वात्सल्य एवं राजनीति का संगम

– डॉ. प्रतिभा दवे / डॉ. पूर्णिमा दवे 
श्री नरेन्द्रभाई ने पू. प्रमुख स्वामी के आशीर्वाद लेने हेतु फोन किया तो कहना पड़ा कि स्वामीश्री आराम कर रहे हैं। दोपहर को और बाद में शाम को फिर फोन किया, उत्तर वही था। श्री नरेन्द्रभाई ने कहा कि स्वामीश्री के श्वासोच्छवास को सुन पाऊं, कुछ इस तरह फोन उनके पास रखिए। वही मेरे लिए आशीर्वाद समान होगा।
विश्व की संस्कृति के इतिहास पर दृष्टि करने से पता चलता है कि प्राचीन समय में ऋषियों की तेजस्वी आंखों को जमाने का कोई डर नहीं था। वे स्वार्थबुद्धि से परे होने के कारण सत्यवक्ता और स्पष्टवक्ता भी थे। केवल जनकल्याण की भावना से प्रेरित उनका जीवन था। इसलिए केवल भारत में ही नहीं किंतु समग्र विश्व में राजर्षियों या ज्ञानी ऋषियों के प्रति सम्मान और आदरभाव हुआ करता था। उनके आशीर्वाद को सदैव तरसा करते थे। मध्यरात्रि को जब पहरेदार गहरी निद्रा में चले जाते थे तब सम्राट फ्रेडरिक ज्ञानियों के पास सत्संग करने पहुंच जाते थे। प्लूटो ने यहां तक कह डाला कि फिलॉस्फर (दार्शनिक/तत्त्वज्ञ) को ही राजा बनना चाहिए। फिलॉस्फर का अर्थ स्वार्थ, नाम, प्रतिष्ठा से ऊपर उठकर निष्काम भाव से लोगों के हितों का खयाल रखकर शासन करने वाला शासक।
उत्तर में आध्यात्मिक उन्नति के प्रतीक हिमालय की गिरिमाला, भारतमाता के चरण का प्रक्षालन करता हुआ नीला सागर, पश्चिम में अरब समुद्र, पूर्व में बंगभूमि का उपसागर और गंगा-यमुना की निर्मल धारा से हरीभरी भारतभूमि का बाह्य स्वरूप हृदयंगम और भव्य है। ठीक वैसे ही उन का आंतरिक-अध्यात्म और संस्कृति उदात्त और ज्योतिर्मय है।
आज हम एक ऐसी घटना की बात करने जा रहे हैं जहां राजर्षि भक्त के रूप में महर्षि के साथ सत्संग करने आया करते हैं। देश के पूर्व प्रधान मंत्री गुलजारीलाल नंदा प्रधान मंत्री बनने के पहले अक्षर पुरूषोत्तम स्वामीनारायण संप्रदाय के संस्थापक ब्रह्मस्वरूप पू.श्री शास्त्रीजी महाराज के संपर्क में आए और उनके दर्शन मात्र से प्रभावित हो गए और एक सामान्य भक्त के रूप में दासत्व भाव से संप्रदाय के सभी नियमों का पालन करते हुए पू.श्री शास्त्रीजी महाराज और तत्पश्चात योगीजी महाराज के पास सत्संग करने आया करते थे। इन महान संतपुरूषों के संकल्प एवं आशीर्वाद से माननीय नंदाजी को दो बार कार्यकारी प्रधान मंत्री बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। इनका व्यक्तिगत जीवन और चरित्र संपूर्णतया अपनी समग्र राजकीय कार्यकाल के दौरान शुद्ध रहा।
अब हम भूतकाल से वर्तमान की ओर चलते हैं। गांधीनगर (गुजरात) अक्षरधाम की रजत जंयती के महापर्व में शामिल होने जा रहे हैं। इस समारोह के मुख्य अतिथि माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी थे। हम आगे बढ़े उसके पहले थोड़ी सी पृष्ठभूमि पर नजर डालते हैं। ब्र.स्व.पू.श्री योगीजी महाराज के संकल्प को साकर करने का भव्य पुरुषार्थ पू. श्री प्रमुख स्वामी महाराज ने किया और १९९२ में गांधीनगर में अक्षरधाम मंदिर का उद्घाटन हुआ तब श्री लालकृष्ण आडवाणी के साथ एक सामान्य कार्यकर्ता के रूप श्री नरेन्द्रभाई भी मौजूद थे तब ही पू.श्री प्रमुख स्वामी की दृष्टि ने इस हीरे की परख कर ली थी और अपने बालक के रूप में स्वीकार कर इस हीरे को पूर्ण रूप से चमकाना है, यह बात मन में ठान ली थी। २००२ में भारत की संस्कृति के इस भव्य स्मारक अक्षरधाम पर आतंकवादी हमला हुआ। २८ लोग मारे गए। उनमें इस संस्था के एक सेवाभावी संत भी थे। अनेक लोग घायल हुए। तब भी नरेंद्रभाई गुजरात राज्य के मुख्यमंत्री थे। जनाक्रोश जबरदस्त था। ऐसी विकट घड़ी में पू.स्वामी श्री ने अक्षरधाम के प्रांगण में शांति सभा का आयोजन किया और लोगों से शांति बनाए रखने का आग्रह किया। स्वामी श्री ने श्री नरेन्द्रभाई को आश्वस्त किया एवं इस परिस्थिति को संभालने के लिए आशिर्वाद और सहयोग दिया और हम सब साक्षी हैं कि श्री नरेन्द्रभाई ने उन परिस्थिति को कैसे बखूबी निभाया था।
अब हम वापस चलते हैं गांधीनगर अक्षरधाम की रजत जयंती के समारोह में। इस अवसर पर पू.श्री प्रमुख स्वामी मौजूद नहीं हैं किन्तु श्री नरेन्द्रभाई ने अपने संस्मरणों से सब भक्तों के अंतरपट पर पू.श्री प्रमुख स्वामी को साक्षात प्रकट कर दिया। श्री ब्रह्मबिहारी स्वामी ने बताया कि जब माननीय प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्रभाई को निमंत्रण दिया गया और पूछा गया कि आप आएंगे? तब उनकी सबसे पहली प्रतिक्रिया यह थी कि मेरे पिताजी चले गए और मैं मेहमान बन गया?
