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लक्ष्मीनिया पुतौह मनोरमा झा 

लक्ष्मीनिया पुतौह मनोरमा झा 

by pallavi anwekar
in ट्रेंडींग, नवम्बर २०२४, विशेष
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एक गृहणी, शिक्षिका, नृत्यांगना, बिजनेस वूमन और समाजसेवी के रूप में अपना योगदान देने वाली मनोरमा रामसुंदर झा एक कर्मयोगी की भांति अपने कर्तव्यों का निर्वाह कर रही हैं। जन्मभूमि और कर्मभूमि मुम्बई के साथ ही मातृभूमि मिथिला के लिए भी उनका दिल धड़कता है। प्रस्तुत है उनके साक्षात्कार का सम्पादित अंश –

 मिथिला के बारे में आपके क्या विचार हैं?

सबसे पहले मैं आपको बता दूं कि जन्मभूमि मेरी मिथिला नहीं है। मेरा जन्म और शिक्षण सब मुम्बई में हुआ है। मिथिला मेरी मातृभूमि है, यह आप कह सकते हैं। मेरे दादाजी रेलवे में थे और काम के सिलसिले में वो मुंबई आकर बस गए। उसके बाद की जो हमारी पीढ़ी थी, धीरे-धीरे मुंबई की तरफ ही बढ़ती चली गई। मेरे पापा प्राइवेट सर्विस में थे, साथ ही वो स्टॉक मार्केट में बहुत रुचि रखते थे।

मुंबई में जन्म तथा पालन-पोषण होने बाद भी आपका जुड़ाव मिथिला से कैसे रहा? 

मिथिला से मेरा बस इतना ही नाता था कि जब मैं छोटी थी तो अवकाश के दिनों में हम गांव जाते थे। मेरे नाना-नानी, मामा-मामी और भी परिजन थे जिनसे हमारा मिलना होता था। हम एक महीना रहते थे। ये महीने का जो सिलसिला था, वो तीन सालों के बाद ही होता था क्योंकि उतना पैसा नहीं होता था कि हम ट्रेन से हर साल जा सकें। उन दिनों बहुत सारी चुनौतियां थीं। मेरी गीत-संगीत में बड़ी रुचि थी और मैं परफॉर्म करती थी, नृत्य करती थी। मिथिला की संस्कृति उसके वैज्ञानिक आधार और सामाजिक चेतना ने मुझे एक सामाजिक उद्यमी के रूप में काम करने हेतु प्रेरित किया। धीरे-धीरे सामाजिक काम करना भी मैंने शुरु किया।

 आपने जब धीरे-धीरे अपने क्षेत्र को जानना शुरु किया तो आपको कैसा अनुभव आया?

जब आप किसी चीज को धरातल पर जानते हो तो उसकी अलग छाप बनती है। मुझे याद है कि जब मैं छोटी थी लगभग 4थीं कक्षा में थी तो मैं पटना गई थी। यात्रा के दौरान जो मेरा अनुभव था वो आज भी मेरे मानस पटल पर अंकित है। हम लोगों ने पहले सुना था कि वहां चोरी बहुत होती है, यहां बचके रहना है। मैं अपने माता-पिता और भाई के साथ जब पटना गई तो रात में करीब 10 या 10:30 बजे हमारी ट्रेन पटना पहुंची। एक चोर ने हमारे सामान को छीनने की कोशिश की। जब हम लोगों ने इसका विरोध किया तो वहां भगदड़ जैसा माहौल हो गया। सचमुच यह बहुत डरावना अनुभव था। कई ऐसी छोटी- छोटी घटनाएं हैं जो आज भी मुझे याद हैैं। वो मेरी स्मृति में बस गई हैं।

 क्या गांव की कुछ अच्छी स्मृतियां भी हैं?

अच्छी स्मृतियां ‘मेरे लोग’ थे। जब मैं छोटी थी तब मुम्बई में ज्यादातर हिंदी में बात करते थे। हिंदी बोल रहे हैं, आप इंग्लिश बोल रहे हो तो आप पढ़े-लिखे हो। जब मिथिला गई तो देखा कि सब मैथिली भाषा में बात कर रहे हैं। अपना खेत देखा मैंने। खेती-बाड़ी बहुत बड़ी थी। संस्कृति भी बहुत सम्पन्न था। अच्छी स्मृतियों में यही सब चीजें हैं कि कोई भी कार्यक्रम हम वहां जाकर मनाया करते थे तो सब लोग अपने लोगों से मिलते थे।

 मिथिला क्षेत्र की क्या विशेषता है?

