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दीपोत्सव का सकारात्मक स्वरूप

दीपोत्सव का सकारात्मक स्वरूप

by हिंदी विवेक
in विशेष
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आशा, उत्साह, उमंग, नव चेतना, ऊर्जा, प्रेरणा का पर्व है दीपावली। किसी भी प्रकार के निराशा से भरे नकारात्मक भाव को निकालकर सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ विजयी भाव मन में विकसित करना ही दीपोत्सव पर्व का सार है।

 

दीपज्योति: परं ज्योति दीपज्योतिर्जनार्दनः।

दीपो हरतु मे पापं, दीपज्योतिर्नमोस्तुते॥

दीपकों का यह जगमगाता पर्व दीपावली भारतीय संस्कृति-सभ्यता का अनूठा, विशिष्ट और सकारात्मक ऊर्जा फैलाने वाला पर्व है। सम्पूर्ण विश्व में भारत अपनी सनातनी परम्परा, संस्कृति, सभ्यता, वस्त्र विन्यास, विविधता आदि में अपनी विशिष्ट पहचान रखता है, जो अक्षुण्ण है।

भारत में अनेक पर्व त्योहार मनाए जाते हैं, परंतु दीपावली न केवल प्रसन्नता के लिए मनाया जाने वाला उत्सव है अपितु यह एक आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार करनेवाला पर्व भी है। दीपावली का यह पर्व पांच दिवसीय होता है जिसमें पांच दिन लगातार अध्यात्म से जुड़ने, धर्म से जुड़ने, सकारात्मक ऊर्जा से जुड़ने तथा आपस में परस्पर सम्बंधों को प्रगाढ़ करने का पर्याप्त अवसर प्राप्त होता है।

दीपावली पर जलाई जानेवाली दीप मलिका दीप ज्योति ब्रह्मा और जनार्दन का रूप है जो अंतशः के पापों को दूर करती है। अंतर की नकारात्मकता को समाप्त करती है। यह पर्व हमें बुराई से लड़ने और अच्छाई के मार्ग पर चलने की शिक्षा देता है।

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कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मनाए जानेवाले दीपावली के इस पर्व को क्यों मनाते हैं? इस संदर्भ में अनेक कथाएं प्रचलित हैं- मुख्य कथा के अनुसार भगवान श्रीराम के 14 वर्ष वनवास के बाद अयोध्या लौटने की खुशी में दीपों से अयोध्या नगरी को सजाया गया था तभी से यह दीपोत्सव प्रारम्भ हुआ। माने असत्य पर सत्य की विजय का यह पर्व है। एक अन्य कथा अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध किया जिसके प्रतीक स्वरूप यह पर्व मनाया ींजाता है।

एक कथानुसार यह पर्व माता लक्ष्मी के प्राकट्योत्सव के रूप में मनाया जाता है क्योंकि मां लक्ष्मी का इसी दिन प्रादुर्भाव हुआ था। मां लक्ष्मी के प्राकट्योत्सव के उपलक्ष्य में यह पर्व बड़ी स्वच्छता और निर्मलता के साथ मनाया जाता है। हर घर में इस पर्व पर पूर्व तैयारी प्रारम्भ हो जाती है। घर में सफाई, रंग रोगन और नवीन भव्यता का संचार होने लगता है। वर्ष भर की एकत्रित सारी गंदगी, नकारात्मक ऊर्जा को इस पर्व पर विशेष रुप से घर से बाहर किया जाता है।

हर घर इस दिन साफ सुथरा सजा दिखाई देता है। गरीब हो या अमीर प्रत्येक सामान्य जनमानस से लेकर धनाड्य वर्ग तक अपने-अपने घरों को दीपक की ज्योति से जगमगाते हैं और एक ही भाव समस्त भारत में इस पर पर्व पर परिलक्षित होता है और वह है घर परिवार से नकारात्मकता दूर हो, घर में सुख-समृद्धि आए और चारों ओर सकारात्मक ऊर्जा व्याप्त हो। वास्तव में यह पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का, अंधेरे पर प्रकाश की विजय का और नकारात्मक भाव विचारों पर सकारात्मक विचारधारा के उत्कर्ष का पर्व है। सांस्कृतिक और आध्यात्मिक दोनों दृष्टि से यह पर्व भारत की गरिमा, पहचान, संस्कृति, सभ्यता, ज्ञान का परिचायक है। यह हमें संघर्ष करते हुए निरंतर आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। वर्तमान परिपे्रक्ष्य में आज जहां युग विलासिता की अंधी दौड़ में दौड़ रहा है, ऐसे में महंगाई बढ़ने से आम जनमानस का जीवन दुष्कर हो चला है।

