हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
भेड़ियों के चेहरों पर  मुस्कुराहट है

भेड़ियों के चेहरों पर मुस्कुराहट है

by अमोल पेडणेकर
in जुलाई -२०२४, ट्रेंडींग, देश-विदेश, मीडिया, राजनीति, विशेष, सामाजिक
0

भले ही फिर से मोदी सरकार सत्ता में आ गई हो, लेकिन इनकी राह आसान नहीं है। विपक्षी गठबंधन के नेता नित नए षडयंत्र रच कर केंद्र सरकार को अस्थिर करने का प्रयास जरूर करेंगे। विविध प्रकार के आंदोलनों व गतिविधियों के द्वारा सरकार विरोधी भावनाएं भड़काने का प्रयास किया जाएगा।

विद्यार्थी परीक्षा में आने वाले प्रश्नों के उत्तर को बार-बार याद करते हैं, लेकिन जब परीक्षा में जाकर बैठते है, तब याद किए प्रश्न प्रश्नपत्रिका में नहीं होते। ठीक ऐसा ही इस चुनाव में भाजपा के साथ हुआ है। 400 के पार, मोदी की गारंटी, फिर एक बार मोदी सरकार ये सारे प्रश्न जनता के मन में थे ही नहीं। इस कारण भाजपा सहित एनडीए को जैसे-तैसे पास होना पड़ा। पिछले 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में शानदार सफलता प्राप्त करने वाली भारतीय जनता पार्टी को 2024 के चुनावों में बैकफुट पर आना पड़ा। इन दोनों चुनावों में भाजपा ने क्रमश: 282 और 303 सीटें जीतकर अपने दम पर सत्ता प्राप्त की थी और प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी का डंका बज रहा था। पिछले 10 वर्षों में भाजपा केंद्र और एक दर्जन से अधिक राज्यों में सत्ता में आई और विकास के नए युग की शुरुआत हुई थी। कोई विपक्षी नेता नहीं था जो उनके आसपास पहुंच सके। भाजपा को विकास कार्यों में अभूतपूर्व सफलता मिली। हालांकि ‘अब की बार 400 पार’ का नारा देने वाली भाजपा के अश्वमेध के घोड़े 240 सीटों पर और एनडीए 293 सीटों पर रुक गए। भाजपा के नेतृत्व वाला गठबंधन सत्ता में आया, मोदी के प्रधान मंत्री पद की हैट्रिक लग गई है, लेकिन दो बार अपने दम पर आसान बहुमत प्राप्त करने वाली भाजपा को पिछली बार की तुलना में 63 सीटें क्यों गंवानी पड़ी?

पिछले 10 वर्षों में वित्तीय, सामाजिक और औद्योगिक मोर्चों पर शानदार प्रगति, मजबूत रक्षा रिकॉर्ड, आक्रामक विदेश नीति, वैश्विक प्रभाव और जनता के मन में मोदी की ऊंची प्रतिष्ठा के साथ भाजपा को भरोसा था कि वह 2024 का लोकसभा चुनाव आसानी से जीत लेगी और वह असम्भव भी नहीं था। इसी आत्मविश्वास के साथ सामने आया अति महत्वाकांक्षी नारा ‘अबकी बार 400 पार’।

हालांकि इस अति आत्मविश्वास के कारण ही उत्तरी कर्नाटक से छह बार भाजपा के लोकसभा सदस्य रहे अनंतकुमार हेगड़े ने कह दिया कि भाजपा कोे संविधान बदलने के लिए 400 से अधिक सीटों की जरूरत है। फैजाबाद से भाजपा उम्मीदवार लल्लूसिंह और मेरठ के सांसद अरुण गोविल ने भी यही स्वर दोहराया, उन्होंने कहा कि संविधान को बदलने के लिए ‘400 पार’ आवश्यक है। कांग्रेस समेत विपक्षी दलों ने फिर इसे भुनाया। इस घोषणा की आलोचना हुई। संविधान बदलने की बात आम्बेडकरवादी अनुयायियों के साथ-साथ दलित और मुस्लिम समुदाय के बीच घर कर गई। संवैधानिक बदलाव की चर्चा को लेकर भाजपा नेतृत्व की ओर से कोई भी संतोषजनक उत्तर नहीं मिला। भाजपा के अश्वमेध के घोड़ों को विपक्ष ने नहीं बल्कि जनता ने रोक दिया। लोगों को मोदी के नेतृत्व और भाजपा पर भरोसा है, इसीलिए ‘एनडीए’ गठबंधन को बहुमत मिला है। यहां तक कि विपक्ष खासकर कांग्रेस पार्टी भी मजबूत हो गई है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को भाजपा का मातृ संगठन कहा जाता है। समान विचारधारा के कारण भाजपा को हर अभियान में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का पूर्ण समर्थन प्राप्त है। भाजपा की सफलता में संघ के योगदान को नकारा नहीं जा सकता, लेकिन चुनाव के अंतिम पड़ाव में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे. पी. नड्डा ने कहा, ‘अब भाजपा को संघ की जरूरत नहीं रही’ आमजन पर इस कथन का विपरीत प्रभाव पड़ा। चुनाव के अंतिम पड़ाव में भाजपा को लगे झटके में शायद ये वजह भी शामिल होगी।

