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गंभीर तनाव भी हो सकता है आत्महत्या का कारण

Shadow of sad man hanging suicide. light and shadow

गंभीर तनाव भी हो सकता है आत्महत्या का कारण

by रचना प्रियदर्शिनी
in अगस्त २०१८, सामाजिक, स्वास्थ्य
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विभिन्न कारणों से व्यक्ति अवसादग्रस्त और तनावग्रस्त हो जाता है और फिर अनुष्ठानों आदि के चक्कर में पड़कर अपनी जान गंवा देता है। दिल्ली में 11 लोगों की सामूहिक आत्महत्याओं ने इस बात को पुनः उजागर किया है। मनोविज्ञान की भाषा में यह एक विकार है, जिसकी चिकित्सा हो सकती है।

गत 1 जुलाई को दिल्ली के बुराड़ी इलाके में एक घर में सुबह-सुबह 11 लोगों की फांसी पर लटकती लाशों की बरामदगी ने पूरे देश को दहला कर रख दिया।

पुलिस की जांच के मुताबिक, एक ही परिवार के 11 लोगों की मौत के मामले में अब तक किसी बाहरी व्यक्ति का कोई लिंक नहीं पाया गया है, न ही किसी तरह की कोई बाहरी साजिश सामने आई है। इस वजह से किसी की गिरफ्तारी की संभावना नहीं है। पुलिस का मानना है कि स्पष्ट तौर से यह एक सामूहिक आत्महत्या का मामला है। फिलहाल पुलिस फाइनल रिपोर्ट का इंतजार कर रही है।

गौरतलब है कि बुराड़ी कांड में घर से दो रजिस्टर मिले, एक में मोक्ष का तरीका विस्तार से लिखा है, लेकिन उसमें किसी आध्यत्मिक गुरु का नाम नहीं है। पड़ोसियों और रिश्तेदारों द्वारा प्राप्त अब तक की जानकारी के अनुसार, पूरा भाटिया परिवार बहुत धार्मिक था। घर में आए दिन कीर्तन और जाप होते रहते थे। परिवार के बड़े से लेकर छोटे सदस्य तक व्रत में अनुष्ठान में पूरी तरह लिप्त रहते थे। इस आधार पर यह संभावना यह जताई जा रही है कि मृतकों ने आध्यात्मिक विश्वास के वशीभूत होकर खुदकुशी की होगी। दूसरी संभावना यह जाहिर की जा रही है कि मृतकों ने मनोवैज्ञानिक विकार के कारण आत्महत्या की होगी।

दिल्ली पुलिस अब इस मामले की साइकोलॉजिकल ऑटोप्सी कराने के बारे में विचार कर रही है। साइकोलॉजिकल ऑटोप्सी में यह देखा जाता है कि व्यक्ति अपनी मृत्यु से पहले किस मनोदशा में रहा होगा।

दिल्ली के बुराड़ी कांड ने दो साल पहले उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में एक ही परिवार के पांच लोगों द्वारा की गई सामूहिक आत्महत्या की घटना की यादें ताजा कर दीं। 7 अक्टूबर 2016 को हुए अरोड़ा परिवार के इस सामूहिक खुदकुशी कांड ने पूरे मेरठ में हड़कंप मचा दिया था।

अब सवाल यह उठता है कि आखिर क्या वजह रही होगी, जिसने एक हंसते-खेलते परिवार को इस तरह एक साथ आत्महत्या करने पर मजबूर कर दिया होगा? आत्महत्या की मंशा रखनेवाले लोगों की पहचान कैसे की जा सकती है? क्या वे दूसरों से अलग दिखते हैं या उनके विचारों और व्यवहारों में कुछ फर्क होता है?

क्यों करते हैं लोग आत्महत्या

आमतौर पर किसी व्यक्ति द्वारा आत्महत्या करने के कुछ प्रमुख कारण होते हैं, जैसे- गुस्सा, तनाव, चिंता अथवा अवसाद. इन सबकी अपनी-अपनी वजहें होती हैं। हालांकि कई बार ये कारण प्रत्यक्षत: दृष्टिगोचर नहीं भी होते हैं। हमें लगता है कि व्यक्ति बेहद खुश और जिंदादिल है, लेकिन अचानक से उसके द्वारा की गई आत्महत्या की खबर हमें चौंका देती है। हम अगर थोड़ा और गहराई में जाएं, तो आत्महत्या का एक कारण
पश्चाघात तनाव विकार भी होता है। यह एक प्रकार का गंभीर तनाव विकार है, जिसके लक्षण किसी आघातपूर्ण घटना के अनुभवों की प्रतिक्रियास्वरूप विकसित होते हैं।

कैसे करें पहचान?

