उत्तर प्रदेश की सांस्कृतिक विरासत और मीडिया

उत्तर प्रदेश की समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा रही है। शिक्षा, कला, संगीत, साहित्य, संस्कृति क्षेत्र में यहां के शिक्षाविदों एवं कलाकारों ने पूरे देश में ही नहीं अपितु वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बनाई है। हिंदी पत्रकारिता का प्रारंभ भी उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर से ‘उदंत मार्तण्ड’ के साथ हुआ था। सूबे में मीडिया अब खूब फलफूल रहा है।

वैसे तो भारत के प्रत्येक राज्य की अपनी विशिष्ट संस्कृति एवं विरासत रही है तथापि राम और कृष्ण की जन्मभूमि रहे उत्तर प्रदेश राज्य की संस्कृति एवं विरासत अपने आप में अनूठी है।
१२ जनवरी वर्ष १९५० को स्थापित उत्तर प्रदेश की समृद्ध सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक परंपरा रही है। वर्ष २०१७ के अनुसार उत्तर प्रदेश देश का सब से बड़ा राज्य है जिसकी जनसंख्या लगभग २२.३ करोड़ है। यहां इलाहाबाद, लखनऊ और कानपुर घने आबादी वाले शहर हैं। उत्तर प्रदेश में इस समय प्रति हजार पुरुषों पर ९०८ महिलाएं हैं। हर दस वर्ष में २५% की तेज जनसंख्या विकास के साथ इस प्रदेश की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत है। शिक्षा, कला, संगीत, साहित्य, संस्कृति क्षेत्र में यहां के शिक्षाविदों एवं कलाकारों ने पूरे देश में ही नहीं अपितु वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बनाई है। भारतवर्ष के विविध प्रांतों के लोग इस प्रदेश में और इस प्रदेश के लोग शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य की दृष्टि से अन्य सुदूर प्रांतों में बढ़े हैं। अनेकता में एकता को संजोये यह प्रदेश अपने आप में लघु भारत है। उत्तर प्रदेश की प्राचीनता के सशक्त प्रमाण यहां के प्राचीन मंदिर, मूर्तियां, ताम्रपत्र, सिक्के आदि हैं।

उत्तर प्रदेश राज्य पुरातत्व विभाग की स्थापना २६ अगस्त १९९६ को हुई थी। इसके द्वारा उत्तर प्रदेश की प्राचीन संस्कृति को सुरक्षित रखने का कार्य प्रारंभ हुआ। यद्यपि इसके पूर्व १९५१, १९५३, १९५८, १९६५, १९७४, १९८० में विभिन्न विभागों के नाम से सांस्कृतिक संरक्षण एवं संवर्धन का कार्य होता रहा।

प्राचीनतम विभिन्न सांस्कृतिक स्थलों वाले उत्तर प्रदेश में पर्यटन के प्रमुख आकर्षण स्थलों में वाराणसी, सारनाथ (धर्मचक्र प्रवर्तन स्थल), इलाहाबाद, प्रयाग, मथुरा, अयोध्या, मिर्जापुर, गोरखपुर, आगरा, लखनऊ, कौशाम्बी आदि हैं। इन स्थलों पर प्राचीनतम पुरातत्व के भी साक्ष्य मिले हैं। वैसे उत्तरी विंध्य क्षेत्र में लगभग १५० चित्रित शैलाश्रय काल्पी से यमुना नदी घाटी में ४५००० वर्ष प्राचीन मानवीय गतिविधियों के साक्ष्य, छठी सहस्राब्दि ई.पू. में सरयूपार क्षेत्र लहुरादेवा से धान की खेती के प्रमाण तथा चंदौली जनपद के मलहर उत्खनन तथा सोनभद्र जिले के राजानल के उत्खनन से लोहे की प्राचीनता (१८०० ई. पू) के प्रमाण मिले हैं।

