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गुरुवर्य नहीं होते तो मेरा जीवन अधूरा रह जाता…-

गुरुवर्य नहीं होते तो मेरा जीवन अधूरा रह जाता…-

by विजय भटकर
in जुलाई - सप्ताह दूसरा गुरु पूर्णिमा विशेष, विशेष
2

अगर शाश्वत सत्य का परिचय करना हो तो गुरू अत्यंत आवश्यक है। …आज मैं शाश्वत सत्य के मार्ग पर आगे बढ़ा हूं और वैज्ञानिक के रूप में भी आगे बढ़ा हूं तो इन दोनों का ही श्रेय मेरे गुरू श्री साखरे महाराज को जाता है। वे न आते तो शायद मेरा जीवन अधूरा ही रह जाता।
——–
कहा जाता है कि अगर आपके मन में गुरू का मार्गदर्शन प्राप्त करने की तीव्र इच्छा हो तो गुरू आपको स्वयं खोज लेते हैं। मैंने इसकी अनुभूति अपने जीवन में की है। बात तब की है जब भारत ने अमेरिका से सुपर कम्प्यूटर की मांग की थी और अमेरिका ने सुपर कम्प्यूटर देने से साफ इनकार कर दिया था। इसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने भारत को कम्प्यूटर के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने की जिम्मेदारी मुझ पर सौंप दी थी।

इस प्रकल्प के लिए हमने पुणे में सी-डैक की स्थापना की। इसके पहले हममें से किसी ने भी सुपर कम्प्यूटर नहीं देखा था और देखने की गुंजाइश भी नहीं थी। मैं और मेरे लगभग 100 वैज्ञानिक साथी पूरी लगन और मेहनत के साथ कार्य करने लगे। आखिर हमारी मेहनत रंग लाई और तीन वर्षों में ही हमने एक अरब की गणितीय प्रक्रिया पूर्ण करने वाले सुपर कम्प्यूटर का निर्माण किया, जिसका शुद्ध भारतीय नाम रखा गया ‘परम’। इसके बाद हम रुके ही नहीं। कम्प्यूटर के क्षेत्र में निरंतर प्रगति करते रहे। ‘परम’ कम्प्यूटर के बनने और विकसित होने की प्रक्रिया के दौरान ही मुझे ऐसा लगा था कि इस प्रणाली से विश्व को भारत के महान ज्ञानसागर का दर्शन होगा और हम पुन: विश्वगुरू के रूप में संसार का मार्गदर्शन करेंगे।

विज्ञान और अध्यात्म का संगम
परम कम्प्यूटर पर काम करते समय एक बात ध्यान में आने लगी थी कि जिस गति से कम्प्यूटर में परिवर्तन आ रहा है, उस हिसाब से हमारे द्वारा निर्मित कम्प्यूटर कुछ ही साल में कालबाह्य हो जाएगा। इसका एक दूसरा पहलू भी नजर आने लगा कि आधुनिक विज्ञान और तंत्रज्ञान कितना क्षणभंगुर है। क्षणभंगुरता ने प्रश्न किया कि फिर शाश्वत क्या है? मेरा मन निरंतर यह प्रश्न पूछता रहता था। इसी बीच सन 1996 में एमआईटी तथा विश्वशांति केंद्र के संस्थापक डॉ. विश्वनाथ कराड ने संत ज्ञानेश्वर महाराज की सात सौवीं जयंती के अवसर पर पुणे में वैश्विक तत्वज्ञान, विज्ञान तथा धर्म परिषद का आयोजन किया था। मैंने इस धर्म परिषद में कई भारतीय तथा विदेशी वक्ताओं को सुना। इन सभी के वक्तव्यों ने मेरे मन पर यह बात कुरेद दी कि भारतीय वेद, उपवेद, दर्शनशास्त्र, रामायण, महाभारत जैसे महाकाव्य और गीता में जो ज्ञान का भंडार है, वही शाश्वत है। इसे अगर कम्प्यूटर पर लाया जाए तो इस तंत्रज्ञान को भी शाश्वत स्वरूप मिलेगा। बाहरी आवरण भले ही बदलेंगे पर ज्ञान रूपी आत्मा वही रहेगी। परंतु मेरे सामने पहला प्रश्न था कि शुरुआत कहां से की जाए? चूंकि वह वर्ष संत ज्ञानेश्वर महाराज की सात सौवीं जयंती का वर्ष था, अत: उनके द्वारा लिखित ज्ञानेश्वरी से ही शुरुआत की जाए, यह तय हुआ।

