हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
स्वतंत्रता के प्रेरणादायी स्वर

स्वतंत्रता के प्रेरणादायी स्वर

by pallavi anwekar
in अगस्त-२०१३, सामाजिक
0

 क्या आपने सृष्टि के गीतों को सुना है ? सृष्टि में होने वाली एक छोटी सी हलचल भी संगीत को जन्म देती है। ये संगीत ही तो है, जो सृष्टि में जड़ और चेतन के भेद का आभास कराती है। इसी भावना को जब हम कैद करते हैं शब्दों में… रूप देते हैं अक्षरों का… तो वो संगीत ही काव्य बन जाता है।

काव्य मानव जीवन का अभिन्न अंग है । बड़े से बड़ा लेख कई बार उतना प्रभावशाली नहीं हो पाता, जितनी दो पंक्तियों की कविता होती है । हमारे इतिहास में भी काव्य, छंद, दोहों में ही तत्कालीन समाज का वर्णन किया गया है। कविता के सदैव दो ही पहलू रहे हैं। उसने समाज की भावनाओं को आत्मसात भी किया है और समाज में अपनी ऊर्जा से प्राण भी फूंके हैं। हमारे देश के कवियों ने हर युग में समाज का दर्पण बनने वाली रचनाएं लिखी हैं। कविताओं ने स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान भी अहम भूमिका निभायी थी। महाकवि जयशंकर प्रसाद ने अपनी रचना से सभी का आह्वान किया ‡

हिमाद्रि तुंग श्रृंग से, प्रबुद्ध शुद्ध भारती,
स्वयं प्रभा समुज्वला स्वतंत्रता पुकारती ।
प्रवीर हो, जयी बनो बढ़े चलो! बढ़े चलो !

स्वतंत्रता आन्दोलन की सभी सभाओं में या जहां कहीं भी हमारे राष्ट्रध्वज का जिक्र होता था, श्याम लाल गुप्त पार्षद द्वारा लिखित गीत जरूर गाया जाता था। इस गीत की पंक्तियां कुछ इस प्रकार हैं ‡

विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झण्डा ऊंचा रहे हमारा ।
सदा शक्ति बरसाने वाला, प्रेम सुधा सरसाने वाला।
वीरों कोहरषाने वाला,मातृभूमि का तन मन सारा
झण्डा ऊंचा रहे हमारा ।

हमारे क्रान्तिकारियों में कई ऐसे कवि थे जिन्होंने अपनी रचनाओं से न सिर्फ दूसरे क्रान्तिकारियों को प्रेरित किया बल्कि स्वयं भी उस रचना का शब्दश: पालन किया। अपनी आत्मोत्सर्ग की भावना को शहीद राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ ने कुछ इस प्रकार व्यक्त किया था‡

सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है ।

कई क्रान्तिकारी इस तरह की कविताओं को गाते हुए हंसते‡हंसते फांसी पर झूल गये। इसी भाव को सागर निजामी अपने शब्दों में कुछ इस तरह लिखते हैं कि ‡

हुक्म आखिर कत्लगाह में जब सुनाया जाएगा,
जब मुझे फांसी के तख्ते पर चढ़ाया जाएगा,
ऐ वतन! उस वक्त भी मैं तेरे नगमें गाऊंगा,
अहद करता हूं कि मैं तुझ पर फिदा हो जाऊंगा।

वीर रस के भावों से ओतप्रोत इन कविताओं के बीच कुछ ऐसी कविताएं भी लिखी गयीं जो अंग्रेजी शासन पर व्यंग्यात्मक टिप्पणी करने वाली थीं। मशहूर शायर हफीजजालंधरी ने ब्रिटिश शासन की धज्जियां उड़ाते हुए लिखा था‡

इंसा भी कुछ शेर हैं, बाकी भेड़ों की आबादी है,
भेड़ें सब पाबन्द हैं लेकिन शेरों को आजादी है।
भेड़ियों ही से गोया कायम अम्न है इस आबादी का,
भेड़ें जब तक शेर न बन लें, नाम न ले आजादी का।

(अम्न‡शांति)

उस समय के सभी क्रान्तिकारी देश पर अपनी जान लुटाने को तैयार थे और जिन्हें ये मौका नहीं मिल पाता, वे लोग जेल भरो आन्दोलन करके अंग्रेजों की नाक में दम कर देते थे। अधिक से अधिक लोगों को जेल जाने के लिए प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से किसी अज्ञात कवि ने आवाज दी‡