प्रदेश की कला, संस्कृति के संरक्षण एवं संवर्धन हेतु प्रादेशिक स्तर पर प्रतिष्ठित क्षेत्र तथा नवोदित कलाकारों हेतु विविध कार्यक्रमों का आयोजन होता है। उत्तर प्रदेश की ललित कला अकादमी की स्थापना ८ फरवरी १९६२ में हुई। ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक धरोहरों, सांस्कृतिक सम्पदा की सुरक्षा हेतु बने संग्रहालय शिक्षा एवं शोध के केन्द्र हैं।

३१ अगस्त २००२ से उत्तर प्रदेश संग्रहालय निदेशालय के रूप में स्वतंत्र निदेशालय स्थापित हुआ। जहां प्रदेश के समस्त संग्रहालयों का विकास, स्वतंत्र नियंत्रण एवं नए संग्रहालयों की स्थापना, उनके भवनों का निर्माण, कलाकृतियों का क्रम, उनके प्रदर्शन, कला-अभिरुचि विकास हेतु व्याख्यान आदि होते हैं।

पत्रकारिता का प्रारंभ ही उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर से ‘उदंत मार्तण्ड’ के प्रारंभ रूप में हुआ था। उत्तर प्रदेश से निकलने वाले पत्रों की संख्या दस हजार से भी अधिक है। इन पत्रों में प्रत्येक शहर, जिले, कस्बे, स्थान, गांव के प्राचीन धार्मिक स्थलों, ऐतिहासिक इमारतों, भवनों, कूपों, स्थलों, कला, साहित्य, संस्कृति के विषय में रोचक जानकारियां रहती हैं, जिनसे नई पीढ़ी का न केवल ज्ञानवर्धन होता है बल्कि उनमें अपनी संस्कृति के प्रति रुचि भी बढ़ती है।

ईश्वर के अवतार राम, कृष्ण, बुद्ध के अलावा सिद्ध पुरुषों गोरक्षनाथ, कीनाराम, सरस्वती पुत्रों कबीर, तुलसी, सूर, प्रेमचंद, विद्यानिवास मिश्र, राहुल सांस्कृत्यायन, हजारी प्रसाद द्विवेदी, उस्ताद बिस्मिल्ला खां, ठुमरी साम्राज्ञी गिरीजा देवी, डॉ. शिवप्रसाद सिंह, सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’, अमृत लाल नागर आदि जैसे स्वनामधन्य व्यक्तियों की जन्मभूमि एवं कर्मभूमि उत्तर प्रदेश रहा है।

वाराणसी जनपद (अब चंदौली) का मुगलसराय रेलवे स्टेशन है जहां से पूर्वोत्तर भारत को जोड़ने में सफलता मिली है। यह स्टेशन सदा से भाजपा के लिए सम्मानित स्थान रहा है। यहीं के रेलवे यार्ड में पंडित दीनदयाल उपाध्याय का मृत शरीर पाया गया। उत्तर प्रदेश सरकार के मानव संसाधन राज्यमंत्री श्री महेन्द्रनाथ पाण्डेय ने उत्तर प्रदेश एवं भारत सरकार से मुगलसराय रेलवे स्टेशन का नाम बदल कर ‘पंडित दीनदयाल’ रखने का प्रस्ताव रखा तथा प्रदेश शासन एवं नरेंद्र मोदी सरकार ने हरी झंडी दी। अब यह पंडित दीनदयाल रेलवे स्टेशन है। इस स्थान पर संस्कृति विभाग, वाराणसी द्वारा पंडित दीनदयाल उपाध्याय एवं शंकराचार्य पर नृत्य नाटिका का मंचन होगा। वाराणसी के अखबारों- दैनिक जागरण, अमर उजाला, हिन्दुस्तान, सन्मार्ग, गांडीव, द टाइम्स ऑफ इंडिया, हिन्दुस्तान टाइम्स आदि ने प्रमुखता से प्रकाशित किया है।

