गर्मी की छुट्टियों के बाद बच्चों को स्कूल भेजनेे के लिए अभिभावकों में खूब उत्साह होता है, परंतु कुछ बच्चे रोना-गाना शुरु कर देते हैं और वे स्कूल जाना नहीं चाहते। ऐसे में बच्चों के मनोविज्ञान को समझते हुए कुछ उपाय अपनाकर आप हंसी-खुशी बच्चों को स्कूल जाने के लिए राजी कर सकते हैं।
अभी का समय अभिभावकों के लिए एक तरह से अग्नि परीक्षा का दौर है, क्योंकि लम्बी छुट्टियों के बाद बच्चों के स्कूल खुलने वाले हैं या कुछ स्कूल खुल भी गए हैं। कुछ बच्चे खुशी-खुशी स्कूल बसों की प्रतीक्षा करेंगे और कुछ ऐसे भी होंगे, जो स्कूल के समय पर रोने का बहाना करते नजर आएंगे। क्योंकि हर बच्चा नई जगह जाने में हिचकता है। अभिभावक अपने बच्चों की अच्छाई और कमियों को भलीभांति जानते हैं, इसलिए वे सारी स्थितियों को देखकर बच्चे को तैयार कर ही लेते हैं। ऐसे समय बच्चे पर सख्ती दिखाना कभी अच्छा नहीं होता। सफल अभिभावक वही होते हैं जो बच्चे को हंसते हुए स्कूल भेजने के लिए राजी कर ले।
जो बच्चे थोड़े समझदार हैं, वे तो यह स्थिति जानते हैं, लेकिन नर्सरी और के.जी. के बच्चों को एक-डेढ़ महीने की छुट्टी के बाद फिर स्कूल जाने के लिए तैयार करना आसान नहीं होता। इतने दिन की छुट्टी के बाद बच्चों का स्कूल जाने का मन भी नहीं करता। यही वजह है कि इसी समय अभिभावकों को बहुत समझदारी दिखानी पड़ती है। बच्चे को डांट-फटकार कर या उन्हें धमकाकर स्कूल भेजने का प्रयास न करें, क्योंकि इससे वे और अधिक डर जाएंगे। बच्चे का विश्वास जीतें और उन्हें समझाएं कि स्कूल जाना उनके लिए जरूरी क्यों है। बच्चों को स्कूल जाने के लिए प्रोत्साहित करें। इसका एक तरीका यह है कि स्कूल जाने से कुछ दिन पहले बच्चों को मानसिक रूप से तैयार करने की कोशिश शुरू कर दें। उनके सामने स्कूल, क्लास के बच्चों और पढ़ाई की बात करें।
इस समय बच्चों को उनकी पसंद की चीजें बनाकर खिलाएं, बाहर घुमाएं और कुछ प्रॉमिस भी करें। स्कूल की मेस, प्ले ग्राउंड और दोस्तों के साथ मौज-मस्ती के बारे में बताएं, तो वे उत्साहित होंगे। स्कूल में बच्चों के दोस्तों के बारे में बात करें। बच्चों को अपने स्कूल टाइम की कहानियां सुनाएं। देखा गया है कि कुछ बच्चों को स्कूल जाना पसंद होता है, कुछ जाने से बचने के बहाने बनाते हैं। ऐसे भी बच्चे होते हैं, जो रोज स्कूल जाने से पहले किसी बहाने रोना शुरू कर देते हैं। ऐसे में अभिभावक सोचते हैं कि शायद बच्चे की तबीयत ठीक नहीं है। वे बच्चे को बार-बार रोता देख यह नहीं समझ पाते कि वे बहाना बना रहे हैं। हालांकि ऐसे समय में वे कारण जानने की कोशिश की जाना चाहिए कि बच्चा ऐसा क्यों कर रहा है? क्यों बच्चा स्कूल जाने से बचना चाह रहा है? क्यों वो स्कूल जाने से पहले रोने लगता हैं? ऐसे में जबरदस्ती करना ठीक नहीं होता। अभिभावक सबसे पहले बच्चे से बात करें, ताकि समस्या समझने में आसानी हो। बच्चा किस बात से डरता है, इसका पता जरूर लगाएं। बच्चे का व्यवहार कक्षा में कैसा है, साथ वाले बच्चे कैसे हैं, स्कूल का माहौल कैसा है। जब ये सब जानकारी लेंगे, तभी समझ सकेंगे कि आपका बच्चा स्कूल में ढल क्यों नहीं रहा है।