श्री नरेन्द्रभाई ने सार्वजनिक रूप से सभा में जो बातें कहीं वे न तो केवल अपना स्वामीश्री के प्रति प्रेमभाव था बल्कि एक महान पुरुष की भव्यता और दिव्यता का अंतरमन से सच्चा यशोगान और भव्य श्रद्धांजलि भी थी।
श्री नरेन्द्रभाई ने कहा, ‘‘स्वामीश्री ने मेरे भाषणों की टेप्स मंगवाई तब मैं सोच में पड़ गया कि सामान्यत: संतों के भाषणों की टेप हमें सुननी चाहिए। किन्तु मेरे भाषणों की टेप्स पू. प्रमुख स्वामी को मंगवाने की जरूरत क्यों पड़ी होगी? लेकिन स्वामीश्री ने ‘चुन चुनकर’ एक-एक भाषण की टेप ध्यान से सुनी और ५-६ दिन के बाद मुझे स्वामीश्री को मिलने के लिए संदेश भिजवाया गया। स्वामीश्री से जब मिला तब उन्होंने मुझे बताया कि तुझे यह बात ऐसे नहीं कहनी चाहिए; ऐसे कहनी चाहिए, वगैरह वगैरह। आज एक-एक शब्द मेरे कान में गूंज रहे हैं। स्वामीश्री द्वारा दी गई सलाह और सूचना को मैंने शिरोधार्य किया और जीवन में इनका आज भी पालन कर रहा हूं।
एक बार श्री मुरली मनोहर जोशी की अध्यक्षता में मैंने कन्याकुमारी तक यात्रा की और २६ जनवरी को हमने कश्मीर में तिरंगा फहराया। उस समय अनेक लोग शहीद हुए थे। बाद में मैं प्लेन से जम्मू आया। इस दरमियान श्री प्रमुख स्वामी ने कम से कम ५ या ६ बार फोन कर के मेरे बारे में पूछा। तू ठीक तरह पहुंच गया कि नहीं? जैसे पिता अपने पुत्र की चिंता करें। ठीक वैसे ही नर्मदा नदी का पानी कच्छ तक प्यासे लोगों तक पहुंचे, ऐसी विशाल भावना उनके हृदय में थी। इसलिए वे मुझे बार-बार पूछते थे कि नर्मदा का काम कहां तक आया? इनकी जनकल्याण की भावना मैंने कई बार देखी थी। ऐसी उदार जनकल्याण की दृष्टि से जब मेरे हाथ यह कार्य आया तो श्री प्रमुख स्वामी ने बहुत रस रुचि दिखाई। मेरे हाथों नर्मदा विकास योजना का काम हो रहा था तब मेरे संपर्क में रहकर हर छोटी-मोटी बातों के विषय की जानकारी रखते थे।’’
एक बार तो श्री नरेन्द्रभाई सिर पर पू.श्री प्रमुख स्वामी ने अपने हस्तकमल रखकर इस तरह आशीर्वाद दिए, मानों उन्हें सुरक्षा कवच दे दिया।
श्री ब्रह्मबिहारी स्वामी ने एक बात बताई जो बहुत ही दिलचस्प थी। पू. प्रमुख स्वामी की तबियत खराब थी। उस समय का यह प्रसंग है। श्री नरेन्द्रभाई ने पू. प्रमुख स्वामी के आशीर्वाद लेने हेतु फोन किया तो कहना पड़ा कि स्वामीश्री आराम कर रहे हैं। दोपहर को और बाद में शाम को फिर फोन किया, उत्तर वही था। श्री नरेन्द्रभाई ने कहा कि स्वामीश्री के श्वासोच्छवास को सुन पाऊं, कुछ इस तरह फोन उनके पास रखिए। वही मेरे लिए आशीर्वाद समान होगा। इस तरह श्वासोच्छवास की आवाज द्वारा आशीर्वाद की अनुभूति श्री नरेन्द्रभाई का स्वामीश्री के प्रति श्रद्धा और प्रेम दर्शाता है।
अंत में पू. श्री महंत स्वामी ने, कर्मसूचक बात कही कि स्वामीश्री ने सब को समान रूप से आशीर्वाद दिए हैं लेकिन श्री नरेन्द्रभाई का कमल खिल गया।
निष्ठा और निष्काम भाव से देश की सेवा के अनुष्ठान में समाधीस्थ कर्मठ श्री नरेन्द्रभाई आध्यात्मिक गुणों के धनी, परमात्मा में सदैव अपनी वृत्ति को जोड़कर ‘बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय‘ के लिए भेदभाव के परे होकर समाज कल्याण की प्रवृत्ति और मोक्ष की प्रवृत्ति में रत श्री प्रमुख स्वामी के संपर्क में आए तो कमल का खिलना स्वाभाविक है।
गुजरात के मूर्धन्य कवि श्री उमाशंकर जोशी ने ठीक ही कहा है: मैं गुजराती भारतवासी। मैं भारतवासी विश्वनिवासी ऐसी वसुधैव कटुंबकम् की भावना से देश का शासन चलाने वाले श्री नरेन्द्र भाई के ऊपर सदैव परमात्मा की आशीर्वर्षा बनी रहे।

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