हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
विमर्शों के युद्ध में भारत खड़ा करे अपना वैश्विक मीडिया संस्थान

विमर्शों के युद्ध में भारत खड़ा करे अपना वैश्विक मीडिया संस्थान

by रवींद्र सिंह भड़वाल
in ट्रेंडींग, देश-विदेश, मीडिया, विशेष, सामाजिक
0

  विमर्शों के इस वैश्विक युद्ध में अब भारत को अपनी रणनीति बदलनी होगी। भारतीय दर्शन में एक विचार आता है कि यदि कोई लीक आपको परेशान कर रही है, तो उसे बार-बार मिटाने में समझदारी नहीं है। बेहतर यह होगा कि उसके समक्ष एक उससे भी बड़ी लीक खींच दी जाए। विमर्शों के इस युद्ध में भारत को भी अब यही रणनीति अपनानी चाहिए। शत्रु पक्ष के झूठे विमर्शों की प्रतिक्रिया में उलझे रहने के बजाय भारत को अब अपने पक्ष के विमर्शों को आगे बढ़ाना चाहिए।

वर्तमान में विभिन्न राष्ट्रों के मध्य परंपरागत युद्ध की संभावनाएं बेहद कम हो गई हैं। दुनिया को अब समझ आ चुका है कि परंपरागत युद्धों का लाभ कम है और हानि अधिक। रूस-यूक्रेन या इजरायल-हमास युद्ध के अनुभवों से यह तथ्य और भी अधिक स्पष्ट हो गया है। इसके बावजूद अपना प्रभाव बढ़ाने, दूसरे देशों के प्रभाव को कम करने या उन पर अपना प्रभाव जमाने की आकांक्षाएं अब भी कम नहीं हुई हैं। ऐसे में अब परंपरागत युद्धों के बजाय विमर्शों के सहारे युद्ध लड़े जा रहे हैं। विमर्शों के इस युद्ध में सूचना की केंद्रीय भूमिका रहती है। इसलिए मीडिया, सोशल मीडिया या सूचना तंत्र के अन्य माध्यमों से विमर्शों का यह युद्ध दुनिया भर में निरंतर चल रहा है। पिछले एक दशक से जिस तरह से भारत का विश्व समुदाय में उभार हुआ है और भविष्य की संभावनाओं के प्रति भारत बेहद आश्वस्त दिखता है, तो दुनिया के कई देशों को यह भारत रास नहीं आ रहा। इसलिए भारत के विरुद्ध इन देशों ने विमर्शों का युद्ध छेड़ रखा है।

विमर्शों के इस युद्ध में सूचना तंत्र के माध्यम से दुनिया भर में भारत के प्रति ऐसी सूचनाएं परोसी जाती हैं, जिनसे भारत की छवि धूमिल हो, निवेशकों का भारत में विश्वास कम हो या फिर भारत की किसी तरह की क्षति होती हो। साइबर हमले, भारत के प्रति झूठी खबरें प्रसारित करना, भारत विरोधी एजेंडे को बढ़ाने के लिए फंडिंग जैसे कई रूपों में भारत के विरुद्ध यह युद्ध निरंतर लड़ा जा रहा है। विमर्शों के इस युद्ध के संदर्भ में भारत की स्थिति का आकलन करें, तो भारत इसके ऊपर होने वाले हमलों के प्रति तुरंत बचाव की मुद्रा में आ जाता है। इसके साथ ही स्वयं को निर्दोष  सिद्ध करने में ताकत झोंक दी जाती है। इससे एक नुकसान यह होता है कि जब किसी आरोप से मुक्त होने के लिए प्रयास किए जाते हैं, तो इससे दुनिया में यह संदेह बढ़ने का खतरा बढ़ जाता है कि कहीं वास्तव में वह अपराधी तो नहीं। इसे समझने के लिए हाल ही की कथित हिंडनवर्ग रिपोर्ट एक सटीक उदाहरण है। इस एक रिपोर्ट के सामने आने के बाद भारत की अर्थव्यवस्था को बड़ा झटका लगा। संबंधित भारतीय औद्योगिक प्रतिष्ठान ने अपनी बेगुनाही को साबित करने के प्रयास शुरू कर दिए। बाद में भारत की न्यायपालिका ने इस कथित रिपोर्ट को तथ्यहीन और झूठा बताया। मगर तब तक भारत की अर्थव्यवस्था को इससे अरबों रुपयों का नुकसान हो चुका था।

