इस्लामी संस्कृति में परिधानों के कई प्रकार हैं। उन पर भी तरह-तरह की कारीगरी से चार चांद लग जाते हैं। गत कुछ वर्षों से ब्यूटी कांटेस्ट- सौंदर्य स्पर्धाओं- में इस्लामी लिबास में महिला स्पर्धक भाग लेती दिखाई देती हैं। इस्लामी फैशन डिझाइनें भी बदलते समय के अनुसार बदल रही हैं।
प्राचीन सभ्यताओं से लेकर आज तक महिलाओं के पेहरावों में बदलाव होते आया है। प्राचीन सिंधु सभ्यता में उत्खनित हुई मिट्टी की गुड़िया के परिधानों से लेकर आज तक महिलाएं नए-नए तरह के परिधान तथा आभूषण पहनते आई हैं। जैसे-जैसे नए प्रकार के वस्त्र खोजे गए वैसे-वैसे नए पेहराव और उनका अलंकरण विकसित होता रहा। पुरूषों की तुलना में महिलाएं अपने साज-श्रृंगार के संबंध में अधिक जागरूक होती हैं। पुरूषों की तुलना में महिलाओं के वस्त्राभूषणों में विविधता देखी जाती है।
मुस्लिम महिलाओं के पेहराव तथा आभूषणों के बारे में जब सोचते हैं तो सर्वप्रथम पूर्ण शरीर ढंकने वाला हिजाब नजरों के सामने आता है। उसे पवित्र कुरआन की आयतों का अधिष्ठान है। कुरआन शरीफ सूरा 33 आयत 53 में पैगंबर साहब की शादी के समय हुई घटना को लेकर की यह आयत उतरी है। उस आयत का हिन्दी भाव है: हे लोगों जो ईमान लाए हो नबी (पैगंबर साहब) के घरों में मत जाया करो। यह और बात है कि कभी तुम्हें खाने पर आने को कहा जाए और यह नहीं कि खाने के समय ताकते रहो, हां जब तुम्हें बुलाया जाए तो अंदर आओ; और, जब खा चुके हो, तो उठ पड़ो, बातों में न लगे रहो। यह बात नबी को तकलीफ देती है, परन्तु वे तुमसे शर्माते हैं (कुछ कहते नहीं); और अल्लाह सच्ची बात से शर्माते नहीं। और जब उन (नबी की पत्नियों) से कोई चीज मांगो, तो पर्दे के पीछे से (हिजाबिन) मांगो। यह तुम्हारे दिलों और उनके दिलों के लिए बहुत सुभराई है। इस आयात में पैगंबर साहब के पत्नियों से प्रत्यक्ष बातचीत करने को मना किया गया है। यदि बातें करनी ही हैं तो परदे के पीछे से करने, आंखों से आंख न मिलाते हुए बातें करने का जिक्र किया गया है। घर के अंदर परदे का प्रावधान हो सकता है किन्तु जब महिलाओं को बाहर जाना हो तो खुद को पूरा ढंक कर बाहर जाने का रिवाज शुरू हुआ। उस रिवाज का अनुमोदन बाद में आयत क्र 59 में आया है: हे नबी अपनी पत्नियों और अपनी बेटियों और ईमान वालों की स्त्रियों से कह दो कि वे (बाहर निकले तो) अपने ऊपर अपनी चादरों के (जलाबिहिन) पल्लू लटका दिया करें। इसमें इस बात की अधिक संभावना है कि वे पहचान ली जाए और सताई न जाय। और अल्लाह बड़ा क्षमाशील और दया करने वाला है।
