आजकल 21वीं सदी को ‘हिंदी की सदी’ कहकर प्रचारित-प्रसारित किया जा रहा है। एक अनुमान के अनुसार पूरे विश्व में 135 करोड़ लोग हिंदी बोलते या समझते हैं। वैश्वीकरण और AI के दौर में तो हिंदी भी स्मार्ट अवतार ले रही है। ऐसे, में उन लोगों का महत्त्व बढ़ जाता है, जो इसके स्मार्ट अवतार बनने की प्रक्रिया में यह सुनिश्चित करें कि इसकी आत्मा ही कहीं विद्रूप न हो जाए। दूसरे शब्दों में, हिंदी दिवस और हिंदी पखवाड़े के नाम पर हो रहे अनेक आयोजनों के बीच चर्चा होनी चाहिए उन विद्वानों की भी, जो हिंदी की शुद्धता तथा इसके मानक और परिनिष्ठित स्वरूप के लिए सतत प्रयत्नशील रहते हैं। हाल के वर्षों में हिंदी भाषा को समृद्ध करने और हिंदी शब्दों के परिशुद्ध रूप को युवजनों के बीच प्रतिष्ठित करने में जिन गिने-चुने विद्वानों का महत्वपूर्ण योगदान है, उनमें कमलेश कमल प्रमुख हैं। एक चर्चित वैयाकरण, भाषा-विज्ञानी और लेखक के रूप में कमलेश कमल ने पिछले दो दशकों में हिंदी भाषा की शुचिता के लिए उल्लेखनीय कार्य किया है। कदाचित् यही कारण है कि कुछ वर्ष पूर्व ‘टायकून इंटरनेशनल’ पत्रिका ने भारत के 25 चर्चित ब्यूरोक्रेट्स की सूची में कमलेश कमल को शामिल करते हुए हिंदी भाषा में योगदान को उनकी लोकप्रियता का प्रमुख कारण माना था।
हाल के वर्षों में हिंदी के विभिन्न शब्दकोशों के निर्माण में कमलेश कमल की भूमिका अप्रतिम रही है। वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग के सौजन्य से तैयार हो रहे ‘सिविल इंजीनियरिंग शब्दकोश’ में इनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका है। भारत सरकार की एक और महत्वपूर्ण परियोजना ‘शब्द-सिंधु : समावेशी शब्दकोश’ के निर्माण से भी वे जुड़े हैं। उन्होंने ऐसे शब्दों और उनके अर्थों को पुनः स्थापित किया है, जिनका अनुप्रयोग आज के हिंदी अध्येता भी नहीं करते। आधुनिक युग में हिंदी के इस पुनरुद्धार अभियान में उन्होंने भाषा को न केवल व्याकरणिक रूप से समृद्ध किया, बल्कि इसे सांस्कृतिक और सामाजिक रूप से पुनर्परिभाषित भी किया। बेस्ट ऑफ लक नहीं, भाग्य बली हो; इमोजी नहीं, भावचित्र; सेल्फ़ी नहीं स्वयत्नचित्र, स्क्रीनशॉट नहीं पटलचित्र कहने वाले कमलेश कमल प्रणाम का उत्तर ‘प्रतिप्रणाम’ कहकर देते हैं।
मूल रूप से पूर्णियाँ (बिहार) के निवासी कमलेश कमल के भाषिक अनुशासन पर राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त शिक्षक पिता श्री लम्बोदर झा एवं नवोदय विद्यालय के भाषा-शिक्षकों का गहरा प्रभाव पड़ा। आगे उन्होंने व्याकरण के नियमों को गणित की भाँति सुस्पष्ट करने और समझाने का अपना कौशल विकसित किया। हिंदी व्याकरण और भाषा-विज्ञान के क्षेत्र में कमलेश कमल की विद्वता का प्रमाण उनकी पुस्तक ‘भाषा संशय-शोधन’ है। भाषा-विज्ञान और व्याकरण पर आधारित होने के बावजूद यह पुस्तक इतनी सरल और सुबोध है कि गृह मंत्रालय द्वारा अपने अधीनस्थ और संबद्ध कार्यालयों में हिंदी के सही और शुद्ध प्रयोग हेतु यह अनुशंसित की गई है। निश्चित ही हिंदी शब्दों की व्युत्पत्ति, प्रयोग और उनके सही संदर्भ को स्पष्ट करने में इस पुस्तक ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