विमर्शों के इस वैश्विक युद्ध में अब भारत को अपनी रणनीति बदलनी होगी। भारतीय दर्शन में एक विचार आता है कि यदि कोई लीक आपको परेशान कर रही है, तो उसे बार-बार मिटाने में समझदारी नहीं है। बेहतर यह होगा कि उसके समक्ष एक उससे भी बड़ी लीक खींच दी जाए। विमर्शों के इस युद्ध में भारत को भी अब यही रणनीति अपनानी चाहिए। शत्रु पक्ष के झूठे विमर्शों की प्रतिक्रिया में उलझे रहने के बजाय भारत को अब अपने पक्ष के विमर्शों को आगे बढ़ाना चाहिए। इसके लिए मीडिया की केंद्रीय भूमिका रहेगी। यहीं से भारत को अपने एक वैश्विक मीडिया वेंचर की आवश्यकता महसूस होती है। भारत को वैश्विक मीडिया वेंचर के रूप में एक ऐसे सूचना तंत्र को खड़ा करना होगा, जो भारत के विमर्श को प्रभावी ढंग से आगे बढ़ा सके।

 दरअसल, भारत के विरुद्ध झूठे विमर्शों को स्थापित करने में विदेशी मीडिया संस्थानों की बड़ी भूमिका रही है। प्रसार भारती के पूर्व मुख्य कार्यकारी अधिकारी शशि शेखर वैंपति ने अपने एक लेख में लिखा कि समकालीन वैश्विक परिदृश्य में, जनमत को आकार देने और अंतर्राष्ट्रीय मामलों की समझ बनाने में मीडिया की भूमिका महत्त्वपूर्ण है। आख्यानों के इस जटिल जाल में, विश्व मंच पर भारत का चित्रण विभिन्न कारकों के प्रभाव के अधीन है। वैश्विक शक्ति गतिशीलता की जटिल परस्पर क्रिया इस बात पर एक लंबी छाया डालती है कि भारत को विश्व मंच पर कैसे चित्रित किया जाता है, जो कई कारकों से प्रेरित होता है और अक्सर विभिन्न एक्टर्स द्वारा प्रचारित भारत विरोधी प्रचार द्वारा बढ़ाया जाता है। वहीं, वैश्विक मीडिया द्वारा भारत विरोधी रिपोर्टिंग का एक कारण भारत के बारे में इसकी सीमित समझ, आंशिक रूप से अज्ञानता और उनके व्यवसाय मॉडल से प्रेरित है। टेबल रिपोर्टिंग के कारण न्यूयॉर्क या लंदन में बैठे उन संस्थानों के पत्रकार आखिर कितनी तथ्यपूर्ण पत्रकारिता कर सकते हैं। इससे अंततः भारत की छवि धूमिल हो रही है।

इस संकट से निपटने का सबसे प्रभावी उपाय भारत के अपने वैश्विक मीडिया संस्थान की स्थापना हो सकता है। यह संस्थान भारत के विषयों को सही ढंग से समझने के साथ-साथ घटनाओं की स्पॉट रिपोर्टिंग के माध्यम से तथ्यपूर्ण रिपोर्ट दुनिया के समक्ष रख सकता है। इससे विभिन्न घटनाओं को लेकर विदेशी मीडिया की तथ्यहीन या विद्वेषपूर्ण रिपोर्टिंग से बचा जा सकता है। इस दिशा में दूरदर्शन ने 14 मार्च, 1995 को अपना अंतरराष्ट्रीय चैनल आरंभ करके विश्व के साथ सार्थक संवाद का प्रयास किया। तब इस चैनल को डी.डी. वर्ल्ड कहा जाता था, जिसे 1 मई, 2002 से नया नाम डी.डी. इंडिया दिया गया। इस पर प्रसारित कार्यक्रमों में अंतरराष्ट्रीय दर्शकों को भारतीय सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक आर्थिक क्षेत्रों की अद्यतन जानकारी दी जाती है। मगर अव्यवस्था या सही विजन के बिना चल रहे इस चैनल को विश्व समुदाय में तो छोड़िए, भारत में ही आज कितने लोग देख रहे हैं।

भारत में एक वैश्विक मीडिया संस्थान विकसित होने की पर्याप्त संभावनाएं हैं। पोलैंड की मीडिया विशेषज्ञ अन्ना सिविरस्का च्माज़ ने अपने शोध-पत्र में लिखा कि भारत एक ऐसा देश है जहां मीडिया बाजार में सबसे अधिक गतिशील परिवर्तन देखे जा रहे हैं। यह चीनी नहीं, बल्कि भारतीय बाजार है, जहां इस क्षेत्र में निवेश करना अब सबसे अधिक सार्थक है। आज जब भारत विकसित राष्ट्र बनने की ओर अग्रसर है, भारत को वैश्विक विमर्शों के क्षेत्र में अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए एक अपने वैश्विक मीडिया संस्थान की जरूरत कहीं अधिक बढ़ जाती है। भारत के मीडिया संस्थानों, मीडिया विश्वविद्यालयों-संस्थानों, पेशेवरों को इस दिशा में कुछ संगठित प्रयास करने होंगे।

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp

रवींद्र सिंह भड़वाल

Next Post
कौन है वास्तविक तानाशाह ?

कौन है वास्तविक तानाशाह ?

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0