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मोबाइल टावर ले रहा पक्षियों की बलि

मोबाइल टावर ले रहा पक्षियों की बलि

by मुकेश गुप्ता
in पर्यावरण, वन्य जीवन पर्यावरण विशेषांक 2019, सामाजिक
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मोबाइल टावर से निकलने वाले हानिकारक रेडिएशन के दुष्परिणाम स्वरूप विभिन्न प्रकार के जीव-जंतु एवं अनेक पक्षियों की प्रजातियां लुप्त हो चली हैं और अब भारत में पक्षियों की 42 प्रजातियां लुप्त होने की कगार पर हैं।

मोबाइल टावर से निकलने वाली हानिकारक रेडिएशन से जितना खतरा मानवों को है उससे अधिक खतरा छोटे -बड़े जीव-जंतुओं, पशु-पक्षियों, पेड़-पौधों, हिमालयी प्रवासी पक्षियों और वन्य प्राणियों को भी है।आपको जानकर यह आश्चर्य होगा कि रेडिएशन के दुष्परिणाम स्वरूप विभिन्न प्रकार के जीव-जंतुओं व पक्षियों की प्रजातियां लुप्त हो चली हैं और भारत में अब पक्षियों की 42 प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर हैं।

रेडिएशन से वन्य जीवों के हार्मोनल बैलेंस पर हानिकारक असर होता है। जिन पक्षियों में मैग्नेटिक सेंस होता है और ये पक्षी विद्युत मैग्नेटिक तरंगों के जद में आते हैं तो इन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। तरंगों की ओवर लैपिंग के कारण पक्षी अपने प्रवास के मार्ग से भटक जाते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार मोबइल टावर के आसपास विभिन्न प्रकार के पक्षी बेहद कम मिलते हैं। इसके अलावा रेडिएशन से पशु-पक्षियों की प्रजनन शक्ति के साथ-साथ इनके नर्वस सिस्टम पर भी विपरीत प्रभाव होता है। गौरैया, मैना, तोता और उच्च हिमालयी पक्षियों पर सब से अधिक खतरा मंडरा रहा है। विशेष रूप से ’गौरैया’ की संख्या कम होने का कारण भी मोबाइल टावर को ही माना जा रहा है। अध्ययन एवं शोधों में मधुमक्खियों के लिए भी रेडिएशन खतरनाक साबित हुआ है। इसके अलावा रेडिएशन का दुष्प्रभाव न केवल पक्षियों बल्कि फल,सब्जियों के साथ ही दूध पर भी पड़ता है। जिस क्षेत्र में टावर लगा होगा, उस क्षेत्र के वृक्ष मात्र छाया ही देंगे, उनके फलों की संख्या धीरे-धीरे सीमित होती जाएगी।

टावर के कारण पक्षियों ने छोड़ा बसेरा

इंदिरा गांधी कृषि विवि में शोध में पाया गया है कि टावरों के आसपास पक्षियों का बसेरा और मधुमक्खयों की संख्या कम हो गई है। परागकण पद्धति के जरिये फूल, फल, दाल-दलहन और खास किस्म के फसलों के उत्पादन में मधुमक्खियों का योगदान 50 से 80 फीसदी होता है। यदि मधुमक्खियों की संख्या ऐसे ही कम होती चली गई तो इसका प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष प्रभाव फसलों पर भी पड़ेगा। जिससे हमारा स्वास्थ्य और आर्थिक स्थिति कमजोर होगी।

मल्टीनेशनल टेलीकॉम कम्पनियां उड़ा रही हैं नियम-कानून की धज्जियां

मल्टीनेशनल टेलीकॉम कम्पनियां आर्थिक ताकत के जोर पर सारे नियम-कानून की धज्जियां उड़ाती जा रही हैं और भ्रष्टाचार के माध्यम से भारतीय कानून का मजाक बना कर रख दिया है। इसलिए एक दूसरे से आगे बढ़ने की होड़ में टेलीकॉम कम्पनियां कानून को ताक पर रख कर अपनी मनमानी कर रही हैं। एक ही टावर में कई कम्पनियों के नेटवर्क संचालित होने से रेडिएशन की मात्रा अत्यधिक बढ़ गई है। 2जी, 3जी, 4जी मोबाइल और इसके टावर से निकलने वाले खतरनाक रेडिएशन पक्षियों एवं मधुमक्खियों के लिए जानलेवा साबित हो रहे हैं। शहरों में जरूरत से ज्यादा लगातार अवैध टावर लगाए जाने का खामियाजा छोटे जीव-जंतुओं को सब से अधिक हो रहा है।

