भारत में वक्फ बोर्ड कानून पूरी तरह से असंवैधानिक है और न्याय के सिद्धांत के विरुद्ध भी है। एक ओर धर्म के आधार पर देश का विभाजन किया गया और दूसरी ओर वक्फ बोर्ड कानून लागू कर पुन: जमीन विभाजन की नींव डाल दी गई। लैंड जिहाद की इस गतिविधि को रोकने हेतु तत्काल इस अन्यायी कानून को समाप्त कर देना चाहिए।
कांगे्रस की तुष्टीकरण की नीति के अनुसार 1954 में तात्कालिक नेहरू सरकार वक्फ एक्ट 1954 लेकर आई, जिसमें धार्मिक सम्पत्ति के प्रबंधन के नाम पर मुसलमानों को विशेषाधिकार दिए गए। इन विशेषाधिकारों को इंदिरा गांधी की सरकार ने और तत्पश्चात राजीव गांधी की सरकार ने और अधिक पुष्ट करने का कार्य किया। इसके पश्चात वर्ष 1995 में कांग्रेस की तत्कालीन नरसिम्हाराव सरकार, उसी समुदाय विशेष को संतुष्ट करने के लिए पुराने वक्फ अधिनियम 1954 को निरस्त कर एक नया वक्फ कानून लाई, जिसने वक्फ बोर्डों को और भी अधिक अधिकार दिए गए। इसके द्वारा राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों में वक्फ बोर्डों के गठन की अनुमति दी गई और वक्फ बोर्ड को जमीनों के अधिग्रहण के सम्बंध में असीमित और निरंकुश अधिकार दिए गए। बाद में वर्ष 2013 में इस अधिनियम में मनमोहन सरकार द्वारा और भी संशोधन किया गया और एक तरह से वक्फ बोर्डों को किसी की भी सम्पत्ति छीनने का असीमित अधिकार दे दिया गया।
दरअसल 1954 में वक्फ की सम्पत्ति और उसके रखरखाव के लिए जो वक्फ एक्ट-1954 बनाया गया था, उसके द्वारा कोई भी ऐसी चल या अचल सम्पत्ति वक्फ की हो सकती है, जिसे इस्लाम को मानने वाला कोई भी व्यक्ति धार्मिक कार्यों के लिए दान कर दे। देशभर में वक्फ की इन सम्पत्तियों को सम्भालने के लिए एक केंद्रीय और 32 स्टेट वक्फ बोर्ड हैं। 1995 में लाए गए वक्फ कानून द्वारा वक्फ बोर्ड को असीमित शक्तियां दे दी गईं। यही नहीं वर्ष 2013 में उपरोक्त 1995 के अधिनियम में संशोधन करके तात्कालिक मनमोहन सरकार द्वारा वक्फ बोर्डों को किसी की भी सम्पत्ति पर दावा करने का असीमित अधिकार दे दिया गया। अधिनियम की धारा 40 में वक्फ बोर्ड को अधिकार दिया गया है कि वह किसी भी सम्पत्ति के बारे में यह जांच कर सकता है कि वह वक्फ की सम्पत्ति है या नहीं। यदि बोर्ड को लगता है कि किसी ट्रस्ट, मुत्त, अखरा या सोसायटी की कोई सम्पत्ति वक्फ सम्पत्ति है, तो वह सम्बंधित ट्रस्ट या सोसायटी को नोटिस जारी कर पूछ सकता है कि क्यों न उस सम्पत्ति को वक्फ सम्पत्ति में शामिल कर लिया जाए। यानी सम्पत्ति का भाग्य वक्फ बोर्ड या उसके अधीनस्थों पर निर्भर करता है। वक्फ के रूप में दर्ज सम्पत्ति को रिकवर करने के लिए लिमिटेशन एक्ट के तहत भी कार्रवाई नहीं की जा सकती है। धारा 107 में वक्फ की सम्पत्तियों को इससे छूट दी गई है। इस तरह की छूट हिंदू या अन्य किसी भी सम्प्रदाय से जुड़े ट्रस्ट की सम्पत्तियों के मामले में नहीं है।
यही नहीं उक्त अधिनियम की धारा-7 के अनुसार यदि किसी सम्पत्ति के बारे में यह विवाद है कि वह वक्फ सम्पत्ति
