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मिथिला का हो विकास मन में है यही आस – रामसुंदर झा

मिथिला का हो विकास मन में है यही आस – रामसुंदर झा

by हिंदी विवेक
in नवम्बर २०२४, विशेष, विषय
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मैं भले ही आज मुंबई में रहकर एक बड़ा उद्योगपति बन गया हूं, लेकिन मेरी जन्मभूमि मिथिला का विकास नहीं होने से मन में एक टीस रहती है। यदि मैथिली समाज संगठित होकर पहल करे तो सकारात्मक परिवर्तन अवश्य होगा। इसी तरह मिथिला क्षेत्र व समाज से जुड़े विविध विषयों पर झा कंस्ट्रक्शन प्रा. लि. के हेड रामसुंदर झा ने अपने विचार व्यक्त किए। पेश है उनके साक्षात्कार का सम्पादित अंश 

मिथिला क्षेत्र आपकी जन्मभूमि है, अपनी जन्मभूमि के सम्बंध में आपके मन में क्या भाव हैं?

मिथिला की पावन भूमि ही मेरी जन्मभूमि है, लेकिन मुझे इस बात का दुःख है कि यहां पर विकास नहीं हो रहा है। मैं भी गरीबी से निकल कर बाहर आया हूं। बचपन में लालटेन के नीचे बैठकर हमने पढ़ाई की थी। समय के साथ जो विकास इस क्षेत्र का होना चाहिए था, वह अब तक नहीं हुआ। मेरी यही इच्छा है कि मिथिला में  विकास होना चाहिए।

 यहां शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधा की स्थिति कैसी है?

मैथिली भाषा शिक्षा पाठ्यक्रम का हिस्सा नहीं है, जबकि संविधान की आठवीं सूची में यह दर्ज है। यहां समग्र शिक्षा देने के लिए अच्छे विद्यालय नहीं हैं। जैसी-तैसी अवस्था में यहां विद्यालय चलते हैं, शिक्षा का स्तर गिरा हुआ है। इसी तरह स्वास्थ्य सुविधा का भी यही हाल है। यहां पर्याप्त संख्या में हॉस्पिटल भी नहीं है, जबकि इसकी सर्वाधिक आवश्यकता और मांग है। लगभग 30 से 40 किलोमीटर के अंतराल में कोई अच्छा हॉस्पिटल नहीं है, इससे आप स्वास्थ्य सुविधा का अनुमान लगा सकते हैं। यदि किसी की दुर्घटना हो जाए तो वो 50 किलोमीटर दूर हॉस्पिटल जाते-जाते ही स्वर्गधाम पहुंच जाए। यह सब आज की परिस्थिति है।

 आप मुम्बई कब आए और आगे की यात्रा कैसी रही?

30 जनवरी 1996 को मैं मुम्बई आया था। परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी और परिवार पर कर्ज बढ़ता ही जा रहा था। कर्ज के बोझ से परिवार को बचाने के लिए मैंने शहर जाने का निर्णय लिया। कुछ समय तक छोटे-मोटे काम किए। इस दौरान मैंने अच्छे पैसे कमाए और हम पर जो कर्ज था वह 6 महीने में उतार दिया। काम करने के साथ ही आगे की पढ़ाई भी जारी रखी। कोहिनूर टेक्निकल अंधेरी से कोर्स किया। डिप्लोमा करने के बाद मुझे 1997 में एसी की दुकान में नौकरी मिली।