रेडिएशन का दुष्प्रभाव

टावर से निकलने वाले रेडिएशन पर दुनिया भर में बहस चल रही है। लगातार शोध किए जा रहे हैं। रेडिएशन से होने वाले नुकसान को देखते हुए मोबाइल टावर्स को हटाने की मांग तेज हो गई है। कुछ वर्ष पूर्व ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज ने अपने शोधों का विश्लेषण किया था। जिसमे पाया गया कि सरकार की ओर से कराए गए शोध और अध्ययनों में मोबाइल रेडिएशन से ब्रेन ट्यूमर होने की आशंका ज्यादा है। जबकि मोबाइल इंडस्ट्रीज से जुड़ी कम्पनियों से जब अध्ययन कराए जाते हैं तो नतीजों में ऐसी आशंका को बेहद कम बताया जाता है। ज्ञात हो कि यह विश्लेषण कुल 22 अध्ययनों का किया गया था। यह अध्ययन दुनिया भर में 1996 से 2016 के बीच किए गए। 48,452 लोगो पर किए गए अध्ययनों को आधार बताया गया था।

पर्यावरण मंत्रालय का सुझाव

पूर्व में पर्यावरण मंत्रालय ने दूरसंचार मंत्रालय को कुछ सुझाव भेजे थे, जिनमें कहा गया था कि मोबाइल टावर से निकलने वाले रेडिएशन को सार्वजनिक किया जाए। एक किमी के दायरे में एक से अधिक टावर नहए लगाए जाए। इसके साथ ही अन्य सुझाव दिए गए थे।

सिर्फ पशु-पक्षी ही नहीं मानवों पर भी मंडरा रहा है खतरा

भारत के शहरी क्षेत्रों में बहुतायत लोग अक्सर बीमार रहते हैं। विभिन्न प्रकार की सामान्य एवं घातक बीमारियों की चपेट में आने से दिल्ली, मुंबई जैसे अन्य महानगरों में रोजाना लाखो की संख्या में लोग छोटे-बड़े दवाखानों व हॉस्पिटलों के चक्कर लगाते देखे जाते हैं। केवल एक शहर की लाखों की आबादी किसी न किसी बीमारी से पीड़ित रहती है। बावजूद इसके शहरों की भागदौड़ भरी जिंदगी में किसी को भी अपने स्वास्थ्य की परवाह नहीं है। शहरों में सभी का बीमार होना आम बात हो चली है। लेकिन क्या आप जानते हैं अक्सर बीमार होने की असली वजह?

बीमारियों का जनक मोबाइल टावर

शहरों में अधिकांश लोग प्रदूषण को ही हानिकारक और बीमारियों की वजह मानते हैं। कुछ हद तक यह सही भी है किंतु यह अर्धसत्य है। वास्तविकता में हमारी बीमारियों की असली वजह रेडिएशन युक्त मोबाइल टावर हैं, जो कुकुरमुत्तों की तरह हमारे आसपास उगे हुए दिखाई दे रहे हैं। अज्ञानता व जागरूकता के अभाव में चंद रुपयों के खातिर हम ही हमारे स्वास्थ्य का सौदा कर रहे हैं एवं अपने घर, सोसायटी तथा विासी इमारतों में मोबाइल टावर लगाने की अनुमति प्रदान कर रहे हैं और प्राणघातक बीमारियों को आमंत्रण दे रहे है। जिसका खामियाजा हमें और आने वाली पीढ़ियों को भुगतना पड़ेगा।

