कांग्रेस का हिंदू विरोधी चेहरा जगजाहिर हो चुका है, बावजूद इसके सेक्युलर हिंदू अब भी गहरी नींद से नहीं जाग रहे। कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणापत्र में अल्पसंख्यक की आड़ में एससी-एसटी, ओबीसी के आरक्षण में सेंधमारी कर मुस्लिमों को आरक्षण सुनिश्चित करने का वादा किया है।
स्वाधीनता संघर्ष में असहयोग आंदोलन के साथ खिलाफत आंदोलन को जोड़कर ने मुस्लिम तुष्टिकरण की जो नींव रखी थी, वह आज भी यथावत है। स्वतंत्रता के बाद मुस्लिम पर्सनल लॉ के माध्यम से मुसलमानों को धार्मिक विशेषाधिकार, वक्फ बोर्ड को संपत्ति के अतिरिक्त अधिकार देने जैसे निर्णय के बाद अब कांग्रेस एससी-एसटी और ओबीसी के आरक्षण कोटे में कटौती करके मुसलमानों को आरक्षण देने की ओर बढ़ रही है। दक्षिण भारत के चार प्रांतों और पश्चिम बंगाल में यह योजना लागू हो चुकी है। अब कांग्रेस ने राष्ट्रीय स्तर भी इसे लागू करने का संकेत दे दिया है।
देश की अठारहवीं लोकसभा चुनाव प्रचार में मुस्लिम आरक्षण का मुद्दा गरमा गया है। भारतीय जनता पार्टी और प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी का आरोप है कि कांग्रेस ओबीसी, एससी और एसटी कोटे में कटौती करके मुस्लिम समाज को आरक्षण देना चाहती है। यद्यपि कांग्रेस के घोषणापत्र में मुसलमानों को आरक्षण देने की स्पष्ट घोषणा नहीं है, लेकिन उसमें अल्पसंख्यकों की आड़ में एक बिंदु ऐसा है जिसमें मुस्लिम आरक्षण का स्पष्ट संकेत है।
कांग्रेस ने इस बार चुनावी घोषणापत्र में वचन दिया है कि अल्पसंख्यकों को शिक्षा, स्वास्थ्य, नौकरी, लोकनिर्माण विभाग के अनुबंध और कौशल विकास में भागीदारी सुनिश्चित की जाएगी। सहयोग करना एक बात है और सुनिश्चित करना बिल्कुल दूसरी बात। भागीदारी सुनिश्चित तो केवल संविधान या सरकार के निर्णय के द्वारा ही सम्भव हो सकती है। दूसरा इसमें अल्पसंख्यक शब्द का उपयोग किया गया है। कांग्रेस और कुछ सरकारों का इतिहास प्रमाण है कि वे भले अल्पसंख्यक शब्द का प्रयोग करते हों पर इसका लाभ सदैव मुस्लिम समाज को ही मिला है, जबकि मुस्लिम समाज भारत में दूसरी सबसे बड़ी जनसंख्या है। अल्पसंख्यकों की श्रेणी में तो पारसी, सिक्ख, बौद्ध और जैन आते हैं। भारत में इनकी जनसंख्या मुसलमानों से बहुत कम है फिर भी अल्पसंख्यक कल्याण की विशेष योजनाओं का लाभ पारसी, जैन या सिक्खों को कभी नहीं मिलता। भारत में 7 प्रांत ऐसे हैं जिनमें हिंदू अल्पसंख्यक हैं, फिर भी उन्हें अल्पसंख्यक कल्याण योजनाओं का लाभ नहीं मिलता। भारत के 2 प्रांतों कश्मीर और लक्षद्वीप में मुस्लिम बहुसंख्यक हैं, इन राज्यों में भी अल्पसंख्यकों के लिए निर्धारित योजनाओं का लाभ उन्हें ही मिलता है। अल्पसंख्यक कल्याण की योजनाओं का लाभ पारसी, जैन, सिक्ख आदि वास्तविक अल्पसंख्यकों की बजाय भारत की दूसरी सबसे बड़ी जनसंख्या होने के बावजूद केवल मुसलमानों को मिले, यह सब रास्ते कांग्रेस सरकार के दौर में ही बने। इसलिए कांग्रेस के ताजा घोषणापत्र के शब्दों में यही संकेत मिलता है।