ऊपर उल्लेखित दो आयतों में आए शब्द हिजाबिन और जलाबिहिन का मतलब पूरा शरीर ढंकने से है। हिजाब शब्द का निर्देश येशू ख्रिस्त की माता मरियम (मेरी) को अनुलक्षित कर कु.श. 19.17 में आता है जहां मरियम को खुद को पूरा ढंक कर रखने का निर्देश है। हिजाब या शरीर पूरा ढंक कर रखने की आज्ञा कु.श. 24.30-31 आई है। उसमें अजनबी आदमी से नजर न मिलाने का तथा लज्जा स्थानों को ढंकने का आदेश पुरूषों और महिलाओं दोनों को दिया गया है। महिलाओं को अपने साजश्रृंगार का प्रदर्शन न करने की स्पष्ट आज्ञा है, तथा अपने सीने पर वे अपनी ओढ़नियों के आंचल डाले रहे। इससे ध्यान में आता है कि इस्लामी सभ्यता में हिजाब तथा ओढनी पहनने का रिवाज कुरआन शरीफ की आयतों को लेकर दृढ़ हुआ है। कुछ विद्वानों का मत है कि महिलाओं के पूरा शरीर ढंके रहने का रिवाज इस्लाम पूर्व काल से है। पर्शिया-ईरान के राजघरानों की महिलाएं पूरा शरीर ढंकने वाला पेहराव करती थीं। वही रिवाज सऊदी अरेबिया में प्रथम और इस्लाम प्रसार के पश्चात कई दूसरे मुल्कों में अपनाया गया।
हिजाबों का अलंकरण
यद्यपि हिजाब से पूरा शरीर ढंका जाता है और केवल चेहरा ही देखा जा सकता है किंतु पूरे व्यक्तित्व का प्रदर्शन मन को आनंददायी हो इसे लेकर हिजाब को अलंकृत करने की प्रथा निर्माण हुई। हिजाब के तरह-तरह के नमूने देश-काल-स्थिति के अनुरूप बनते रहे और आकर्षक हिजाब तथा ओढ़नियों का उपयोग कर नई फैशन का आविष्कर होते आया है। उन्हें पहन कर महिलाएं खुद को सजाती रही हैं। हिजाब बनाने को लेकर मुस्लिम सभ्यता में सृजनात्मकता देखी जा सकती है। गोवा शासकीय तंत्र निकेतन की छात्रा सईद सन्ना जी ने 2009-2010 वर्ष के दौरान गारमेंट टेक्नॉलॉजी के अंतर्गत जो प्रकल्प किया था उसका शीर्षक सृजनात्मक हिजाब है। उसमें सन्ना जी ने हिजाब के निम्नलिखित प्रकार दिए हैं, जिनसे ज्ञात होता है कि विविध देशों में वेशभूषाचार-Fashion कैसे विकसित होता रहा। वे प्रकार हैं-
1) चौकोर हिजाब
2) शायला शाल जैसा हिजाब
3) इंडोनेशियाई हिजाब
4) खिमर हिजाब
5) मिस्र का हिजाब
6) लेबनानी हिजाब
7) अल अमिरा हिजाब
8) माले इगल हिजाब
हिजाब को लेकर सामने के बाल पूरे ढंके रहे इस हेतु टोपी भी पहनी जाती है। उनमें से भी कुछ प्रकार होते हैं। उनकी जानकारी भी सन्ना जी ने दी है। वे हैं-
1) बॉनेट कैप
2) मिस्त्र की बॉनेट कैप
3) पीछे बंधी बॉनेट कैप
4) नेत्र रक्षक बॉनेट कैप
5) समीरा बॉनेट कैप जो लंबे बाल वाली महिलाओं के लिए उपयुक्त होती है।
ऊपर दिए हिजाब तथा बाल ढंकने के वस्त्र प्रावरणों के माध्यम से मुस्लिम महिलाओं में तरह-तरह के भूषाचार फैशन प्रचलित होते आए हैं। इन वस्त्र प्रावरणों को सजाने के लिए कई प्रकार तथा तंत्र विकसित हुए हैं।
इस्लामी पेहराव की विशेषताएं
इस्लामी पेहराव तथा वस्त्राभूषण बनाते समय तीन बातों का सक्त ध्यान रखा जाता है-