मोबाइल टावर से मिलता है बीमारियों का नेटवर्क

टावर से हमें सिर्फ नेटवर्क ही नहीं मिलता बल्कि उसके साथ में हमे कैंसर, ब्रेन ट्यूमर, हार्ट अटैक, स्किन रोग आदि अनेकानेक बीमारियों की सौगात भी मुफ्त में मिल रही है। हम इससे अनभिज्ञ हैं। देशविदेश में हुए अनेकों अध्ययनों व शोधों से यह स्पष्ट हो गया है कि टावर से निकलने वाले हानिकारक रेडिएशन मानव स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल असर डालते हैं।

कैंसर बांटते मोबाइल टावर

दुनिया मे कैंसर सब से अधिक खतरनाक लाइलाज बीमारी मानी जाती है। कहते हैं, कैंसर की बीमारी मरीज के प्राणों के साथ ही जाती है। बावजूद इसके मैं कैंसर को उतना खतरनाक नहीं मानता, जितना कि मोबाइल टावर से निकलते रेडिएशन को मानता हूं। क्योंकि कैंसर से तो केवल ग्रसित व्यक्ति की ही मृत्यु होगी परंतु रेडिएशन की जद में आने से सभी लोगों को कैंसर होने की संभावना ज्यादा है।

अध्ययन एवं शोधों का क्या है कहना?

कोलकाता के नेताजी सुभाषचंद्र बोस कैंसर रिसर्च इंस्टिट्यूट के शोध व अध्ययन के अनुसार टावर से निकलने वाली इलेक्ट्रो मैग्नेटिक रेडिएशन कोशिकाओं को नष्ट कर कैंसर को पैदा करने में सक्षम है। इससे दिल की बीमारियां भी हो सकती हैं। जिसमें बताया गया है कि रेडिएशन के प्रारंभिक लक्षणों में सिरदर्द, थकान, स्मरण शक्ति की कमी और दिल व फेफड़ों की बीमारियां शामिल हैं।

चितरंजन नेशनल कैंसर रिसर्च इंस्टिट्यूट के निदेशक जयदीप विश्वास का कहना है कि टावर के आसपास रहने वाले 24 घंटे रेडिएशन की जद में रहते हैं। इससे उन लोगों को खासकर बहरापन, अंधापन और स्मृतिभ्रंश होने की संभावना ज्यादा होती है। उन्होंने सलाह दी है कि आबादी वाले इलाकों में टावर लगाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। देश-विदेश में हुए अनेक अध्ययनों व शोधों का निष्कर्ष यह कहता है कि रेडिएशन की जद में आने वाले व्यक्ति की सर्वप्रथम रोग प्रतिरोधक क्षमता धीरे-धीरे नष्ट होने लगती है। जो लोग शारीरिक दृष्टि से कमजोर होते हैं या बीमार होते हैं, ऐसे लोगो पर रेडिएशन का दुष्प्रभाव सब से पहले पड़ता है। इसके अलावा बच्चों, बूढ़ों एवं गर्भवती महिलाओं को सब से अधिक खतरा होता है।

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Tags: biodivercityclimate change is realecofriendlyenviornmentforestgogreennaturesaveearth

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Comments 3

  1. KOMAL KUMARI says:
    2 years ago

    माना कि फोन चलाना जरूरी है मगर मासूम जीव से ज़्यादातर नहीं हम आवश्यकता अनुसार फोन का इस्तेमाल करें और कुछ छोटे छोटे नियमों का पालन करें तब हम वो जीवन देख और जी सकते हैं PLEASE SAVE ALL’S LIVING LIFE BECAUSE ALL’S LIFE IS OWN LIFE 🙏🙏🙏

    Reply
  2. MD rehan says:
    2 years ago

    Bahut hi Sacha jai

    Reply
  3. Avdhesh says:
    2 years ago

    Pahale mere gav me goraeya ka jhund hi jhund aata tha or me unhe Dana khilata tha magar jab se mere gav me Tavares ki sankhaya Jada hue hai tab se goraeya mere ghar ke aas pass nahi aati or pakka ghar hone ke karan bhi pahale mitti ke ghar ke karan vah aati thi Mar ab nahi
    Kaya vo din ab kabhi nahi aa sakate mujhe to phone chalane me bhi galat lagata hai magar kaya kare jaruri hi eatana ho gaya hai

    Reply

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