लाने का क्या परिणाम हो सकता है, इसको पूरी दुनिया ने देखा व भोगा है। भारत में तो एक वोट कम पड़ने के कारण ही पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार गिर गयी थी तथा उन्हें मात्र 13 दिनों के बाद ही चुनावों के लिए चुनाव मैदान में उतरना पड़ा था। अमेरिका की राजभाषा का निर्णय भी एक वोट ने ही किया था। हमने इतिहास में देखा है कि एक वोट की ताकत सरकार ही नहीं लोगों के भविष्य को भी बदलने का सामर्थ्य रखती है। भारत में सरकार और विरोधी पक्ष में सामंजस्यपूर्ण सम्बंधों के विकास पर ही संसदीय लोकतंत्र का भविष्य निर्भर करता है। देश में लोकतंत्र जीवित है और फल-फूल रहा है, यह गर्व की बात है। लेकिन लोकतंत्र व स्वतंत्रता को सदैव निश्चित मानकर नहीं चलना चाहिए। प्रो. लॉस्की के अनुसार, “सतत् जागरूकता ही स्वतंत्रता की कीमत है।” जब तक भारत के लोग जागरूक रहेंगे तब तक ही लोकतंत्र का चिराग इस देश में जलता रहेगा। इसलिए देश के प्रत्येक नागरिक व मतदाता को अपने संवैधानिक अधिकारों के प्रति हमेशा सजग व सतर्क रहना चाहिए और अपने कर्त्तव्यों का पालन भी बिना किसी हीला-हवाली के करना जरूरी है।

                                                                                                                                                                                वेदप्रकाश पाण्डेय 

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