इस दौरान मेरे रहने का कोई ठिकाना नहीं था। जहां कोई नई बिल्डिंग बनती, वहीं पर नाईट डयूटी सिक्युरिटी का जॉब करता था और वहीं रात गुजार लेता था। यहां रहने की फ्री व्यवस्था हो जाती थी। फिर मेरे ध्यान में आया कि बिल्डिंग का काम तो मैं भी करा सकता हूं, क्यों न लेबर कॉन्ट्रैक्ट का काम शुरू कर दूं। फिर मैंने दोनों स्तरों पर काम करना शुरू किया। एक ओर ए.सी. का काम करता था और दूसरी ओर बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन का। साथ ही आगे की पढ़ाई भी जारी रखी और सिविल इंजीनियरिंग डिप्लोमा करना शुरू कर दिया। संघर्ष के दिनों में मेरे सहयोगी रहें आर. एस. गुप्ता का मुझे उचित मार्गदर्शन व बहुत सहयोग मिला। बांद्रा आईटीआई से डिप्लोमा और डिग्री लेने के बाद 2002 में सिंगापुर की एक कंस्ट्रक्शन कम्पनी में मेरी जॉब लग गई। वहां मुझे अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी सीखने को मिली। एक सुपरवाइजर के तौर पर जॉब शुरू किया था और 2016 में डायरेक्टर के रूप में त्यागपत्र दिया और स्वयं का व्यवसाय शुरू किया। आज मैं प्रगति की ओर अग्रसर हूं।

 आपकी पारिवारिक पृष्ठभूमि कैसी थी?

हम 2 भाई और 4 बहनें हैं। घर में सबसे छोटा मैं ही हूं। हमारे यहां की दहेज प्रथा गरीबों के लिए बहुत बड़ी व्यथा है। मेरे पिताजी एक किसान हैं। उस समय उनकी कोई आमदनी नहीं थी। गांव में कभी तूफान आ जाता, कभी सूखा या अकाल पड़ जाता तो सब मेहनत बेकार व खेती-बाड़ी चौपट हो जाती थी। आमदनी ज्यादा नहीं थी, ऐसे में मेरी चारों बहनों की शादी जमीन बेचकर हुई। कोई भी महत्वपूर्ण कार्य करना होता तो हमें जमीन बेचनी पड़ती थी। यह स्थिति हमारे घर की थी।

संघर्ष के दिनों में आपको प्रेरणा कहां से मिलती थी?

बड़े भाई को मैं अपने पिता तुल्य मानता हूं। मेरे पिताजी अब नहीं हैं, 2009 में उनका स्वर्गवास हो गया। वे मुझे समझाते थे कि बिना संघर्ष और त्याग के सफलता नहीं मिलती। जब तक रिस्क नहीं लोगे तब तक आगे नहीं बढ़ सकते। यह सीख उन्होंने मुझे दी थी। उनका प्रोत्साहन ही मेरे लिए सबसे बड़ी प्रेरणा रही है। मुझे लगता है कि उनके बिना मैं इतना आगे नहीं बढ़ पाता।

 आपके कार्य को सफल बनाने में आपकी आस्था कैसे सहायक हुई है?

ईश्वर के आशीर्वाद से जो चीज मैंने चाही वो मुझे मिल गई। साल भर आगे पीछे हुआ है, लेकिन मैं लक्ष्य तक जरूर पहुंचा हूं। जहां मैं सोचता कि काश मुझे यहां से काम मिल जाता तो अच्छा होता तो सौभाग्य से मुझे 2-4 महीने बाद वहां से काम मिल जाता। मैं धार्मिक हूं, नियमित रूप से प्रतिदिन पूजा-पाठ और ईश्वर की ध्यान साधना करता हूं। नवरात्र में 9 दिन व्रत रहता हूं। ईश्वर की कृपा पर मुझे पूर्ण विश्वास है और मैं मानता हूं कि वे ही मेरी सहायता करते हैं।

2 साल पहले मैंने सोचा था कि सी लिंक वाला जो कोस्टल रोड बन रहा है, उसमें कुछ काम मुझे भी मिल जाता तो अच्छा होता। एक दिन मुझे अचानक वहां से फोन आया कि आपको ये काम करना है, कितने दिनों में कर दोगे? मैंने कहा कि आप समय बताइए। तो उन्होंने एक महीना कहा। मैंने कहा ठीक है! काम हो जाएगा। 6 महीने का काम मैंने एक महीने में कर दिया।

 आपकी कम्पनी में कार्यरत कर्मचारियों के प्रति आपकी क्या मनोभावना हैं?