सुनो गोशे‡दिल से जरा ये तराने, अनोखे निराले हैं जंगी फसाने,
कहीं शोरे ‡मातम कहीं शादियाने, इसी तरह कटते रहेंगे जमाने,
करो थोड़ी हिम्मत, न ढूंढ़ो बहाने,चलो जेलखाने, चलो जेलखाने।

(* शादियाने ‡ खुशी का बाजा)

अंग्रेजों द्वारा भारतीय अखबारों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर भी पाबंदी लगा दी गयी थी। वे जब चाहें तब शक की बिनाह पर किसी भी दफ्तर की तलाशी ले लिया करते थे। हालांकि उनको हमेशा कुछ मिलता नहीं था और भारतीय भी इससे परिचित थे, परन्तु बार-बार ली जाने वाली इस तलाशी ने एक कवि को लिखने के लिए मजबूर कर ही दिया कि‡

अन्दर की तलाशी, कभी बाहर की तलाशी,
ले लेते हैं हर रोज वो दफ्तर की तलाशी।
रहती है एडिटर पर नजर उनकी हमेशा,
बैठक की तलाशी, कभी घर की तलाशी।

अपने घर व मुल्क पर किसी और के जबरन हक जमाते तथा उसे बरबाद करते देख लोगों का खून खौलने लगा था। उन्हें देश से बाहर निकालने का जुनून इस कदर लोगों के सिर चढ़कर बोल रहा था कि उन्हें न डण्डों का डर रह गया था, न ही बंदूकों का। वे अत्यंत बेबाकी से कमल की इस रचना के अनुसार अंग्रेजों से कहते थे कि ‡

हमारा हक है हमारी दौलत, किसी के बाबा का जर नहीं है,
है मुल्क भारत वतन हमारा, किसी की खाला का घर नहीं है।
ये अत्मा तो अजर‡अमर है, निसार तन-मन स्वदेश पर है,
है चीज क्या गन मशीनें, कजा का भी हमको डर नहीं है ।

(*जर‡दौलत, खाला‡मौसी, कजा‡मौत)

जौहर का इतिहास रखने वाली माताएं जब अपने वीर पुत्रों को युद्धभूमि में जाते हुए देखतीं तो उस वक्त उनके मन में उठने वाले भावों को जोरावर सिंह ‘सिंह कवि’ ने कुछ इस प्रकार व्यक्त किया है ‡

आर्य नारियों ने भी जग को अपने जौहर दिये दिखाय,
शूर वीरता की बातों से कायर दीने वीर बनाय।
निर्भय हो रण में जा बेटा, विजय करें तेरी जगदीश,
पीठ ठोंक करके मैं तेरी देती हूं दिल से आशीष।

भारत की जनता अंग्रेजों के विरोध में सीना तानकर खड़ी थी। उनके हर जुल्मों का कभी हिंसा और कभी अहिंसा से विरोध किया जा रहा था, परन्तु भारतीय जनता शांति प्रिय है अत: उनके मन में कहीं न कहीं यह टीस, यह चुभन थी कि क्यों हमें परेशान किया जा रहा है, जबकि हमने किसी का कुछ नहीं बिगाड़ा है। यह टीस कुंवर प्रताप चंद्र ‘आजाद’ के शब्दों में इस तरह सामने आयी‡

उसे यह ़फिक्र है हरदम, नई तर्जे‡जफा क्या है,
हमें यह शौक है, देखें सितम कि इंतिहा क्या है।
गुनहगारों में हैं शामिल, गुनाहों से नहीं वाकिफ,
सजा देते हैं वो, लेकिन खुदा जाने खता क्या है।

(*तर्जे-जफा‡ अत्याचार का ढंग)

न अंग्रेजों ने अपने अत्याचारों में कोई कमी की थी और न ही अवाम ने प्रतिकार में। जब भी कोई बड़ा नरसंहार अंग्रेजों द्वारा किया जाता, तो उतने ही जोश के साथ लोग फिर से खड़े हो जाते थे। जलियावाला बाग में हुए हत्याकाण्ड को हमारे इतिहास के काले पन्ने के रूप मेंदेखा जाता है। इस हत्याकाण्ड को सरजू ने कुछ इस तरह बयां किया-

