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एकात्म मानव दर्शन की प्रासंगिकता

एकात्म मानव दर्शन की प्रासंगिकता

by प्रो. श्रीराम अग्रवाल
in प्रकाश - शक्ति दीपावली विशेषांक अक्टूबर २०१७, व्यक्तित्व, सामाजिक
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भारत छोड़ो’ दिवस की ७५वीं वर्षगांठ पर हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पं. दीनदयाल उपाध्याय जी के ही मंत्र ‘संकल्प से सिद्धि’ को अब पूर्ण योजना के रूप में अंगीकार कर, २०२२ तक मजबूत, समृृद्ध एवं समावेशी-अर्थात ‘सबका साथ, सबका विकास’- भारत के निर्माण का संकल्प ले लिया है।
पं. दीनदयाल उपाध्याय जी का ‘एकात्म मानव दर्शन’, सैद्धांतिक एवं व्यावहारिक दोनों ही दृष्टि से, एक सर्वकालिक एवं सार्वभौमिक जीवन दर्शन है। इस दर्शन के अनुसार, ‘मानव’ सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के केन्द्र में अवस्थित रह कर, एक ‘सर्पलाकार मण्डलाकृति’ के रूप में, अपने स्वयं के अतिरिक्त, क्रमश: परिवार, समुदाय, समाज, राष्ट्र एवं विश्व के प्रति, अपने बहुपक्षीय उत्तरदायित्वों का निर्वहन करता हुआ ‘प्रकृति’ (ब्रह्माण्ड) के साथ संग्रथित होता हुआ, एकीकृत हो जाता है। ‘व्याष्टि’ से ‘समाष्टि’ की ओर गतिमान ‘व्यक्ति’ के इस बहु आयामी सृजनात्मक व्यक्तित्व का ‘प्रकृति’ के साथ, तादात्म्य स्थापित होना ही, एकात्म मानव दर्शन के मूल में निहित है। पंडित जी के अनुसार मानव ही, उस ब्रहमाण्ड अर्थात समष्टि का अणु अर्थात व्यष्टि इकाई है, जिसके सर्वांगीण विकास के बिना राष्ट्र का विकास संभव नहीं है। अथर्ववेद में हमारे ॠषि भी कह चुके हैं ’’अभिवर्धतां पयसाभि राष्ट्रेण वर्धताम्’’ अर्थात सभी प्रजा दुग्धादि धनधान्य से पुष्ट हो तथा राष्ट्र के साथ विकसित हो। अ०वे०६-७८-२।’
यह दर्शन कोई ऐसा विचार या सिद्धांत नहीं है, जो एक दुरूह दार्शनिक चिंतन तक सीमित होकर, मात्र शास्त्रार्थ का विषय बन कर सामान्य व्यक्ति की समझ से बाहर हो जाता है। यह दर्शन विश्वगुरू भारत की वैदिक संस्कृति के विज्ञान सम्मत जीवन सूत्रों पर आधारित, मौलिक चिंतन है। पंडित जी ने विश्व इतिहास के सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक घटनाक्रम का विस्तृत एवं गहन अनुशीलन करते हुए, तत्कालीन वैश्विक पटल में व्याप्त आपसी वैमनस्य, शक्ति एवं सत्ता संघर्ष तथा आत्मघातक प्रतियोगी वातावरण के संदर्भ में, एक ऐसा व्यवहारिक जीवन दर्शन प्रतिपादित किया है जो कि समस्त वैयक्तिक, राष्ट्रीय व वैश्विक जटिलताओं के सार्थक एवं सकारात्मक समाधान हेतु व्यावहारिक नीतियों हेतु मार्गदर्शन करता है।