छायावाद के प्रमुख कवि जयशंकर प्रसाद के साहित्य के संरक्षण एवं संवर्धन हेतु भारत कला भवन, वाररणसी (उ.प्र) तथा राष्ट्रीय संग्रहालय संकल्पित हैं। यदि हम समाचार- पत्रों को पलटें तो इसके समाचार प्रमुखता से प्रकाशित हुए हैं। दैनिक जागरण ने ४ कॉलम में समाचार को प्रकाशित करते हुए लिखा है कि, ‘जयशंकर प्रसाद की थाती सुरक्षित, रार बरकरार!’ छायावादी महाकवि जयशंकर प्रसाद के महाकाव्य ‘कामायनी’ समेत अन्य ऐतिहासिक रचनाओं की पांडुलिपियों और उनकी स्मृतियों से जुड़े अन्य सामान उनके पौत्र आनंद शंकर प्रसाद के पास सुरक्षित हैं। सी ओ के सामने चली पंचायत में दोनों पक्षों से सुलहनामा कराया गया। लेकिन सुबह से शाम तक चले नाटकीय घटना क्रम में कुनबे में रार एवं तकरार अभी बरकरार है। प्रसाद न्यास की डीड के मुताबिक पांडुलिपियां प्रसाद मंदिर के बाहर ले जाना असंवैधानिक और षड्यंत्र करार दिया गया था। महाकवि ने डीड में सब कुछ परिसर में ही रखने का संकल्प जताया गया है। लेकिन इसे समाप्त करने के उद्देश्य से भारत कला भवन में धरोहरों को रखने का विचार किया जा रहा है। राजनीतिशास्त्र विभाग काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के पूर्व विभागाध्यक्ष एवं साामजिक कार्यकर्ता प्रो. कौशल किशोर मिश्र का कहना है कि, ‘महाकवि जयशंकर प्रसाद की विरासत के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए सरकार एवं सांस्कृतिक संस्थाओं को आगे आना चाहिए। यह काशी की सांस्कृतिक परंपरा के लिए जरूरी है। यद्यपि शासन द्वारा जो कदम उठाए गए हैं वे स्वागतयोग्य हैं। संस्कृति विभाग, उत्तर प्रदेश सरकार तथा संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार का यह सराहनीय कदम है जिसके द्वारा सांस्कृतिक संरक्षण के कदम को सकारात्मक कहा जा सकता है।

आखिर क्या कारण है कि हिंदू धार्मिक स्थलों के इर्दगिर्द मस्जिदों का निर्माण कर दिया गया। चाहे वह श्रीराम जन्मभूमि का पवित्र तीर्थ स्थल हो या श्रीकृष्ण जन्म भूमि स्थित मथुरा की वह पावन धरा। श्रीराम जन्म भूमि पर आततायी, अत्याचारी बाबर ने मस्जिद बनवा दी। यह मामला स्वतंत्र भारत के इतिहास में कांग्रेस ने लटकाया। कभी उन्होंने यहीं से चुनावी बिगुल फूंका था। लेकिन राष्ट्रीय महत्व के इस विषय को लगातार लटकाया गया। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम को भुना कर कांग्रेस ने खूब मजा की; लेकिन समाज अपने अस्तित्व की रक्षा हेतु बराबर छटपटाता रहा। पवित्र राम जन्मभूमि पर आजतक मंदिर का निर्माण नहीं हो सका। इस विषय को मीडिया ने कई बार उछाला लेकिन परिणाम आजादी के लगभग ७० वर्षों के बाद आने की संभावना है। शिया बोर्ड ने पवित्र श्रीराम मंदिर निर्माण का संकल्प व्यक्त किया है। इलेक्ट्रानिक मीडिया के विभिन्न चैनलों ने इस विषय को प्रमुखता से प्रसारित किया है। यह विशाल हिंदू समाज के लिए शुभ संकेत है।

