लोकसभा चुनाव के दौरान राहुल गांधी समेत अनेक कांगे्रस-इंडी गठबंधन के नेता लगातार जाति-प्रांत के नाम पर समाज में अलगाववादी और विभाजनकारी विचारों का बीजारोपण कर रहे हैं। इसके साथ ही संविधान, आरक्षण, ईवीएम जैसी सामाजिक-प्रशासनिक व्यवस्था पर कुठाराघात भी कर रहे हैं।
बीते फरवरी महीने की बात है। कांग्रेस के नेता राहुल गांधी भारत जोड़ो न्याय यात्रा निकाल रहे थे। रायबरेली जिले में किसी पत्रकार ने उनसे एक सवाल पूछा, तो राहुल भड़क गए। उन्होंने पत्रकार की जाति, नाम और मालिक तक का नाम पूछ लिया। इतना ही नहीं, पार्टी के कार्यकर्ताओं ने पत्रकार की पिटाई तक कर दी। मारपीट की इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ। वीडियो में देखा जा सकता है कि पत्रकार को पीटे जाने पर राहुल कहते हैं- मारो मत ओए, मारो मत उसको। नाम बताओ उसका। वो ओबीसी नहीं है, दलित नहीं है, आदिवासी नहीं है। अरबपति है वो। उसको छोड़ दो। जब से चुनाव प्रचार शुरू हुआ है, राहुल गांधी के आरोपों में तीखापन आ गया है। चुनाव के दौरान राजनीतिक दल आमतौर पर एक-दूसरे पर आरोप लगाते हैं। लोकतंत्र का खुलापन इन आरोपों की अनुमति देता है, पर हर बात की सीमा होती है। निराधार आरोपों को जनता स्वीकार नहीं करती है।
सामाजिक-प्रशासनिक व्यवस्था पर कांगे्रस का कुठाराघात
राहुल गांधी ने अपने चुनाव प्रचार की शुरुआत सीबीआई और ईडी को देख लेंगे की धमकी देकर की थी। विगत 31 मार्च को दिल्ली के रामलीला मैदान में इंडी गठबंधन की महारैली में यह कड़वाहट अपने शिखर पर थी। इस रैली में राहुल गांधी ने खासतौर से विस्फोटक बातें कहीं। उन्होंने कहा कि बीजेपी ने 400 पार का नारा दिया है, लेकिन बिना ईवीएम मैनेज किए, बिना मैच फिक्सिंग के और बिना मीडिया व सोशल मीडिया को खरीदे 180 भी पार नहीं होने जा रहा है। इनके सहारे वह चुनाव जीतेगी तो देश में आग लग जाएगी, आरक्षण खत्म हो जाएगा वगैरह। ये बातें देश की लोकतांत्रिक-व्यवस्था को लेकर भय पैदा करने वाली स्थिति है।
पिछले साल तेलंगाना के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी की विजय के बाद कांग्रेस पार्टी की ओर से ऐसी बातें कही गईं कि देश की राजनीति उत्तर और दक्षिण भारत के बीच विभाजित हो गई है। इतना ही नहीं देश के दलितों, जनजातियों, पिछड़े वर्गों और मुसलमानों के मन में भय पैदा करने के प्रयास भी हो रहे हैं। केवल सामाजिक व्यवस्था में ही नहीं प्रशासनिक व्यवस्था की साख को भी खत्म करने की कोशिशें हो रही हैं।
ईवीएम की साख
हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था में ईवीएम की महत्वपूर्ण भूमिका है। यह चुनाव सुधार का हिस्सा है, जिसके पीछे वोटर के अलावा चुनाव आयोग और न्यायपालिका की भूमिका है। उसे लेकर जिस तरह से संदेह पैदा किए जा रहे हैं, वे भयानक हैं। ईवीएम को लेकर उस रैली में प्रायः ज्यादातर वक्ताओं ने संदेह व्यक्त किए थे, जबकि उसके कुछ दिन बाद ही एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि बिना किसी तथ्य के केवल संदेह के आधार पर कोई फैसला नहीं दिया जा सकता है। ईवीएम से जुड़े बयान के मुकाबले राहुल गांधी की सीबीआई और ईडी को दी गई स्पष्ट धमकी ने भी ध्यान खींचा था।
आयकर विभाग के एक नोटिस को लेकर राहुल गांधी ने 29 मार्च को अपने एक्स हैंडल पर लिखा, जब सरकार बदलेगी तो लोकतंत्र का चीरहरण करने वालों पर कार्रवाई जरूर होगी और ऐसी कार्रवाई होगी कि दोबारा फिर किसी की हिम्मत नहीं होगी, ये सब करने की। ये मेरी गारंटी है। उन्होंने अपना एक वीडियो भी शेयर किया है, जिसमें वे कह रहे हैं, अगर ये संस्था अपना काम करती, सीबीआई अपना काम करती, ईडी अपना काम करती तो आज यह नहीं होता। उन्हें यह भी सोचना चाहिए कि किसी न किसी दिन बीजेपी की सरकार बदलेगी और फिर कार्रवाई होगी और ऐसी कार्रवाई होगी कि मैं गारंटी दे रहा हूं कि ये फिर से कभी नहीं होगा।
संविधान बदलने का आरोप कितना सही?