राष्ट्रीय पटल के पूर्व, वैश्विक पटल पर, वर्तमान में दृष्टव्य अंतर-विरोधी विषम एवं विकृत परिस्थितियों के संदर्भ में, एकात्म मानव दर्शन की प्रासंगिकता को समझना आवश्यक है। आज विश्व के तमाम देशों में अहंपूर्ण वर्चस्वकारी प्रतियोगिता का वातावरण फैला हुआ है। देश की भौगोलिक सीमाओं एवं अपनी-अपनी राजसत्ता को ही संकुचित अर्थों में राष्ट्र मान कर, तमाम देश एक दूसरे पर राजनैतिक प्रभाव एवं शक्ति सामर्थ्य के बल पर अपनी राजनैतिक एवं आर्थिक प्रसारवादी नीति को ही राष्ट्रीयता मान बैठे हैं। परन्तु ‘एकात्म मानव दर्शन’ के अनुसार राष्ट्र तो एक ‘चित्ति’ है जो कि व्यक्ति में निहित उसकी ‘आत्मा’ के समान है। यही कारण है कि ‘व्यक्ति को एक निरपेक्ष मानव की तरह राज्यसत्ता का दास मानने वाली रूस जैसी विश्वशक्ति टुकड़ों में बंट कर बिखर गई। वहीं दूसरी ओर बिना किसी भौगोलिक सीमा के अलग-अलग देशों में जीवन-यापन कर रहे यहूदी समुदाय के व्यक्तियों में अपने एक स्व-राष्ट्र की चित्ति (आत्मा) निरंतर जागृत रही और वे अंतत: एक राष्ट्र के रूप में पुनर्स्थापित हो सके।
चीन अपनी विस्तारवादी नीतियों के कारण चारों ओर पड़ोसी देशों के साथ निरंतर विवाद की स्थिति में बना रहता है तथा विश्व बिरादरी से अलग- थलग पड़ने की स्थिति में आता जा रहा है। अमेरिका के विकास का आधार ही विश्व के विभिन्न देशों के बीच सीमा एवं सैन्य संघर्ष है जिससे उसकी सैन्य सामग्री की र्स्वाधिक बिक्री होती रहे। कोई भी विश्व युद्ध अमेरिका की धरती पर नहीं हुआ। इसीलिए उसे नागासाकी- हिरोशिमा पर गिराए गए परमाणु बमों की भीषण अमानवीय विभीषिका का अनुभव नहीं मिला। धार्मिक कटृरता के नाम पर फैले वैश्विक आतंकवाद से लगभग सभी देश पीड़ित हैं। परन्तु सभी, एकजुट होकर इसे समूल नष्ट करने का मन नहीं बना पा रहे हैं। कारण कुछ देश ऐसे भी हैं, जिनका अस्तित्व ही इस आतंकवाद के पोषण में निहित है। हाल ही में घटित ’डोकलाम घटनाक्रम ने भी यह सिद्ध कर दिया है कि पंडित जी के एकात्म मानव दर्शन में निहित धारणा कि ‘अस्तित्व के लिए संघर्ष’ नहीं अपितु ‘अस्तित्व के लिए सह-अस्तित्व’ की नीति ही कल्याणकारी है।
कुछ समय पूर्व एक वैश्विक सर्वेक्षण में उद्घाटित हुआ कि विश्व के ५२ प्रतिशत विकास संसाधनों पर विश्व की मात्र १ प्रतिशत जनसंख्या का आधिपत्य है। दूसरी ओर अफ्रीका क्षेत्र के कई ऐसे छोटे-छोटे देश भी हैं, जिनमें प्रति वर्ष अकाल, भूख एवं अन्य अभावों के कारण करोड़ों मानवों के काल कवलित होने के प्रति वे पूर्णरूपेण संवेदनहीन बने हुए हैं। इस सम्पूर्ण परिदृश्य में, एकात्म मानव दर्शन की महत्वपूर्ण प्रासंगकिता है। सभी राष्ट्रों को एकजुट हो कर सर्वप्रथम विश्व की अकाल एवं भुखमरी से त्रस्त उस आबादी के लिए भोजन एवं अन्य मूल सुविधाओं की व्यवस्था करनी होगी। पंडित जी ने अपने सिद्धांत में यही व्यक्त किया है कि ’भोजन व्यक्ति का जन्मसिद्ध अधिकार है तथा प्रत्येक सक्षम व्यक्ति को अपने साथ अन्य अक्षम, साधनहीन व्यक्तियों के लिए भी भोजन अर्जित करना होगा।’ वेदों में भी देवों से प्रार्थना की गई है कि ’’वयं तद्व: सम्राज आ वृ्णीमहे पुत्रो न बहुपाययम। अश्याम तदादित्या जुहवतो हविर्येन वस्योनशामहे॥जिस प्रकार पुत्र पिता से याचना करता है, वैसे ही आप से ऐसी सम्पत्ति की याचना करते हैं, जो अनेकों का पोषण करने वाली हो। ॠगवेद ८-२७-२२। यहीं से प्रत्येक मानव अन्य मानवों के साथ एकात्म मानव के रूप में परिवार, समुदाय, समाज, राष्ट्र एवं विश्व से जुड़ता है। वैश्विक स्तर पर सभी राष्ट्रों का संयुक्त दायित्व है कि वह विकास के सब से नीचे पायदान के राष्ट्र का भी सार्थक विकास करें। यह वैश्विक अन्त्योदय का मूल है।