मेरे पास जितने कर्मचारी और मजदूर हैं, सभी को मैं अपना परिवार मानता हूं। वो सब मेरे साथ खुश रहे, यही मेरी इच्छा है। जब मैं भगवान की पूजा करता हूं तब मैं भगवान से प्रार्थना करता हूं कि हे भगवान! मुझे इतनी शक्ति देना कि इन सभी लोगों को मैं खुश रख सकूं और मैं भी खुश रहूं। मैं बस यही चाहता हूं कि कोई भी मेरा सहयोगी कर्मचारी मुझसे नाराज होकर यहां से न जाए। जब तक वह यहां रहे, उसे कोई परेशानी न हो।

 अभी आपका किन-किन राज्यों में प्रोजेक्ट चल रहा है?

अभी मेरा गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश में काम चल रहा है। अभी पश्चिम बंगाल के काम के लिए प्रयासरत हूं। मैं केवल सरकारी प्रोजेक्ट करता हूं या फिर इंडस्ट्रीयल जैसे जीएसडब्ल्यू के साथ काम करता हूं। मेरे काम की गुणवत्ता और समय के हिसाब से मुझे आउट लाइन भी काम मिलता है। समय और गुणवत्ता से मैं कोई समझौता नहीं करता। इसलिए काम के मामले में मेरी प्रतिष्ठा अच्छी है।

 मिथिला के किन क्षेत्रों को विकसित किया जाना चाहिए ताकि वहां के युवा वहीं रहकर रोजगार प्राप्त कर पाएं?

सबसे पहले तो वहां इंडस्ट्री लगना चाहिए और आईटी सेक्टर की स्थापना की जानी चाहिए क्योंकि बिहार के युवा आईटी के जॉब के लिए बेंगलुरु, दिल्ली, हैदराबाद आदि शहरों एवं विदेशों में चले जाते हैं। बिहार में आईटी हब और फिल्म इंडस्ट्री होनी चाहिए। कुल मिलाकर सभी क्षेत्रों में रोजगार, व्यवसाय, स्वयं रोजगार, उद्योग की उपलब्धता होनी चाहिए। वहां प्रतिभा की कोई कमी नहीं है।

 आपके गांव में आप किस तरह से सेवाकार्य कर रहे हैं?

मैं अपने गांव में विशेष तौर पर स्वास्थ्य और शिक्षा क्षेत्र में काम कर रहा हूं। मैं नियमित रूप से वहां पर मेडिकल कैम्प का आयोजन करता रहता हूं। साल में दो बार मेगा मेडिकल कैम्प होता है और मेरे गांव में कुल 12 वार्ड हैं। वहां प्रत्येक वार्ड में हर महीने में एक बार स्वास्थ्य सुविधा प्रदान की जाती है। मेरी धर्मपत्नी मनोरमा महिलाओं के स्वास्थ्य पर अधिक ध्यान देती हैं और वे काफी सक्रिय रहती हैं। मेधावी छात्रों और आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों को हमारे फाउंडेशन की ओर से फ्री लैपटॉप तथा अन्य वस्तुओं की आपूर्ति की जाती है। साथ ही पढ़ाई के लिए आवश्यक वस्तुओं की भी मैं आपूर्ति कर रहा हूं। हर साल हम दसवीं और बारहवीं के टॉपर्स को सम्मानित करते हैं। समय मिलने पर मनोरमा सरकारी स्कूल में अंग्रेजी की ऑनलाइन क्लास लेती हैं, इससे वहां जो छात्र अंग्रेजी में थोड़े कमजोर होते हैं, उन्हें अच्छी शिक्षा मिल जाती है।

 बिहार में सकारात्मक परिवर्तन लाने हेतु कौन से प्रयास आवश्यक हैं?

केवल एक व्यक्ति के करने से परिवर्तन नहीं होगा। यदि बड़े अधिकारी के साथ आम से लेकर खास तक सभी लोग अपना योगदान देंगे तो यहां सकारात्मक परिवर्तन अवश्य दिखाई देने लगेगा। मुझे प्रशासन से कोई सहायता नहीं मिलती है। यदि बिहार के आईएस, आइपीएस, यूपीएससी से जुड़े अधिकारी यहां अपना योगदान देने लगे तो क्षेत्र का बहुत विकास हो सकता है। आज भी रिकॉर्ड है कि सबसे ज्यादा अधिकारी यहीं से ही बनते हैं, लेकिन पता नहीं क्या कारण है कि वे लोग इस क्षेत्र के विकास पर ध्यान नहीं देते हैैं। जो जहां निकला वहीं सेटल हो गया। नेता तो अपने निहित स्वार्थ के लिए क्षेत्र का विकास नहीं करना चाहते, लेकिन हमारा भी यह दायित्व बनता है कि जो हमारी जन्मभूमि है उसका भी कर्ज चुकाए।

 मिथिला के स्थानीय नेताओं के बारे में आप क्या कहना चाहेंगे?