किसी ने सच ही कहा है कि –
उड़ने दो परिंदों को अभी शोख हवाओं में।
फिर लौट के बचपन के वो जमाने नहीं आते॥
आज की भागदौड़ भरी दुनिया में कहीं न कहीं हमने बच्चों की खुशी के पंख अपनी परिस्थितियों और मजबूरियों के कारण काट दिए हैं, लेकिन अब समय है कि हम अपनी आत्मा के अंदर झांके क्योंकि यहां प्रश्न हमारे बच्चों के भविष्य का है। बस मन में ठान लीजिए चाहे कुछ भी हो, हमें अपने बच्चों को हर हाल में खुश रखना है, क्योंकि खुश रहने वाले बच्चों का ही मानसिक और शारीरिक विकास तेज होता है और वो उन्नति के पथ पर आगे बढ़ते रहते हैं। शिक्षा वह पहला कदम है जो एक बच्चे के भविष्य निर्माण की नींव है तो क्यों न इसमें कदम से कदम मिलाकर साथ चला जाए ताकि बच्चा हंसी खुशी इस रास्ते को तय करें।
बच्चों को नया सामान दिलाएं
बच्चों के स्कूल के डगर को आसान बनाने के लिए हर अभिभावक को कुछ छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखना चाहिए जिससे बच्चे खुश हो जाएं। खासकर छोटे बच्चों को बाजार लेकर जाए। नई बोतल, नया टिफिन, नई स्टेशनरी, नया स्कूल बैग, रंगीन छाता दिलाएं। इससे उनके मन में स्कूल जाने की उत्सुकता बनी रहेगी। उन्हें उनके पसंदीदा कलर की चीजें दिलाएं। जिससे वें खुशी-खुशी स्कूल जाने के लिए तैयार हो जाएं।
छोटे बच्चों के अभिभावक स्वयं स्कूल छोड़ने जाए
जो बच्चे पहली बार स्कूल जाने की तैयारी कर रहें हैं। उनके अभिभावक स्वयं बच्चों को स्कूल छोड़ने और लेने जाए। इससे बच्चों में आत्मविश्वास बढ़ता है। अभिभावक के साथ स्कूल जाने वाले बच्चे सहजता महसूस करते हैं। वे ज्यादा खुश रहते हैं, उनमें बातें शेयर करने की क्षमता और आत्मविश्वास दूसरे छात्रों के मुकाबले ज्यादा होता है।
बच्चों से दोस्ती करें
बच्चों को स्कूल के प्रति दिलचस्पी बढ़ाने के लिए अभिभावक नहीं बल्कि दोस्त बनकर समझाएं। इससे बच्चे अपनी समस्या आसानी से आपके साथ साझा कर सकेंगे। साथ ही बच्चों को अपने स्कूल के किस्स-कहानियां भी सुनाएं जिससे वे स्कूल के प्रति मानसिक रूप से तैयार हो सकें।
आप खुश तो बच्चा खुश
आज ऐसा कोई व्यक्ति नहीं जिसकी जिंदगी में कोई तनाव या परेशानी न हो। चाहे जितनी भी परेशानी क्यों न हो, अभिभावकों को अपनी टेंशन को बच्चों के सामने न कहें। बच्चे अपने माता-पिता का ही अनुकरण करते हैं इसलिए अगर आप ही खुश नहीं हैं तो बच्चे कैसे खुश रह सकते हैं। अगर आप खुद परेशान, डरे हुए और चिंतित हैं तो यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि आपका बच्चा खुश रहेगा। अगर वह आपको उदास देखेगा तो खुद भी दुखी होगा। इसलिए जरूरी है कि आप खुश रहें, इससे बच्चे के चेहरे पर भी मुस्कान बनी रहेगी।
-सोनम लववंशी