चोर नही चोर की मां को पकड़ें

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भारत मे अधिकतर लोगों को यह ज्ञान नही कि बताने, बोलने, कहने, चिल्लाने और भौंकने में शब्दों का ही अंतर नही बल्कि क्रिया का भी अंतर है, भावना और संस्कृति का भी अंतर है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 (1) में वर्णित स्वतंत्रता को लोग  ऐसा मान लेते हैं जैसे…

रूस, यूक्रेन, अमेरिका, भारत… और भारतीय मीडिया

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जेलेन्स्की और पुतिन प्रकरण में भारत हर बार यूएन वोटिंग से ले कर सार्वजनिक आधिकारिक कथनों में रूस के साथ खड़ा दिखता है। पश्चिमी राष्ट्रों और अमेरिकी सांसदों से ले कर प्रभावशाली राष्ट्राध्यक्षों ने भारत को अपराध बोध में लपेटने के प्रयास किए। भारत ने रूस को नहीं त्यागा और…

निष्पक्ष पत्रकारिता या धंधे की पत्रकारिता

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वर्किंग जर्नलिस्टस ऑफ इंडिया ने अपनी मांगों के समर्थन में दिल्ली के जंतर मंतर पर बहु चर्चित धरना- प्रदर्शन का आयोजन 30 मार्च को किया। इस आयोजन में बड़ी संख्या में पत्रकारों और मीडिया कर्मियों ने भाग लिया और एक ज्ञापन प्रधानमंत्री कार्यालय को दिया। उनकी बहुत सी मांगे बहुत…

बदलती पत्रकारिता

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नारायण दत्त तिवारी ने उत्तराखंड में न जाने कितने अनपढ़, गैर पेशेवरों को दो-दो पेजों के अखबार खुलवा दिए। तिवारी काल में लोग मुख्य मंत्री के पास गए और एक विशेष किस्म से उन्हें तृप्त कर मोटे-मोटे विज्ञापनों के आदेश जारी करवा लाए। बस यही दौर था जब उत्तराखंड में लोगों ने अखबारों को समाज के आईने के बजाय पैसे कमाने का जरिया समझ लिया।

खबरिया टी. वी. चैनलों की भूमिका

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दिन-रात चौबीसों घण्टे चल रहे टी. वी. के खबरिया चैनलों के पास दर्शकों के लिए लगता है कोई महत्वपूर्ण विषय नहीं है। सुबह से शाम तक किसी निरर्थक समाचार को बार-बार दिखा करके वे अपने बौद्धिक दिवालिएपन का ही प्रदर्शन करते हैं।

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