राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शताब्दी वर्ष के प्रसंग पर भारत सरकार ने विशेष डाक टिकट और 100 रुपये का सिक्का जारी किया है। यह साधारण सिक्का नहीं है, जो प्रसंगवश जारी किया गया है। संघ के स्वयंसेवकों ने यह सिक्का अपने परिश्रम, त्याग, समर्पण और राष्ट्र की सेवा से कमाया है।
हिन्दू धर्म, हिन्दू संस्कृति और हिन्दू समाज का संरक्षण कर देश की स्वतंत्रता एवं सर्वांगीण उन्नति का व्रत लेकर चलने वाले स्वयंसेवकों ने संघ रूपी राष्ट्रीय आंदोलन को यशस्वी बनाने में अपना जीवन खपाया है, तब जाकर यह अवसर आया है। अपनी स्थापना के प्रारंभ से ही संघ ने अनेक कठिनाइयों एवं अवरोधों का सामना किया। सत्ता के हठ से भी स्वयंसेवक टकराए। लेकिन, किसी के प्रति बैर भाव रखे बिना स्वयंसेवक राष्ट्र की साधना में समर्पित रहे। अपने कार्य की सिद्धि से स्वयंसेवकों ने उनका हृदय भी जीता, जो कभी संघ को समाप्त कर देना चाहते थे। इसलिए यह सिक्का केवल शताब्दी वर्ष का स्मृति चिह्न नहीं है अपितु संघ की वास्तविक कमाई का प्रतिनिधित्व है।
सर्व समाज का विश्वास, अपनत्व, प्रेम और सहयोग, यही संघ की वास्तविक कमाई है। अपने संघ की 100 वर्ष की यात्रा में स्वयंसेवक सबको अपना बनाते हुए यहाँ तक आ पहुँचे हैं कि समाज बाँहें फैलाकर उनका स्वागत कर रहा है। संस्कृति मंत्रालय की ओर से डॉ. आम्बेडकर अंतरराष्ट्रीय केंद्र, दिल्ली में आयोजित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ‘100 वर्षों की गौरवपूर्ण यात्रा का स्मरणोत्सव’ में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी यही बात दोहरायी कि “संघ के स्वयंसेवकों ने कभी कटुता नहीं दिखाई। चाहे प्रतिबंध लगे, या साजिश हुई हो। सभी का मंत्र रहा है कि जो अच्छा है, जो कम अच्छा, सब हमारा है”। उन्होंने कहा कि संघ के स्वयंसेवक लगातार देश सेवा में जुटे हैं। समाज को सशक्त कर रहे हैं, इसकी भी झलक इस डाक टिकट में है। मैं इसके लिए देश को बधाई देता हूं।
संघ शताब्दी वर्ष पर जारी विशेष डाक टिकट पर एक लोगो अंकित है, जिस पर लिखा है- ‘राष्ट्र सेवा के 100 वर्ष (1925-2025)’। इसके साथ ही लोगो के नीचे लिखा है- राष्ट्रभक्ति, सेवा और अनुशासन। संघ की 100 वर्ष की यात्रा की झलक दिखाने के लिए दो चित्र भी डाक टिकट पर दिखायी देते हैं- पहला, 1963 की गणतंत्र दिवस में शामिल स्वयंसेवक और दूसरा, सेवा एवं राहत कार्य करते स्वयंसेवक। इन दोनों ही चित्रों का विशेष महत्व है।
यह सबको ज्ञात है कि भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू पूर्व में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को लेकर पूर्वाग्रहों से ग्रसित थे, जिसके कारण वे संघ को समाप्त करने की इच्छा भी व्यक्त कर चुके थे। लेकिन 1962 में चीन के साथ हुए युद्ध में कम्युनिस्टों की गद्दारी देखकर उनका गहरा धक्का लगा। वहीं, जिस संगठन के प्रति उनके मन में सद्भाव नहीं था, वही संगठन युद्ध के समय सरकार के साथ सहयोगी के तौर पर खड़ा था। राजधानी से लेकर सीमारेखा तक, संघ के स्वयंसेवक सहायता कर रहे थे। सैनिकों की सहायता हो या नागरिक अनुशासन, संघ ने अपना सर्वश्रेष्ठ दिया। इसी बात से प्रभावित होकर प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने गणतंत्र दिवस की परेड में शामिल होने के लिए आरएसएस को आमंत्रित किया। संघ के तीन हजार स्वयंसेवक इस राष्ट्रीय परेड में शामिल हुए। प्रधानमंत्री मोदी ने भी अपने भाषण में इस प्रसंग का उल्लेख किया।
