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याद रखो कुर्बानी

याद रखो कुर्बानी

by ब्रिगेडियर (नि) हेमंत महाजन
in आर्य समाज विचार दर्शन विशेषांक २०१९, देश-विदेश
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किसी आतंकवादी हमले के बाद केवल एक दिन प्रतीकात्मक देशभक्ति प्रदर्शित कर शेष दिन हम उसी पाकिस्तान के साथ क्रिकेट मैच खेलते हैं और पाकिस्तानी कलाकारों की फिल्में देखने में मशगूल रहते हैं। आपकी एक दिन की राष्ट्रभक्ति जगाने के लिए जवानों को शहीद होना पड़ता है। यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है।

जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में मुठभेड़ के दौरान जैश-ए-मोहम्मद का कमांडर गाज़ी रशीद, कामरान और एक स्थानीय आतंकवादी इस तरह कुल तीन लोगों को फौज ने मार गिराया। गाज़ी रशीद ने ही पुलवामा में आतंकवादी हमले की साजिश रची थी, जबकि कामरान इस साजिश में शामिल था। अर्ध-सैनिक काफिले पर हमले का मास्टरमाइंड अब्दुल गाज़ी है, जो मसूद अज़हर का करीबी है।

वीरों के नाम तो जानिए

दक्षिण कश्मीर के पुलवामा में हुई यह मुठभेड़ कोई 18 घंटे चली। इसमें एक मेजर समेत चार जवान शहीद हुए। उन वीरों के नाम हैं मेजर डी.एस.ढोंढियाल, सिपाही सावे राम, सिपाही अजय कुमार और सिपाही हरि सिंह। सिपाही गुलज़ार अहमद जख्मी हुए हैं। इस मुठभेड़ में जम्मू-कश्मीर के पुलिस उपमहानिरीक्षक, फौज के ब्रिगेडियर समेत अनेक अधिकारी व फौजी जख्मी हुए हैं। ब्रिगेडियर के पेट में गोली लगी। एक कैप्टन और एक लेफ्टिनेंट कर्नल को भी गोली लगी है। सभी को फौजी अस्पताल में भर्ती किया गया है। मीडिया ने उनके नाम तक खोजने की कोई खास कोशिश नहीं की। ब्रिगेडियर हरबीर सिंह, लेफ्टिनेंट कर्नल राहुल गुप्ता, कैप्टन सौरभ पटनी, मेजर विनायक और कई वीर सैनिक गंभीर रूप से जख्मी हुए हैं। उनके नाम देश को पता चलने चाहिए। उम्मीद करें कि वे जल्द स्वस्थ हो। लेकिन एक बात का जिक्र करना जरूरी है कि आतंकवादियों को खूब प्रसिद्धि दी गई, जो कि बंद होना चाहिए। भारतीय फौज की परम्परा है कि आतंकवादियों के विरुद्ध अभियान में फौजी अधिकारी सबसे आगे रहकर अपने जवानों का नेतृत्व करते हैं। इसलिए हमें सफलता अवश्य मिलती है, लेकिन अधिकारी जख्मी होते हैं और कभी बलिदान भी करना होता है।

युद्ध पहले, शादी बाद में

मेजर चित्रेश सिंह नियंत्रण रेखा के पास शहीद हो गए। राजौरी जिले में नियंत्रण रेखा के पास आईडी बम निष्क्रिय करते समय हुए विस्फोट में उनकी शहादत हो गई। मेजर चित्रेश का 7 मार्च को विवाह होने वाला था। इधर पिता विवाह के निमंत्रण बांट रहे थे और उधर सीमा पर उन्हें वीर गति प्राप्त हो गई। विवाह की पूर्व-तैयारी के लिए अवकाश लेने का पिता का आग्रह होने पर भी उन्होंने देशसेवा को प्राथमिकता दी।

पुलवामा में हुए हमले के बाद मीडिया, देशप्रेमी अनेक विषयों पर चर्चा कर रहे हैं जैसे कि सरकार क्या करें?, फौज को क्या करना चाहिए?, सीआरपीएफ ने क्या गलतियां कीं इत्यादि। अब किसने क्या कहा, इसकी बनिस्बत हमें क्या करना चाहिए यह देश की दृष्टि से अधिक जरूरी है। देशवासियों को अब जागृत होना होगा। फौज किस तरह की कार्रवाई करें यह टीवी/मीडिया में चर्चा का विषय नहीं है। ठोस कार्रवाई करने में सेना सक्षम है।

राजनीतिक दल क्या करें?

