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सभी मावल्यांग से सबक लें

सभी मावल्यांग से सबक लें

by sonali jadhav
in पर्यावरण, सामाजिक, स्वच्छ भारत अभियान पर्यावरण विशेषांक -२०१८
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वैसे तो भारत में स्वच्छ भारत अभियान के तहत लोगों को सफाई के प्रति जागरुक किया जा रहा है। लेकिन आज भी सफाई के मामले में हमारे गांवों, कस्बों और शहरों की हालत बहुत खराब है। महात्मा गांधी ने जिस भारत का सपना देखा था उसमें सिर्फ राजनैतिक आजादी ही नहीं थी, बल्कि एक स्वच्छ एवं विकसित देश की कल्पना भी थी।

भारत गांवों का देश माना जाता है। लेकिन भारत के गांवों में स्वच्छता का अभाव है। बहुत जगह गंदगी फैली होती है। गांवों में रास्ते तो बने हैं लेकिन उन रास्तों पर नालों का पानी बहता नजर आता है। घर से बाहर निकलने वाला कचरा कूड़ेदान में ना डाल कर रास्तों पर डाला जाता है। बहुत से गांव ऐसे हैं जहां शौचालय भी नहीं है। गांव में स्वच्छता रखनी है तो अब हमारा कर्तव्य है की गंदगी को दूर करें। हर वर्ष १०० घंटे यानी हर सप्ताह २ घंटे श्रमदान करके स्वच्छता के इस संकल्प को चरितार्थ करें। इस विचार के साथ गांव – गांव और गली – गली स्वच्छ भारत का प्रचार करें। गांव को स्वच्छ करना है तो हर नागरिक को इसमें दखल देना बहुत जरूरी है। ग्रामीण क्षेत्र में लोगों के लिए मांग आधारित एवं जन केंद्रित अभियान है। जिसमें लोगों की स्वच्छता से संबंधित आदतों को बेहतर बनाना, स्वयं सुविधाओं की मांग उत्पन्न करना और स्वच्छता सुविधाओं को उपलब्ध करना, जिससे ग्रामीणों के जीवन स्तर को बेहतर बनाया जा सके।

वैसे तो ग्रामीण इलाके में स्वच्छता को लेकर योजनाएं काफी समय से चल रही हैं, मसलन १९९९ तक केन्द्र प्रायोजित योजना के तहत राज्यों को मदद दी जाती थी। इसके बाद १९९९ से २०१२ तक स्वच्छता अभियान के तहत मदद दी जाने लगी। इसके बाद शुरू हुआ निर्मल भारत अभियान। लेकिन अपेक्षित नतीजे नहीं मिले। २०११ की जनगणना के मुताबिक ग्रामीण इलाके में रहने वाले ३२ . ७ प्रतिशत परिवारों को ही समुचित शौचालय की सुविधा थी, वही २०१३ के राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण में ये ४० . ६ प्रतिशत तक पहुंचने की बात कही गई। कहा गया है कि २ अक्टूबर २०१९ को महात्मा गांधी का १५०वां जन्म दिवस मनाया जाए, तब तक स्वच्छ भारत अभियान लक्ष्य हासिल कर लें, राष्ट्रपिता को राष्ट्र की ओर से यही सबसे अच्छी और सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