प्रदेश सरकार केन्द्र सरकार के साथ मिल कर रामायण परिपथ, बुद्ध परिपथ, श्रीकृष्ण परिपथ नामक योजनाओं पर कार्य कर रही है।

उत्तर प्रदेश सरकार ने वाराणसी में सांस्कृतिक केंद्र की स्थापना के लिए २०० करोड़ रुपये का बजट अवमुक्त किया है। योगी सरकार ने सांस्कृतिक राजधानी, वाराणसी को सदा ही प्राथमिकता में रखा है। योगी एक सांस्कृतिक व्यक्ति हैं। उन्होंने गोरक्षपीठ के द्वारा अनेकानेक सांस्कृतिक गतिविधियों का संचालन किया है। गरीब व अनाथ बेटियों के विवाह के लिए सदा ही मुक्त हस्त से सेवा करने का व्रत लिया है। उनके एक सांस्कृतिक दल से जुड़ने का एक हेतु यह भी है क्योंकि भारतीय जनता पार्टी ने अपने संविधान में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को प्रमुखता से व्यावहारित किया है। वह सांस्कृतिक मूल्यों के प्रति आस्था ही व्यक्त नहीं करती है अपितु उस कर्तव्य पथ पर भी चलती है। इस दृष्टि से सरकार बनते ही अवैध पशुवध कारखाने बंद करने की घोषणा की गई है। सरकार ने यह देखा कि ये कारखाने पशुधन को नष्ट कर रहे हैं तथा सामाजिक समरसता में विष घोल रहे हैं। अखिलेश सरकार ने अपने शासन काल में इन्हें खूब संरक्षण दिया था। लेकिन भाजपा नेतृत्व की सरकार बनते ही तलवार लटकने लगी। छद्म सेक्युलरवादियों के लिए गोवंश संरक्षण का कोई महत्व नहीं है। उनका यह कहना है कि किसी के खान-पान पर हस्तक्षेप करना ठीक नहीं है।

ऊपर यह बताया गया है कि उत्तर प्रदेश सरकार विभिन्न सर्किट के माध्यम से कार्य कर रही है। बजट सत्र २०१७ -१८ में सरकार ने स्वदेश दर्शन योजना के तहत १२४०/-करोड़ रुपये का आवंटन किया है। इसके अंतर्गत आयोध्या सर्किट, वाराणसी सर्किट, मथुरा सर्किट, मथुरा में रामायण सर्किट, बौद्ध सर्किट एवं श्रीकृष्ण सर्किट को रखा गया है। सरकार ने विशेष रूप से ८०० करोड़ रुपये की प्रसाद योजना द्वारा अयोध्या, वाराणसी तथा मथुरा जैसे प्रमुख धार्मिक एवं सांस्कृतिक स्थलों में अवस्थापना सुविधाओं के लिए मद का निर्माण किया है। जिससे उपर्युक्त शहरों का ठीक प्रकार से विकास होगा।

समाजवादी सरकार की प्रमुख योजनाओं का नाम परिवर्तन कर अच्छा कार्य किया है। क्योंकि सांस्कृतिक आक्रमण पर विजय पाने के लिए नाम परिवर्तन का होना जरूरी था। इस दृष्टि से सरकार ने समाजवादी पेंशन योजना, कन्या विद्याधन योजना, लोहिया आवास योजना सहित कई योजनाओं का नाम परिवर्तन कर अच्छा कार्य किया है। इसका प्रदेश की जनता ने इसका स्वागत किया है। भाजपा उ.प्र. के उपाध्यक्ष डॉ. राकेश त्रिवेदी का कहना है कि उत्तर प्रदेश सरकार सांस्कृतिक विकृति को दूर करने के लिए कृतसंकल्पित है। यह इसलिए जरुरी था कि पूर्ववर्ती सरकार ने उत्तर प्रदेश की सांस्कृतिक विरासत के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण अपनाया था। सूबे में सरकार बदली और योगी सरकार ने एक नई सांस्कृतिक दृष्टि दी है।

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