1) लिबास- वस्त्राभूषण ढीला हो, सभ्य हो, पुरूष तथा महिला, दोनों को चुस्त वस्त्र पहनने से मना किया गया है। पहनने में आसानी, उठने-बैठने में आसानी, नमाज अदा करने में आसानी और समग्र देह ढंका हो- ये चार शर्तें होती हैं।
2) बदन का कोई भी हिस्सा नजर ना आए, पीठ और पेट पूरी तरह से ढंका रहे। यह इसलिए कि बदन की नुमाईश ना हो।
3) बाल ढंके रहे, इस्लाम का निर्माण रेगिस्तानी प्रदेश में हुआ। वहां कड़ी धूप और रेत के तूफान आते रहते हैं। उन परिस्थितियों में बदन और बाल दोनों ढंकना स्वाभाविक है।
वस्त्रालंकरणों की कारीगरी
इस्लामी देशों में कई प्रकार की कारीगरी और उसे बनाने के तंत्र विकसित हुए। इतिहासकारों के अनुसार पहली कढ़ाई स्पेन में पाई गई थी। वह स्पैनिश ब्लैकवर्क के नाम से पहचानी जाती थी। जरी, जरदोसी, कशीदा, चमकी, पुरनी, बादला, गोट पट्टी/ नख्खी तथा मोनी इन प्रकारों की कढ़ाई में मुस्लिम महिलाएं तथा कारीगर माहिर होते हैं। उनकी विशेषता ये होती हैं-
जरी- सोने की तार से की जाती थी। कभी चांदी की या दूसरे धातुओं की पतली तारों का उपयोग भी जरी काम में किया जाता है। इसमें चमकी, पूरनी या मोती काम भी जोड़ा जा सकता है।
जरदोसी- ये मुगलों के वक्त से चली आई है। इसमें सलमा, सितारे, चमकी, पुरनी जोड़ी जाती है। फूल पत्ते और कई अन्य डिजाइनें बड़ी खूबसूरती से बनाई जा सकती हैं।
बादला/मुकैसी- इसमें सोने और चांदी के टुकड़ों का प्रयोग किया जाता था। आजकल धातु से बनी समतस धार का उपयोग होता है जो खास तरह की सुई से पुरोई जा सकती है। इनके आकर्षक डिझाइन होते हैं। इसे फरदी का काम, बादला मुकैसी भी कहा जाता है।
कशीदा- कश्मीर की मशहूर कढ़ाई है। यह 1/2.3 के धागों से की जाती है और सैटिन स्टिज से भरी जाती है। दुनिया भर में यह मशहूर है।
वस्त्रों के प्रकार
इस्लामी सभ्यता में पुरूषों और महिलाओं के लिए कई प्रकार के वस्त्र होते हैं। उनकी विशेषता को लेकर उनके अलग अलग नाम होते हैं। उनका विवरण निम्न है-
पुरुषों के लिबास
1) कुर्ता-पाजामा– ये ढीलाढाला लिबास हर दिन पहना जाता है। इसमें अगर कुछ कढ़ाई करें तो खास अवसरों पर भी पहना जा सकता है।
2) पठानी– अफगानिस्तान से आया यह लिबास बहुत आरामदायक होता है। इसमें ढीला कुरता होता है और उसमें कंधे पर और छाती पर जब लगाए जाते हैं। पाजामा भी बहुत ढीला होता है।
3) कंदूरा– अरबी मूल का लिबास, इसको कदूंरा के साथ साथ त्वाब, तोब, दिशदशा भी कहा जाता है। ये एड़ी तक लंबा ढीला लिबास है। इसके अंदर पाजामा जैसी सिरवाल पहनी जाती है। और सिर पर गुथ्रेन या केफाया पहनते हैं। अथल से बांधी जाती है। उसके साथ टोपी या थगिया भी पहना जाता है।
4) शेरवानी– तंग कुरता जो घुटनों तक लंबा हो और उसके ऊपर चुडिदार पाजामा होता है। ये लिबास शादी और समारोहों में पहना जाता है।
