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नद्यः रक्षति रक्षितः

नद्यः रक्षति रक्षितः

by डॉ. अनिल सौमित्र
in मार्च-२०१४, सामाजिक
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दुनिया में एक नहीं अनेक सभ्यताओं का निर्माण, विकास और संरक्षण नदियों के कारण हुआ है। मानव सभ्मता के विकास में नदियों का ऐतिहासिक महत्व रहा है। यह महज संयोग नहीं है कि भारत के अधिकांश बड़े नगर नदियों के तट पर बसे और विकसित हुए हैं। इसके पीछे कई वैज्ञानिक कारण ह््ैं। दुनिया में नदियों को महज एक पानी का स्रोत माना जाता हो, लेकिन भारत में नदियों को जीवनदायिनी कहा गया है। इन नदियों ने अनेक सभ्यताओं का उत्थान और पतन देखा है। भारत की नदियां एक तरफ भीषण मानवीय संघर्षों की साक्षी रही हैं, वहीं प्रेम, त्याग, तपस्या और साधना की स्थली भी रही ह््ैं। नदियों की महिमा का बखान जनमानस में इस प्रकार होता रहा है –

गंगे च यमुने चैव, गोदावरी सरस्वती।
नर्मदे, सिंधु, कावेरी, जलेअस्मिन् सन्न्धिं कुरु॥

वेदकाल के हमारे ऋषियों ने पर्यावरण संतुलन के सूत्रों के दृष्टिगत नदियों, पहाड़ों, जंगलों व पशु-पक्षियों सहित पूरे संसार की और देखने की सहअस्तित्व की विशिष्ट अवधारणा को विकसित किया है। मानव जीवन में नदियों के इसी महत्व ने अनेक ऋचाओं और गीतों को जन्म दिया। सिंधु, गंगा और नर्मदा जैसी नदियों ने अपने आंचल में कई सभ्यताओं को पल्लवित-पुष्पित किया है। भारतीय शास्त्रों और अनेक शोध-ग्रंथों में नदियों के सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक, व्यापारिक और सामरिक महत्व का उल्लेख मिलता है। इसीलिए भारतीय जनमानस में नदियां प्रातः स्मरणीय और आराध्य रही हैं। जैसे भारत में भौगोलिक और प्राकृतिक वैविध्य के अनुसार ही नदियों की प्रकृति, प्रभाव और इतिहास भी विविधतापूर्ण है। अनेक नदियां हिमालय की ग्लेशियर से निःसृत होती हैं, किन्तु मध्यप्रदेश में नर्मदा जैसी नदियां पर्वतों-जंगलों से पैदा होकर मीलों की यात्रा करते हुए खंभात की खाड़ी में विलीन हो जाती ह््ैं।

नदियां मानव की सुख-समृद्धि और अस्तित्व की वाहक रही हैं। मनुष्य के शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा का विकास करती रही हैं। विनावगाहादपि हृष्टिमात्रान्मनः नुनन्त्मेव हि पुण्मनद्यः। – कर्णपूर (आनन्दवृन्दावन चम्पू, 1्।11)। इसके अनुसार पवित्र नदियां, बिना स्नान किए, अपने दर्शनमात्र से ही दर्शकों का मन पवित्र कर देती हैं। किन्तु आज वे स्वयं अनेक खतरों से जूझ रही हैं। नदियों से लाभान्वित होने वाला मानव समुदाय ही नदियों की जान का दुश्मन बन बैठा है। मोक्षदायिनी राष्ट्रीय नदी गंगा को मानवीय स्वार्थ ने इतना प्रदूषित कर डाला है कि कन्नौज, कानपुर, इलाहाबाद, वाराणसी और पटना सहित कई एक जगहों पर गंगाजल आचमन लायक भी नहीं रहा है। दिल्ली के 56 फीसदी लोगों की जीवनदायिनी, उनकी प्यास बुझाने वाली यमुना आज खुद अपने ही जीवन के लिए जूझ रही है।

विकास की अंधी दौड़ में मानवीय सभ्यता और नदियों का अस्तित्व – दोनों ही खतरे में है। शायद ही कोई नदी ऐसी बची हो जो निर्मल, अबाध, और सतत् प्रवाहित हो। नदियों को प्रदूषित करने में दिनों दिन बढ़ते उद्योगों ने भी प्रमुख भूमिका निभाई है। बडे़ बांधों का निर्माण, औद्योगिक और मानवीय अपशिष्ट, कृषि में उपयोग किए जाने वाले रसायनिक उर्वरक और मनुष्य द्वारा डाले जा रहे कचरे नदियों के लिए बड़े खतरों के तौर पर चिह्नित किए गए ह््ैं। असल में जो नदियां हमें जीवन दे रही हैं कृतघ्न मनुष्य इसके एवज में नदियों को अपनी गंदगी, मलमूत्र, उद्योगों का कचरा, तमाम जहरीला रसायन व धार्मिक अनुष्ठान के कचरे का तोहफा देकर वही उसका जीवन लेने पर तुला है। आज देश की 70 फीसदी नदियां प्रदूषित हैं और मरने के कगार पर ह््ैं। इनमें गुजरात की अमलाखेड़ी, साबरमती और खारी, हरियाणा की मारकंडा, उत्तर प्रदेश की काली और हिंडन, आंध्र की मुंसी, दिल्ली में यमुना और महाराष्ट्र की भीमा नदियां सबसे ज्यादा प्रदूषित हैं।

नदियों को प्रदूषण मुक्त करने के लिए सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर अनेक प्रयास किए जा रहे ह््ैं। भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना का क्रियान्वयन किया जा रहा है। इसकी शुरूआत 1985 में हो गई थी। गंगा नदी के साथ ही देश की अन्य नदियां भी इस योजना में शामिल ह््ैं।

