इस्लामिक मजहबी जिहाद की सनक में और आतंकवाद जैसी आत्मघाती नीतियों के चलते पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था चौपट हो चुकी है और उसकी छवि विश्व में एक भिखारी देश की बन चुकी है। उसकी कंगाली की स्थिति इतनी बदतर हो चुकी है कि उसे अपना कराची बंदरगाह तक संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के हाथों गिरवी रखना पड़ा है।
पाकिस्तान आज कल अपने राजनीतिक और आर्थिक हालात के सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है। हाल ही में पाकिस्तान से खबरें आई कि बिगड़ते आर्थिक हालात से पैदा हुई तेल की कमी के कारण पाकिस्तानी सेना को अपना सैन्य तथा युद्ध अभ्यास स्थगित करना पड़ा। जून 2022 में पाकिस्तान के वित्त मंत्रालय ने एक निर्देश जारी किया है, जिसके अनुसार अपने आर्थिक हालात को स्थिर करने के लिए उन्होंने कराची पोर्ट ट्रस्ट को संयुक्त अरब अमीरात के पास गिरवी रखने का निर्णय किया है।
इसे पाकिस्तानी शासकों की गलत नीतियों का परिणाम ही कहेंगे, जो पाकिस्तान कभी भारत के विरुद्ध अपनी सैन्य तथा आतंकवादी गतिविधिओं के लिए अपने नागरिकों की प्राथमिकताओं को दरकिनार करने को तैयार रहता था, आज उन्ही गलतियों के कारण अपनी मूलभूत सैन्य आवश्यकताओं को पूरा करने में भी अक्षम साबित हो रहा हैं। इसके पहले चीन को गधे बेचने और अपनी वाशिंग्टन स्थित दूतावास की संपत्ति को बेचने की खबरों ने भी उसकी जर्जर होती अर्थव्यवस्था को उजागर किया था।
पाकिस्तान इस स्थिति में एक दिन में नहीं पहुंचा है बल्कि दशकों की अपनी कु-नीतिओं के कारण इस स्थिति में आया है। 1947 में भारत से अलग होने के बाद भारत और पाकिस्तान, दोनों देशों की स्थिति देखें तो पाएंगे कि जहां एक ओर भारत की प्राथमिकताएं ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ से निर्देशित होकर वैश्विक शांति तथा बंधुत्व पर आधारित थी, तो वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान शीत युद्ध की गुटबाजी और भारत से जम्मू-कश्मीर की धरती हथियाने के असफल प्रयासों में लगा रहा।
1965 में ही पाकिस्तान के तत्कालीन विदेश मंत्री जूल्फिकार अली भुट्टो ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में भारत के विरुद्ध हज़ार साल के युद्ध की घोषणा कर डाली। बाद में इसी नीयत को आगे बढ़ाते हुए राष्ट्रपति ज़िया-उल-हक और आईएसआई प्रमुख हामिद गुल ने ब्लीडिंग इंडिया विथ अ थाउजेंड कट्स की अपनी नीति में अपने बहुमूल्य संसाधन झोंके।
अफगानिस्तान में अमेरिका की मौजूदगी का लाभ उठाने के भरोसे बैठे पाकिस्तान के शीर्ष नेतृत्व ने कभी इस दौरान अमेरिका की इस मजबूरी में अपने आर्थिक हितों पर ध्यान नहीं दिया और आतंकवाद और भारत के विरुद्ध परोक्ष युद्ध की नीति पर चलते हुए लगातार खुद के ही दीर्घकालीन हितों की अनदेखी करता रहा।
इसके अलावा राजनीतिक अस्थिरता और उसके कारण हुए 3 सैन्य तख्तापलटो ने भ्रष्टाचार के लिए भी अनुकूल अवसर पैदा किए। 2018 में आई स्विस नेशनल बैंक की रिपोर्ट के अनुसार पाकिस्तानियों की जमा राशि भारतीयों की जमा राशि से अधिक थी। ऐसा तब है जब पाकिस्तान की कुल अर्थव्यवस्था भारत के कई राज्यों से भी कम है। ऐसे में यह आकलन करना कठिन नहीं है कि वहां किस स्तर का भ्रष्टाचार चल रहा है।