क्षेत्र की विशेषता में मैं आपको ऐतिहासिक दृष्टि से बताना चाहूंगी। इस दृष्टि से मिथिला क्षेत्र बहुत समृद्ध है। विशेषकर मैं दरभंगा की बात करुंगी। दरभंगा के महाराज ने बहुत सारी उपलब्धि हमारे क्षेत्र को दी है। जैसे कि दरभंगा महाराज ने पं.नेहरु को उनका पहला एरोप्लेन उपहार में दिया था। ब्रिटिश सरकार को भी उन्होंने बड़ा योगदान दिया था। उनका महल, उनका फोर्ट, उनकी यूनिवर्सिटी आदि। ऐसा नहीं था कि मिथिला में सबकुछ पिछड़ा था। यहां प्राचीन ऐतिहासिक मंदिर हैं बहुत सारे। यदि आप मधुबनी जाओगे तो वहां आपको 700 साल, 1000-2000 साल पुराने मंदिर मिलेंगे। मिथिला के बारे में कहा जाता है ‘पग-पग पोखर, माछ, मखान, ई छै मिथिला के शान’। पान, माछ, मखाना, पोखर ये सब मिथिला की शान हैं।

 मिथिला में विकास की गति कैसी है और यहां क्या परिवर्तन हुआ है ?

अभी विकास की गति बहुत धीमी है इसलिए विकास की गति बढ़ाने की आवश्यकता है। परिवहन को बहुत आसान और सुलभ किया गया है। दरभंगा एयरपोर्ट बनने से बहुत सारे ऐसे लोग थे जो ट्रेन से नहीं चलना चाहते थे। उनके बच्चे भी नहीं आना चाहते थे। एयरपोर्ट की सुविधा मिलने से बच्चे यात्रा करके आते हैं हवाई जहाज से। यात्रियों के लिए यह बहुत ही सुविधाजनक है। भविष्य मे 100 में से 10 लोग तो आएंगे। दुबारा आने का प्रयास करेंगे। उन 10 में से दो को ऐसा लगेगा कि अपना बिजनेस किया जाए।

 क्या ऐसा हुआ है यहां?

कोरोना के समय में यहां बहुत परिवर्तन हुआ है। बड़ी संख्या में बाहर बसे लोगों ने अपने मिथिला क्षेत्र में वापसी की है। वहां पर लोगों ने नए-नए स्टार्टअप शुरु किए हैं। कुछ लोग तो इतने सफल हुए कि उन्होंने फ्रेंचाईजी के माध्यम से पूरे मिथिला क्षेत्र में अपना विस्तार किया है। कुछ युवा ऐसे भी हैं जो मिथिला में जाकर सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में अपना योगदान दे रहे हैं। इनमें से ही कुछ 2020 के चुनाव में विजयी होकर मुखिया व सरपंच बन चुके हैं और वे अपने गांव का विकास कर रहे हैं। चीजें तो बदली हैं और वह युवाओं की वजह से बदली हैं।

आपने बताया कि नृत्य के कारण आपका मिथिला की तरफ दृष्टिकोण बदला। नृत्य, संगीत, साहित्य या अन्य चीजों के लगाव को मुंबई में आगे बढ़ानेे के लिए आप क्या करेंगी?

मेरा अभी जो भी लगाव है न मिथिला को लेकर वो एकदम सीधा लगाव है। बचपन में माधुरी दीक्षित मेरी पसंदीदा हुआ करती थीं , मैं उनके गाने पर बहुत अभिनय करती थी, जिसमें मराठी गाने भी होते थे। धीरे-धीरे मैंने मिथिला को जाना, चीजों को समझने लगी। शिव नाचारी में शिव-पार्वती में बहुत सारे वार्तालाप होते हैं। अलग-अलग विधा के गीत होते हैं। सोलह संस्कार होते हैं। हर संस्कार का अलग-अलग महत्व व नियम होते हैं। समदाऊन एक ऐसा गीत है जिसे बेटी की बिदाई के समय गाया जाता है। कहा जाता है कि यदि आप मैथिली भाषी है तो यह गीत सुनकर भावुक होकर रोने लगेंगे, पर मुझे ऐसा नहीं लगता था। अब जब मैं मिथिला से जुड़ी और जब मैं समदाऊन सुनती हूं तो मैं सचमुच रोती हूं। मुझे वो सीता माता की याद दिलाती है, कितनी संस्कारी थीं।

 मुंबई में मिथिला से सम्बंधित संगठनों से आप जुड़ी हुई हैं। ये संगठन मैथिली समाज में क्या भूमिका निभाते हैं?

