ब्रिटिशकालीन मुंबई के गांव

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वैश्वीकरण के आधुनिक युग में रहने वाले मुंबईवासियों को शनिवार-रविवार की लगातार दो दिन की छुट्टियों में बरसात के मौसम में हरी चादर ओढ़े पर्वतों और उनमें कलकल बहते जलप्रवाहों और प्रपातों में विचरण करने की इच्छा होती है। शहरी वातावरण से परेशान जीवन ग्रामीण म

घूंघट की आड से…

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फैशन फिल्मों का अनिवार्य हिस्सा है। युवाओं में वहीं से फैशन चल निकलता है। पेहरावों में तो फिल्मों ने तरह-तरह के नए-नए प्रयोग किए, कुछ तो पीढ़ी-दर-पीढ़ी हावी रहे। फिल्मी गानों में भी झुमके से लेकर पायल तक और बिंदिया से लेकर कंगना तक छाये रहे। फिल्में पीढ़ियां जीती हैं, उनसे निकली फैशन लेकिन पीढ़ी के साथ ही बदल जाती है।

मायानगरी के फिल्मी किस्से

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मुंबई की मायानगरी के ङ्गिल्मी किस्से सिने रसिकों की चर्चा का विषय होते हैं| फिल्मी गॉसिप और वहां की हलचलें चहेतों को चटपटा मसाला देती हैं| आज भी पुराने जमाने के किस्सों की जुगाली होती है| लेकिन सच तो यही है कि, ‘गुजरा हुआ जमाना आता नहीं दुबारा|’

सत्यसांई का कार्ययज्ञ

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व्यक्तिगत साधना एवं सेवा कार्य ये दोनों बातें साथ-साथ चलनी चाहिए और उसके लिए सत्य, धर्म, शांति, प्रेम तथा अहिंसा इन मूलभूत मानवीय मूल्यों को हरेक को अपने व्यवहार में लाना चाहिए यह सत्यसांई सेवा संगठन का उद्देश्य है। सत्यसांई बाबा ने न केवल देश में अपितु अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अद्भुत जनकल्याण कार्य किया है।

विवेकानंद एज्युकेशन सोसायटी

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1959 का वर्ष था। मुंबई के उपनगर चेंबूर में ध्येय से प्रेरित हुए एक शिक्षणप्रेमी युवक ने विभाजन से विस्थापित हुए निर्वासितों का पुनर्वसन करने का कार्य करते समय एक ऐसी पाठशाला का सपना देखा, जो भारतीय संस्कृति को नंदनवन की तरह विकसित करेगी। जिस युवक ने यह सपना देखा…

मेरा यूरोप सफर

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रोम शहर में प्राचीन रोम साम्राज्य का भूषण कहलाने वाला कोलोसिअम है। प्राचीन काल में सत्तर से अस्सी हजार प्रेक्षक यहां बैठते थे। अब ये इमारत भग्नावस्था में है।

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