लोकसभा चुनाव में राज्यों के नेतृत्व को अधिक महत्व नहीं दिया जाता। भाजपा शासित राज्यों में भी प्रदेश नेतृत्व पर दबाव और दिल्ली से निर्णय थोपना जारी था। उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ एक लोकप्रिय मुख्य मंत्री हैैं। लोकसभा चुनाव के लिए उनके द्वारा सुझाए गए उम्मीदवारों को हटा दिया गया। 10 साल पहले उत्तर प्रदेश में 71 सीटें और 5 साल पहले 62 सीटें जीतने वाली भाजपा को इस बार उत्तर प्रदेश में 33 सीटें मिलीं। यानी इस एक राज्य में बीजेपी को 29 सीटों का नुकसान हुआ। राज्य नेतृत्व को दरकिनार किए जाने की पृष्ठभूमि में भाजपा मध्य प्रदेश को छोड़कर कुछ राज्यों में बैकफुट पर चली गई है। भाजपा का महत्वाकांक्षी एजेंडा दक्षिणी राज्यों में कमल खिलाना था, पर वहां पर कमल मुरझा गया। महाराष्ट्र में भाजपा और शिवसेना का गठबंधन ढाई-ढाई साल के मुख्य मंत्री विवाद में टूट गया। भाजपा, शिवसेना (शिंदे गुट) के साथ सत्ता में आई थी। इस दौरान एनसीपी पार्टी विभाजित हो गई। अजित पवार, जिनकी सिंचाई घोटाले को लेकर आलोचना हो रही थी, उन्हीं को भाजपा ने सत्ता में अपने साथ ले लिया। 2014 में इसी महाराष्ट्र ने 41 सांसद दिए थे। मोदी शासन के दूसरे कार्यकाल में भी पिछले लोकसभा चुनाव 2019 में उन्होंने उसी महाराष्ट्र से 41 सांसद दिए। वही भाजपा आज सिर्फ 9 सांसदों पर सिमट गई, लेकिन इसके उलट कांग्रेस और एनसीपी (शरद पवार) को इसका लाभ मिला। देशभर के कई आंदोलनों को गम्भीरता से नहीं लिया गया। मराठा आंदोलन, पंजाब का किसान आंदोलन, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के प्रश्नों पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया है। बेरोजगारी, महंगाई जैसे अन्य मुद्दों पर असंतोष था। इस सब से जो क्रोध उत्पन्न हुआ, वह ईवीएम में दिखाई दिया।

वास्तव में भाजपा के पास एक से अधिक सम्मोहक अभियान के मुद्दे थे। पिछले 10 वर्षों के आर्थिक और औद्योगिक विकास के साथ हमारा देश अब तीसरी आर्थिक शक्ति बनने की ओर अग्रसर है। यह भाजपा सरकार की सफलता है। अनेक कल्याणकारी योजनाएं आम लोगों के जीवन में खुशियां लेकर आई थीं, लेकिन एक नहीं कई गलतियां प्रचार अभियान का मुद्दा बन गए और अभियान की दिशा भटक गई, इसका गहरा असर हुआ। एक तरफ जहां दलित, अल्पसंख्यक, मजदूर वर्ग, निम्न मध्यम वर्ग ने कांग्रेस और इंडी अलायंस के घटक दलों को वोट दिया। वहीं मध्यम वर्ग, उच्च मध्यम वर्ग, शहरी सम्पन्न वर्ग ने मतदान से परहेज किया। मोदी को प्रधान मंत्री बनाना है पर अपने चुनाव क्षेत्र का बीजेपी का उम्मीदवार गिराना है, यह नीति भाजपा के ही कुछ प्रमुख कार्यकर्ताओंने नीजि स्वार्थ के लिए अपने-अपने चुनाव क्षेत्र में अपनाई है। जिसके कारण भाजपा की सफलता पर असर पड़ा।

