हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
ब्रिटिशकालीन मुंबई के गांव

ब्रिटिशकालीन मुंबई के गांव

by विकास पाटील
in ग्रामोदय दीपावली विशेषांक २०१६, सामाजिक
0

वैश्वीकरण के आधुनिक युग में रहने वाले मुंबईवासियों को शनिवार-रविवार की लगातार दो दिन की छुट्टियों में बरसात के मौसम में हरी चादर ओढ़े पर्वतों और उनमें कलकल बहते जलप्रवाहों और प्रपातों में विचरण करने की इच्छा होती है। शहरी वातावरण से परेशान जीवन ग्रामीण मनोहर परिसर की ओर जाने हेतु आतुर होता है। परंतु आज के मुंबईवासियों को यह पता नहीं है कि ये इलाके किसी समय गावों का समूह ही थे। नारियल के पेड़ मुंबई के प्राकृतिक सोंदर्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थे। मुंबई में फलों के अनेक बागान थे। कोंकण में घर के आसपास की बाग की जमीन को ‘वाडी’ कहते हैं। इससे मुंबई में वाडी की कल्पना की गई होगी। मुंबई अनेक ‘वाडी’ (बागान) का गांव था। आज सीमेंट-कंक्रीट का जंगल है।

चौदहवीं शताब्दी के प्रारंभ में मुंबई में बिंब राजा का शासन था। उसका शासन ज्यादा समय तक नही रहा। पाठारे प्रभु समाज के बिंब राजा ने घनी बस्ती के माहिम टापू पर अपनी राजधानी बसाई और उसे महिकावनी नाम दिया। यही आगे चल कर माहिम हुआ। माहिम के मध्य में बिंब राजा का भव्य राजमहल और कुलदेवता ‘प्रभावती’ का मंदिर था।

साढ़े तीन सौ वर्ष पूर्व मुंबई केवल मछुआरों की बस्ती थी। बहुत से हिस्सों में दलदल और पानी का फैलाव हुआ करता था। अंग्रेज व्यापारी मुंबई में एक हाथ में तराजू एवं दूसरे हाथ में बायबल लेकर आए थे। अंग्रेजों के अधिकार में आया मुंबई इलाका भारत का पहला भूभाग था। इसलिए मुंबई अंग्रेजों की दृष्टि में ‘गेटवे ऑफ इंडिया’ थी।

बिलकुल दक्षिण छोर पर कालूभाट या कोलीवाडा याने आज का कुलाबा गांव था। वहां मछुआरों की बड़ी बस्ती थी इसलिए यह नाम पड़ा।
पुरानी मुंबई सात टापुओं का समूह थी। दक्षिण में कुलाबा वूमेन्स आइलेंड, मझगांव, परेल, शिवड़ी, सायन, माहिम एवं वर्ली थे। ई.स.१७७१ से १७८४ की कालावधि में अत्यंत उत्साही एवं कर्तव्यपरायण विलियम हॉनबी नामक मुंबई के गवर्नर ने वर्ली में बांध बना कर मुंबई पश्चिम एवं पूर्व किनारा जोड़ा। कुलाबा से लगे हुए छोटे से ‘‘ओल्ड वूमेन्स आयलैंड’ में ईस्ट इंडिया कंपनी के हिरन एवं अन्य पालतू प्राणी रखे गए थे। इस द्वीप के उत्तर में मझगांव था। यहां मांझी याने नाविकों की बस्ती थी। मझगांव के बाद सिमवा याने सीमांत अर्थात आज का सायन (शीव) था। इन दो द्वीपों के समानांतर अन्य दो द्वीप मुंबई द्वीप के उत्तर पश्चिम की ओर थे। प्रथम वड्याली अर्थात वटवृक्ष वाटिका अर्थात आज की वर्ली और वर्ली के उत्तर की ओर महिकावति अर्थात माहिम। ये सातों द्वीप छोटी-बड़ी खाड़ियों की वजह से एक दूसरे से अलग थे। इन द्वीपों के मध्य का गहरा भाग समुद्र के भाटे के समय (जब समुद्र का पानी उतरता है) दलदल में परिवर्तित हो जाता था। ज्वार आने पर वह समुद्र के पानी से भर जाता था। मुंबई एवं कुलाबा के बीच एक पथरीला रास्ता था। भाटे के समय उसका उपयोग किया जाता था। परंतु ज्वार के समय कई बार लोगों को अपने प्राण गंवाने पड़ते थे। कुलाबा और मुंबई को जोड़ने वाला काजवे सन १८३८ में बनाया गया।