पीटीएसडी को किसी प्राणघातक आघात की दुर्घटना, जिसमें भय, असहाय होने या डर जाने की त्वरित प्रतिक्रिया हो, के पश्चात लगातार (एक माह तक) होने वाले लक्षणों के आधार पर पहचाना जा सकता है।

– व्यक्ति को बुरे स्वप्न आते हैं।

– वह रात में कई बार डर कर या चौंक कर जाग जाता है।

– आघात वाली स्मृतियों को भूलने में कठिनाई होती है। अनचाहे विचार और स्मृतियां उस पर हावी होती हैं।

–  आघात वाली घटना या परिस्थितियों का सामना करने से बचता है।

– व्यक्ति चिड़चिड़ा हो जाता है। वह किसी से भी ज्यादा बात करना पसंद नहीं करता।

इनके अलावा, व्यक्ति अतिउत्तेजना के लक्षण जिनमें व्यक्ति शारीरिक रूप से अस्थिर, अतिसतर्क, क्रोधी या एकाग्रता की कमी का अनुभव करता है। वह उन चीजों या बातों में रूचि खो देता है अथवा उनसे दूर भागता है, जिनमें पहले उसे आनंद मिलता था। वह कभी-कभी भावनात्मक रूप से सुन्न अनुभव करता है। सामान्य से अधिक भोजन करना या सामान्य से अधिक मात्रा में शराब पीना या ड्रग लेना, अपने मिजाज का नियंत्रण से बाहर होना महसूस करना या अन्य लोगों के साथ घुलने-मिलने कठिनाई अथवा अवसादग्रस्त या बेजान अनुभव करता है। पीटीएसडी की अवधि अमूमन छह माह से लेकर कई साल तक बनी रहती है। अधिक लंबे समय तक जब यह स्थिति बनी रहती है, तो यह गंभीर तनाव विकार का रूप ले लेती है।

कई बार ऐसी स्थिति में व्यक्ति में संदेहहात्मक मतिभ्रम के लक्षण भी देखने केा मिलते हैं। व्यक्ति धीरे-धीरे अपनी दुनिया में सिमटता चला जाता है। अक्सर उसे अजीबो-गरीब आवाजें सुनाई पड़ती है। कभी-कभी उसे उस व्यक्ति/वस्तु/परिस्थिति की साक्षात अनुभूति भी होती है, जिसका वर्तमान में अस्तित्व ही नहीं है। सबसे अजीब बात यह है कि पीड़ित व्यक्ति अपने उक्त व्यवहार या विचार को सही मानता है। उसे कुछ भी गलत या असामान्य नहीं लगता। उसके मूड में आश्चर्यजनक रूप से बदलाव होते हैं। कभी तो वह बेहद खुश दिखायी देता है, कभी अचानक से बेहद निराश या दुखी महसूस करने लगता है। हर समय बैचेन दिखता है, ऐसा लगता है मानो उससे कुछ छूट रहा हो या उससे कोई गलती हो गई हो।

धर्म जिंदगी में हो, धर्म में जिंदगी नहीं

कहते हैं अगर किसी परिवार में एक व्यक्ति मानसिक रूप से बीमार हो, तो वह बाकियों को भी बीमार बना देता है। इस लिहाज से अगर बुराड़ी या मेरठ जैसी घटनाओं का विश्लेषण करें, तो यह बात काफी हद तक सटीक मालूम पड़ती है। इसके अलावा जो बात दोनों ही मामलों में गौर करने लायक है, वह यह कि वे दोनों परिवार के लोग बेहद धार्मिक प्रवृति के थे, लेकिन हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि धर्म हमारी जिंदगी का एक हिस्सा हो सकता है, किंतु जिंदगी, धर्म का हिस्सा नहीं होना चाहिए। ऐसा होने पर लोग खुद से ज्यादा दूसरों पर विश्वास करने लगते हैं। उन्हें लगता है कि उनकी समस्या का हल वे स्वयं नहीं निकाल सकते। इसी वजह से वे साधु-महात्मा या अन्य आलौकिक शक्तियों के प्रभाव में आ जाते हैं।

तनाव पीड़ित व्यक्ति क्या करें?

व्यक्ति को चाहिए कि जीवन जितना संभव हो उतना सादा और सरल रखें। पुरानी बातों को भूल कर सामान्य जीवन जीये और नियमित कार्य व्यवहार में वापस लौटे। अगर बीती हुई घटनाएं लगातार उसके जेहन में बसी हुईं, हैं, तो बेहतर होगा कि उसके बारे में किसी विश्वासपात्र व्यक्ति से चर्चा करें। साथ ही, ध्यान-प्राणायाम आदि को अपनी दिनचर्या में शामिल करें। कमरे में किसी स्थान पर ओम अथवा स्वास्तिक का चित्र लगा कर उस पर अपना ध्यान केंद्रित करने का प्रयास करें। जहां तक हो सके, खुद को व्यस्त और सकारात्मक रखने का प्रयास करें। इसके लिए छोटे बच्चों, प्रकृति अथवा पालतू जानवरों के साथ समय व्यतीत करें। फुर्सत के पलों में दिल को सुकून देनेवाला खुशनुमा संगीत सुनें। किसी की मदद करें. सामनेवाले व्यक्ति के चेहरे पर खुशी देख कर आपके मन को अवश्य सुकून मिलेगा। जिस स्थान पर आघात वाली घटना घटी है, वहां वापस जाएं। मित्रों और परिवार के साथ रहने के लिए समय निकालें। अगर इसके बावजूद आपकी समस्या बनी रहे, तो किसी मनोचिकित्सक से परामर्श लें।

 

 

 

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