देश ने नीतीश कुमार की पार्टी के नेता को एनडीए सरकार में मंत्री पद की शपथ लेते देखा। चंद्रबाबू नायडू अपनी शर्तों के साथ सरकार में हैं। भाजपा की एनडीए में एकनाथ शिंदे की शिवसेना तीसरी सबसे बड़ी घटक पार्टी बन गई है। मुख्य मंत्री एकनाथ शिंदे के लिए यह महसूस करना बहुत स्वाभाविक है कि उन्होंने लोकसभा चुनाव में भारी जीत प्राप्त की है, इनके बिना मोदी कुछ भी ‘बनते’ नहीं है यह वास्तव बना है। यह तस्वीर यह भी दर्शाती है कि जीवन में जनता को दो वक्त की रोटी, बेरोजगारी की चिंता सता रही थी। इस पिछाड़ी में यह बात महसूस करनी आवश्यक है।

नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए ने तीसरी बार सत्ता में हैट्रिक लगाई है। पं. जवाहरलाल नेहरू के बाद तीन चुनावों में यह चमत्कार करने में सफल रहे है, लेकिन इस सरकार के सामने चुनौतियां और भी गम्भीर हो गई हैं। विपक्ष के साथ-साथ आंदोलनकारी भी बाहरी ताकतों की सहायता से इस सरकार को अस्थिर करने का प्रयास कर सकते हैं। चुनाव नतीजों से पहले एक साक्षात्कार में प्रशांत किशोर संकेत दे चुके हैं कि कुछ आंदोलनकारी विदेशी पैसे वाले गिरोहों की सहायता के लिए अलग-अलग तरह के आंदोलनों की संख्या बढ़ाने का पुरजोर प्रयास करेंगे। ये सभी आंदोलन समाज में सरकार विरोधी आवाज और असंतोष पैदा करने के लिए किए जाएंगे। इसका मुख्य उद्देश्य देश, सनातन पद्धति, हिंदू धर्म की प्रताड़ना करना है। आंदोलन का प्रवाह राष्ट्रीय विचारधारा और हिंदू संस्कृति के विरुद्ध रहेगा। अराजकतावादी, सोरोस फाउंडेशन द्वारा वित्त पोषित गैर सरकारी संगठन इन सब गतिविधियों में सबसे आगे होंगे। सरकार यह सब कैसे सम्भालती है, यह उस समय सरकार की प्रतिक्रिया पर निर्भर करेगा।

एनडीए की सरकार के शपथ लेने से पहले चंडीगढ़ के विमानतल पर एक महिला सिक्योरिटी गार्ड ने भाजपा की सांसद कंगना राणावत के गाल पर तमाचा मार दिया। इस घटना को सिर्फ गुस्से वाली घटना समझना उचित नहीं होगा। यह घटना अत्यंत सुनियोजित पद्धति से की गई है। घटना के बाद तुरंत सोशल मीडिया के सभी माध्यमों पर अलग-अलग ग्रुप तैयार हो गए। उस महिला सिक्योरिटी गार्ड का गुणगान करने के लिए सारे सोशल मीडिया ग्रुप एक साथ सारे विश्व में प्रचार कर रहे थे। सरकार के विरोध में रेफरेंडम तैयार करने की मोदी विरोधियों की तैयारी हमें समझना अत्यंत आवश्यक है। सरकार विरोधी गुटों के माध्यम से रचे गए इस षडयंत्र को हिंदू बुद्धिजीवी प्रभावी ढंग से विफल नहीं कर पाए। इसी प्रकार के अलग-अलग देश विरोधी, सरकार विरोधी आंदोलन भविष्य में रचे जाएंगे। उस पर गलत तरीके से जनमत भी तैयार किया जाएगा। कश्मीर में आतंकवादियों द्वारा हिंदू समुदाय पर अलग-अलग जगहों पर हो रहे घातक हमले भविष्य के संकटों की सुगबुगाहट है। इन भयंकर आतंकवादी घटनाओं पर कोई प्रभावी प्रतिक्रिया नहीं दे रहा है। प्रतिक्रिया इस बात पर निर्भर करेगी कि हिंदू बुद्धिजीवी और सरकार कितने प्रभावी ढंग से इन आंदोलनकारियों और आतंकवादियों को बेनकाब करती है।

वर्तमान में विरोधी गुटों की कार्रवाईयों को देखते हुए यह बातें महसूस हो रही है कि…

भेड़ियों के चेहरों पर मुस्कुराहट है,

समझ जाइए, खतरे की आहट है।

चालाक लोमड़ियों के घर दावत जुटी है,

लगता है कोई बगावत की सुगबुगाहट है॥

राष्ट्रीय स्व. संघ के कार्यकर्ता विकास वर्ग के समापन समारोह में पू. सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि हर मर्यादा का पालन होना चाहिए। समाज में झूठ नहीं फैलाना चाहिए। ऐसे में 100 प्रतिशत वोट पाना कभी सम्भव नहीं है। चुनाव एक प्रतियोगिता है, युद्ध नहीं। ‘भारत के सामने भविष्य में आने वाली चुनौतियों के बारे में सोचने’ के महत्व पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि पिछले 10 वर्षों में एनडीए के कार्यकाल में कई अच्छी चीजें हुई हैं। भारत की आर्थिक और सामाजिक स्थिति में सुधार हुआ है। दुनिया में भी भारत की प्रतिष्ठा बढ़ी है। बावजूद इसके हम चुनौतियों से अछूते नहीं हैं। चुनाव के दौरान हुए अतिवाद से बाहर आकर अन्य चुनौतियों के बारे में सोचने की जरूरत है। समाज को संगठित करना महत्वपूर्ण है, सामाजिक परिवर्तन से ही व्यवस्था बदलती है।