उन्नीसवीं सदी के मध्य तक मुंबई केवल एक किला था। इस किले के बाहर मझगांव, वर्ली, माहिम आदि अनेक गांव थे। किले के बाहर नारियल के वन में ‘ब्लैक टॉवर’ खड़ा था। गिरगांव व भूलेश्वर के भाग नारियल के पेड़ों से घिरे थे। मलबार हिल का इलाका एक घना जंगल था। यह शिकारियों का पसंदीदा स्थान था। यहां सियार और भेड़िए हुआ करते थे। कभी बाघ भी दिखाई देता था। सियार किले तक आते थे। उस समय एक सियार हाईकोर्ट परिसर तक पहुंच गया था। परंतु कोर्ट में प्रवेश के पूर्व ही लोगों ने उसे मार डाला।

उस समय बैकबे पर भराव डाल कर जमीन नहीं बनाई गई थी। वहां का किनारा उस समय खुला था व आसपास झाड़ियां थीं। उस समय का यह मनोरम एवं प्राकृतिक इलाका आज का मरीन ड्राइव है।

ई.स. १८४५ तक वांद्रे (बांद्रा) और सालसेट गांव मुंबई से अलग थे। उस समय बांद्रा से मुंबई आने के लिए छोटी नौकाओं का उपयोग किया जाता था। बांद्रा की खाड़ी में एक भीषण दुर्घना में मनुष्य और जानवरों से भरी हुई २० नौकाएं पानी में पलट गई। इस दुर्घटना से लेडी जमशेदजी एवं सर जमशेदजी नामक पारसी दंपति को अतीव दु:ख हुआ। उन्होंने दो लाख रुपये खर्च कर बांद्रा को मुंबई से जोड़ने वाले माहिम काजवे का निर्माण कराया। माहिम के इस पुल से दादर के सेना भवन तक के रास्ते को लेडी जमशेदजी का नाम दिया गया है। यह इतिहास बहुत कम लोगों को पता है।

कुलाबा में प्रथम ऑर्थर बंदरगाह का निर्माण किया गया। सामने का गन कैरेज कारखाना १८२३ में शुरू हुआ। काबुल की लड़ाई में मारे गए लोगों की याद में सन १८४८ में काबुल चर्च का निर्माण किया गया। यही प्रसिद्ध अफगान चर्च है। आज कुलाबा रईस लोगों की बस्ती कहलाती है।

कुलाबा, मझगांव ये नाम वहां रहने वाले मछुआरों की बस्ती के कारण पड़े। कुलाबा का मूल नाम कोलभाल याने मछुआरों की बस्ती अथवा कोलीआब याने उनकी मछली मारने की जगह। इसलिए अंगे्रजों ने इस भाग को कोलाबा (कुलाबा) कहना प्रारंभ किया।

