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करुणा की देवी श्री श्री मां आनंदमयी

करुणा की देवी श्री श्री मां आनंदमयी

by हिंदी विवेक
in अध्यात्म, विशेष, व्यक्तित्व, सामाजिक
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भक्ति, प्रेम और करुणा की त्रिवेणी श्री श्री मां आनंदमयी एक महान आध्यात्मिक विभूति थीं। उनका जन्म 30 अपै्रल, 1896 (वैशाख पूर्णिमा) को त्रिपुरा के खेड़ा ग्राम में अपनी ननिहाल में हुआ था। अब यह गांव बांग्लादेश में है। 

उनका बचपन का नाम निर्मला सुंदरी था। उनके पिता श्री विपिन बिहारी भट्टाचार्य एक प्रसिद्ध वैष्णव भजन गायक थे। माता श्रीमती मोक्षदा सुंदरी ने आगे चलकर संन्यास ले लिया और उनका नाम मुक्तानंद गिरि हो गया। यद्यपि भक्त लोग उन्हें दीदी मां कहते थे। ऐसे धार्मिक परिवार में निर्मला का बचपन बीता।

निर्मला के मन में बचपन से ही श्रीकृष्ण के प्रति बहुत प्रेम था। वे प्रायः समाधि अवस्था में आ जाती थीं। ऐसे में उनका सम्बन्ध बाहरी जगत से टूट जाता था। उनकी लौकिक शिक्षा कुछ नहीं हुई तथा 12 वर्ष की छोटी अवस्था में ही उनका विवाह पुलिसकर्मी रमणी मोहन चक्रवर्ती (भोलानाथ) से हो गया।

निर्मला ने गृहस्थ जीवन की जिम्मेदारियों को सामान्य रूप से निभाया; पर भक्ति में भाव-विभोर होकर समाधिस्थ हो जाने का क्रम बना रहा। इससे वे जो काम कर रही होती थीं, वह अधूरा रह जाता। धीरे-धीरे परिवार और आसपास के लोग उनकी इस अध्यात्म चेतना को पहचान गये।

1925 में ‘अंबूवाची पर्व’ पर वे पति सहित रमणा के सिद्धेश्वरी काली मंदिर में पूजा करने गयीं। वहां वे भाव समाधि में डूब गयीं। उनके हाथों से अपने आप बन रही तांत्रिक मुद्राओं तथा चेहरे की दिव्यता देखकर उनके पति समझ गये कि वह पूर्वजन्म की कोई देवी है। उन्होंने तभी उनसे दीक्षा ले ली।

धीरे-धीरे उनकी ख्याति सर्वत्र फैल गयी। उनके कीर्तन चैतन्य महाप्रभु की याद दिला देते थे। 26 वर्ष की अवस्था में उन्होंने पहला प्रवचन दिया। वे कुछ समय अपने पति के साथ शाहबाग (ढाका) में भी रहीं। नवाब की बेगम प्यारीबानो उनसे बहुत प्रभावित थी। भारतीय प्रशासनिक सेवा (आई.सी.एस.) के अधिकारी ज्योतिष चंद्र (भाई जी) भी वहीं उनके शिष्य बने। ज्योतिष बाबू ने ही उन्हें ‘श्री श्री मां आनंदमयी’ नाम दिया, जो फिर उनकी स्थायी पहचान बन गया। पति के निधन के बाद वे पूरे देश में भ्रमण करने लगीं।

1932-33 में जवाहर लाल नेहरू देहरादून जेल में थे। मां भी उन दिनों देहरादून में थीं। वहीं नेहरू जी की पत्नी कमला और बेटी इंदिरा मां के संपर्क में आकर उनकी भक्त बनीं। क्रमशः प्रसिद्ध खिलाड़ी पटियाला नरेश भूपेन्द्र सिंह, कुमार नृपेन्द्र नाथ शाहदेव (रांची), संगीतकार एम.एस.सुबुलक्ष्मी, बांसुरीवादक हरिप्रसाद चैरसिया आदि अनेक विद्वान एवं विख्यात लोग उनके भक्त बने।

मां का राजनीति से कुछ सम्बन्ध न होने पर भी गांधी जी, जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजमाता विजयाराजे सिंधिया, महाराजा (सोलन), महाराजा चिंतामणि शरणनाथ शाहदेव (रातू), रानी साहिब (बामड़ा), फ्रांस के राष्ट्रपति, कनाडा के प्रधानमंत्री तथा भारत के अनेक उद्योगपति, वैज्ञानिक, दार्शनिक, साहित्यकार व सामाजिक कार्यकर्ता उनके दर्शन को आते रहते थे।

तत्कालीन सभी आध्यात्मिक विभूतियों से मां का संपर्क बना रहता था। इनमें देवरहा बाबा, उडि़या बाबा, हरिबाबा, नीमकरौली बाबा, श्रीराम ठाकुर, पगला बाबा, स्वामी अखंडानंद, स्वामी शरणानंद, परमहंस योगानंद, गोपीनाथ कविराज, संत छोटे महाराज, हरिगुण गायक आदि प्रमुख हैं।

असंख्य लोगों में प्रेम, भक्ति और करुणा का संदेश बांटते हुए मां ने 27 अगस्त, 1982 को देहरादून (उत्तराखंड) में अपनी देहलीला पूर्ण की। दो दिन बाद उन्हें कनखल (हरिद्वार) स्थित उनके आश्रम में समाधि दी गयी। समाधि पर जाकर उनके भक्तों को आज भी उनकी जीवंत उपस्थिति का अनुभव होता है।

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Tags: guruharidwarhindi vivekshri shri maa anandmayispiritual guideuttarakhand

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