पाकिस्तान का सैन्य खर्च 2009 से 2018 के बीच में ही 73% प्रतिशत तक बढ़ गया। विश्व बैंक के आंकड़े के अनुसार इस समय पाकिस्तान अपनी जीडीपी का लगभग 4% प्रतिशत सेना पर खर्च कर रहा था। ज़िया-उल-हक़ के दौर में पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति भारत की अपेक्षा मजबूत समझी जाती थी, पर यह स्थिति सिर्फ अमेरिकी सहायता के कारण संभव हो पाई थी।
पाकिस्तान ने अपनी भौगोलिक स्थिति का लाभ उठाकर वर्षों तक पश्चिमी देशों के भरोसे अपनी आर्थिक स्थिरता को बनाए रखा। पाकिस्तान का यह विकास, धन के सृजन पर नहीं बल्कि ऋण पर आधारित था। इसलिए जहां शीत युद्ध के अंत के बाद एक तरफ भारत अपने रचनात्मक निर्णयों से आगे बढ़ता रहा, वहीं दूसरी तरफ पाकिस्तान लगातार कर्ज में डूबता गया। पाकिस्तान औद्योगिक विकास को समर्थन देकर अपने द्वितीयक क्षेत्र पर निर्भरता बढ़ाने की बजाए सेना और आतंकवादी गतिविधियों को ही समर्थन देने में लगा रहा। नतीजा यह है कि आज भी पाकिस्तान के पास विश्व को देने के लिए अपनी भूमि के सिवा कुछ नहीं है।
जब अमेरिका ने अफगानिस्तान से निकलने की घोषणा की तब पाकिस्तानी नेतृत्व ने अपनी अर्थव्यवस्था के लिए नई बैसाखी की तलाश में चीन को ढूंढ लिया तथा उसके अवैधानिक तथा विवादित चीन-पाकिस्तान इकोनोमिक कॉरिडोर या बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव से जुड़ गया। परिणाम स्वरूप लगभग 62 अरब डॉलर के चीनी कर्ज को स्वीकार करने के बाद पाकिस्तान के विदेशी ऋण में बेतहाशा वृद्धि हुई।
एक तरफ जहां भारत के विरुद्ध उरी और पुलवामा के हमले करके उसने भारत के प्रधानमंत्री मोदी के संबंध अच्छे करने के प्रयास चौपट किए तो दूसरी ओर अपनी पंजाब केन्द्रित नीतिओं से देश के अन्य प्रान्तों, विशेषकर खैबर-पख्तून्ख्वा और बलूचिस्तान में असंतोष की स्थिति पैदा की। बावजूद इसके पाकिस्तान की एजेंसियां अपनी आत्मघाती नीतिओं पर टिकी हुई हैं। परिणाम स्वरुप आज पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत मानव विकास सूचकांक में सबसे पीछे है।
दशकों के सशस्त्र संघर्ष (जो इन्हीं नीतिओं की देन है) ने राजनीतिक अस्थिरता को और बढ़ाया ही।
किसी भी राष्ट्र की प्रमुख सम्पदा उसके नागरिक होते हैं। नागरिकों के ही श्रम और योगदान से कोई राष्ट्र प्रगतिशील और संपन्न रहता है। जब भारत को 1999 में आर्थिक प्रतिबंधों का सामना करना पड़ा तो भारतीय प्रवासियों ने देश की अर्थव्यवस्था को सक्रिय और खुला समर्थन दिया तथा अंततः अमेरिकी प्रशासन को प्रतिबंधों को वापस लेना पड़ा। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि भारतीय प्रवासी सामान्य तौर पर देश से भावनात्मक रूप से जुड़े हुए हैं। वहीं पाकिस्तान अपनी नीतिओं के कारण उसके अपने निवासी नागरिकों को भी राष्ट्रीय भावना से जोड़ने में असफल रहा।
एक समय में भारत के साथ व्यापार में मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा रखने वाले पाकिस्तान से आज भारत के सम्बन्ध इस सीमा तक खराब हो चुके हैं कि स्वयं पाकिस्तान के लिए उसकी भरपाई करना निकट भविष्य में संभव नहीं दिखता। आज भारत विश्व के लिए व्यापार और निवेश का मुख्य आकर्षण बना हुआ है। एक बाजार के रूप में सभी देश भारत की महत्ता को पहचानते हैं।
अभिषेक श्रीवास्तव