वर्तमान भारतीय जनता पार्टी के पूर्ववर्ती मूल राजनैतिक संगठन ‘भारतीय जनसंघ’ के १९६५ के विजयवाड़ा अधिवेशन में, पार्टी ने पं. दीनदयाल उपाध्याय के ‘एकात्म मानव दर्शन’ को अपने मार्गदर्शक सिद्धांत के रूप में स्वीकार किया था। वर्तमान में केन्द्र सहित, देश के अधिसंख्यक जनसंख्या वाले राज्यों में भाजपा की पूर्ण बहुमत समर्थित सरकारें कार्यरत हैं। ऐसे में वर्तमान सरकार द्वारा विकास की जो योजनाएं लागू की गई हैं, उनके संक्षिप्त परिचय से ही यह स्पष्ट हो जाएगा कि पंडित जी का ‘एकात्म मानव दर्शन’, व्यक्ति एवं राष्ट्र के संग्रथित विकास हेतु, कितना प्रासंगिक एवं एकमात्र व्यावहारिक विकल्प है।
पण्डित जी का सर्वाधिक बल ‘अंतिम व्यक्ति की उन्नति (Rise of the Last person) की भावना से अनुप्राणित ‘अंत्योदय’ (Antyodaya) कार्यक्रम पर था। उनका कहना था कि ‘जब तक व्यक्ति की भूख नहीं मिटाई जाती व उसे उसकी मूलभूत आवश्यकताओं यथा वस्त्र, आवास, स्वास्थ्य व शिक्षा की सुविधाएं उपलब्ध नहीं कराई जाती हैं, तब तक वह न तो अपने प्रति, न जिंदगी के प्रति अपने उत्तदायित्व पूर्ण कर पाएगा और न ही परिवार, समाज व राष्ट्र के प्रति। अत: इन सुविधाओं को उपलब्ध कराना राज्य का प्रथम कर्तव्य है।’ देश की सर्वाधिक जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती हैं। स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत ७० वर्षों के स्वराज में इससे दयनीय स्थिति और क्या हो सकती है कि देश की ३०.९ प्रतिशत ग्रामीण तथा ३५ प्रतिशत शहरी जनसंख्या गरीबी रेखा की नीचे श्रेणी में आती है। परन्तु अब वर्तमान भारत सरकार ने इस स्थिति को समूल नष्ट कर देश के अंतिम व्यक्ति के विकास हेतु-‘अंत्योदय’ हेतु- अनेकानेक कार्यक्रम प्रभावी रूप से प्रारंभ कर दिए हैं।
इनमें प्रमुख हैं- २०१५ में प्रारंभ ‘दीनदयाल अंत्योदय योजना’, ‘दीनदयाल ग्रामीण कौशल्य योजना’, ‘प्रधानमंत्री आवास योजना – ग्रामीण’ तथा ‘प्रधानमंत्री आवास योजना – शहर’, ‘स्वच्छ भारत अभियान’, महिलाओं की प्रदूषणमुक्त रसोई के लिए ‘प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना’, ‘प्रधानमंत्री जन औषधि योजना’। ‘दीनदयाल ग्राम ज्योति योजना’, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी राष्ट्रीय अर्बन योजना,‘अटल पेंशन योजना’, ‘जीवन ज्योति बीमा योजना’ तथा ‘प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना’
इन सभी योजनाओं के माध्यम से देश के अभावग्रस्त वर्ग को, भोजन, आवास, चिकित्सा की सुविधाएं विस्तारित कर, आर्थिक एवं सामाजिक सुरक्षा उपलब्ध कराने का प्रयास किया गया है। इन सभी योजनाओं पर, ३ से५ वर्षो में केन्द्र सरकार द्वारा लगभग १२ लाख ४६ हजार ५ सौ करोड़ रू. व्यय किया जाना है। समेकित रूप से लागू किए जाने की रणनीति के कारण, उपरोक्त सभी योजनाएं, ’अंत्योदय’ के लक्ष्य को प्राप्त करने में पूर्णरूपेण सक्षम हैं।
