युद्ध से संसाधन जीते जा सकते, मानव मन नहीं

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साहिर लुधियानवी की एक नज़्म है कि, "ख़ून अपना हो या पराया हो; नस्ल-ए-आदम का ख़ून है आख़िर। जंग मशरिक़ में हो कि मग़रिब में, अम्न-ए-आलम का ख़ून है आख़िर।।" वर्तमान दौर में ये पंक्तियां एकदम सटीक बैठती हैं, क्योंकि जिस दौर में आज हम जी रहें हैं या कहें…

नद्यः रक्षति रक्षितः

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दुनिया में एक नहीं अनेक सभ्यताओं का निर्माण, विकास और संरक्षण नदियों के कारण हुआ है। मानव सभ्मता के विकास में नदियों का ऐतिहासिक महत्व रहा है। यह महज संयोग नहीं है कि भारत के अधिकांश बड़े नगर नदियों के तट पर बसे और विकसित हुए हैं। इसके पीछे कई वैज्ञानिक कारण ह््ैं।

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