कमलेश कमल के लेखन की विविधता और गहराई उनकी प्रकाशित रचनाओं में स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। विगत दो दशकों से वे हिंदी के शुद्ध प्रयोग और व्युत्पत्ति पर सतत लेखन कर रहे हैं। उनके लेख देश की प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशित होते रहते हैं। दैनिक जागरण में ‘भाषा की पाठशाला’ नाम से उनका स्थायी स्तंभ भाषा प्रेमियों के बीच अत्यधिक लोकप्रिय है। इसके माध्यम से वे हिंदी भाषा के एक जैसे प्रतीत होने वाले शब्दों के अर्थपरक विभेद को सहजता से उद्घाटित करते हैं। किसी शब्द की व्युत्पत्ति से लेकर उसकी विविध अर्थच्छटाओं को भी वे जिस सरलता से स्पष्ट करते हैं, वह पाठकों द्वारा खूब पसंद किया जाता है।
इतना ही नहीं, उन्होंने विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के लिए आवरण कथा तथा संपादन कर्म भी किया है। उनके संपादन कर्म की विशेषता यह है कि वे भाषा के सौंदर्य और शुद्धता को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हैं, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि कमलेश कमल का लेखन केवल व्याकरण और भाषा-विज्ञान तक सीमित है। उन्होंने साहित्यिक क्षेत्र में भी अपनी अलग पहचान बनाई है। उनका उपन्यास ‘ऑपरेशन बस्तर: प्रेम और जंग’ पाठकों के बीच बेहद चर्चित हुआ। यश पब्लिकेशन्स द्वारा प्रकाशित यह उपन्यास न केवल #1 बेस्टसेलर रहा, अपितु 2 वर्ष के अंदर इसके 04 संस्करण भी प्रकाशित हुए। इस उपन्यास के माध्यम से उन्होंने बस्तर में न केवल प्रेम और जंग की एक दिलचस्प कथा की सर्जना की, बल्कि बस्तर के बहुलवर्णी संसार को चित्रित किया तथा सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर भी गहन और सकारात्मक दृष्टिकोण दिया। उनकी साहित्यिक उपलब्धियों को ध्यान में रखते हुए उन्हें वर्ष 2023 में गोस्वामी तुलसीदास सम्मान और साहित्य का विष्णु प्रभाकर राष्ट्रीय सम्मान प्रदान किया गया। ये सम्मान न केवल उनके लेखन की गहराई और प्रभावशीलता का प्रमाण हैं, बल्कि हिंदी साहित्य के प्रति उनके समर्पण और योगदान का भी सम्मान हैं।
कमलेश कमल का शैक्षणिक योगदान भी अत्यंत सराहनीय है। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय, बनस्थली विद्यापीठ, एमिटी विश्वविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय, भारतीय जनसंचार संस्थान सहित कई प्रमुख विश्वविद्यालयों में ‘भाषा संवाद : कमलेश कमल के साथ’ कार्यक्रम का आयोजन किया है। इस कार्यक्रम के माध्यम से वे विद्यार्थियों को हिंदी भाषा की बारीकियों और व्याकरणिक संरचनाओं से परिचित कराते हैं। उनकी इस पहल ने हिंदी भाषा के प्रति छात्रों में रुचि को बढ़ावा दिया है। इतना ही नहीं, भारत-सरकार के विभिन्न मंत्रालयों में भी समय-समय उन्हें ‘हिंदी-कार्यशाला’ हेतु आमंत्रित किया जाता है।