नेताओं ने वहां ऐसी अवस्था बना कर रखा है कि यहां कभी विकास हो ही नहीं। बस केवल अनाज बांट देते हैं, ताकि वे जिंदा रहें और उन्हें वोट देते रहें। एक तरह से बिहारी को भिखारी बना कर रखा हुआ है। मनरेगा से जो थोड़ा बहुत कमिशन काट के लोगों को मिल जाता है, बस उसी में उनको गुजर-बसर करना होता है। इन्हीं परिस्थितियों के कारण बिहार से सर्वाधिक युवाओं एवं मजदूरों का पलायन होता है। ऐसा लगता है कि बिहार के नेताओं ने कसम खा ली है कि पूरे देश-दुनिया में बिहार से मजदूर सप्लाय किया जाएगा।

 लालू राज और नीतीश राज में क्या अंतर आपको दिखाई देता है?

सच बताऊं तो ऊपर से दिखने में तो दोनों में अंतर दिखाई देता है, लेकिन अंदर से दोनों एक ही हैं। एक ही टेबल पर खाएंगे, सब कुछ साथ मिल कर करेंगे, एक ही जगह से दोनों निकले हुए हैं। हालांकि इसका दूसरा पहलू भी है, जब नीतीश सत्ता में आए तब 10 वर्षों के कार्यकाल के दौरान उन्होंने कुछ अच्छा काम भी किया। खासकर इन्फ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र में सड़के बहुत अच्छी बनाई गई। लालू के राज में तो सड़के इस हद तक खराब थी कि पैदल चलना भी मुश्किल था। अपहरण, लूटपाट, गुंडागर्दी, जंगलराज ये सब बहुत था। इस तुलना में काफी सुधार हुआ, लेकिन तीसरे कार्यकाल में इतना बिगड़ गया कि वापस जंगलराज वाला हाल हो गया। अभी भी है, केवल नाम और अपने स्वार्थ के लिए एनडीए के साथ है, डेवलेपमेंट के नाम पर जीरो हैं।

 समाज की सोच बदलने के लिए क्या किया जा सकता है?

हमारे समाज में एकजुटता का भारी अभाव है। लोग एक दूसरे को सहयोग व सहायता नहीं करना चाहते हैं। ज्यादातर लोग आपस में स्पर्धा और ईर्ष्या के मोड पर रहते हैं। सरकार मुफ्त में राशन दे रही है, इतने से काम चल जाएगा। यह सोच बदलना चाहिए, लेकिन इसके लिए जमीनी स्तर पर जागरूकता मुहिम चलाए जाने के साथ उन्हें स्वावलम्बी बनाने की भी आवश्यकता है।

 मिथिला समाज में दो तरह के लोग दिखाई दे रहे हैं एक वो हैं जो अपनी मेहनत के बल पर उच्च पदों पर जा रहे हैं और दूसरे वो लोग हैं जो न खुद आगे बढ़ रहे हैं और न ही दूसरों को आगे बढ़ने दे रहे हैं। इन विचारों की खाई को कैसे पाटा जाए?