वचनपत्र की शब्दावली के अतिरिक्त एक कारण और भी है। दक्षिण भारत में कांग्रेस नेतृत्व की राज्य सरकारों और केरल की वामपंथी सरकार ने बहुत पहले ही मुसलमानों को आरक्षण देना शुरु कर दिया है। वर्ष 2009, 2014 और 2019 के इन राज्यों के चुनाव प्रचार के दौरान केंद्रीय स्तर भी मुस्लिम समाज को आरक्षण देने का आश्वासन दिया था। अभी जिन प्रांतों में मुस्लिम आरक्षण लागू हुआ, वहां आरक्षित वर्गों के लिए निर्धारित कोटे में ही सेंध लगाई गई है। आरक्षण लागू करने की अधिकतम सीमा 50 प्रतिशत है जो एससी, एसटी और ओबीसी के लिए निर्धारित है। यदि किसी अन्य वर्ग को आरक्षण की सूची में शामिल किया जाता है तो एससी, एसटी और ओबीसी के कोटे में ही कटौती होगी। दूसरा धार्मिक आधार पर मुस्लिम समाज को आरक्षण देना संविधान की मूल भावना के भी विपरीत है। भारत का संविधान धर्म निरपेक्षता का संदेश देता है। इसमें धर्म के आधार पर किसी को आरक्षण नहीं दिया जा सकता। इससे बचने के लिए कांग्रेस, वामपंथी और उनके सहयोगी दलों ने पिछले दरवाजे से रास्ता निकाला है। इन राज्यों द्वारा मुस्लिम समाज के जिन लोगों को आरक्षण दिया गया, उन्हें ओबीसी वर्ग में जोड़ दिया गया। इन राज्यों में तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक हैं। कर्नाटक में पिछली बार जब भाजपा सरकार में आई थी तो उसने मुसलमानों को आरक्षण सुविधा बंद कर दी थी, लेकिन अब कर्नाटक में पुनः कांग्रेस सरकार आ गई और मुस्लिम आरक्षण आरम्भ हो गया। इन राज्यों के अतिरिक्त पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी सरकार ने आजीविका के आधार पर मुस्लिम समाज के कुछ लोगों को ओबीसी सूची में डालकर आरक्षण देना आरम्भ कर दिया।
वामपंथी स्वयं के धर्म निरपेक्ष होने का दावा करते हैं लेकिन मुसलमानों के हित संरक्षण और सनातन परम्पराओं पर हमला करने में वे सेकुलरिज्म भूल जाते हैं। यदि वामपंथी धारा को सेकुलरिज्म का स्मरण होता तो केरल में मुस्लिम आरक्षण लागू न होता। केरल सरकार ने मुसलमानों को आरक्षण देने के लिए ओबीसी कोटे में एक उपवर्ग बनाया है। इस उपवर्ग कोटे में मुसलमानों को 10 प्रतिशत आरक्षण दिया जाता है। वर्तमान में केरल की सरकारी नौकरियों में मुस्लिम हिस्सेदारी 12 प्रतिशत और व्यावसायिक एवं शैक्षणिक संस्थानों में 8 प्रतिशत है।
दक्षिण भारत का एक अन्य राज्य तेलंगाना है। तब यहां मुख्य मंत्री के. चंद्रशेखर राव ने ओबीसी वर्ग के अंतर्गत मुसलमानों को 4 प्रतिशत आरक्षण शुरु किया था। तेलंगाना की वर्तमान सरकार इसे बढ़ाकर 12 प्रतिशत करना चाहती है। तेलंगाना विधानसभा में इस सम्बंधी प्रस्ताव भी पारित हो गया, लेकिन केंद्र में सत्तारूढ़ मोदी सरकार ने स्वीकृति देने से मना कर दिया।
आंध्र प्रदेश में कांग्रेस वर्ष 2004 से मुसलमानों को आरक्षण देने का प्रयास कर रही है। वाईएस राजशेखर रेड्डी के नेतृत्व वाली तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने 2004 में मुसलमानों को उनके वर्ग के आधार पर ओबीसी में शामिल करके 5 प्रतिशत आरक्षण देने का निर्णय लिया था, लेकिन आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी थी। बावजूद इसके जून 2005 में कांग्रेस सरकार अध्यादेश लाई और मुसलमानों को 5 प्रतिशत आरक्षण लागू कर दिया। पश्चिम बंगाल में यह काम वर्ष 2011 से हुआ। मुख्य मंत्री ममता बनर्जी ने मुस्लिमों को ओबीसी में शामिल करके आरक्षण लागू कर दिया। दक्षिण भारत की एक अन्य तमिलनाडु सरकार ने मुस्लिमों और ईसाइयों में प्रत्येक के लिए 3.5 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की है। यह आरक्षण भी ओबीसी वर्ग के अंतर्गत है।
इतने आरोप लगने के बाद भी कांग्रेस यह स्पष्ट नहीं कह रही कि वह मुसलमानों को आरक्षण सूची में शामिल नहीं करेगी बल्कि कोटा बढ़ाने की बात कह रही है। इससे स्पष्ट होता है कि भविष्य में सत्ता में आने पर कांग्रेस और उसके सहयोगी दल राष्ट्रीय स्तर पर भी मुसलमानों को आरक्षण देने की जुगाड़ बिठाने से पीछे नहीं हटेंगे।