एकात्म मानव दर्शन के लक्ष्य को व्यवहारिक रूप से पूरा करने हेतु पंडित जी ने कहा था कि कार्य करने में सक्षम प्रत्येक युवा को शिक्षित प्रशिक्षित करने का उत्तरदायित्व राज्य का होता है। वर्तमान सरकार ने इस महत्वपूर्ण उत्तरदायित्व को पूरा करने हेतु ‘दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना’, ‘कौशल्य भारत’, ‘प्रधानमंत्री कौशल्य विकास योजना’, ‘दीनदयाल उपाध्याय श्रमेव जयते कार्यक्रम, प्रधानमंत्री युवा योजना, ‘राष्ट्रीय अप्रेन्टिसशिप प्रोत्साहन स्कीम’ अनेकानेक कार्यक्रम प्रारंभ किए हैं। संक्षेप में इन कार्यक्रमों के अंतर्गत, अगले ५ वर्षों में रु. १५ हजार करोड़ व्यय कर, १५-३५ वर्ष की आयु के, लगभग ५ करोड़ ग्रामीण व शहरी युवाओं को प्रशिक्षित कर स्वरोजगार हेतु तैयार करना है। अप्रेंटिस योजना के अंतर्गत लघु उद्योगपतियों को अपने यहां इन प्रशिक्षित बेरोजगारों को अनुभव प्रशिक्षण देने के व्यय पर, ५० प्रतिशत प्रोत्साहन राशि प्रदान की जाती है।
पं. दीनदयाल जी ने, स्वतंत्रता प्राप्ति के लगभग १७-१८ वर्षों के उपरांत (१९६५ तक) भी राष्ट्र के धीमे आर्थिक विकास एवं उस हेतु विदेशी सहायता, विदेशी तकनीक तथा विदेशी आयातों पर निर्भरता के प्रति १९६५ में मुंबई में, ‘एकात्म मानव दर्शन’ पर दिए अपने चार दिवसीय व्याख्यान में, गंभीर चिंता व्यक्त की थी। पण्डित जी का मानना था कि भारत के विकास के लिए हमें विदेशी नहीं अपितु ‘भारत तकनीक’ का विकास करना होगा। इसके लिए हम पश्चिम में हुए तकनीकी ज्ञान विकास का केवल उस सीमा तक लाभ भी ले सकते हैं जिस सीमा तक वह हमारे राष्ट्र के ठोस विकास के लिए, हमारे संसाधनों, समय व परिस्थितियों के अनुकूल हो। भारत सरकार ने, इस हेतु ‘भारत में निर्माण’ आवाह्न के द्वारा विदेशी निवेशकर्ताओं को, भारत में उत्पादन संस्थान व प्रशिक्षण संस्थान स्थापित कर, आयात के स्थान पर भारत में ही निर्माण कर निर्यात के लिए प्रोत्साहित किया है।
इस कार्यक्रम को आशातीत सफलता प्राप्त हो रही है। वस्त्र निर्माण, मोबाइल, इलैक्ट्रिोनिक, आटोमोबाइल तथा कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों में, जिनके लिए हम आयातों पर निर्भर रहते आए हैं, के भारत में ही निर्माण हेतु एप्पल इन्कार्पोशन, फाक्सकाम, ओप्पो, मर्सिडीज, बी.एम.डब्ल्यू, वोल्वो, रेनाल्ट, हुन्डई, सेमसंग, सनग्रुप, रेफल जेट, ऐवरबस कं., प्रेट एण्ड व्हिटनी’ आदि लगभग १९० अमेरिकी, चीनी, फ्रांस, जर्मनी, रूसी, जापानी आदि लगभग ६० देशों की कम्पनियों ने अपनी रूचि दिखाई है तथा कुछ ने तो अपने आस्थापन स्थापित कर, कार्य भी प्रारंभ कर दिया है। ये सभी कम्पनियां भारतीय उद्योगपतियों की साझेदारी में कार्य करेगी। हमारे युवा वर्ग को रोजगार व आवश्यक प्रशिक्षण भी प्रदान करेगी। हमारे अप्रयुक्त प्राकृतिक संसाधनों, भूमि, श्रम व कृषि उत्पादन का औद्योगिक उपयोग होगा। भारत से निर्यात बढ़ने के कारण विदेशी मुद्रा एवं व्यापार संतुलन भी हमारे पक्ष में होगा।