जिन्होंने अपनी प्रतिभा के बल पर एक ऊंचाई प्राप्त की है और बड़े पदों पर पहुंचे हैं, ऐसे लोगों को अपना कीमती समय निकालकर समाज को ऊंचा उठाने के लिए प्रबोधन करना होगा, तभी यहां की स्थिति बदलेगी। व्यक्तिगत तौर पर मैंने बहुत कोशिश की, लेकिन केवल मेरे अकेले के करने से कुछ नहीं होगा। यदि मेरे जैसे हजारों लोग आगे आए तो बदलाव जरूर होगा। मेरे जैसे बहुत लोग अच्छा काम करना चाहते हैं। सहायता देने को वो तैयार हैैं, लेकिन फिर भी सुधार करने के लिए समाज की मानसिकता नहीं है। पुरानी सोच निकल नहीं रही है। जो लोग बाहर रहते हैं उन्हें संगठित होना पड़ेगा, जनजागरण हेतु एक बड़ा आंदोलन करना होगा, तभी जमीनी स्तर पर सकारात्मक बदलाव आएगा।

 मुम्बई में भी बड़ी संख्या में मैथिलि समाज के लोग रहते हैं, उनको एकजुट करने के लिए क्या कोई प्रयास हुआ?

हमारे मैथिलि में एक बात सामान्य है और वह यह है कि सबको कुर्सी चाहिए। किसी को सचिव बनना है, अध्यक्ष बनना है। केवल हमारे मीरा रोड में कम से कम मैथिली समाज की 20 संस्थाएं होगी, उनमें से केवल एक-दो संस्थाएं ही समाज हित के लिए कार्यरत हैं और अन्य अपनी जेब भरने में ही व्यस्त हैैं। यदि आपने कोई पद नहीं दिया तो वे खुद की एक संस्था बना लेते हैं। यही हमारे समाज की सबसे बड़ी समस्या है। मैं ही सबसे श्रेष्ठ हूं, विद्वान् हूं, समर्थ हूं, यह अहंकार समाज की एकजुटता के लिए सबसे बड़ी बाधा बना हुआ है।

 बिहार में उद्योग व्यवसाय और निवेश के लिए क्या किया जाना चाहिए?

बाहर से जो उद्योगपति यहां आना चाहते हैैं उनको आप कुछ लाभ देंगे तभी तो वह यहां निवेश करेंगे और अपना उद्योग धंधा लगाएंगे। उन्हें जब यह गारंटी दी जाएगी कि आपकी सुरक्षा सुनिश्चित की जाएगी, लोकल गुंडों या माफियाओं से कोई समस्या नहीं होगी, हफ्ता वसूली नहीं की जाएगी, जब उद्योग व्यवसाय के लिए अनुकूल उत्साही सुरक्षित वातावरण बनेगा, तभी सकारात्मक बदलाव आएगा। मैं बिहार से हूं, लेकिन वहां जाकर काम करने के लिए मुझे डर लगता है। इस पर सरकार को विशेष ध्यान देना चाहिए।

 बिहार सरकार मिथिला के विकास की ओर ध्यान क्यों नहीं देती?

लम्बे समय से खास तौर पर मैथिलि क्षेत्र से बिहार सरकार सौतेला व्यवहार करती आई है। बहुत आंदोेलन भी हुए, बावजूद इसके सरकार ने इसकी कोई सुध नहीं ली। इसका प्रमुख कारण है वहां पर एक संस्था नहीं है और आंदोलनकारी भी बंटे हुए हैं। लगभग 20 से 25 संस्थाएं है और सब तुच्छ स्वार्थ के चलते मैं-मैं तक ही सीमित है। शायद इसलिए भी सरकार द्वारा इनकी उपेक्षा की जाती होगी।

 आपने मैथिलि भाषा से जुड़ी कौन सी फिल्में बनाई है और कौन सा मैथिली भाषा का ओटीटी चैनल शुरू करनेवाले हैं?

मैंने मैथिली भाषा की 2 फिल्मों का निर्माण किया है। उनमें से पहली फ़िल्म सामाजिक कुरीतियों पर आधारित है एवं इसमें नारी शिक्षा और विधवा विवाह पर विशेष बल दिया गया है। दूसरी फ़िल्म ‘मिलन’ आधुनिक समाज को प्रतिबिम्बित करती है, जिसे हमने नेपाल एवं मिथिला के क्रमशः 11 एवं 12 थिएटर में रिलीज़ किया है और उत्साहवर्धक परिणामस्वरूप यह फ़िल्म 3 सप्ताह तक थिएटर में चली। आगे और फ़िल्मों का निर्माण प्रस्तावित है। इससे लोगों को रोजगार भी मिलेगा।

 –भोला बैरागी

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