बेगुनाहों पर बमों की बेखतर बौछार की,
दे रहे हैं धमकियां बंदूक और तलवार की।
बागे-जलिया में निहत्थों पर चलाई गोलियां,
पेट के बल भी रेंगाया, जुल्म की हद पार की।

(*बागे-जलिया‡ जलियावाला बाग)

मन में टीस भले ही थी परन्तु वे अपने हक के लिए जागरूक थे और उन्हें यह भी ज्ञात था कि आजादी उनका हक है। यह उन्हें मांगकर नहीं मिलेगी बल्कि लड़कर ही लेनी होगी। इसीलिए फीरोजउद्दीन ‘मंसूर’ कहते हैं ‡

मांगा पहले, अब न मांगेंगे, मगर लेंगे जरूर,
हक्के-आजादी के हम हकदार हैं, साइल नहीं ।
जिन्दगी आजादगी, आजादगी है जिन्दगी,
मौत बेहतर है अगर आजादी-ए-कामिल नहीं।

(*साइल‡भिखारी, आजादी-ए-कामिल ‡ पूर्ण स्वाधीनता)

माखनलाल चतुर्वेदी ने पुष्प के माध्यम से सभी क्रान्तिकारियों और आन्दोलनकारियों की अभिलाषा व्यक्त की थी‡

चाह नहीं मैं सुरबाला के गहनों में गूंथा जाऊं,
चाह नहीं, प्रेमी माला में बिंध प्यारी को ललचाऊं ।
मुझे तोड़ लेना वनमाली, उस पथ पर देना तुम फेंक,
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने जिस पथ जाएं वीर अनेक।

आजादी के गीतों की बात निकले और महान कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान की बात न हो तो एक अधूरापन सालता रहता है । झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने अपने पराक्रम से इतिहास का जो स्वर्ण युग रचा, उसे सुभद्रा कुमारी चौहान ने अपनी कलम से इस तरह कागज पर उतारा था‡

बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।
चमक उठी सन सत्तावन में वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी।

ऐसे और इस तरह के कई अनेक तरानों ने स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान देश के नागरिकों में उत्साह और स्फूर्ति का संचार कर दिया था कि युवाओं से लेकर प्रौढ़ों तक सभी देश के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने को तैयार हो गये थे। अंग्रेज इन सबसे नावाकिफ नहीं थे। वे अच्छी तरह से यह जानते थे कि ये कविताएं भारतीयों में उत्साह का संचार करती हैं और अगर इन्हें नहीं रोका गया तो विप्लव की अंगार को रोकना सम्भव नहीं होगा। इसलिए अंग्रेजों ने इन कविताओं को जब्त कर लिया। परन्तु लिखित कविताओं को जब्त करने के बावजूद भी कई ऐसी कविताएं थीं जो लोगों की जुबान पर थीं और उन्होंने आजादी के आन्दोलन में जान डाल दी। सोहनलाल द्विवेदी, सुवर्ण सिंह वर्मा ‘आनंद’, सरजू प्रसाद सिंह ‘भीम’, विश्वामित्र, स्वामी विचारानंद सरस्वती इत्यादि कई ऐसे क्रान्तिकारी कवि हुए जिनकी रचनाओं ने लोगों के मन में अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ने का अदम्य साहस भर दिया।

केवलअंग्रेज ही क्या, इस धरती पर कई बार विदेशियों ने आक्रमण किये और हर बार उन्हें मुंह की खानी पड़ी। आजादी मिलने में वक्त लगा परन्तु वह मिली और हमने हमेशा ही इस बात को साबित किया कि कोई लाख कोशिश कर ले परन्तु हमें मिटाना आसान नहीं है । इस पर इकबाल की पंक्तियां एकदम सटीक हैं कि‡

यूनान, मिस्र, रोमा सब मिट गये जहां से,
अब तक मगर है बाकी नामों-निशां हमारा।
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी,
सदियों रहा है दुश्मन दौरे-जमां हमारा।

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: freedomhindi vivekhindi vivek magazineindependenceinspirationlibertymotivation

pallavi anwekar

Next Post
उत्तराखण्ड आपदा में संघ सेवा कार्य

उत्तराखण्ड आपदा में संघ सेवा कार्य

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0