हिंदी भाषा की उनकी विशेषज्ञता का लाभ समाज को मिले, इस हेतु वे सदा तत्पर दिखते हैं। संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) मुख्य परीक्षा के लिए हिंदी और निबंध के निश्शुल्क कक्षाओं का संचालन कर वे सिविल सेवा अभ्यर्थियों के बीच भी अत्यधिक लोकप्रिय हैं। इस कक्षा में वे हिंदी शब्दों के सही प्रयोग, शुद्धाशुद्ध विचार, निबंध लेखन की तकनीक के साथ-साथ व्याकरणिक अंगों- उपांगों पर विशेष बल देते हैं। सनातन और सांस्कृतिक गौरव से सम्बद्ध विषयों पर भी उन्होंने प्रचुर लेखन किया है, लेकिन हाल के वर्षों में उनका अधिकांश लेखन हिंदी भाषा की शुद्धता एवं शब्दकोशों के निर्माण से संबंधित रहा है। इन सबसे हटकर कई बार समाजसेवा से जुड़े कार्यों की वजह से भी वे चर्चा में रहते हैं। कोरोना महामारी के दौर में देशभर से लगभग 200 चिकित्सकों और 700-800 स्वयंसेवकों की टीम बना इन्होंने कई राज्यों में हजारों लोगों को चिकित्सा सुविधा एवं परामर्श उपलब्ध कराने का महनीय कार्य किया, जिसकी सराहना मीडिया और सोशल मीडिया पर हुई।
आज मुख्यधारा मीडिया के साथ-साथ सोशल मीडिया का भी हमारे जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है। इस माध्यम का उपयोग भी वे हिंदी के प्रचार-प्रसार हेतु करते हैं। उनका फेसबुक पेज ‘कमल की कलम’ प्रतिमाह लगभग 6-7 लाख पाठकों द्वारा पढ़ा जाता है, जहाँ वे विभिन्न भाषायी मुद्दों पर अपने विचार साझा करते हैं। यह पेज हिंदी भाषा प्रेमियों के लिए एक मंच के रूप में कार्य करता है, जहाँ वे अपनी शंकाओं का समाधान पा सकते हैं और हिंदी के सही प्रयोग को समझ सकते हैं। हिंदी में हस्ताक्षर के आग्रही, कमलेश कमल कहते हैं कि आपके हस्ताक्षर आपकी पहचान होते हैं और आप अपनी पहचान, अपनी मातृभाषा को छोड़ किसी दूसरी भाषा से जोड़कर क्या पाना चाहते हैं? यह हिंदी के लिए अस्मिताबोध का काल है। 70 करोड़ से अधिक लोगों के हँसने, खेलने, स्वप्न देखने की भाषा हिंदी के प्रति इतना सम्मान तो हो ही कि उसमें हस्ताक्षर करने में हमें गर्व की अनुभूति हो।
इस प्रकार, शब्द-व्युत्पत्ति विषयक अपने शोध और लेखन के माध्यम से कमलेश कमल हिंदी को एक नई दिशा दे रहे हैं। निश्चित ही, उनके जैसे भाषिक-शुद्धता के आग्रही विद्वानों की उपस्थिति से हिंदी न केवल अधिक समृद्ध हो रही है, बल्कि नई पीढ़ी के पाठकों तक परिशुद्ध रूप में पहुँच भी रही है। हिंदी दिवस के अवसर पर हिंदी भाषा के एक युवा ध्वजवाहक के कृतित्व को सामने लाते हुए हिंदी विवेक पत्रिका हिंदी के समुज्ज्वल भविष्य के प्रति आश्वस्त है।
कमलेश कमल जी की हिंदी भाषा साधना, आज की युवा पीढ़ी के लिए निश्चय ही प्रेरणादाई है। उनके प्रयत्न को मेरा नमन है
कमलेश जी का हिन्दी व्याकरण पर काम करना,उनकी साधना का हिस्सा रहा है।
आदरणीय कमलेश कमल जी शब्दों से खेलते हैं। वह शब्दों के शुद्ध प्रयोग पर बल देते हैं। ‘भाषा की पाठशाला’ के माध्यम से वे लाखों पाठकों तक शब्दों सूक्ष्म अंतर को व्यक्त करते हुए उनके सार्थक प्रयोग की राह दिखाते हैं। उनकी कृति ‘भाषा संशय शोधन’ को चित्रकूट (मध्यप्रदेश) में आयोजित एक भव्य सम्मान समारोह में श्रीमती रामबाई दीक्षित स्मृति लेखक सम्मान-2024 प्रदान किया गया था। प्रस्तुत लेख कमलेश कमल जी के हिंदी अनुराग एवं अवदान को रेखांकित करता हुआ उनके जीवन के विविध चित्र साझा करता है। मेरी हार्दिक बधाई एवं शुभकामना।
• प्रमोद दीक्षित मलय
शिक्षक एवं साहित्यकार, बांदा, उत्तर प्रदेश
शानदार समीक्षा; आदरणीय कमलेश ऐसी समीक्षा के सच्चे अधिकारी है।
सरस्वती की कृपा है, हिंदी के ध्वजवाहक हैं श्री कमलेश कुमार कमल.