तत्कालीन प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भाजपानीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की सरकार ने देश की नदियों को अधिक मानवीय बनाने के लिए ‘नदी जोड़ो परियोजना’ की शुरूआत की थी। यह एक ऐतिहासिक पहल थी। यह परियोजना देश में पैदा होने वाली भयानक बाढ़ और सूखे की विषम परिस्थितियों के कारण बनाई गई थी। भारत में प्राकृतिक आपदाओं का लम्बा इतिहास है। प्रत्येक वर्ष जहां बिहार और असम जैसे राज्य जल-आप्लावन का शिकार होते हैं, वहीं दक्षिण भारत के अनेक राज्य जल की कमी के कारण कई समस्याओं का सामना करते हैं। नदियों के अमानवीय प्रबंधन के कारण अनेक समस्याओं का सामना हर वर्ष करना पड़ता है। नदी जोड़ो परियोजना का निर्माण विशेषज्ञों की एक टास्क फोर्स की अनुशंसा के बाद हुआ था। किन्तु 2004 में कांग्रेसनीत संयुक्त गठबंधन की सरकार ने एनडीए सरकार की अनेक लोकहितकारी योजनाओं को रोक दिया। किन्तु विगत दिनों सर्वोच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक फैसले में नदी जोड़ो परियोजना से संबंधित सभी व्यवहार्य पक्षों का मूल्यांकन करने तथा एक निश्चित समय सीमा में इस परियोजना से संबंधित कार्यवाही को पुनः प्रारंभ करने का निर्देश भारत सरकार को दिया। खास बात यह है कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस मामले में भारत सरकार को सुझाव के स्थान पर तय समय सीमा के भीतर पूर्व निर्धारित नीति के सुचारू व समयबद्ध क्रियान्वयन का निर्देश दिया है।

दरअसल इस योजना के पीछे एनडीए सरकार की मंशा यह थी कि देश के विभिन्न क्षेत्रों में एक ही समय पर बाढ़ और सूखे की स्थिति का रोका जा सके। इन प्राकृतिक आपदाओं के कारण देश में बड़े स्तर पर जन, धन व प्राकृतिक संसाधनों का नुकसान होता रहा है। विशेषज्ञों द्वारा नदियों के अनियंत्रित बहाव को इस नुकसान का एक बड़ा कारण माना गया। वैज्ञानिकों ने इस तकनीक पर कार्य प्रारंभ किया कि किस प्रकार बाढ़ के पानी को सूखाग्रस्त क्षेत्रों तक पहुंचाया जा सके। हालांकि भारत का संघीय ढांचा और विभिन्न राज्यों के टकराने वाले परस्पर हित इस योजना के सफल क्रियान्वयन में एक प्रमुख बाधा रही है। कई पर्यावरणशास्त्री और साामजिक संगठन भी इस परियोजना का विरोध कर रहे ह््ैं।

भाजपा ने साध्वी उमा भारती के नेतृत्व में गंगा समग्र अभियान चला रखा है। इस अभियान के अंतर्गत देशभर में गंगा स्वच्छता और पवित्रता के प्रति जागरुकता का वातावरण बनाया जा रहा है। मध्यप्रदेश में इसी के तर्ज पर नर्मदा समग्र के नाम से चिंतन और विचार की प्रक्रिया चल रही है। गंगा की पवित्रता, शुद्धता और निरंतर प्रवाह को लेकर संतों ने अनेक आंदोलन किए हैं। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान के पूर्व प्रोफेसर गुरूदास अग्रवाल ने गंगा के अविरल प्रवाह को लेकर प्रदीर्घ आंदोलन किया। यह कहना अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं होगा कि अगर नदियों कें बारे में लोगों का यही रवैया रहा तो वह दिन दूर नहीं जब नदियों के तटों पर पलने-बढ़ने वाली मानव सभ्यताएं पतन की ओर अग्रसर हो जायेंगी। अगर हमने नदियों की रक्षा नहीं की तो नदियां हमारी रक्षा कैसे करेंगी! मानव सभ्यता का यह गुरूतर दायित्व है कि वह स्वयं अपने लिए, आने वाली पीढ़ियों और संपूर्ण मानव सभ्यता के लिए नदियों को संरक्षित करें, उसके प्रवाह को अवरूद्ध न करें। मनुष्य को विकास के उन पैमानों को अस्वीकृत करना होगा जो विविधता, परस्पर पूरकता और परस्पर आश्रितता को नकारते हों। मनुष्य प्रकृति के विरूद्ध जा कर बहुत दिनों तक अपना अस्तित्व अक्षुण्ण नहीं रख सकता। इसलिए यह आवश्यक है कि हम नदियों की रक्षा करें ताकि नदियां हमारी रक्षा कर सकें।

मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार ने एनडीए सरकार की नदी जोड़ो परियोजना से पे्ररणा लेकर प्रदेश की नदियों को जोड़ने का सिलसिला शुरू कर दिया है। क्षिप्रा नदी नर्मदा के गले मिल चुकी है। नर्मदा-क्षिप्रा सिंहस्थ लिंक परियोजना मूर्त रूप ले चुकी है। अब गंभीर, कालीसिंध और पार्वती नदियों को एक-दूसरे से मिलाने की योजना पर कार्य प्रारंभ होना ह््ैं। मध्यप्रदेश की सरकार ने नदियों को गले मिलाने की ऐतिहासिक कवायद की है। देश और दुनिया के लिए यह एक मिसाल है। वह दिन दूर नहीं जब केन्द्र भी अपनी पुरानी योजना को लोकहित में शुरू करेगा और नदियों को उनके स्वाभाविक अधिकार देकर भगीरथ के प्रयास पुनः साकार होंगे।
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