विदेशी संस्थानों में कार्यरत प्रवासी भारतीय वैज्ञानिकों को भी देश की वैज्ञानिक व तकनीकी प्रगति में साझेदारी हेतु आकर्षित करने के लिए ’वज्र’ (VAJRA – Visiting Advanced Joint Research Faculty) योजना प्रारंभ की गई है। इसके अंतर्गत हमारे शिक्षण व शोध संस्थानों में, हमारे वैज्ञानिकों व शोधकर्ताओं के साथ मिल कर कार्य करने हेतु, उन्हें ३ माह में रू२५ लाख की प्रोत्साहन राशि प्रदान की जाती है।
पं. दीनदयाल जी ने एक आत्मनिर्भर भारत की कल्पना की थी। वे केवल वृहद उद्योगों के माध्यम से, औद्योगिक भारत को कुछ स्थानों पर केन्द्रीकृत होने के स्थान पर, लघु तथा कुटीर उद्योगों के द्वारा देश के सभी क्षेत्रों में आर्थिक प्रगति के लाभ, स्वरोजगार एवं लघु उद्यमों में रोजगार सृजन की क्षमता बढ़ाना आवश्यक मानते थे। इस लक्ष्य की पूर्ति हेतु, भारत सरकार ने,-स्वामी विवेकानंद के ’उत्तिष्ठत, जागृत’ से प्रेरित होकर-‘स्टैण्ड अप-स्टार्ट अप भारत’ ॠण योजना प्रारंभ की है। समाज के पिछड़े, एस. सी.,एस. टी. तथा महिलाओं द्वारा अपनी विनिर्माण एवं व्यवसायिक उद्यम इकाई प्रारंभ करने हेतु, रू. १ करोड़ तक का, ७ वर्षीय, स्वनिर्धारित आसान किश्तों में चुकाए जाने वाला ॠण, कई कर-छूट सुविधाओं सहित प्रदान किया जाता है। योजना के अंतर्गत २.५ लाख ॠणों के लिए रू. १०,००० करोड़ की व्यवस्था की गई है। इसी प्रकार अति लघु व्यावसायिक व उत्पादन इकाइयों के लिए बैंकिंग आदि वित्त संस्थानों द्वारा रू० १० लाख प्रति इकाई तक दिए गए ॠण की प्रतिपूर्ति के लिए ‘प्रधानमंत्री मुद्रा योजना’ को भी प्रारम्भ किया गया है।
किसी भी छोटी बड़ी विकास योजना की सफलता का सबलसे महत्वपूर्ण पक्ष है कि इन योजनाओं के माध्यम से दी जा रही सहायता, ॠण, अनुदान व लाभ राशि, वास्तव में सही एवं लक्षित लाभार्थी समूह तक पहुंच सके। परन्तु पिछली सरकारों के अधीन लगभग ७० वर्षों की शासन व्यवस्था के अंतर्गत विकास कम, भ्रष्टाचार अधिक बढ़ा है। पूर्व प्रधानमंत्री ने इस बात को स्वीकार तो किया था कि सरकारी योजनाओं पर किए गए १०० रू. में से मात्र १५ रूपये ही वास्तविक लाभार्थियों तक पहुंच पाता है। परन्तु उनके अपनों से ही उत्पन्न अव्यवस्था व दबाव के कारण इस स्थिति को ठीक करने में पूर्णत: असफल रहे। वर्तमान भारत सरकार ने राष्ट्रीय आर्थिक विकास में लगे इस ‘भ्रष्टाचार जाम’ का तोड़ अपनी विलक्षण जनधन खाते+आधार संख्या+मोबाइल योजना से प्राप्त कर लिया है। १५ अगसत २०१७ की स्थिति में कुल ३० करोड़ जनधन खातों में रू. ६५००० करोड़ की धनराशि जमा है। ११७ करोड़ आधार (पहचान) कार्ड अर्थात देश की १८ वर्ष से ऊपर की जनसंख्या का ९९ प्रतिशत को वितरित किए जा चुके हैं। देश में मोबाइल उपभोक्ताओं की संख्या ९० करोड़ तक पहुंच चुकी है।