महिलाओं के लिबास
1) सलवार खमिस– इसे पंजाबी सूट भी कहते हैं। इसके साथ दुपट्टा भी होता है। ये कई प्रकार के बनाए जाते हैं।
2) मेक्सी या गाऊन– ये कंधे से पैरों तक लंबा लिबास है। ये सारे बदन को ढंकता है। ये ढीलाढाला या तंग दोनों प्रकार का होता है।
3) शरारा– इसमें कुरता, दुपट्टा और पांट होता है। पांट कमर से घुटनों तक और चुस्त होता है। घुटनों से इसमें चुन्नट डाली जाती है। ये खास मौकों पर पहनी जाती है।
4) धरारा– इसमें कुरता, दुपट्टा और लहेंगा होता है। जिसमें कमर से जांघ तक तंग लहेंगा और फिर चुन्नट डाली जाती है।
5) खड़ा दुपट्टा– इसमें एक साड़ी और ब्लाउज, एक चूडीदार कुरता फिर दुपट्टा जो साड़ी की तरह लंबा (चार से पांच मीटर लंबा) होता है। यह खास अवसरों पर या शादी ब्याह दौरान पहना जाता है।
6) िहजाब– हिजाब के बारे मे जानकारी पहले आई है। ये सिर पर पहना जाने वाला स्कार्फ, दुपट्टा (stole) हो सकता है। ये विभिन्न प्रकार के आकर्षक रंगों और डिझाइनों में पाया जाता है। मुहज्जाबत औरतें (हिजाब पहनी ओरतें) नवीनतम फैशन के हिजाब पहनती हैं। कुछ साल पहले एक नए किस्म का हिजाब डिझाइन आया है जिसे गंबुआ कहते हैं। उसे ऊंट का कूबड भी कहा जाता था। इसमें बहुत बड़ा कपड़ा सिर पर पहना जाता है और उसे प्लास्टिक के फूलों से सजाकर बांधा जाता है।
शयला– नामक हिजाब के प्रकार मे सिर पर टोपी पहनी जाती है। उसके ऊपर एक लंबा गुलूबंद (Scart) जो सिर पर घुमाकर फिर सिर पर लाया जाता है। यह बहुत प्रचलित है।
अल अमीरा– इसमें एक टोपी पहनी जाती है। उसके ऊपर नलीदार सिलाया कपड़ा पहना जाता है।
नखाब– यह कपड़ा सिर पर ऐसा बांधते हैं कि सिर्फ आंखें नजर आए और बाकी सारा चेहरा छुप जाय। कुछ औरतें आंखों पर भी जाली डाल देती हैं।
खिमर– इसमें चेहरा ढंका नहीं रहता है पर सिर से कमर तक सारा बदन ढंक जाता है। ये नमाज का दुपट्टा भी कहलाता है।
7) बुरखा– इसमें सारा बदन ढंक जाता है। ये आम तौर पर काले रंग का होता है। किन्तु अफगानिस्तान में नीले और आसमानी रंगों के बुरखे पाए जाते हैं। कई तरह के डिझाइनों से इन्हें सजाया जाता है।
इस्लामी संस्कृति में परिधानों के कई प्रकार हैं। उन पर भी तरह-तरह की कारीगरी से चार चांद लग जाते हैं। आजकल उन्हें बनाने में नए यंत्र-तंत्रों का उपयोग किया जाता है। गत कुछ वर्षों से ब्यूटी कांटेस्ट- सौंदर्य स्पर्धाओं- में इस्लामी लिबास में महिला स्पर्धक भाग लेती दिखाई देती हैं। इस्लामी फैशन डिझाइनें भी बदलते समय के अनुसार बदल रही हैं।
( यह आलेख वरिष्ठ लेखक प्रमोद पाठक जी के मार्गदर्शन में लिखा गया है)
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