1 जुलाई, 2024 से भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (बीएसए) औपनिवेशिक कानूनों भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) 1860 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 (आईईए) सहित दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) 1973 की जगह प्रभावी हो चुके हैं।
स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव की परिणति और अमृत काल के प्रारम्भ के रूप में संसद ने भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली में परिवर्तन की ऐतिहासिक पहल की है। नए कानून ऐसी न्याय प्रणाली है जो पूरी तरह स्वदेशी, भारत द्वारा, भारत के लिए और भारतीय संसद द्वारा बनाए गए कानूनों से संचालित हैं। 1 जुलाई, 2024 से भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (बीएसए) औपनिवेशिक कानूनों भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) 1860 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 (आईईए) सहित दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) 1973 की जगह प्रभावी हो चुके हैं।
इन तीन नए कानूनों में त्वरित न्याय सुनिश्चित करने के लिए प्राथमिकी से लेकर निर्णय तक को समय सीमा में बांधा गया है। आपराधिक परीक्षण को गति देने के लिए नए कानून में 35 जगह टाइम लाइन जोड़ी गई है। शिकायत मिलने पर प्राथमिकी दर्ज करने, जांच पूरी करने, न्यायालय के संज्ञान लेने, साक्ष्य प्रविष्ट करने और परीक्षण पूरा होने के बाद निर्णय सुनाने तक की समय सीमा तय है। आईपीसी में धाराओं की संख्या 511 से घटाकर बीएनएस में 358 कर दी गई है, तो 20 नए अपराध जोड़े गए। सीआरपीसी में धाराओं की संख्या 484 से बढ़ाकर बीएनएसएस में 531 की गई है, जबकि 177 धाराओं को प्रतिस्थापित किया गया है, 9 नई धाराएं जोड़ी गई हैं और 14 निरस्त। आईईए में धाराओं की संख्या 167 से बढ़ा कर बीएसए 170 की गई हैं। 24 धाराएं बदली गईं, 2 नई जोड़ी गईं और 6 निरस्त की गईं।
यही नहीं, आधुनिक तकनीक का भरपूर प्रयोग और इलेक्ट्रानिक/डिजिटल साक्ष्यों को कानून का हिस्सा बनाने से मुकदमों के जल्दी निपटारे का रास्ता आसान हुआ है। शिकायत, सम्मन और गवाही की प्रक्रिया में इलेक्ट्रानिक माध्यमों के प्रयोग से न्याय की गति तेज होगी। यदि कानून में तय समय सीमा को ठीक उसी मंशा से लागू किया गया जैसा कि कानून लाने का उद्देश्य है तो निश्चय ही नए कानून से विवाद जल्दी निपटेंगे और तारीख पर तारीख के दिन लद जाएंगे।
आपराधिक वाद की शुरुआत प्राथमिकी से होती है। नए कानून में तय समय सीमा में प्राथमिकी दर्ज करना और उसे न्यायालय तक पहुंचाना सुनिश्चित किया गया है। बीएनएसएस में व्यवस्था है कि शिकायत मिलने पर तीन दिन के अंदर प्राथमिकी दर्ज करनी होगी। तीन से सात साल की सजा के प्रकरण में 14 दिन में प्रारम्भिक जांच पूरी करके प्राथमिकी दर्ज की जाएगी। 