आखिरकार यह मोदी सरकार ही थी, जिसने साल 2015 में 26 नवम्बर को संविधान दिवस के रूप में मनाना शुरू किया। शाहीन बाग, जाट, मराठा, गुर्जर और यहां तक कि हाल ही में राजपूत समाज के लोगों ने भी आरक्षण की मांग उठाई। इन सभी के केंद्र में आरक्षण था, लेकिन विरोधियों ने सभी आंदोलन के केंद्र में संविधान को रखा। चुनाव प्रचार के दौरान बार-बार संविधान बचाने का मुद्दा उठाया गया। संविधान बदलने की बात विपक्ष लोगों तक पहुंचाने में सफल रहा। माना जा रहा है कि विपक्ष देश के दलित समुदाय तक अपनी यह बात पहुंचाने में कामयाब रहा कि भाजपा डॉ. बाबासाहेब के बनाए संविधान को बदल सकती है। चुनाव के दौरान भाजपा के कार्यकर्ता, नेता और समर्थक अपनी ही सरकार के दौरान निष्ठावान लोगों की अनदेखी करते थे। बाहर से आए कई नेताओं को राज्यसभा भेजना या लोकसभा उम्मीदवार बनाना पार्टी के नेताओं-कार्यकर्ताओं को स्वीकार नहीं हुआ। इन सब कारणों से कुछ भाजपा कार्यकर्ता, नेता और समर्थक मुखर होकर मतदान करवाने में सक्रिय नहीं रहे, तो कुछ ने विरोध भी किया। कार्यकर्ता जब सक्रिय होते हैं तो विरोध में बनाए गए नैरेटिव का उत्तर देते हैं। लोगों के बीच बहस में वे अपनी बात रखते हैं, आरोपों का खंडन करते हैं, सच्चाई बताते हैं। इन सबका मतदान पर असर पड़ता है। जब निष्ठावान कार्यकर्ता उदासीन और विरोधी हो जाएं तो परिणाम ऐसा ही आता है। भारतीय जनता पार्टी अगर इस अवस्था में पहुंची तो जाहिर है इसके पीछे सबसे बड़ी वजह यही भी रही कि पार्टी में प्रभावशाली माने जाने वाले कुछ लोगों के लिए सत्ता सर्वोपरि हो गई और विचारधारा, संगठन तथा कार्यकर्ता गौण।

लोकसभा चुनाव के परिणाम ने एक बात स्पष्ट कर दी कि लोकतंत्र सशक्त है। 400 पार का नारा देने वाली भाजपा को सरकार बनाने के लिए बहुमत भी नहीं मिल सका और एनडीए के सहारे सरकार बनाने की नौबत आ गई। यह सरकार कितनी चलेगी इस बात पर संदेह तो सम्पूर्ण देश के मन में है। बहुमत नहीं होने के कारण मोदी ने नीतीश कुमार, चंद्रबाबू, चिराग पासवान और अन्य की सहायता से सरकार बना ली है। नीतीश कुमार के बारे में कुछ न कहें तो बेहतर है। बहुमत खोने के कारण मोदी सरकार का वह रुतबा भी खत्म हुआ है और नीतीश कुमार, चंद्रबाबू नायडू जैसे लोगों ने अटल सरकार में जिस प्रकार का व्यवहार किया था, वह देश की जनता जानती है। ऐसे समय में उन पर ज्यादा विश्वास रखना घातक होगा। बात सिर्फ इतनी है कि भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं का जो उत्साह गत 10 सालों में बढ़ा है, वह उत्साह और आत्मविश्वास कम नहीं होना चाहिए। यदि भाजपा आत्ममंथन के साथ कार्यपद्धति में सकारात्मक परिवर्तन करे तो आगामी 6 महीनें में महाराष्ट्र, सहित अन्य राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा को अपेक्षित सफलता में कोई बाधा नहीं आएगी।

जंग की तरकश में,

कोशिश का वो तीर जिंदा रख,

हार हो चाहे जिंदगी में,

लेकिन फिर से जीतने की

उम्मीद जिंदा रख!

 

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp

अमोल पेडणेकर

Next Post
साथिया साथ निभाना-जुलाई 2024

साथिया साथ निभाना-जुलाई 2024

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0