मझगांव माने मछलियों का गांव या मछली पकड़ने का स्थान। मझगांव पुर्तुगाली लोगों की बस्ती थी। मझगांव एक समय आम्रवृक्षों के लिए प्रसिद्ध था। मझगांव में पत्थर एवं लकड़ी से बने अनेक बंगले थे। इनमें अधिकतर ब्रिटिश या पारसी लोग रहते थे। जमशेदजी का भव्य बंगला एवं उसके चारों ओर बड़ा बगीचा था। सन १८१० में ‘ग्लोरिया चर्च’ का निर्माण किया गया। १९१३ में उसे भायखला में पुनर्स्थापित किया गया। आज का ‘सेल्सटैेक्स ऑफिस’ मझगांव का ‘लैण्डमार्क’ है। मझगांव कोर्ट एवं म्हातारपाखाडी विलेज के लकड़ी से निर्मित हेरिटेज बंगले पास में निर्मित गगनचुंबी टॉवरों के साथ प्रतिस्पर्धा में अपना अस्तित्व बनाए रखने का प्रयत्न कर रहे हैं। म्हातारपाखाडी में म्हात्रे उपनाम के लोगों के घर एक कतार में थे।

बोरिबंदर से मझगांव की ओर जाते समय थोड़े-थोड़े अतंर पर कर्नाक बंदर, क्लेअर बंदर, मशीद बंदर, चिंच बंदर, वाडी बंदर नामक बंदरगाह थे। कर्नाक और क्लेअर बंदरगाह का निर्माण लक्ष्मण हरिश्चंद्र अजिंक्य उफर्र् ‘भाऊ’ नामक पाठारे प्रभु समाज के धनवान व्यक्ति ने किया। ये बंदरगाह ‘भाऊ का धक्का’ नाम से जाने जाते हैं। यही है डोंगरी गांव।

साधारणत: मध्यमवर्गीय मराठी व्यक्ति को जिसके बारे में अपनत्व लगता है, वह है गिरगाव। यह नाम गिरि एवं ग्राम से आया है। गिरि याने पर्वत और उसके नीचे बसा हुआ गांव याने गिरगांव। यह गिरि याने मलबार हिल। डोंगरी गांवदेवी नाम भी उस भाग की ग्रामदेवता के मंदिर से आया है।

२००-३०० वर्ष पूर्व मुंबई में घना जंगल था। गिरगांव की फणसवाडी, केळेवाडी, कांदेवाडी, आंबेवाडी ये नाम अभी भी पुराने समय में वहां होने वाली पैदाबार की विशेषता सहेजे हुए हैं। वैसे ही झावबाची वाडी, वैद्यवाडी, खोतवाडी, जितेकर वाडी उस परिसर के स्वामित्व का अहसास कराती हैं।

खोतवाडी का निर्माण अठारहवीं शताब्दी में पाठारे प्रभु जाति के खोत नामक धनिक ने किया। उन्होंने वसई के ईस्ट इंडियन्स को प्लॉट्स दिए। गिरगांव के इस खोतवाडी में गोवन कैथोलिक और मंगोलियन कैथोलिक लोग बहुतायत में हैं। अब यहां मराठी, गुजराती एवं जैनों ने भी घुसपैठ की है। इस वाडी में पुराने भव्य बंगले अब टॉवर से स्पर्धा में समाप्त हो रहे हैं। पु.ल.देशपांडे की ‘बटाट्याची चाळ’(आलू की चाल) १९६० के दौरान गिर गई।

साधारणत: हम उत्तर के भाग को ऊपर का भाग कहते हैं और इसीलिए मुंबई द्वीप के उत्तर का भाग याने वर्ली अर्थात मराठी में ‘वरची आळी’ अर्थात ऊपर की बस्ती। वर्ली समुद्र को रोकने वाली दीवार साधारणत: १७९३ में बनाई गई। उसके पहले समुद्र का पानी मुंबई सेन्ट्रल, डंकन रोड आदि भागों से होकर भिंडी बाजार के चढ़ाव तक आता था। यहां पर मुंबादेवी का मंदिर था। प्रवासी शहर में आने के पूर्व यहां पैर धोकर देवी के दर्शन करते थे। इस प्रकार पैर धोने की जगह याने पायधुनी यह नाम रुढ़ हुआ।

