मोबाइल टावर ले रहा पक्षियों की बलि

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मोबाइल टावर से निकलने वाले हानिकारक रेडिएशन के दुष्परिणाम स्वरूप विभिन्न प्रकार के जीव-जंतु एवं अनेक पक्षियों की प्रजातियां लुप्त हो चली हैं और अब भारत में पक्षियों की 42 प्रजातियां लुप्त होने की कगार पर हैं। मोबाइल टावर से निकलने वाली हानिकारक रेडिएशन से जितना खतरा मानवों को है…

वन तथा मानव का सहअस्तित्व आवश्यक

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  मानव के विकास की भूख की बहुत बड़ी कीमत आसपास के प्राणियों को चुकानी पड़ती है। पिछले 45 वर्षों में कोई साठ फीसदी भूतल प्राणी नष्ट हुए हैं। प्राणी और मानव के बीच उत्पन्न यह संघर्ष यहीं नहीं थमा, और पर्यावरण की बेहिसाब लूटखसोट होती रही तो निश्चित मानिए…

वृक्ष तपश्चर्या

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महाराष्ट्र के पश्चिमी घाट का महेन्द्र पर्वत वन क्षेत्र पौराणिक संदर्भों के अनुसार महर्षि परशुराम की  तपस्थली रहा था और उसके विकसित तथा संरक्षित करने का उन्होंने दीर्घकालीन कठिन कार्य किया था। इसको ही तत्कालीन समाज तपश्चर्या कहता था। हाल ही में सम्पन्न एक अपराध-अन्वेषण में यह स्पष्ट हुआ है…

मैं कटना नहीं चाहता…

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पेड़ सिसक कर कह रहा है, “ मनुष्य का अस्तित्व हमारे सह- अस्तित्व से ही है। अत: मुझ पर आश्रित पंछियों, कीटकों से लेकर मनुष्य तक के लिए मैं कटना नहीं चाहता...।” क्या आप हमारी बात सुनेंगे? अगर मैं आपसे पूछूं कि आज दुनिया में सब से तेज गति से…

रफाल पर राहुल से 7 सवाल

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रफाल पर राहुल काफी बोल चुके हैं। अब राहुल से सवाल पूछने का समय है। ये महत्वपूर्ण सवाल हैं, क्योंकि मामला देश की रक्षा से जुड़ा है। इन सवालों को जानने से पता चल जाएगा कि राहुल झूठ का गरल उगल कर देश की जनता को किस तरह बेवकूफ बना…

वेदों में पर्यावरण चिंतन

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वैदिक ॠषि कहते हैं है कि हम पृथ्वी वासी पर्यावरण को दूषित न करें, छिन्न न करें अन्यथा हमें उनसे दूषित अवगुण ही प्राप्त होंगे। यह एक ऐसा सत्य है जिसकी वर्तमान में अवहेलना कर हम पर्यावरण संतुलन को समाप्त करते जा रहे हैं। पर्यावरण का सीधा- सरल अर्थ है…

हिमालय के वन और वन्य जीव संकट में

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हिमालयी राज्यों में चल रहे निर्माण कार्यों में जैसे-भवन, बांध, सड़कों का चौड़ीकरण, ऑलवेदर रोड, रेल लाइन आदि में कहीं भी भूकम्प व अन्य आपदाओं को सहन करने की क्षमता नहीं है। इसी कारण यहां चल रही बड़ी विकास परियोजनाएं विनाश का कारण बन सकती हैं। गंगोत्री के आगे 18…

सिर्फ तस्वीरों में दिखेंगे भारत के शुतुरमुर्ग

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भारत से विलुप्त हो चुका चीता हो या फिर विलुप्ति की कगार पर पहुंचे स्याहगोश और गोडावण हो, ये तीनों ही शुष्क और झाड़ी व घसियाले मैदानों वाले जंगलों में रहा करते थे। इनके जीवन पर आए संकट से इस तरह के जंगलों का किस कदर खात्मा हो रहा है,…

वनों की आत्मकथा

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“आज जब मानव वन महोत्सव मनाता है, पर्यावरण दिवस मनाता है और वन्य जीवों को सुरक्षित रखने के अभियान चलाता है, तो हमें आशा की एक धुंधली किरण दिखाई देती है। हमें ऐसी अनुभूति होती है कि मनुष्य संभवतः सजग हो रहा है। कभी-कभी ऐसा भी लगता है कि वह…

कहां खो गए वे पशु-पक्षी?

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प्रकृति में हरेक जीव-जंतु का एक चक्र है, जैसे कि जंगल में यदि हिरण जरूरी है तो शेर भी। ...हर जानवर, कीट, पक्षी धरती पर इंसान के अस्तित्व के लिए अनिवार्य है। इसे हमारे पुरखे अच्छी तरह जानते थे, लेकिन आधुनिकता के चक्कर में हम इसे भूलते जा रहे हैं।…

जैव विविधता भारत की धरोहर है

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जानवरों की घटती संख्या छठे महाविनाश का हिस्सा है। पहले 5 महाविनाश प्राकृतिक थे इसलिए उनकी भरपाई जल्द हो गई, छठा महाविनाश मानव निर्मित है, जिसकी भरपाई होना मुश्किल है। यदि मानव समय पर सतर्क नहीं हुआ तो मानवी जीवन ही संकट में पड़ जाएगा। जिस तरह से आज पूरी…

जो भी करूंगा, पशुओं के लिए करूंगा… – गणेश नायक

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पर्यावरण, वन्य एवं अन्य प्राणियों की सेवा, सुरक्षा और चिकित्सा में अपना जीवन समर्पित करने वाले तथा जानवरों की संवेदना, पीड़ा व प्रेम की मूक भाषा समझने वाले  पशुप्रेमी श्री गणेश नायक ने ‘हिंदी विवेक’ को दिए विशेष साक्षात्कार में इस विषय के महत्वपूर्ण मुद्दों को रेखांकित किया है। पेश…

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