️मन के दास नहीं, स्वामी बनें

Continue Reading️मन के दास नहीं, स्वामी बनें

'मन' शरीर का स्वामी है, इंद्रियों का प्रवाह मन के आदेशानुसार काम करता है। बलवान मन शरीर को ड्राइवर की भांति जिधर चाहे उधर हाँका करता है। 'मन' ही अपने नियमित जीवन का साफ़- सुथरा निष्कंटक मार्ग तैयार करता है और मृत्यु का रास्ता भी 'मन' ही बनाता है। विचार…

सामाजिक प्रगति के लिए धर्म बुद्धि आवश्यक

Continue Readingसामाजिक प्रगति के लिए धर्म बुद्धि आवश्यक

मनुष्य हाड़-मांस का पुतला, एक तुच्छ प्राणी मात्र है, उसमें न कुछ विशेषता है न न्यूनता । उच्च भावनाओं के आधार पर वह देवता बन जाता है, तुच्छ विचारों के कारण वह पशु दिखाई पड़ता है और निकृष्ट "पापबुद्धि" को अपना कर वह असुर एवं पिशाच बन जाता है ।…

सत्कर्म करने के लिए उच्च स्तर की मनोभूमि चाहिए

Continue Readingसत्कर्म करने के लिए उच्च स्तर की मनोभूमि चाहिए

"सत्कर्म" अनायास नहीं बन पड़ते । उनके पीछे एक प्रबल दार्शनिक पृष्ठभूमि का होना आवश्यक है । सस्ती नामवरी लूटने के लिए या किसी आवेश में आकर कभी-कभी घटिया स्तर के लोग भी बड़े काम कर बैठते हैं, पर उनमें स्थिरता नहीं होती । यश कामना की पूर्ति भी हर…

मन ही वैरी और मन ही मित्र है !!

Continue Readingमन ही वैरी और मन ही मित्र है !!

अंतःकरण में ज्ञान, आँखों में वैराग्य और मुख में भक्ति रखो तो दुनिया में नहीं फँसोगे। मन को संसार के विषयों से निकालकर अंतर्मुख करो, तब सभी वासनाएँ मिट जायेंगी, विकार दूर हो जायेंगे। दुनिया में कोई किसीका वैरी नहीं है। मन ही मनुष्य का वैरी और मित्र है। कोई…

End of content

No more pages to load