वर्ली समुद्री तट पर स्थित एक ऊंची जगह की ढलान पर महालक्ष्मी मंदिर है। इसे मुंबई के हिन्दू नागरिक बहुत मानते हैं। वर्ली किनारे से कुछ दूर सन १४३१ में निर्मित हाजी अली नामक मुसलमानों का श्रद्धास्थान है।

महालक्ष्मी के उत्तर में वर्ली छोटा सा पर्वतीय गांव है। अंत में पहाड़ी है। वहां किला है। किले के नीचे मछुआरों की बस्ती थी। सन १६९५ में शत्रु के जहाजों पर नजर रखने के लिए अंग्रजों ने इस किले का निर्माण किया। वर्ली में पर्वत के ऊपर वर्तमान दुग्ध डेयरी के पास ४०० साल पुराना जरीमरी माता मंदिर है।

वर्ली की ढलान पर परली के वृक्ष बहुतायात में थे इसलिए इस भाग को परेल यह नाम पड़ा। परली-वैजनाथ से बहुत से सोमवंशीय क्षत्रिय आए, इसलिए भी परेल नाम पड़ा ऐसा भी कहा जाता है। परेल के चर्च का अंग्रेजों ने बंगले में रूपांतर किया। यह बंगला याने १९वीं शताब्दी के अंत तक अंग्रेज गवर्नर का निवासस्थान था। बाद में गवर्नर का बंगला मलबार हिल पर बनाया गया। परेल के मूल बंगले की जगह पर आज हाफकिन इस्टिट्यूट है। इस्टिट्यूट के सामने का भाग आज भी परेल विलेज के नाम से जाना जाता है।

परेल गांव के पार नायगांव इलाका है। यह नाम न्यायग्राम इस शब्द से आया है। यहां पर राजा सोमदेव का न्यायालय एवं महल था। न्याय मिलने का स्थान याने न्यायग्राम अर्थात नायगांव।

१९८२ की हड़ताल के बाद परेल स्थित कपड़ा मिलों का अस्तित्व धीरे-धीरे समाप्त होने लगा और लोअर परेल में गगनचुंबी टॉवरों का निर्माण होने लगा। मध्यमवर्गीय मराठी व्यक्ति मुंबई के बाहर फेंका गया।

परेल के आगे शिवड़ी याने शिव-वाडी अर्थात भगवान शंकर की बाग। शिवड़ी गांव में सन १८३० में अंग्रेजों ने बहुत बड़ा सरकारी बगीचा बनाया। वहां विभिन्न देशों से लाए गए फूलों के पौधें, फलों के वृक्ष और विविध वनस्पतियां लगाई गईं तथा उसे एक प्रेक्षणीय स्थान बनाया गया।

शिवड़ी का किला सन १८६० में अंगे्रजों ने निगरानी हेतु निर्माण किया। शिवड़ी रेल्वे स्टेशन के पास स्थित यह किला अब जीर्णावस्था में है। इस किले में कैदियों को रखा जाता था। उसके बाद वह बॉम्बे पोर्ट ट्रस्ट का गोडाउन बना। वर्तमान में किले की मालकियत पुरातत्व विभाग के पास है।

दादर याने ऊपर की मंजिल पर जाने के लिए सीढ़ियां। मुंबई द्वीप के उत्तर में बसे हुए गांव को पार करने पर थोड़ी चढ़ाई चढ़ कर मुंबई आया जा सकता था। इसलिए चढ़ाई के इस गांव का नाम दादर पड़ा।

सत्तर अस्सी वर्ष पूर्व बड़ी-बडी हवेलियों के गांव की पहचान वाले दादर में आज ऊंची-ऊंची अट्टालिकाओं का निर्माण हो चुका है। दादर याने नारियल के बाग, उन्हें पानी देने के लिए कुंआ, ऐसा शांत व सुंदर गांव था। सन १९२५ का शिवाजी पार्क आज भी दादर की शान है। दादर के चार सौ वर्ष के अधिक काल का इतिहास का साक्षी धार्मिक स्थान है पुर्तुगीज चर्च याने अवर लेडी ऑफ साल्व्हेशन चर्च।

