कैंसर के नाम पर पूनम का घटिया पब्लिसिटी स्टंट

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क्या पूनम की इस छिछोरे झूठ से वाकई में कैंसर की प्रति जागरूकता फैला पाएगी? कैंसर मरीजों या पीड़ित मानवता के प्रति इतनी ही हमदर्दी होती तो दूसरे चैरिटेबल काम कर आर्थिक मदद पहुंचाती। जागरूकता के लिए जहां-तहां अपने शो करती, जो कैंसर के खिलाफ और बचाव के लिए कारगर मुहिम होती। लेकिन ये क्या? उन्होंने तो पूरे देश के साथ एक तरह से धोखा किया, वह भी अपनी ओर ध्यान खींचने के लिए। यह माफी के काबिल नहीं हो सकता।

संविधान, लोकतंत्र और अमृत महोत्सव

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निश्चित रूप से दुनिया में हमारी साख के पीछे हमारा मजबूत संविधान और विश्व का सबसे बड़ा एवं सशक्त लोकतंत्र ही हैं, जो दुनिया के लिए आश्चर्य, विश्वास के साथ स्वीकार्यता की कसौटी पर खरा उतर कर भारत को विश्व गुरू की ओर अग्रसर कर रहा है।

क्या शिवराज को 2023 में भी वॉक ओवर तय..!

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मध्यप्रदेश में जहाँ काँग्रेस अब भी कमजोर दिख रही है तो शिवराज सिंह चौहान को लेकर भी सुर्खियाँ कम नहीं होतीं। भाजपा संसदीय बोर्ड से बाहर होने के बावजूद उनकी शालीनता ने कहीं न कहीं राष्ट्रीय नेतृत्व को प्रभावित तो किया होगा। वहीं कहना कि मुझसे दरी बिछाने को कहा जाएगा तो बिछाउंगा। यह उनकी बुध्दिमत्ता है जो खुद को पार्टी से बड़ा कभी नहीं दिखाते। उनकी हालिया राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से गर्मजोशी भरी मुलाकातें और अक्टूबर में पंचायती राज के नवनिर्वाचित सदस्यों के सम्मेलन में मप्र आने की हामी, मिशन 2030 का विजन तैयार कर 5 मेगा प्रोजेक्ट प्रधानमंत्री के हाथों शुरू करा 5 बड़ी जनसभाओं हेतु आमंत्रित करना शिवराज की राजनीतिक चातुर्यता के साथ बताता है कि निगाहें 2023 के विधानसभा और 2024 के आम चुनावों से बहुत आगे देख रही हैं। इससे पार्टी में उनका प्रभाव और बढ़ेगा वही प्रतिद्वन्दियों को मजबूरन ही सही मोदी जी की सभा में शिवराज के साथ रहना ही होगा। शायद यही गुर शिवराज सिंह को और मजबूत करता है।

हमारा कोहिनूर, कब तक रहेगा हमसे दूर!

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एक बार फिर दुनिया का बेशकीमती हीरा कोहिनूर जिसे बहुतेरे सामंतक मणी भी कहते हैं, जबरदस्त सुर्खियों में है। शायद यह अकेला ऐसा हीरा है जिसकी अब तक सबसे ज्यादा सुर्खियाँ दिखीं। अभी कोहिनूर ब्रिटेन की हाल ही में परलोक सिधारी महारानी एलिजाबेथ द्वितीय की मौत के बाद फिर चर्चाओं में है। कोहिनूर उनके ताज में सुशोभित है और क्रिस्टल पैलेस में प्रदर्शिनी के लिए रखा हुआ है। इसकी कीमत सुनकर भी सिवाय आश्चर्य के कुछ नहीं होता। अभी अनुमानतः कोहिनूर की कीमत डेढ़ लाख करोड़ रुपये है। हकीकत यह है कि न तो आज तक कभी बेचा गया सो खरीदे जाने का सवाल ही नहीं उठता। हमेशा तोहफे या जीतकर ही तमाम हुक्मरानों के पास आता, जाता रहा। उपलब्ध और ज्ञात तथ्यों से पता चलता है कि कोहिनूर का इतिहास लगभग 5000 वर्ष पुराना है, संभव है कि और भी ज्यादा हो।

वो अनाज उगाता और सिस्टम उसे सड़ाता..!