है अथवा नहीं, तो उसकी सुनवाई किसी सिविल कोर्ट में नहीं हो सकती, बल्कि उसका विनिश्चय करने की शक्ति इस अधिनियम की धारा 83 के अंतर्गत गठित अधिकरण को है। इस अधिकरण का आदेश ही अंतिम होगा, जिसे कहीं चुनौती नहीं दी जा सकती। इसके प्रावधान पक्षकारों को प्रश्नगत आदेश के विरुद्ध अपील, रिवीजन के अधिकार नहीं देते, जैसेकि भूमि और सम्पत्ति के विवादों से जुड़े विधानों में अनिवार्य रूप से दिया जाता है। (हांलाकि इस प्रावधान पर सुप्रीम कोर्ट ने मई 2022 में यह कहते हुए कि कोई भी कोर्ट हमसे ऊपर नहीं है और हम किसी भी निर्णय पर हस्तक्षेप कर सकते हैं, एक केस में रोक लगा दी है)।
वक्फ सम्पत्ति से जुड़े विवादों में वक्फ ही दावाकर्ता, वक्फ ही वकील, वक्फ ही जज है, जो भी है सब वही है, जो प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के विरुद्ध है। इसके अलावा अधिनियम की धारा 8-9 के प्रावधान भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 में दिए गए समता के अधिकार का उल्लंघन करते हैं। धारा 8 में वक्फ के सर्वेक्षण के समस्त खर्चे को, जो कि विशुद्ध धार्मिक कार्य है, राज्य सरकार द्वारा वहन करने की बात कही गई है। इसी प्रकार से धारा 9 में ‘मुस्लिम वक्फ परिषद’ के गठन में भारत सरकार के वक्फ विभाग के मंत्री को पदेन अध्यक्ष होने और अन्य क्षेत्रों से जुड़े विभिन्न मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति करने की जिम्मेदारी केंद्र सरकार को दी गई है। यह तो प्रकारांतर से वक्फ बोर्ड के कार्य के लिए केंद्र सरकार में एक केंद्रीय मंत्री अनिवार्य रूप किए जाने का उपबंध है। अतः यह प्रावधान संविधान से असंगत हैं, क्योंकि भारत का संविधान किसी भी धर्म के आंतरिक प्रशासन की अनुमति नहीं देता।
अधिनियम की धारा 23 में वक्फ बोर्ड के प्रयोजनों के लिए एक मुख्य कार्यपालक अधिकारी की नियुक्ति की बात कही गई है, जो मुस्लिम ही होगा। धारा 25 से 29 में इसके कार्य और अधिकार बताएं गए हैं। धारा 26 से 29 तक में बोर्ड के कार्यपालक अधिकारी के जो अधिकार बताए गए हैं, उनमें वक्फ से सम्बंधित (दावाकृत भी) किसी भी सरकारी अभिलेखों का निरीक्षण करने और वक्फ के विनिश्चयों के सम्बंध में जिला मजिस्ट्रेट, अपर जिला मजिस्ट्रेट या उप-खंड मजिस्ट्रेट को निर्देेश जारी करने की शक्ति है, जो कि बहुत खतरनाक है।
उपरोक्त वक्फ अधिनियम 1995 द्वारा वक्फ बोर्ड को जमीनों के अधिग्रहण के सम्बंध में असीमित और निरंकुश अधिकार दिए गए और तत्पश्चात 2013 में जो संशोधन किए गए, उसके भयानक दुष्परिणाम अब निकलकर सामने आ रहे हैं।
विगत कुछ घटनाओं के कारण यह कानून बड़ी चर्चा में रहा। मार्च 2014 में लोकसभा चुनाव शुरू होने से ठीक पहले कांग्रेस द्वारा इस कानून का उपयोग करके दिल्ली में 123 प्रमुख सम्पत्तियों को दिल्ली वक्फ बोर्ड को उपहार में दे दिया।