देवगिरी का राजा भीमदेव सन १५९६ में देवगिरी से मुंबई आया और घनी आबादी वाले माहिम द्वीप पर अपनी राजधानी स्थापित की। उसे महिकावति यह नाम दिया। इसी को आगे चल कर माहिम कहा जाने लगा। भीमदेव ने पूर्व में जिसे बरड द्वीप नाम दिया था वह माहिम फलों एवं नारियल के बगीचों से सजा था। वहीं उसका विशाल प्रसाद था। माहिम में बबुल का जंगल था। इसलिए उसे बरड बेट (बरड द्वीप) यह नाम था।

सोलहवीं सदी में जब पुर्तुगालियों के अधिकार में माहिम था तब वहां सेंट मायकल चर्च का निर्माण किया गया, जिसका पुनरुद्वार १९७३ में किया गया।
कोंकणी मुसलमान पहले माहिम द्वीप पर रहते थे। यहां मुकादम बाबा नामक पीर की मजार है। अगहन माह के दरम्यान यहां पांच दिन का उर्स होता है।
सीमा या शीव, हद- इससे सायन नाम की उत्पत्ति हुई है। यह गांव उस समय मुंबई व सालसेट द्वीप की सीमा पर था।

सायन का किला १६९५ में गवर्नर डंकन के कार्यकाल में बनाया गया। किले के नीचे थोड़ी दूरी पर स्थित छोटे किले को शीव का किला कहते हैं। बाद में सायन के पुल से मुंबई व कुर्ला आपस में जुड़े। सायन की टेकड़ी (छोटी पहाड़ी) के नीचे पं. जवाहरलाल नेहरु उद्यान है। सायन कोलीवाडा यह परिसर सी-वूड के लिए प्रसिद्ध है।

माहिम के आगे बसे बांद्रा में पाली विलेज, चिंबई विलेज एवं छोटे-छोटे गांव हैं। पाली हिल गांव पहले पर्वत पर बसा घना जंगल था। १८९० से यहां घरों, बंगलों का निर्माण प्रारंभ हुआ। १९५० के बाद यह सिने कलाकारों की प्रतिष्ठित जगह बनी।

पाली गांव में कम चौड़ी छोटी-छोटी गलियों में पुर्तुगीज कालीन बंगले गावठान नाम से प्रसिद्ध हैं। बांद्रा बैंड स्टैंड के पास १६४० में बनाए गए कॉस्टेला डी अगुड नामक पुर्वगाली किले के अवशेष मिलते हैं। ताज एंड और सी रॉक ये पांच सितारा होटल लैंडमार्क हैं।

चिंबई बीच एक किमी लंबा है। पास में ही जॉगर्स पार्क है। जरीमरी मंदिर एस.वी. रोड पर है। मंदिर में स्थित काली की मूर्ति ३२० वर्ष पूर्व तालाब से प्राप्त हुई थी। इसका अर्थ बांद्रा तालाब एक समय बहुत बड़ा था एवं बांद्रा का पश्चिम भाग पानी के नीचे था।

अंधेरी याने सालसेट द्वीप के पश्चिम में बसा गांव। इसकी विशेषता गिल्बर्ट हिल है। गिल्बर्ट हिल २०० फुट का पत्थर का स्तंभ अंधेरी पश्चिम में है और इसे हेरिटेज का दर्जा प्राप्त है। इस पर्वत पर गांवदेवी, हनुमान और दुर्गा देवी के पुराने मंदिर हैं।