पुलवामा में हमले के बाद सरकार ने पाकिस्तान का ‘सबसे तरजीही देश’ (चेीीं ऋर्रीर्ेीींशव छरींळेप) का दर्जा वापस ले लिया है। राजनीतिक दल क्या करें यह महत्वपूर्ण मुद्दा है। हमारे राजनीतिक नेता इस पर राजनीति करने में लगे हुए हैं। उन्होंने ‘वोट बैंक’ के लिए कुछ लोगों को पनाह दे रखी है। इस दब्बू नीति के कारण हमारे यहां आतंकवाद पनप रहा है।

प्रदर्शनों से नहीं रुकेगा आतंकवाद

सबसे पहले तो हुल्लड़बाजी बंद करनी चाहिए। इससे देश की प्रगति में रुकावट आती है। सामान्य नागरिक फौज के साथ खड़ा रहकर आतंकवाद के विरोध में कौनसी भूमिका अदा कर सकता है? आतंकवादी हमले के बाद देशभर में तीव्र प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ रही हैं। देशभर में पाकिस्तान व आतंकवाद के पुतले जलाने, बंद करवाने, मोमबत्ती जलाकर निषेध व्यक्त करने का माहौल बना है। इसके पूर्व उरी, पठानकोट, मुंबई और उसके भी पहले संसद पर हुए हमले के बाद यही दृश्य दिखाई दे रहा था। इससे आतंकवाद नहीं रुका और अब व्यक्त देशभक्ति से भी वह नहीं रुकेगा। इसके लिए हमें कई वर्षों तक प्रयास करने होंगे। पारम्पारिक युद्ध की तैयारी करनी होगी। अतः सरकार पर दबाव लाकर जल्दबाजी में कुछ करने के लिए उसे मजबूर करना उचित नहीं है। आज यदि हम पाकिस्तान से युद्ध करें तो हम कितनी क्षति सहन कर सकते हैं इसका विचार पहले करना होगा। इसके लिए यदि फौज का बजट बढ़ाने के लिए पेट्रोल पर कश्मीर/पुलवामा कर लगाया जाए तो क्या इसके लिए हम तैयार हैं? केवल श्रद्धांजलि भर तक सीमित न रहते हुए राष्ट्रीय एकात्मता किस तरह कायम की जाए इस पर सोचना आवश्यक लगता है। श्रद्धांजलि देने का समय ही न आए इसके लिए प्रयास करना जरूरी है। इसके लिए देश के सभी को अपने गुट/दल आदि भूलकर संगठित होना चाहिए। रोते रहने के बजाए लड़ते रहने की तैयारी करनी होगी, तभी ऐसे हमलों को रोका जा सकेगा। मोमबत्तियां जलाने अथवा नारेबाजी करने से आतंकवाद विरोधी अभियान में सफलता नहीं मिलने वाली है।

आप-हम क्या करें?