इसी प्रकार की एक बड़ी चर्चित घटना कर्नाटक की है, जहां गणेश चतुर्थी के अवसर पर एक मैदान में पहले गणेश प्रतिमा स्थापित होती रही है, उसे वक्फ सम्पत्ति बताकर गणेश प्रतिमा लगाने से रोक दिया गया। इसी प्रकार की बड़ी चर्चित घटना तमिलनाडु में हुई। यहां एक हिंदू बाहुल्य गांव तिरुचेंथुरई को वक्फ बोर्ड ने अपनी सम्पत्ति घोषित कर कर दिया, जिसकी जानकारी भूमि अभिलेखों में पहले से दर्ज चले आ रहे लोगों को बिलकुल भी नहीं हो पाई। यह मामला तब सामने आया जब हिंदू बाहुल्य इस गांव के एक व्यक्ति ने अपनी जमीन बेचने की कोशिश की तो रजिस्ट्रार ऑफिस से पता चला कि तमिलनाडु वक्फ बोर्ड ने उसकी जमीन समेत पूरे गांव की जमीन पर अपना दावा किया हुआ है, जिसमें उस गांव में इस्लाम के अभ्युदय के पहले बना 1500 साल पुराना मंदिर भी है। हांलाकि विवाद बढ़ने पर वक्फ को अपनी घोषणा से पीछे हटना पड़ा।
दिल्ली के वक्फ बोर्ड मामले में आम आदमी पार्टी के नेता अमानतुल्लाह खान के खिलाफ ईडी ने आरोप लगाया कि खान ने अवैध रूप से दिल्ली वक्फ बोर्ड की कई सम्पत्तियों को किराए पर दे दिया। इन्हीं आरोपों के बाद विधायक के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग के तहत भी मामला दर्ज हुआ, जिसमें वे जमानत पर हैं।
कर्नाटक में कांग्रेस की जीत के बाद वक्फ बोर्ड की बयानबाजी तेज हो गई है। राज्य में वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष शफी सादी ने जहां इस जीत के बाद कहा कि अब नई सरकार में मुस्लिम समुदाय का उप-मुख्य मंत्री बनना चाहिए और 5 मुस्लिम विधायकों को खास विभाग दिया जाना चाहिए। वहीं गुलबर्गा के वक्फ जिला अध्यक्ष सैयद हबीब सरमस्त का एक बयान वायरल हुआ कि मुसलमानों को किसी रिजर्वेशन की जरूरत नहीं है। उनके पास गुलबर्गा में ही 27000 एकड़ से ज्यादा वक्फ की जमीन है। अगर मुसलमान वक्फ को सही से सम्भालते हैं तो उनके पास इतना है कि वो हुकूमत को कर्जा दे सकते हैं।
उत्तर प्रदेश में भी जब वक्फ बोर्ड ने बड़े पैमाने पर सम्पत्तियों पर दावा जताया तो सनसनी फैल गई। इसके तुरंत बाद उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने एक आदेश जारी करके कहा कि वक्फ की सभी सम्पत्तियों की जांच होगी। योगी सरकार ने नए सर्वे का आदेश जारी करने के साथ वक्फ बोर्ड से जुड़ा 33 साल पुराना आदेश भी रद्द कर दिया। दरअसल 1989 को तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने एक आदेश जारी किया था, जिसमें कहा गया था कि यदि बंजर, भीटा, ऊसर आदि भूमि का इस्तेमाल वक्फ के रूप में किया जा रहा हो तो उसे वक्फ सम्पत्ति के रूप में ही दर्ज कर दिया जाए, फिर उसका सीमांकन किया जाए। इस आदेश के चलते प्रदेश में लाखों हेक्टेयर बंजर, भीटा, ऊसर भूमि वक्फ संपत्ति के रूप में दर्ज कर ली गईं।