सालसेट ट्राम्बे रेल्वे लाइन के कारण अंधेरी ट्राम्बे गांव आपस में जुड़े थे। १९२८ में ग्रेट इंडिया पेनुन्सुला रेल्वे द्वारा निर्मित १८ कि.मी. लंबे इस रेल मार्ग पर वडवली, माहुल रोड, कुर्ला जंक्शन, आग्रा रोड, कोलोवरी, सहार, चकाला,और अंधेरी ये स्टेशन थे। सन १९३४ में यह रेल्वे सांताकृज हवाईअड्डे के लिए बंद कर दी गई।

जुहू हवाईअड्डा इस क्षेत्र का पहला हवाईअड्डा है, जो सन १९२८ में जुहू गांव में निर्माण किया गया। जुहू विलेपार्ले डेवलपमेंट योजना में बड़े-बड़े बंगले निर्माण किए गए और बॉलीवुड कलाकारों की आवाजाही यहां बढ़ गई। महात्मा गांधी जहां कभी रहते थे, उस ‘जानकी कुटीर’ इलाके में कोई विशेष परिवर्तन नहीं हुआ।
वर्तमान वर्सोवा (अंधेरी के पास) का पुराना नाम ‘वेसावे’ था। वर्सोवा में मछुआरों की बस्ती है। वेसावे याने मराठी में विसावा अर्थात विश्राम स्थान। इसका संबंध शिवाजी के काल से है। शिवाजी महाराज की सेना युद्ध के बाद विश्रांति हेतु यहां आती थी, तब से यह नाम प्रचलित है। पुरानी मुंबई के मान्यवर श्री दादाभाई नौरोजी का निवास स्थान इस बेसावे अर्थात वर्सोवा गांव में था।

मुंबई के उत्तर में स्थित मालाड,१९वीं सदी में अनेक गांवों (उदा. आर्लेम, खरोडी, मालवनी, मार्वे, आकसा, मढ़, चिंचोली) का समूह। इन गांवों में मछुआरे, भंडारी एवं ईस्ट इंडियन्स बहुतायत से रहते थे। मालाड़ आज पश्चिम उपनगर का एक महत्वपूर्ण भाग है। ५० वर्ष पूर्व यह भाग गांव की श्रेणी में था। आकसा, मनोरी गांव के समुद्र किनारे अत्यंत पास हैं। इसके कारण मालाड़ को पर्यटन स्थल के रूप में भी जाना जाता है। एक समय बॉम्बे टॉकिज स्टूडियो के कारण भी मालाड़ प्रसिद्ध था। यहां का सोमवार बाजार आज भी प्रसिद्ध है। लिबर्टी, रुइया (गोल) गार्डन ऐसे छोटे-बड़े बगीचे हैं। एक समय गांव का अहसास कराने वाला मालाड़ आज उपनगर की नई लाइफ स्टाइल का प्रमुख केंद्र है।

बोरिवली याने एकसर, पोयसर, कांदिवली, शिंपोली, मंडपेश्वर, कान्हेरी, तुलसी, मागोठने इन गावों से मिलकर बना उपनगर। बोरिवली नाम की उत्पत्ति बेट अर्थात द्वीप के पेड़ों के जंगल से हुई होगी। बोरिवली गांव में आम, नारियल, चिकू इ. के बगीचे थे, पास के गोराई गांव के समुद्र किनारे के कारण बोरिवली मच्छीमारी के लिए भी प्रसिद्ध था। संजय गांधी नेशनल पार्क के कारण बोरिवली हरित क्रांति का उद्गम स्थान हो गया है। यहां की कान्हेरी एवं मंडपेश्वर गुफाएं एवं वहां के भित्तीचित्र बोरिवली का आकर्षण है। एशिया का सबसे बड़ा वाटर अम्युजमेंट पार्क- वॉटर किंगडम पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है।