पहला जो मैंने संगठन से जाना था कि मिथिला के लोग बड़ी संख्या में मुंबई में रहते हैं। जब छठ पूजा में मैं गई तो मुझे पता चला कि इतने सारे लोग मिथिला से हैं। अपने लोग, अपनी भाषा सुनने को मिल रही है। शुरूआत में बड़ा अजीब और अलग भी लगता था, लेकिन साथ ही बहुत खुशी भी होती थी। ये संगठन लोगों को याद दिलाने का काम करते हैं कि आप मिथिला क्षेत्र से हैं। मिथिला से जुड़े पर्व-त्योहारों को मुम्बई में बड़े धूमधाम से इन संगठनों द्वारा मनाया जाता है ताकि प्रवासी मैथिली समाज अपनी सांस्कृतिक विरासत से जुड़े रहे।

 ये संगठन कौन-कौन से मैथिली त्योहार मनाते हैैं?

साल भर में हम लोग होली का त्योहार मनाते हैं, फिर छठ पूजा, मधुश्रावणी, नागपंचमी, दीपावली आदि। हमारे जो नवविवाहित जोड़े जो हैं उनके यहां 15 दिन का कार्यक्रम चलता है। इस दौरान उन्हें एक समय का उपवास रखना पड़ता है। उसमें एक समय नमक नहीं खाना होता है जिसे अनुना कहते हैं। होली, दीपावली पर भी हम एक-दूसरे से मिलने की कोशिश करते हैं।

 मिथिला के ऐसे कौन-कौन से क्षेत्र हैं, जिन पर ध्यान केंद्रित करने से प्रगति सम्भव है?

मधुबनी पेटिंग और वहां के प्राचीन ऐतिहासिक मंदिर पर फोकस किया जाना चाहिए क्योंकि ये पर्यटन के प्रमुख आकर्षक केंद्र के तौर पर उभर सकते हैं। हम टूर पैकेजिंग मिथिला में कर सकते हैं। महान साहित्यकार विद्यापति के गांव बिस्फी का विकास किया जाना भी लाभदायक सिद्ध होगा। अभी मैंने सुना है कि उस क्षेत्र के विकास के लिए 20 करोड़ का पैकेज दिया गया है। पर्यटन पर हमें विशेष ध्यान देना होगा क्योंकि बहुत बड़ी संख्या में देशी-विदेशी पर्यटक यहां भ्रमण के लिए आते हैं। पटना, बोधगया, नालंदा, सीता माता की जन्मस्थली आदि ऐतिहासिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, प्राकृतिक, साहसिक जैसे अनेकानेक स्थान है, जिन्हें पर्यटन की दृष्टि से विकसित किया जाना चाहिए।

 कृषि, उद्योग, व्यवसाय की दृष्टि से मिथिला में कितनी सम्भावनाएं और चुनौतियां हैं?

फूड प्रोसेसिंग इकाई वहां बहुत अच्छे से चल सकती है, जो अभी नहीं हैं। उद्योग के नाम पर वहां कुछ भी नहीं है। इसके अलग-अलग कारण हैं। लोगों का पलायन सबसे बड़ी समस्या है। वैसे देखा जाए तो पूरे बिहार में कारखाने नहीं हैं। हालाकि जब  बिहार और झारखंड एक हुआ करता था। तब झारखंड क्षेत्र में मिनिरल्स व्यापारी बहुत सम्पन्न थे। लगभग 40 प्रतिशत मिनिरल्स कारोबार झारखंड बेल्ट में होता था। एक फ्रीट इक्वलाइजेशन पॉलिसी 1952 में आई थी। इसके अंतर्गत सरकार ने ये नियम लागू किया कि आप देश के किसी कोने में हो आपको मिनिरल्स एक समान मूल्य पर ही मिलेगा। इसलिए जो लोग बिहार में अपना यूनिट खोलने की सोच रहे थे, उन्होंने सोचा कि हम पोर्ट के पास क्यों न खोले? इसलिए गुजरात कोस्ट पर, महाराष्ट्र कोस्ट पर इस तरह से लोग अलग-अलग जगहों पर जाने लगे और बिहार को लोग अनदेखा करने लगे। फिर बिहार की राजनीतिक संरचना कुछ अस्थिर हो गई। जिसके कारण उद्योगों का विकास नहीं हो पाया और उद्योग ठप पड़ गए। चीनी मिलें भी बंद हो गई। क्योंकि सरकार की नीति ठीक नहीं थी। सुरक्षा व्यवस्था और कानून व्यवस्था चरमरा गई, जिसके कारण अपहरण, हत्या, हिंसा, चोरी, लूटपाट शुरु हो गई। इसके बाद तेजी से पलायन होना शुरु हो गया। लालू प्रसाद की सरकार में बिहार बर्बाद हो गया। इसलिए लोग वहां रहना ही नहीं चाहते थे। फिर कभी उद्योगों का विकास हुआ ही नहीं। तब से लेकर आज तक मिल, कारखाने, उद्योग, व्यवसाय बंद ही हैैं।

 क्या आज लोग मान रहे हैं कि नीतीश कुमार और लालू सरकार में अंतर है?

