हिंदू ही यदि हिंसक होते तो देश का विभाजन ही नहीं हुआ होता। यदि हिंदू हिंसक होते तो कश्मीर घाटी मेें अपने ही देश में हिंदुओं को शरणार्थी नहीं बनना पड़ता। हिंदू हिंसक होते तो मुस्लिम समुदाय की जनसंख्या ही नहीं बढ़ पाती और ना ही पाकिस्तान और बंगलादेश में हिंदू समाप्त हो गए होते। हिंदू हिंसक नहीं बल्कि सहनशील हैं, उनकी ही सहनशीलता है कि जब भी किसी नेता के मन में जो भी आता है, वो बोल देता है। लोकसभा में राहुल गांधी ने भगवान शंकर, गुरू नानक और जीसस क्राईस्ट के चित्र दिखाए, लेकिन जिन मतदाताओं को खुश करने के लिए उन्होंने हिंदू समाज को हिंसक कहा, उसके किसी भी प्रतीक चिन्ह का प्रयोग नहीं?
राष्ट्रपति के अभिभाषण पर बोलते हुए राहुल गांधी ने एक बार फिर यह साबित किया कि वे राजनीतिक रूप से अपरिपक्य राजनेता ही हैं। उनको पता ही नहीं कि भारत में विपक्ष के नेता की जिम्मेदारी कितनी महत्वपूर्ण है और विपक्ष के नेता के रूप में भारत ही नहीं पूरा विश्व उसको वैकल्पिक नेतृत्व के रूप में देखता है। लोकसभा में दिए गए भाषण किसी चुनावी रैली में दिए गए भाषण जैसा नहीं होता। वह भाषण संसद की कार्यवाही में अंकित होता है और आगे आने वाली पीढ़ियों के लिए मार्गदर्शक सिद्ध होता है, लेकिन अपनी इस पहली ही परीक्षा में राहुल गांधी विफल हो गए।
देश के जो भी मतदाताओं ने यह सोचा था कि राहुल गांधी ने दो यात्राओं के जरिए देश के मन को समझा है और वे इन यात्राओं में मिले अनुभवों से पहले ज्यादा परिपक्व होकर उभरे हैं तो उनलोगों को उस समय धक्का लगा जब राहुल गांधी ने संसद में खड़े होकर कहा कि हिंदू हिंसक होते हैं। पूरे विश्व का कोई भी समझदार व्यक्ति राहुल गांधी के इस कथन पर हंसेगा ही। क्या कोई राहुल गांधी को यह बताने वाला नहीं है कि आजादी से पहले अंग्रेजों से हुए संघर्ष में उस कांग्रेस के अधिकतर नेता हिंदू ही थे। वह ना केवल हिंदू थे बल्कि उनकी सनातन धर्म में गहरी आस्था थी।
हिंदू ही यदि हिंसक होते तो देश का विभाजन ही नहीं हुआ होता। यदि हिंदू हिंसक होते तो कश्मीर घाटी मेें अपने ही देश में हिंदुओं को शरणार्थी नहीं बनना पड़ता। हिंदू हिंसक होते तो मुस्लिम समुदाय की जनसंख्या ही नहीं बढ़ पाती और ना ही पाकिस्तान और बंगलादेश में हिंदू समाप्त हो गए होते। हिंदू हिंसक नहीं बल्कि सहनशील हैं, उनकी ही सहनशीलता है कि जब भी किसी नेता के मन में जो भी आता है, वो बोल देता है। लोकसभा में राहुल गांधी ने भगवान शंकर, गुरू नानक और जीसस क्राईस्ट के चित्र दिखाए, लेकिन जिन मतदाताओं को खुश करने के लिए उन्होंने हिंदू समाज को हिंसक कहा, उसके किसी भी प्रतीक चिन्ह का प्रयोग नहीं?
अब यह भी स्पष्ट हो चला है कि 2014 में सत्ता से दूर हुई कांग्रेस यह पचा नहीं पा रही है कि वो सत्ता से दूर कैसे हो सकती है? उसे यह लग चुका है कि उसको सत्ता से बाहर करने में हिंदू समाज का बड़ा योगदान है। उसे हिंदुओं की एकजुटता से भय महसूस होने लगा है, इसीलिए वो जातियों के बंटवारे की राजनीति कर रही है। संविधान को बदल देने और भाजपा आरक्षण खत्म कर देगी, जैसी झूठी अवधारणा को फैला रही है। कांग्रेस की मुस्लिम तुष्टिकरण नीति को पूरा समाज अच्छी तरह से समझ रहा है। कांग्रेस पार्टी में सनातन की बात करने वाले नेताओं की कोई जगह नहीं बची है। यदि हेमंत विश्व शर्मा, संजय निरूपम और आचार्य प्रमोद जैसे नेताओं को सुनें तो वे कहते हैं कि राहुल गांधी इतने अहंकारी हैं कि वे अपने अलावा किसी और की बात को सुनते तक नहीं हैं।
राजनीति में आए हुए नया-नया व्यक्ति भी यह सामान्य ज्ञान रखता है कि बहुसंख्यक समुदाय का अपमान करके और उसको नीचा दिखाकर राजनीतिक क्षेत्र में सफलता नहीं मिल सकती। इसीलिए चुनावों से पहले जातीयतावादी राजनीति का प्रबल दौर आता है, लेकिन लगता है कि राहुल गांधी राजनीति का यह प्रारम्भिक तथ्य भी समझ पाने में विफल रहे हैं। यदि उनको लगता है कि वो इस तरह की सोच के साथ भारत में वैकल्पिक नेतृत्व देने में सफल होंगे तो यह मूर्खता के अतिरिक्त और कुछ नहीं। जिसका प्रतिफल कांग्रेस के साथ-साथ देश के लोकतंत्र को भी चुकाना पड़ेगा।
-सुरेंद्र चतुर्वेदी