कहते हैं कि गांवों की हवा में जो ताजगी है वह शहरों में कहां ! शहरों के मुकाबले में वायु एवं शोर प्रदूषण काफी कम है। फिर भी अगर गावों में रहने वाले बीमार हैं तो उसके लिए स्वास्थ सुविधाओं की कमी एक वजह हो सकती है। प्रयास किया जाना चाहिए कि बीमारी नहीं होने का इंतजाम किया जाए। स्वच्छ भारत अभियान इसी दिशा में एक सकारात्मक प्रयास है। और ऐसा ही एक मेघालय में ‘ मावल्यांग ’ नामक गांव है, जो एशिया का सबसे स्वच्छ गांव है। हाल ही में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस गांव का दौरा किया है। यहां स्वच्छ भारत अभियान से जुड़े कई लोगों को उन्होंने सम्मानित भी किया है। गांव सफाई के साथ – साथ शिक्षा में भी अव्वल है। यहां कि साक्षरता १०० फीसदी है। इतना ही नहीं, इस गांव में ज्यादातर लोग अंग्रेजी में ही बात करते हैं। मावल्यांग गांव की खासी हिल्स डिस्ट्रिक्ट का यह गांव मेघालय के शिलांग और भारत – बांग्लादेश सीमा से ९० किलोमीटर दूर है। यहां सुपारी की खेती आजीविका का मुख्य साधन है। यहां लोग घर से निकलने वाले कूड़े – कचरे को बांस से बने कूड़ेदान में जमा करते हैं और उसे एक जगह इकट्ठा कर खेती के लिए खाद की तरह इस्तेमाल करते हैं। यह गांव २००५ में एशिया का सब से साफ गांव बना जबकि २००३ में ही भारत का सब से साफ गांव बन चुका था। इस गांव की सब से बड़ी खासियत यह है की सारी सफाई ग्रामवासी स्वयं करते हैं, सफाई व्यवस्था के लिए वे किसी भी तरह से प्रशासन पर निर्भर नहीं हैं। किसी भी ग्रामवासी को फिर चाहे वह महिला हो, पुरुष हो, या बच्चे हों जहां गंदगी नजर आती है वहां वह सफाई में लग जाते हैं। सफाई के प्रति जागरुकता का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि यदि सड़क पर चलते हुए किसी ग्रामवासी को कोई कचरा नजर आता है तो वह रूक कर पहले उसे उठा कर कूड़ेदान में डालेगा फिर आगे जाएगा।

मावल्यांग गांव में पेड़ों की जड़ों से प्राकृतिक पुल बनाए गए हैं जो समय के साथ – साथ मजबूत होते जाते हैं। इस तरह के पुल पूरे विश् ‍ व में केवल मेघालय में ही मिलते हैं। पूरा गांव स्वच्छता की मिसाल है, जहां हर घर में चालू हालत में शौचालय है, पक्के रास्ते, सौर ऊर्जा से प्रकाशित होने वाली गलियां भी हैं। आवारा जानवर तो क्या यहां पेड़ों से गिरे पत्ते तक सड़कों पर नजर नहीं आते। गांव में प्लास्टिक की थैलियों पर पूरी पाबंदी है और धूम्रपान पर भी इन चीजों से संबंधित नियम बने हुए हैं। जिन्हें तोड़ने पर भारी जुर्माना भी लगता है। इस गांव से प्रभावित होकर कई सरकारी अधिकारी भी यहां आ चुके हैं ताकि स्वच्छ भारत अभियान को सफल बनाने के सबक सीख सकें।

कहा जाता है कि भारत – बांग्लादेश सीमा के पास बसे इस गांव में १९८८ में काफी व्यापक पैमाने पर सोचा जाने लगा। उस दौर में करीब – करीब हर मौसम में महामारी गांव को चपेट में ले लेती थी। इससे कई बच्चों को जान जाती थी। इससे चिंतित रिशोत ने स्वच्छता की अहमियत पहचानी और एक मिशन की तरह इस काम में जुट गए। भारत की गिनती स्वच्छ देशों में अभी नहीं होती पर अगर भारत के दूसरे गांव भी इस गांव से प्रेरणा लें तो वह दिन दूर नहीं जब भारत दुनिया का सब से स्वच्छ देश माना जाएगा। भारत में स्वच्छ भारत अभियान के तहत लोगों को सफाई के प्रति जागरूक किया जा रहा है। हमारा कर्तव्य है कि भारत माता की सेवा करें। गंदगी को दूर करके देश को स्वच्छ रखें।

मोबा . ७०४५९६१३३२

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Tags: biodivercityecofriendlyforestgogreenhindi vivekhindi vivek magazinehomesaveearthtraveltravelblogtravelblogger

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