जब भी देश में संकट का वातावरण बना है, स्वयंसेवक सबसे आगे खड़े मिले हैं। याद हो, 1965 में जब भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध प्रारंभ हुआ, तब तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने भी संघ के प. पू. सरसंघचालक माधव सदाशिवराव गोलवलकर उपाख्या श्रीगुरुजी को रणनीतिक बैठक में आमंत्रित करके महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां सौंपी थी। इसी, डाक टिकट पर दूसरा चित्र बताता है कि देश में कहीं भी आपदा आती है, तब स्वयंसेवक आगे बढ़कर सेवाकार्य करते हैं।
भारत विभाजन की विभीषिका से लेकर अभी हाल में आई वैश्विक महामारी कोरोना में संघ के स्वयंसेवकों का समाजसेवा का जज्बा दुनिया ने देखा। देशभर में कहीं भी बाढ़, सूखा, भूकंप या अन्य हादसे होते हैं, तो बिना देरी किए संघ के कार्यकर्ता अपने सामर्थ्य के अनुरूप सहयोग करने के लिए जुट जाते हैं। संघ के सेवाभाव को देखकर अकसर विरोधी भी खुलकर प्रशंसा करने से स्वयं को रोक नहीं पाते हैं। स्वयंसेवक की संकल्पना की कितनी सुंदर और सटीक परिभाषा प्रधानमंत्री मोदी ने दी है- “हमने देश को ही देव माना है और देह को ही दीप बनाकर जलना हमने सीखा है”।
इसी प्रकार, 100 रुपये के स्मृति सिक्के पर एक ओर भारत का राष्ट्रीय चिह्न अंकित है, जबकि दूसरी ओर सिंह के साथ वरद मुद्रा में भारत माता की सांस्कृतिक छवि और भारत माता को नमन करते स्वयंसेवकों को उकेरा गया है। प्रधानमंत्री मोदी कहते हैं कि स्वतंत्र भारत में पहली बार ऐसा हुआ है जब भारत की मुद्रा पर भारत माता की तस्वीर अंकित हुई है। सिक्के पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और संघ कार्य को अभिव्यक्त करनेवाला ध्येय वाक्य- ‘राष्ट्राय स्वाहा, इदं राष्ट्राय, इदं न मम’ लिखा हुआ है।
आरएसएस 100 : संघ के शताब्दी वर्ष के प्रसंग पर भारत सरकार ने जारी किया स्मृति डाक टिकट एवं सिक्का
संघ के स्वयंसेवक ‘प्रसिद्धि परांगमुख भाव’ से समाजहित में कार्य करते हैं। सेवा कार्यों को उपकार की तरह देखने की अपेक्षा स्वयंसेवक सेवा को करणीय कार्य के तौर पर देखते हैं। इसलिए संघ के स्वयंसेवक को श्रेय, यश की लालसा नहीं होती, उसके लिए राष्ट्रहित ही सर्वोपरि होता है। कहना होगा कि यह डाक टिकट एवं सिक्का, स्वयंसेवकों की ‘अहं से वयं’ की यात्रा को अभिव्यक्त करते हैं।
इस प्रसंग पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संघ की व्यापक दृष्टि को ऐतिहासिक उदाहरण देकर स्पष्ट किया। संघ के अधिकारी अकसर कहते हैं कि संघ संपूर्ण समाज को अपना मानता है। यही कारण है कि संघ ने अपने पर हुए हमलों को भुलाते हुए सबको गले लगाया है। प्रधानमंत्री मोदी उल्लेख करते हैं कि “राष्ट्र साधना की यात्रा में ऐसा नहीं कि संघ पर हमले नहीं हुए, स्वतंत्रता के बाद भी संघ को मुख्यधारा में आने से रोकने के लिए षड्यंत्र हुए। पूज्य गुरुजी को जेल तक भेजा गया। जब वे बाहर आए तो उन्होंने कहा था कि कभी-कभी जीभ दांतों के नीचे आकर दब जाती है, कुचल जाती है, लेकिन हम दांत नहीं तोड़ देते, क्योंकि दांत भी हमारे हैं, जीभ भी हमारी है”। नि:संदेह, संघ की यही दृष्टि उसको व्यापक बनाती है।
संघ की 100 वर्ष की यशस्वी यात्रा के पीछे यही दृष्टिकोण है। संघ को रोकने के लिए उस पर तीन-तीन बार प्रतिबंध लगाए गए, कार्यकर्ताओं को प्रताड़ित किया गया लेकिन इसके बाद भी संघ ने सबके साथ आत्मीय भाव से संवाद जारी रखा। उसका परिणाम भी आया, अनेक लोगों के हृदय परिवर्तन हुए। जो कभी संघ को कोसते थे, बाद में संघ में आए, संघ कार्य को आगे बढ़ाया और संघ की प्रशंसा भी की।
प्रधानमंत्री मोदी उचित ही कहते हैं कि “जिन रास्तों में नदी बहती है, उसके किनारे बसे गांवों को सुजलाम् सुफलाम् बनाती है। वैसे ही संघ ने किया। जिस तरह नदी कई धाराओं में अलग-अलग क्षेत्र में पोषित करती है, संघ की हर धारा भी ऐसी ही है”।
लोकेन्द्र सिंह