ऐसे ही भोपाल में वक्फ बोर्ड द्वारा बीच शहर में सरकारी एवं निजी सम्पत्ति पर जबरन कब्जा, नव बहार सब्जी मंडी की बिल्डिंग एवं हिंदू अनाथालय की 2.73 एकड़ भूमि पर कब्जा कर अपना बोर्ड लगाया लिया एवं जबरन वसूली भी चालू कर दी, नोटिस भेजे जा रहे हैं। यहां तक कि ईसराणी मार्केट से लगी हुई नगर निगम/सरकारी 27000 स्क्वायर फीट जमीन पर कब्जा कर चार मंजिला बिल्डिंग बना कर मार्केट तैयार कर लिया गया है, पुराने शहर के बीचों-बीच अरबों रुपए की सरकारी जमीनों पर वक्फ बोर्ड द्वारा जबरदस्ती कब्जा करने का प्रयास लगातार चल रहा है और लोगो के विरोध के बावजूद शासन-प्रशासन द्वारा उचित निस्तारण नहीं हो रहा है।
यह कुछ घटनाओं की बानगी मात्र है। इस काले कानून के कारण अब तक देश में हिंदुओं की हजारों एकड़ जमीन छीन ली गई है। पिछले दिनों ही खबरें आई थीं कि वक्फ बोर्ड रेल और सेना के बाद देश का तीसरा सबसे बड़ा भू-स्वामी है। अल्पसंख्यक मंत्रालय के अनुसार वक्फ बोर्ड के पास पूरे देश भर में 8,65,646 सम्पत्तियां पंजीकृत हैं। इनमें से 80 हजार से ज्यादा सम्पत्ति वक्फ के पास केवल बंगाल में हैं। इसके बाद पंजाब में वक्फ बोर्ड के पास 70,994, तमिलनाडु में 65,945 और कर्नाटक में 61,195 सम्पत्तियां हैं। देश के अन्य राज्यों में भी इस संस्थान के पास बड़ी संख्या में सम्पत्तियां हैं। पिछले 13 साल में वक्फ की सम्पत्ति करीब दोगुनी हो गई है। कहा तो जा रहा है कि स्वतंत्र भारत में जमींदारी खत्म हो गई पर अब एक ‘मजहबी जमींदार’ पैदा हो गया है।
आपको जानकर हैरानी होगी कि वक्फ का कॉन्सेप्ट इस्लामी देशों तक में नहीं है। फिर वो चाहे तुर्की, लिबिया, सीरिया या इराक हो, लेकिन भारत में मुस्लिम तुष्टिकरण के चलते आज हालात ऐसे हैं कि इन्हें देश में तीसरा सबसे बड़ा जमींदार बताया जा रहा है।
ऐसे और भी कई तथ्य हैं, जो इस कानून की प्रासंगिकता और इसकी संवैधानिकता पर प्रश्न खड़ा करते हैं। यद्यपि वक्फ कानून संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के अनुरूप धार्मिक स्वतंत्रता के संरक्षण की बात करता है, लेकिन इसमें अनुच्छेद 14 और 15 के अनुरूप सभी धर्मों एवं सम्प्रदायों के लोगों के लिए समानता की बात नहीं है। यह केवल मुस्लिम समुदाय के लिए है। इंडियन ट्रस्टीज एक्ट 1866, इंडियन ट्रस्ट एक्ट 1882, चैरिटेबल एंडामेंट एक्ट 1890, आफिशियल ट्रस्टीज एक्ट 1913 और चैरिटेबल एंड रिलीजियस एक्ट 1990 जैसे अधिनियमों के अंतर्गत सभी समुदायों से जुड़े ट्रस्ट व दान आदि का प्रबंधन किया जाता है। इन सभी को साथ लाने के बजाय एक धर्म पर केंद्रित वक्फ कानून बना दिया गया। जब यह कानून बना था, तब इसे लेकर भले ही कुछ तार्किक कारण रहे हों, लेकिन आज यह पूरी तरह से तुष्टिकरण और सम्पत्ति हड़पने का माध्यम बनकर रह गया है। वर्तमान देश-काल और परिस्थिति में वक्फ कानून की संवैधानिकता और उपादेयता दोनों पर प्रश्नचिन्ह है। इसने न केवल भूमि अधिकारों सम्बंधित विवादों को बढ़ावा दिया है बल्कि इससे देश, विधि और आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था के लिए बड़ी चुनौती प्रस्तुत की है, इसलिए बिना किसी लाग लपेट के सरकार द्वारा वक्फ कानून को समाप्त कर देना चाहिए।