करुणा की देवी श्री श्री मां आनंदमयी

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भक्ति, प्रेम और करुणा की त्रिवेणी श्री श्री मां आनंदमयी एक महान आध्यात्मिक विभूति थीं। उनका जन्म 30 अपै्रल, 1896 (वैशाख पूर्णिमा) को त्रिपुरा के खेड़ा ग्राम में अपनी ननिहाल में हुआ था। अब यह गांव बांग्लादेश में है।  उनका बचपन का नाम निर्मला सुंदरी था। उनके पिता श्री विपिन…

व्यर्थ न हो पुरखों का बलिदान

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आईएसआई के इशारे पर काम करने वाले समूह सिख्स फॉर जस्टिस के द्वारा झूठ की बुनियाद पर रेफरेंडम 2020 यानि जनमत संग्रह करने का प्रयास किया गया। जनमत संग्रह को सिख समाज ने खारिज कर दिया। इसी प्रकार नवंबर 2021 के प्रथम सप्ताह में लंदन में भी खालिस्तानी समर्थकों के द्वारा जनमत संग्रह करवाया गया, जिसमें लगभग तीन करोड़ पंजाबी जनता के मत लगभग 200 लोग तय करते देखे गए।

शौर्य और बुध्दिमत्ता की प्रतीक उत्तराखंड की नारी

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समय की मांग है कि गांवों में रह रही अभावग्रस्त मातृशक्ति के हित में सरकार और समाजसेवियों द्वारा उसी ईमानदारी से पहल हो जैसी आजादी से पहले या उसके बाद के शुरुआती दौर में हो रही थी। परिस्थितियां थोड़ा भी अनुकूल हुईं तो पलायन के भयावह संकट पर भी काबू पाने का माद्दा रखती है उत्तराखंड की नारी। विषम आर्थिक और भौगोलिक परिस्थितियों ने यदि यहां नारी के जीने की राह मुश्किल की है तो उनसे लड़ने का हौसला भी दिया है।

उत्तराखंड की आश्रम परम्परा

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इस ब्रह्मांड को जानने की जिज्ञासा रहने वाले संन्यस्थ ऐसे निर्जन वनों में कुटी रूपी आश्रम बनाते, जहां प्राणी का प्रवेश न हो। बद्रीनाथ से ऊपर वसुधारा, सरस्वती और अलकापुरी के निर्जन क्षेत्रों में वैदिक ऋचाओं का गान करने वाले ऋषियों के आश्रम थे। इन आश्रमों में ग्रह नक्षत्रों पर उसी प्रकार शोध हुए, जैसे आज इसरो और नासा में किये जाते हैं।

गुरुवर्य नहीं होते तो मेरा जीवन अधूरा रह जाता…-

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अगर शाश्वत सत्य का परिचय करना हो तो गुरू अत्यंत आवश्यक है। ...आज मैं शाश्वत सत्य के मार्ग पर आगे बढ़ा हूं और वैज्ञानिक के रूप में भी आगे बढ़ा हूं तो इन दोनों का ही श्रेय मेरे गुरू श्री साखरे महाराज को जाता है। वे न आते तो शायद मेरा जीवन अधूरा ही रह जाता।

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