मुंबई के पूर्व का उपनगर याने चेंबूर गांव। चेंबूर नाम शायद मत्स्यप्रेमियों के पसंद का खाना चिंबोरी शब्द से आया होगा। ट्राम्बे द्वीप के उत्तर पश्चिम में बसे इस गांव में १८२७ में बॉम्बे प्रेसिडेंसी गोल्फ क्लब की स्थापना हुई। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद बंटवारे के समय जो शरणार्थी आए उनके लिए यहां कैम्प बनाया गया। सुभाष नगर, सहकार नगर, तिलक नगर का निर्माण १९५८ के कालखंड में हुआ। चेंबूर गांव, कुर्ला, देवनगर, माहुल, गोवंडी, चुनाभट्टी इन गावों से घिरा है।

ट्राम्बे द्वीप के पास माहुल यह मछली मारने के लिए प्रसिद्ध गांव था। मुंबई के पहले नागरिक, मछुआरों की बस्ती। प्रतिवर्ष आयोजित किया जाने वाला माहुल कोली महोत्सव याने मछली शौकिनों की पंसदीदा जगह। गुलाबी रंग के फ्लेमिंगो अक्टूबर से मार्च महीने की अवधि में माहुल के समुद्र तट पर आते हैं। माहुल में ही एक छोटा गांव है आंबेपाडा। माहुल गांव के तट से मच्छीमार नौकाएं एलिफेंटा द्वीप तक मछली मारने जाती हैं।

इससे छह किमी दूर सालसेट द्वीप पर स्थित भांडुप गांव नाहूर और कोजर इन गावों से बना एक गांव है। भांडुपेश्वर शंकर भगवान का एक नाम। इसीसे भांडुप इस नाम की उत्पत्ति हुई होगी। सन १८३२ में निर्मित भांडुप डिस्टीलरी प्लांट से अंग्रेजी सेना को रम की आपूर्ति होती थी। भांडुप के पूर्व की ओर नमकगाह हैं। अत्यंत घनी बस्ती, कम चौड़े रास्ते, पहाड़ों पर रहने वाली अधिकतर लोकबस्ती इस प्रकार की भांडुप गांव की रचना है। मैदानी भाग में रहने का प्रमाण कम है। सोनपुर, खिंडीपाडा, तुलसीपाडा, टेंभीपाडा याने पुराने गांव का अहसास कराने वाले पाडे (छोटी बस्तियां) अभी भी विद्यमान हैं। नरदास नगर, शिवाजी नगर, सह्याद्री नगर, काचू टेकड़ी, टेंक रोड, हनुमान नगर, इनमें से अधिकांश भाग पहाड़ पर है। वी.टी. से १८५३ में जो पहली रेलगाड़ी चली वह पानी भरने के लिए भांडुप स्टेशन पर रुकती थी। भांडुप का शिवाजी तालाब शिवकालीन है।

इस तरह अनेक गांवों से बना एक समय का मुंबई शहर आज कॉस्मोपॉलिटन शहर के नाम से जाना जाता है। इस कॉस्मोपॉलिटन शहर के लोगों का खिंचाव बीच-बीच में गांव की ओर होता है। वह जीवन में कुछ अलग अनुभव मिले इसलिए यांत्रिक जीवनशैली से दूर रह कर प्रकृति के सानिध्य में रम जाने का पागलपन तरुण पीढ़ी पर सवार है। यह विरोधाभास आजकल दिखाई देता है। बहुत से लोग अपना निवृत्त जीवन गांवों में बिताने की इच्छा रखते हुए गांव में भी एक घर होना चाहिए इस प्रयत्न में हैं। शहर और गांव का अटूट रिश्ता है। इसके कारण गांव नष्ट हो जाएंगे ऐसा डर किसी के भी मन में नहीं होना चाीहए। गांव भी जीवन का अविभाज्य अंग बन गया है। इसलिए मराठी के बालगीत ‘‘मामाच्या गावाला जाऊ या’’ (याने मामा के गांव चलें) की याद हमें अभी भी आती रहती है।

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: hindi vivekhindi vivek magazinesocialsocial media

विकास पाटील

Next Post
भारतीय संस्कृति में  वेशभूषा का महत्व

भारतीय संस्कृति में वेशभूषा का महत्व

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0