बढ़ता विकास – घटती प्रसन्नता

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.प्रतिवर्ष बढ़ती हुई राष्ट्रीय जी. डी. पी. वैश्विक स्तर पर विकसित एवं विकासशील राष्टृों के मध्य मुखर प्रतियोगिता का आधार बन गया है। परन्तु उसके विपरीत इन देशों में घटती हुई सामाजिक समरसता, परस्पर सहयोग, उदारता एवं सहनशीलता जन सामान्य के मध्य राष्ट्रीय प्रसन्नता स्तर को कम कर रहे हैं।

आत्मनिर्भर भारत अभियान

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‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के लिए संजीवनी का तथा भारत के उद्योगियों, किसानों तथा मजदूरों के लिए एक विराट सम्बल का काम करेगा, जिससे वे गिरकर हताश होने के स्थान पर, उठकर, खड़े होकर, नई ताकत से पुन: दौड़ पड़ेंगें- ‘उत्तिष्ठ, जाग्रत, चरैवेति-चरैवेति-चरैवेति।’

बड़े लक्ष्य और आम आदमी का सरोकार

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वर्तमान वर्ष के बजट में हमने जीडीपी में लम्बी छलांग लगाने समेत कई बड़े लक्ष्य रखे हैं। लेकिन आम आदमी के सरोकारों पर भी गौर करना होगा। यदि उसकी क्रय शक्ति न बढ़ी तो सारे प्रयास व्यर्थ हो जाएंगे। हालांकि, मोदी सरकार के आत्मविश्वास की स्पष्ट झलक बजट में दिखाई देती है। 

वेदों में पर्यावरण चिंतन

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वैदिक ॠषि कहते हैं है कि हम पृथ्वी वासी पर्यावरण को दूषित न करें, छिन्न न करें अन्यथा हमें उनसे दूषित अवगुण ही प्राप्त होंगे। यह एक ऐसा सत्य है जिसकी वर्तमान में अवहेलना कर हम पर्यावरण संतुलन को समाप्त करते जा रहे हैं। पर्यावरण का सीधा- सरल अर्थ है…

दीनदयाल जी की नीतियों के अनुरूप बजट

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चुनावी वर्ष के ठीक पूर्व अंतिम बजट में मोदी सरकार ने चुनावी हानि लाभ की चिंता किए बिना, अर्थव्यवस्था में सुदृढ़ता, तीव्र आर्थिक विकास की दर, वित्तीय अनुशासन तथा समाज के अधिसंख्य निर्धन एवं अक्षम वर्ग के कल्याण का बजट प्रस्तुत कर २०१९ के चुनावों के प्रति अपनी पूर्ण आश्वस्ति एंव आत्मविश्वास का भी स्पष्ट संकेत दे दिया है।

एकात्म मानव दर्शन की प्रासंगिकता

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भारत छोड़ो’ दिवस की ७५वीं वर्षगांठ पर हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पं. दीनदयाल उपाध्याय जी के ही मंत्र ‘संकल्प से सिद्धि’ को अब पूर्ण योजना के रूप में अंगीकार कर, २०२२ तक मजबूत, समृृद्ध एवं समावेशी-अर्थात ‘सबका साथ, सबका विकास’- भारत के निर्माण का संकल्प ले लिया है। पं. दीनदयाल उपाध्याय जी का ‘एकात्म मानव दर्शन’, सैद्धांतिक एवं व्यावहारिक दोनों ही दृष्टि से, एक सर्वकालिक एवं सार्वभौमिक जीवन दर्शन है। इस दर्शन के अनुसार, ‘मानव’ सम्पूर्ण ब्रह्माण

रेल मंत्री फास – ममता फेल, प्रधानमंत्री फिर फूरक फरीक्षा में

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समझ नहीं आता कि अर्फेाी अनब्याही दीदी के लिये रेल मंत्रालय को दहेज के रूफ में सुरक्षित रखने की संप्रग सरकार की ऐसी मजबूरी मनमोहन सिंह को अर्फेाा फांच साला कोर्स फूरा करने के लिये और कितनी बार फूरक फरीक्षाओं का सामना करने के लिये विवश करेगी।

हौले- हौले, मुस्करा कर, दिल दुखाकर, चल दिये

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बजट सत्र में एक ही हंगामा काफी है। सो रेल बजट में हो चुका। अत: जनमानुष के खिलाफ होती इस बजट की क्रूरता को फूरी तरह अनदेखी कर इस बजट को भला बजट बताते हुये हमारी ‘दीदी’ ने ‘दादा’ को क्लीन चिट दे दी। और बाबू मोशाय हैं कि ’हौले - हौले मुस्कराकर, दिल दुखाकर चल दिये।’

गरीबी रेखा बनाम संपन्नता रेखा

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20 रुपया प्रतिदिन आय में इससे अधिक कुछ नहीं खरीदा जा सकता है। देश की 77 फीसदी जनसंख्या को यह 20 रूपये प्रतिदिन की दैनिक आय (योजना आयोग के अनुसार 37 प्रतिशत) भी उपलब्ध नहीं है।

पेट्रोल के आंसू

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पेट्रोल की खुदरा कीमतों में पांच रुपये प्रति लीटर की हालिया बढ़ोतरी ने आम आदमी की खाली जेब भी काट ली। सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती महंगाई से त्रस्त जनता को मनमोहन सरकार ने ‘कहां जाई का करी’ की स्थिति में खड़ा कर ‘पेट्रोल’ के आँसू रोने पर विवश कर दिया है।

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