हर नागरिक को अपने-अपने इलाके में, अपनी-अपनी संस्थाओं में एक फौजी की तरह ही जासूस के रूप में अपने कान और अपनी आंखें खुले रखने की आवश्यकता है। कान-आंख खुले रखें, अपना इलाका सुरक्षित रखें। आज 70% भारतीय सोशल मीडिया पर हैं। मीडिया के बारे में भी कान-आंख खुली रखें। सोशल मीडिया पर देशविरोधी पोस्ट दिखे तो उसकी लिंक तुरंत सायबर पुलिस की ओर भेजें ताकि उस पर कार्रवाई करना संभव होगा।

शहीदों के परिवारों की सहायता

शहीदों के परिवारों की मानसिक सहायता करना बहुत जरूरी है। उन्हें विश्वास दिलाए कि आप उनके साथ हैं। आर्थिक सहायता के लिए सेना के अनेक बैंक खाते उपलब्ध हैं। इस माध्यम से हम सहायता भेज सकते हैं। आज भी कुछ राजनीतिक नेता, गुमराह हुए विचारक, विशेषज्ञ देशविरोधी बयानबाजी कर सेना का मनोबल तोड़ने की कोशिश करते हैं। कुछ पाक समर्थक, फारुक अब्दुल्ला, मेहबूबा मुफ्ती जैसे लोग इस पर राजनीति करने में लगे हुए हैं। नेताओं को देश के पक्ष में खड़े रहने की सद्बुद्धि मिले। कल भी कोई अहिंसा का पुजारी, कोई मानवाधिकारी अपनी बातें कहने के लिए उत्सुक होगा। सभी दल एक दिल से सरकार के साथ होने की बात कहेंगे, लेकिन कुछ कृपण लोग उसमें खुराफात करेंगे।

अनेक राजनीतिक नेता समाज के विभिन्न घटकों को उनसे अन्याय होने की बात कहकर जब-तब हिंसक आंदोलन करवाने के लिए मजबूर करते हैं। इनमें शामिल न हों। क्योंकि हिंसक आंदोलनों में क्षति देश को ही पहुंचती है। पिछले सालभर में विभिन्न आंदोलनों में अकेले महाराष्ट्र में 40 बसें जलाई गई हैं। कानून-व्यवस्था को बनाए रखने के लिए समाज के सभी स्तरों के नागरिकों का सहयोग लेना चाहिए। सम्बंधित पुलिस थाने की सीमा में रहने वाले नागरिकों में से कानून के जानकारों, सामाजिक समस्याओं से परिचित लोगों, राजनीतिक लोगों, वकील, डॉक्टर, अध्यापक आदि सभी क्षेत्रों के नागरिकों को निमंत्रित कर उनकी एक समिति बनाई जानी चाहिए।

सीमा पार के मुकाबले सीमा के भीतर दुश्मन अधिक हैं। यदि देश संगठित रूप से सेना के साथे न खड़ा हो तो सेना बलिदान क्यों दें? ऐसे भितरघाती दुश्मनों के नाम उजागर किए जाने चाहिए और उनका सामाजिक बहिष्कार किया जाना चाहिए।

पेट्रोल के भाव बढ़ाने पड़े, फौज के आधुनिकीकरण के लिए कर बढ़ाने पड़े तो शिकायत न करें। मुझे यह चाहिए, वह चाहिए न कहते हुए सेना को मजबूत बनाने के लिए सेना का बजट बढ़ाने के लिए कर अदा कर सहयोग करें। एक-दूसरे से न लड़ते हुए, समाज में विद्वेष न फैलाते हुए एक बनिये और सब मिलकर सेना के साथ खड़े रहे। चीनी माल का बहिष्कार करें।

रोजमर्रे के जीवन में देशभक्ति

हम भारतीय केवल एक दिन प्रतीकात्मक देशभक्ति प्रदर्शित कर शेष दिन उसी पाकिस्तान के साथ क्रिकेट मैच खेलते हैं और पाकिस्तानी कलाकारों की फिल्में देखने में मशगूल रहते हैं। आपकी एक दिन की राष्ट्रभक्ति जगाने के लिए जवानों को शहीद होना पड़ता है। यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है।

हमें चाहिए कि हमें पद, पार्टी को बगल में रखकर सरकार का साथ देना चाहिए। एक दिन की सीमित राष्ट्रभक्ति नहीं, अब राष्ट्रहित की हर बात के लिए राष्ट्रभक्ति का संवर्धन करना होगा।

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