गुरुजी का मेरे जीवन में प्रवेश
हम ज्ञानेश्वरी को ‘मल्टीमीडिया फॉर्म’ अर्थात दृकश्राव्य माध्यम में प्रस्तुत करने का विचार कर रहे थे। ऐसा काम करने वाली सीडेक प्रथम संस्था थी। परंतु इस काम के लिए मुझे गुरू के मार्गदर्शन की तीव्र आवश्यकता महसूस होने लगी थी। यही वह समय था जब मैंने महसूस किया कि मेरी तीव्र इच्छा के कारण मुझे मेरे गुरू श्री साखरे महाराज का सान्निध्य प्राप्त हुआ। श्री साखरे महाराज को जब मेरे इस प्रकल्प की जानकारी हुई तब उन्होंने स्वयं मुझे पत्र लिखा और इस प्रकल्प को मार्गदर्शन देने की इच्छा जाहिर की। मैं उस समय बहुत व्यस्त रहता था इसलिए वे स्वयं आलंदी से पुणे मेरे सीडैक के प्रकल्प पर आते थे। मुझे वे हमेशा कहते थे कि कम्प्यूटर की प्रोग्रामिंग के साथ-साथ ज्ञानेश्वरी का भावार्थ समझना अधिक आवश्यक है, इसलिए सीडैक में प्रोग्रमिंग के साथ-साथ आध्यात्मिक ज्ञान के पाठ भी शुरू हो गए। मुझे धीरे-धीरे स्वयं में परिवर्तन महसूस होने लगा था। मैं यह समझने लगा कि हमारी संस्कृति में गुरू को इतना महत्व क्यों दिया जाता है।

श्री साखरे महाराज की रुचि विज्ञान में भी थी। उन्होंने एक पुस्तक भी लिखी थी। इस पुस्तक में उन्होंने ज्ञान, विज्ञान और अध्यात्म की आधारभूत संकल्पनाओं पर प्रकाश डाला था। मैं जैसे-जैसे पढ़ता गया वैसे-वैसे मुझे यह लगने लगा कि आध्यात्मिक ज्ञान और आधुनिक विज्ञान दो अलग-अलग बातें हैं ही नहीं। भारतीय अध्यात्म मूलत: विज्ञान पर ही आधारित है। विदेशों के भी कई ऐसे वैज्ञानिक हैं जिन्होंने भारतीय अध्यात्म का अध्ययन किया है और वे भी इसी निष्कर्ष पर पहुंचे कि भारतीय अध्यात्म आधुनिक विज्ञान का आधार है।

लगभग दो दशकों से वैज्ञानिक कम्प्यूटर के माध्यम से इस संसार का रहस्य जानने की कोशिश कर रहे हैं। इस सृष्टि का प्रारंभ कब और कैसे हुआ? इसका अंत कैसे होगा? तारों का निर्माण कैसे हुआ इत्यादि। जीवन के रहस्य को ढूंढते हुए प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. फ्रांसिस कॉलिन को भी यह आभास हुआ कि यह ब्रह्मांड ज्ञान का सागर है। मेरी ही तरह कई वैज्ञानिकों ने संवेदनाओं से परे उस आद्यतत्व को प्रणाम भी किया।

ये सारी बातें उस एक बात को इंगित करती हैं कि अगर शाश्वत सत्य का परिचय करना हो तो गुरू अत्यंत आवश्यक है। मेरे जीवन में श्री साखरे महाराज का मार्गदर्शन कितना महत्वपूर्ण है, इसे शब्दों में कहना कठिन है। परंतु एक बात अवश्य कहना चाहूंगा कि आज मैं शाश्वत सत्य के मार्ग पर आगे बढ़ा हूं और वैज्ञानिक के रूप में भी आगे बढ़ा हूं तो इन दोनों का ही श्रेय मेरे गुरू श्री साखरे महाराज को जाता है। अगर वे मेरे जीवन में नहीं होते तो मेरा जीवन अधूरा रह जाता।

                                             लेखक -वरिष्ठ  कंप्यूटर वैज्ञानिक, परम कम्प्यूटर के आविष्कारक तथा आध्यात्मिक वक्ता
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Tags: @vijaybhatkar #VyasPurnima #GuruPurnima#Vijaybhatkar24july2021gurugurujigurupoornima2021hindu newsmitparamcomputerprofessorsakharemaharajsciencespiritualityveda

विजय भटकर

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Comments 2

  1. Dr. Suryakant Dnyaneshwar Patil says:
    5 years ago

    Hariom

    Reply
  2. Dr. D. P.Mishra says:
    5 years ago

    “यथार्थ……”

    Reply

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