Diwali celebrations on colorful streets of india by cheerful people indian  hindu family together | Premium AI-generated image

देश का सर्वहारा वर्ग अपनी इच्छाएं तो क्या अपनी आवश्यकताएं भी बहुत कठिनाई से पूरा कर पाता है, पर इन विषम परिस्थितियों में भी यह पर्व उनमें उत्साह का संचार करता है और विघ्न बाधाओं को पार करते हुए आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। इस दिन झुग्गी-झोपड़ियां से लेकर महल तक हर ओर उजाला ही उजाला दृष्टव्य होता है। ऐसा लगता है मानो सभी लोग इस पर्व को समानता के साथ सकारात्मक ऊर्जा के साथ मना रहे हों। इस संदर्भ में विवेकानंद का विचार ग्राह्य है। वे कहते हैं- यह पर्व आत्म जागृति का पर्व है। यह पर्व आत्म परीक्षण और नैतिक विकास को प्रोत्साहित करता है।

इस अवसर पर न केवल घर के साफ-सफाई स्वच्छता पर बल दिया जाता है अपितु यह आंतरिक शुद्धि की प्रेरणा भी देता है। इस पर्व के साथ धर्म, अध्यात्म, प्रेम, शुचिता, परम्पराएं आदि जुड़े होने के कारण हम हमारा आत्म तत्व भी जागृत करते हैं। दीपावली के दीपक और प्रकाश को अज्ञानता के अंधकार को दूर करने का प्रतीक माना है, ठीक उसी तरह जैसे एक छोटा सा ज्ञान भी अज्ञानता के लम्बे समय से चले आ रहे अंधेरे को दूर कर सकता है। उनका मानना था कि सच्चा अंधकार भीतर का अज्ञान है, पर सच्चा प्रकाश ईश्वर का ज्ञान है। स्वामी विवेकानंद ने दीपावली को आंतरिक अज्ञान को दूर कर आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने का एक माध्यम बताया, जिसमें समाज और मित्रों के साथ सकारात्मक आध्यात्मिक कार्यों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।

हमारे उपनिषद कहते हैं- तमसो मा ज्योतिर्गमय अर्थात अंधकार की ओर नहीं प्रकाश की ओर जाओ और दीपावली का यह पर्व यही प्रेरणा देता है। दीपों के इस उत्सव में एक भाव निष्ठ रहता है कि संसार में कहीं भी नकारात्मक ऊर्जा ना रह जाए और ऊर्जा एवं प्रकाश का प्रसार हो। दीपमलिका का यह पर्व असत् पर सत और तमस पर ज्योति की विजय का सनातन उदघोष है। यह निराशा के सघन अंधकार में आशा की किरणें जगाता है और नए उत्साह से प्रगति पथ पर अग्रसर होने का संदेश देता है। यह पर्व इसलिए भी सकारात्मक कहा जा सकता है कि पूरा देश धन-धान्य से इस समय भर जाता है।

Indian people celebrating diwali festival in india colorful painting |  Premium AI-generated image

कृषक समाज को नई धान के अभिनंदन की बेला प्रदान करता है। मजदूरों को काम मिलता है, उद्योगपतियों को उद्योग मिलता है, रिश्तों को प्रेम मिलता है और आध्यात्म प्रेमियों को साधना का अवसर मिलता है। बच्चे, बड़े-बूढे सब में प्रसन्नता का संचार होता है।  प्राचीन भारत में दीपमलिका उत्सव कृषि उत्सव के रूप में भी मनाया जाता था। इस संदर्भ में गोपाल दास जी नीरज की कविता बहुत प्रासंगिक लगती है-

जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना।

अंधेरा धरा पर कहीं रह न जाए॥

हर ओर आशा की किरणें प्रसारित हों।

कहीं कोई मलीनता निराशा, दुःख शेष न रहे॥

और यह भी बोध रखना चाहिए। सुख केवल अपने लिए नहीं अपितु उसमें समष्टि का भाव हो। वह सुख सबके लिए हो, वह प्रकाश सबके लिए हो, वह ऊर्जा वह आशा सबके लिए हो, कोई भी उससे वंचित न रहे। दीपावली पर्व का महत्व केवल धार्मिक दृष्टिकोण तक ही सीमित नहीं है। इसे हम सामाजिक, मानवीय और वैचारिक दृष्टिकोण से भी समृद्ध देख सकते हैं। इसलिए यह उत्सव सकारात्मक ऊर्जा को फैलाने वाला और प्रत्येक के हृदय में उत्साह को भरने वाला दीपों का जगमगाता हुआ पर्व है।

– डॉ. नीतू गोस्वामी

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