100 प्रतिशत मान रहे हैं। आज आप किसी से मिलिए जो बिहार से सम्बंध रखते हैं और उनसे पूछिए कि लालू के राज और नीतिश के राज में क्या अंतर है, तो वे बताएंगे कि जमीन-आसमान का अंतर है। उसकी तुलना तो कोई कर ही नहीं सकता है। लालू राज से तो नीतिश का राज अच्छा है।

आपने अपने पति के साथ व्यवसाय में हाथ कब से बंटाना शुुरु किया?

मैंने अपना स्नातक बीकॉम में किया था। बाद में मैंने एमबीए शुरू किया क्योंकि मुझे कॉरपोरेट में जाना था। पति ने कहा कि आप शिक्षक बनो। मुझे इसमें भी रुचि थी। मैंने फिर बीएड कर लिया। उसके बाद मैंने विद्यालय में 10-12 साल तक पढ़ाया। इस बीच मेरा बेटा हुआ। मेरी शादी बहुत जल्दी करीब 18 साल में हो गई थी। मैंने अपनी पढ़ाई उसके बाद ही पूरी की है। मेरे पति के कहने पर मैंने उनके साथ काम शुरू कर दिया। उनके साथ मुझे काम करना अच्छा लगता है।

आप अपने कार्य क्षेत्र में क्या नया सीख रही हैं?

एक अलग दृष्टिकोण से मुझे देखने का अवसर मिल रहा है। जब अपना व्यवसाय करते हैं तो समय का लचीलापन होता है। लोगों से मिलने का अवसर मिलता है। आपको अपने स्टाफ को सम्भालना है। एक तो दृष्टिकोण का अंतर है। चीजें अलग है यहां पर। अच्छा लग रहा है मुझे।

 क्या आप निर्माण स्थल का दौरा और कंस्ट्रक्शन कार्य का निरीक्षण करती है?

जी हां, मैं प्रत्येक निर्माण स्थल का दौरा कर कंस्ट्रक्शन कार्य का निरीक्षण करती हूं। इंजीनियर से पूछती हूं कि यहां क्या चल रहा है? कुछ तकनीकी जानकारियां भी एकत्रित करती हूं। लोगों को कैसे मैनेज करना है, कैसे मनोबल बढ़ाना है, क्या समस्या आ रही है, उनकी क्या परेशानी है, किस तरीके से हम उस स्तर तक पहुंचे कि न उनका नुकसान हो और न हमारा। इन सभी बातों का मैं ध्यान रखती हूं।

 एक टीचर, एक मैनेजर और इन सब के बीच एक कलाकार, एक समाजसेविका थी उसका क्या हो रहा है?

बिल्कुल वो सारी चीजें चल रही हैं। मिथिला के पुराने गीत पर मैं नृत्य करती हूं तो लोगों को अच्छा लगता है। बहुत बुजुर्ग लोग कमेंट करते हैं। मैंने एक सीरीज शुरू की है ‘लक्षमिनिया पुतौह’। मैंने ऐसी महिलाओं को चिन्हित करना शुुरु किया है जो घर में रहकर, घर का काम करके, बाहर का काम करती हैं। ऐसी महिलाएं जो मिथिला में रहकर उल्लेखनीय कार्य कर रही हैं। खासकर मैंने ऐसी महिलाओं को चुना है जो राष्ट्रीय विजेता हैं। गांव-देहात में रहकर अपना व्यवसाय शुरू करने वाली प्ररणादायी महिलाओं की मैं डॉक्यूमेंट्री बनाती हूं। उनके घर जाती हूं, उस दिन के लिए वो मेरी हिरोईन होती हैं। इनकी सुबह से शाम तक की दिनचर्या के बारे में जानती हूं, उनके परिवार के बारे में पूछती हूं, पति के बारे में पूछती हूं, साक्षात्कार करती हूं। 7-8 एपिसोड मैंने शूट कर लिए हैैं। अगला शूट फिर शुरू होगा। इसको मैं जारी रखने वाली हूं। लगभग 100 एपिसोड इस पर मैं पूरा करना चाहती हूं। इसी बहाने मुझे भी मिथिला भ्रमण का मौका मिलता है।

 हिंदी विवेक के पाठकों को आप क्या संदेश देना चाहेंगी?

मैं यह संदेश देना चाहती हूं कि आप अपने जीवन में कम से कम एक बार मिथिला अवश्य आइए। यहां की संस्कृति को जानिए और समझने का प्रयास कीजिए। मिथिला का दर्शन करने मात्र से आपको सीता-राम और रामायण की याद जरूर आएगी। आपको यह भी पता चलेगा कि रामायण में जो कहानियां है वो काल्पनिक नहीं है बल्कि वह भारत का गौरवशाली वास्तविक इतिहास है।

 

 

 

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