राहुल गांधी ने लगातार अपने चुनाव प्रचार के दौरान कहा है कि बीजेपी फिर से सत्ता में आई, तो वह संविधान बदल देगी, आरक्षण खत्म कर देगी। इस आरोप का आधार क्या है? नागरिकता कानून और एनआरसी जैसी बातों से मुसलमान मतदाताओं के मन में भय पैदा कर दिया गया है। तेलंगाना के मुख्य मंत्री ए रेवंत रेड्डी ने हाल में कहा कि भाजपा भारतीय संविधान पर अपने अंतिम हमले के लिए तैयार है और 400 से अधिक सीटों का नारा भारत के संविधान को बदलने के लिए आवश्यक संख्या प्राप्त करना है। उन्होंने कहा कि संसद चुनाव के बाद बीजेपी की योजना देश में आरक्षण को हमेशा के लिए खत्म करने की है।
बार-बार इस तरह की बातों के कारण प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को चुनाव सभाओं में कहना पड़ा, हमारा संविधान सरकार के लिए गीता है, रामायण है, महाभारत है, बाईबल है, कुरान है, यह सब कुछ हमारे लिए हमारा संविधान है। उन्होंने यह बात तब कही, जब राहुल गांधी ने आरोप लगाया था कि नरेंद्र मोदी और बीजेपी का अंतिम लक्ष्य बाबासाहेब के संविधान को नष्ट करना है।
राहुल गांधी अपने वक्तव्यों में ईडी और सीबीआई की स्वायत्तता की बात नहीं करते और न यह बताते हैं कि व्यवस्था में क्या दोष हैं। वे दोष कब और क्यों पैदा हुए हैं वगैरह, बल्कि वे धमकी दे रहे हैं। वे जानते हैं कि सीबीआई को न्यायपालिका ने ‘तोता’ जब बताया था, तब उनकी सरकार थी। केजरीवाल के आंदोलन के दौरान यह ‘तोता’ ही चर्चा का विषय था।
राहुल गांधी ने बीजेपी पर चुनावी बाँड योजना का बचाव करने का आरोप लगाया और इसे एक बड़ा भ्रष्टाचार घोटाला करार दिया। पर वे यह स्पष्ट नहीं करते हैं कि उनकी पार्टी को चुनावी बाँड से धन क्यों मिलता है? पीएम मोदी ने हाल में तेलंगाना के करीमनगर में एक चुनावी सभा में कहा, जब से चुनाव घोषित हुआ है, इन्होंने (राहुल गांधी) अंबानी, अडानी को गाली देना बंद कर दिया है।
कांगे्रस का हवाई वादा
निरर्थक आरोपों के बजाए बेहतर हो कि पार्टी बताए कि उसका एजेंडा क्या है। पार्टी के चुनाव घोषणापत्र में अ.जा, ज.जा और ओबीसी के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण की निर्धारित सीमा को बढ़ाने की बात कही गई है। इसके लिए संविधान संशोधन लाने का भी वायदा किया गया है। पार्टी को बताना चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देश के बावजूद ऐसा क्यों जरूरी है। कांग्रेस की सरकार बनने पर न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिए कानूनी गारंटी देने का वादा भी किया गया है। इस मौके पर यह याद दिलाना भी जरूरी है कि पार्टी ने 2019 में किसानों से जुड़े कानूनों में बदलाव की बात कही थी और केंद्र सरकार ने जब अपने पिछले कार्यकाल में तीन नए कानून बनाए, तो केवल राजनीतिक कारणों से पार्टी ने पलटी खाई और कानूनों का विरोध करना शुरू कर दिया।
इस घोषणापत्र में जिस महालक्ष्मी योजना का हवाला है, उस पर स्पष्टीकरण पार्टी ने नहीं दिया है। उसे किस तरह लागू किया जाएगा? इसके तहत हर गरीब परिवार को बिना शर्त एक लाख रुपए हर साल देने का वायदा किया गया है। यह राशि घर की महिला को दी जाएगी। पार्टी ने यह नहीं बताया है कि कितनी महिलाएं इस कार्यक्रम के दायरे में आएंगी और इस पर कुल कितना खर्च आएगा, पर अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि सरकार अपना पूरा खजाना खाली कर देगी, तब भी इसे लागू करना सम्भव नहीं होगा।