युद्ध से संसाधन जीते जा सकते, मानव मन नहीं
साहिर लुधियानवी की एक नज़्म है कि, "ख़ून अपना हो या पराया हो; नस्ल-ए-आदम का ख़ून है आख़िर। जंग मशरिक़ ...
साहिर लुधियानवी की एक नज़्म है कि, "ख़ून अपना हो या पराया हो; नस्ल-ए-आदम का ख़ून है आख़िर। जंग मशरिक़ ...
क्या आपने सृष्टि के गीतों को सुना है ? सृष्टि में होने वाली एक छोटी सी हलचल भी संगीत को ...
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