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देश में भरपूर अनाज उग रहा है। सुनने में अच्छा लगता है। विडंबना देखिए इसे सुरक्षित रखा जाना क्या कभी किसी की प्राथमिकता में रहा? ऐसा दिखा नहीं! माना कि ये मानसूनी   महीना है लेकिन अप्रेल और मई माह में ही जहाँ-तहाँ खुले आसमान तले रखा लाखों टन गेहूँ बेमौसम…

सियासत में भ्रष्टाचार! आप का कठोर प्रहार..!!

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अब इसे शुक्राना कहें या नजराना, धन्यवाद या फिर रिश्वत कोई शक नहीं कि भारत में भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी गहरी हो चुकी हैं कि उससे मुक्ति की आशा आम आदमी को एक सपने जैसे लगती है। लेकिन बीच-बीच में कोई घटना (यही कहना बेहतर होगा) उम्मीद की लौ बुझने…

प्रकृति बेचारी, विकास की मारी, हर चुनाव हारी!

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सच में प्रकृति की अनदेखी वो बड़ी भूल है जो पूरी मानवता के लिए जीवन, मरण का सवाल है। बस वैज्ञानिकों तक ज्वलंत विषय की सीमा सीमित कर कर्तव्यों की इतिश्री मान हमने वो बड़ी भूल या ढिठाई की है जिसका खामियाजा हमारी भावी पीढ़ी भुगतेगी। इसे हम जानते हैं,…

सूखती नदियां, मिटते पहाड़ हमें कहां ले जाएंगे?

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प्रदूषित होती नदियां जितनी चिन्ता का विषय हैं उससे बड़ी चिन्ता वो मानव निर्मित कारण हैं जो इनका मूल हैं। निदान ढूंढ़े बिना नदियों के प्रदूषण से शायद ही मुक्ति मिल पाए। भारत में अब इसके लिए समय आ गया है जब इसके लिए जागरूक हुआ जाए। लोग स्वस्फूर्त इस…

भाजपा अविजित तो आप ने पकड़ी विकल्प की राह!

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भारत के राजनीतिक भविष्य के लिए बेहद अहम से माने जा रहे 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव उसमें भी खासकर उत्तर प्रदेश ने न केवल यह जतला दिया है कि 2024 में दिल्ली की गद्दी का रास्ता फिर वहीं से निकलेगा बल्कि 37 वर्षों का मिथक भी तोड़ दिया कि…

पंजाब में जो हुआ तय था, आगे क्या होगा अनिश्चित है?

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पंजाब में लंबे समय से सब कुछ ठीक नहीं चल रहा था। सच तो यह है कि काँग्रेस में ही कुछ भी ठीक दिख नहीं रहा है। कभी राजस्थान तो कभी छत्तीसगढ़ में दिखने वाले विरोध के स्वर धीमें भी नहीं पड़ते हैं कि पंजाब का उफान जब-तब सामने आ…

‘नव संवत्सर’ भारतीय संस्कृति की गौरवशाली परंपरा

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हिन्दू नववर्ष की शुरुआत अंग्रेजी के नए साल की तरह रात के घनघोर अँधेरे में नहीं बल्कि सूर्य की पहली किरण के साथ होती है। भारतीय नव वर्ष यानी 'नव संवत्सर' की कोई निश्चित अंग्रेजी तारीख नहीं होती क्योंकि यह भारतीय संस्कृति के अनुरूप नक्षत्रों तथा कालगणना पर आधारित होती है।

मजदूरों का पलायन और हादसों बीच मौतों का काला सच!!!

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गरीबी से नहीं बल्कि सिस्टम से शिकायत थी जिसकी आखिर वो भेंट चढ़ ही गए! दरअसल देश भर में मजदूरों के पलायन के पीछे के सच को भी जानना जरूरी है

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