भारत सरकार की पहल योजना के अंतर्गत सभी गैस कनेक्शन, बैंक अकाउन्ट तथा आयकर खाता संख्या आधार के साथ जोड़ी गई। जिससे गैस कनेक्शन, बैंक खातों तथा आयकर खातों का दोहरीकरण समाप्त हो गया। ‘प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण योजना’के द्वारा लाभार्थियों को उनका लाभ, सब्सिडी, ॠण आदि सीधे उन्हीं के खातों में हस्तांतरित कर, बिचौलियों की भूमिका पूर्णत: समाप्त कर दी गई है। पूरे विश्व ने इस अभी तक की सब से तेज गति एवं पारदर्शी जनहितकारी योजना स्वीकार किया है। गत नवम्बर २०१६ में लागू की गई विमुद्रीकरण प्रक्रिया तथा जुलाई २०१७ से लागू की गई वस्तु तथा सेवा कर योजनाओं के सम्मिलित प्रयास से अर्थव्यवस्था में फलफूल रहे कालेधन व समानान्तर अर्थव्यवस्था पर भीषण प्रहार किया गया है। लगभग २ लाख बेनामी फर्जी कम्पनीज को बन्द करने तथा भ्रष्टाचारी धन से अर्जित बेनामी सम्पत्तियों की पहचान कर उनके विरूद्ध कठोर कार्रवाई की जा रही है।
पं. दीनदयाल जी के एकात्म मानव दर्शन का केन्द्रीय लक्ष्य समग्र ‘मानव’ उत्थान है। इसके लिए उसका, राष्ट्रीयता की भावना, अर्थात् ‘राष्ट्र की चित्ति’ के साथ तादात्म्य भी आवश्यक है। भारत जैसे विविधतापूर्ण, विशाल देश की बहुरंगी जीवन शैली, भाषा, संस्कार, परम्पराओं व राग- अनुरागपूर्ण भारतीय संस्कृति से वर्तमान व आने वाली युवा पीढ़ी का साक्षात्कार कराने हेतु ‘एक भारत – श्रेष्ठ भारत’ कार्यक्रम को भी प्रारंभ किया गया है। जिसके माध्यम से प्रत्येक व्यक्ति को अपने समुदाय, परिवार, समाज, परम्परा, भाषा, जीवन शैली सहित राष्ट्र के साथ जुड़ कर जीवन की सम्पूर्णता का अनुभव होता है। यही पं. दीनदयाल उपाध्याय जी के ‘एकात्म मानव’ की सच्ची तस्वीर है।
अभी हाल ही में सम्पन्न राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मंथन शिविर में भी, यही निर्देशक संदेश दिया गया है। ‘स्वदेशी’ का अर्थ केवल वस्तुओं के प्रयोग भर से नहीं अपितु भाषा, वेशभूषा, संस्कृृति से भी दिखना चाहिए। हमारा ’एकात्म पवित्र जीवन’ एवं भारतीय व्यवस्था, भौतिकवादी न होकर, पवित्रता पूर्ण जीवन से पे्ररित होनी चाहिए। शिविर में, आर्थिक रोजगार हेतु, कुटीर व लघु उद्योगों पर बल देने की बात कही गई।
उपरोक्त से स्पष्ट है कि पंडित जी का दर्शन मात्र एक आदर्शवादी कल्पना नहीं है। अपने राष्ट्रीय पटल पर, ’एकात्म मानव दर्शन’ की पूर्ण व्यवाहार्यता सिद्ध करते हुए, भारत वैश्विक पटल पर भी इसे सिद्ध करने की पहल करने में भावात्मक तथा संसाधनात्मक रूप में पूर्ण सक्षम हैं। विश्व के सर्वाधिक पिछड़े हुए, छोटे राष्ट्रों में से १ या २ राष्ट्रों का चयन करके, उनकी सांस्कृतिक, आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक व्यवस्था में आधिपत्यपूर्ण दबाव बनाए बिना, पूर्ण नि:स्वार्थ भाव से उनके निवासियों की वैयक्तिक व सामूहिक उन्नति के लिए पर्याप्त अनाज, वस्त्र, चिकित्सा एवं आवास सुविधाओं तथा शिक्षा संस्थानों का विकास का संकल्प ले कर समस्त विश्व को एक नया संदेश देना चाहिए। ८ अगस्त को ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ दिवस पर हमारे प्रधानमंत्री द्वारा, पं. दीनदयाल उपाध्याय जी के ही मंत्र ‘संकल्प से सिद्धि’ को अब पूर्ण योजना के रूप में अंगीकार कर, २०२२ तक मजबूत, समृद्ध एवं समावेशी-अर्थात ‘सबका साथ, सबका विकास’ का संकल्प ले लिया गया है।

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