24 घंटे में तलाशी रिपोर्ट के बाद उसे न्यायालय के सामने प्रस्तुत कर दिया जाएगा। नागरिकों की सुविधा के लिए जीरो एफआईआर यानी ई-एफआईआर की शुरुआत भी की गई है। इसके अंतर्गत अपराध कहीं भी हुआ हो, लेकिन उसे अपने थाना क्षेत्र के बाहर भी रजिस्टर कराया जा सकता है। बाद में प्रकरण को 15 दिनों के अंदर सम्बंधित थाने को भेजना होगा। नए कानून में जुड़ा एक दिलचस्प पहलू यह भी है कि गिरफ्तारी की सूरत में व्यक्ति को अपनी पसंद के किसी व्यक्ति को अपनी स्थिति के बारे में सूचित करने का अधिकार दिया गया है। इससे गिरफ्तार व्यक्ति को तुरंत सहयोग मिल सकेगा।
महिलाओं और बच्चों के विरुद्व अपराधों को बीएनएस के एक अध्याय में समेकित किया गया है। दोनों वर्गों के विरुद्ध अपराधों से पीड़ित और अपराधी दोनों के संदर्भ में लिंग तटस्थ बनाया गया है। पीड़ित महिला की न्यायालयीन सुनवाई महिला मजिस्ट्रेट ही करेगी अन्यथा संवेदनशील मामले में किसी महिला की उपस्थिति में पुरुष मजिस्ट्रेट के समक्ष बयान दर्ज होगा। दुष्कर्म के मामले में 7 दिन के भीतर पीड़िता की चिकित्सा रिपोर्ट पुलिस थाने और न्यायालय भेजी जाएगी। अभी तक लागू सीआरपीसी में इसकी कोई समय सीमा तय नहीं थी। नया कानून आने के बाद समय में पहली कटौती यहीं होगी। सामूहिक बलात्कार की सजा में मृत्युदंड का प्रावधान है।
किसी बच्चे को खरीदना और बेचना जघन्य अपराध बनाया गया है और किसी नाबालिग से सामूहिक दुष्कर्म के लिए मृत्युदंड या उम्रकैद का प्रावधान जोड़ा गया है। शादी का झूठा वादा करने, नाबालिग से दुष्कर्म, भीड़ द्वारा पीटकर हत्या करने, झपटमारी आदि मामले दर्ज किए जाते हैं, लेकिन मौजूदा भारतीय दंड संहिता में ऐसी घटनाओं से निपटने के लिए कोई विशेष प्रावधान नहीं थे। भारतीय न्याय संहिता में इनसे निपटने के लिए प्रावधान किए गए हैं।
नए कानून में आरोपपत्र की भी समय सीमा तय है। आरोपपत्र प्रविष्ट करने के लिए पहले की तरह 60 और 90 दिन का समय तो है, लेकिन 90 दिन के बाद जांच जारी रखने के लिए न्यायालय से अनुमति लेनी होगी और जांच को 180 दिन से ज्यादा लम्बित नहीं रखा जा सकता। 180 दिन में आरोपपत्र प्रविष्ट करना होगा। ऐसे में जांच जारी होने के नाम पर आरोपपत्र को अनिश्चितकाल के लिए नहीं लटकाया जा सकता।
पुलिस के लिए समय सीमा तय करने के साथ ही न्यायालय के लिए भी समय सीमा तय की गई है। मजिस्ट्रेट 14 दिन के भीतर प्रकरण का संज्ञान लेंगे। प्रकरण ज्यादा से ज्यादा 120 दिनों में परीक्षण पर आ जाए, इसके लिए कई काम किए गए हैं। प्ली बार्गेनिंग का भी समय तय है। प्ली बार्गेनिंग पर नया कानून कहता है कि यदि आरोप तय होने के 30 दिन के भीतर आरोपी अपराध स्वीकार कर लेगा तो सजा कम होगी। अभी सीआरपीसी में प्ली बार्गेनिंग के लिए कोई समय सीमा तय नहीं थी।
नए कानून में प्रकरण में साक्ष्यों की प्रक्रिया भी 30 दिन में पूरी करने की बात है। निर्णय देने की भी समय सीमा तय है। परीक्षण पूरा होने के बाद न्यायालय को 30 दिन में निर्णय सुनाना होगा। लिखित कारण दर्ज करने पर निर्णय की अवधि 45 दिन तक हो सकती है, लेकिन इससे ज्यादा नहीं। नए कानून में दया याचिका के लिए भी समय सीमा तय है। सर्वोच्च न्यायालय से अपील अस्वीकृत होने के 30 दिन के भीतर दया याचिका प्रविष्ट करनी होगी। किसी भी मामले में प्राथमिकी दर्ज होने से सर्वोच्च न्यायालय तक 3 साल में न्याय मिल सकेगा।
भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस), 2023 में हिट एंड रन मामलों में धारा 106(2) को सरकार ने रोक दिया है, जबकि आपराधिक कानून के अन्य प्रावधान लागू कर दिए गए हैं। नए कानूनों के अंतर्गत रिमांड का समय पहले की तरह 15 दिनों का ही रखा गया है। तीनों कानून देश की 8वीं अनुसूची की सभी भाषाओं में उपलब्ध होंगे और प्रकरण भी उन्हीं भाषाओं में चलेंगे। 7 साल या उससे अधिक की सजा वाले अपराधों में फॉरेंसिक जांच को अनिवार्य किया गया है, इससे न्याय जल्दी मिलेगा और दोष सिद्धि दर को 90 प्रतिशत तक ले जाने में सहायक होगा।
गवाहों को धमकियों और भय से बचाने की महत्वपूर्ण आवश्यकता को स्वीकार करते हुए, गवाह संरक्षण योजना लागू की गई है। पहली बार आतंकवाद को परिभाषित किया गया है। राजद्रोह के अपराध को समाप्त कर दिया गया है तथा भारत की एकता-अखंडता को संकट में डालने वाले कृत्यों को दंडित करने के लिए देशद्रोह शब्द का प्रयोग किया गया है। मॉब लिंचिंग के मामले में आजीवन कारावास या मौत की सजा का प्रावधान है। संगठित अपराध को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है। भगोड़े अपराधियों की अनुपस्थिति में भी मुकदमा चलेगा और उनकी सम्पत्ति जब्त होगी। राज्य को एकतरफा प्रकरण वापस लेने का अधिकार नहीं, पीड़ित का पक्ष सुना जाएगा। गिरफ्तारी, तलाशी, जब्ती और जांच में पुलिस की जवाबदेही बढ़ाने के लिए 20 से अधिक धाराएं शामिल की गई हैं। 15 साल से कम आयु, 60 साल से अधिक और दिव्यांगो व गंम्भीर रूप से बीमार व्यक्तियों को पुलिस स्टेशन में पेश होने से छूट होगी। उन्हें पुलिस की सहायता उनके निवास स्थान पर ही मिलेगी।
नए कानून के अंतर्गत पहली बार ऐसा प्रावधान किया गया है, जिसमें नशे की हालत में हंगामा करने या 5,000 रुपए से कम की सम्पत्ति की चोरी जैसे छोटे अपराधों के लिए सामुदायिक सेवा को दंड के तौर पर माना गया है। विधि निर्माताओं का मानना है कि सामुदायिक सेवा अपराधियों को सुधारने का मौका देती है, जबकि जेल की सजा उन्हें कठोर अपराधी बना सकती है। पहले भी न्यायालय छोटे-मोटे अपराध या पहली बार अपराध की स्थिति में सामुदायिक सेवा की सजा देते रहे हैं, लेकिन अब ये एक स्थाई कानून बन गया है।
1 जुलाई से पहले दर्ज हुए मामलों में नए कानून का असर नहीं होगा, अर्थात जो प्रकरण 1 जुलाई 2024 से पहले दर्ज हुए हैं, उनकी जांच से लेकर परीक्षण तक पुराने कानून का हिस्सा होगी। पूर्व जिला व सत्र न्यायाधीश न्यायविद दीपक कुमार श्रीवास्तव के अनुसार भारतीय मूल्यों पर आधारित ये नए कानून दंडात्मक से न्याय उन्मुख दृष्टिकोण में परिवर्तन का संकेत देते हैं, जिससे सब के लिए सुलभ एवं त्वरित न्याय सुनिश्चित हो। इसीलिए ये कानून समयबद्ध जांच और परीक्षण का प्रावधान करते हैं। यह सुधार भारत में एक निष्पक्ष, आधुनिक और न्यायपूर्ण कानूनी ढांचे की दिशा में एक महत्वपूर्ण स्वदेशी कदम है।