हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result

हिंदू संस्कृति और पर्यावरण

by विशेष प्रतिनिधि
in पर्यावरण, सामाजिक, स्वच्छ भारत अभियान पर्यावरण विशेषांक -२०१८
0

आज भारत वर्ष प्रगति के सोपान भले चढ़ रहा है पर पर्यावरण को लेकर हम कतई आश् ‍ वस्त नहीं हो सकते कि हम सार्थक दिशा में प्रवास कर रहे हैं। देश का शायद ही कोई हिस्सा बचा हो जो प्रदूषण की कालिमा से बाहर हो। आखिर क्यों टूटा प्रकृति का चक्र ? अधिक सुखी होने की लालसा में हमने उपभोग के साधनों का अत्यधिक उत्पादन किया और वह भी प्रकृति संतुलन की कीमत पर। प्रकृति का यही विनाश हमारे बहुत सारे दुखों का कारण है।

जाहिर सी बात है कि यदि कोई भी चिंतन दो – ढाई शताब्दी तक प्रभाव में रहा हो तो आम जन मानस की सोच को काफी हद तक प्रभावित करता है। इसका असर लोगों के रहन – सहन तथा मानसिक रुझानों पर भी पड़ता है तथा उनकी सोच उस ढांचे में ढलती जाती है। संस्कृति और सभ्यता पर मशीनी विश् ‍ व के दृष्टिकोण ने काफी प्रभाव डाला है। जबकि सभी इस प्रकार अंधाधुंध शोषण करने वाले बन गए हैं तो इस शोषण की स्पर्धा में दोष किसे दिया जाए ? दुनिया के इस मशीनी नजरिए और जीवन पद्धति के प्रभाव के कारण जिंदगी का भौतिकीकरण, व्यक्ति में बदलाव, समाज और पर्यावरण का क्षरण शुरू हो गया। व्यक्तिगत स्तर पर भौतिकवाद ने उपभोगवाद को चरम पर पहुंचा दिया। इससे व्यक्ति और समाज के स्तर पर समस्याएं बढ़ गईं। उपभोगवाद के साथ ही पर्यावरण संकट और जटिल हो गया।

जब उपभोगवाद संतुष्टि का लक्ष्य बन गया तो लाखों उत्पादों की सृष्टि की जाने लगी। इसके लिए प्राकृतिक संसाधनों के शोषण का सिलसिला तेज हो गया। आज हम इस स्थिति में पहुंचे हैं कि जिन प्राकृतिक संसाधनों का पुनर्जनन संभव है अथवा नहीं है वे सब सांसत में हैं। उत्पादन के दौर में प्रदूषण का फैलाव हो रहा है। संसाधनों का जर्जर होना और प्रदूषण पर्यावरण संकट के दो खास पहलू हैं। धरती में ऊष्णता बढ़ रही है। वातावरण गर्म हो रहा है। ग्रीन हाउस का मारक प्रभाव असर दिखाने लगा है। ओजोन की परत में छिद्र बढ़ रहा है। भूमि का क्षरण हो रहा है। वन विनाश भी एक संकट के रूप में असर डाल रहा है। इससे पर्यावरण की गुणवत्ता घट रही है। जैव प्रकृति संकटापन्न स्थिति में है।

यदि हम भारत की सनातन सभ्यता के बारे में बात करें तो इसकी गाथा हजारों सालों की है। चीनी और जापानी सभ्यताएं भी कुछ ऐसी ही हैं। ऐसे में सहज ही यह प्रश् ‍ न उठता है कि इन दीर्घजीवी सभ्यताओं की निरंतरता का रहस्य क्या है ? यदि पाश् ‍ चात्य जीवनदर्शन प्रकृति से तादात्म्य नहीं रखता और जीवन पद्धति को आघात पहुंचाने के लिए दोषी है तो क्या पूर्वी दर्शन विकास के मॉडल का आधार बन सकता है ?

पूर्वी दर्शन में विश् ‍ व जीवमान और समग्र है। यह विचार हिंदू, बौद्ध, तागेसट, शिंटो, अथवा जैन सभी में मेल खाता है। ये सभी अद्वैत के चरम सत्य को मानते हैं। उनके लिए विश् ‍ व में सब कुछ क्षणभंगुर है। जब भौतिक वस्तुओं से आनंद प्राप्त किया जाता है तब मस्तिष्क अस्थिर रहता है तथा वस्तु प्राप्ति के लिए इंद्रियोम को उकसाता रहता है। इसकी न सीमा है और न अंत। इसका समाधान और अधिक उत्पादन बढ़ाना नहीं अपितु उपभोग की लालसा पर लगाम लगाना है। इसके लिए मस्तिष्क को नियंत्रित करना होगा। ऐसा न होने पर लालसाएं बढ़ेंगी, व्यक्ति व समाज का क्षरण होगा। मस्तिष्क पर नियंत्रण से लालसाएं घटेंगी, आंतरिक विकास होगा। परोक्ष में पर्यावरण विकास और संतुलन बढ़ेगा। संसाधनों का संरक्षण होने से प्रकृति का चक्र बिना रोक – टोक घूमेगा। जैव विविधता बनी रहेगी और प्रदूषण नहीं होगा। भौतिकवाद की लालसाओं पर लगाम लगाना एक कड़वी दवा है जिसे निगलना कठिन होगा। शुरुआत में यह प्रक्रिया थोपी हुई लगेगी परंतु व्यक्ति, समाज और पर्यावरण के व्यापक हित में यह आवश्यक है।

गीता में परस्पर पोषण और सभी की भागीदारी का सिद्धांत प्रतिपादित हुआ है। इसे यज्ञ माना गया है। यज्ञ का प्रयोजन प्रकृति के चक्र को बनाए रखना है। इसके लिए हितकर और उपयोगी वस्तुओं का आदान प्रदान अनिवार्य है। जो इस सिद्धांत का उल्लंघन करता है वह चोर है। गीता के तीसरे अध्याय के १२वें श् ‍ लोक में कहा गया है कि

इष्टान्भोगान्हि वो देवा दास्यन्ते यज्ञभाविताः

तैर्दत्तानप्रदायैभ्यो यो भुंक्ते स्तेन एव सः॥

‘ जब किसी व्यक्ति को कोई वस्तु दी जाती है और वह लौटाने की जिम्मेदारी पूरा नहीं करता तो वह चोर है।’ प्रकृति साफ हवा व शुद्ध पानी देती है। पेड़, वनस्पति भोजन देते हैं। हमारा कर्तव्य है कि हवा को साफ रखें, पानी प्रदूषित न होने दें, आहार को विषाक्त होने से बचाएं। यदि वायु, जल, धरती को प्रदूषित करते हैं तो समूचा चक्र खंडित होगा।

प्रति दिन के जीवन में हिंदू धर्म ने कितनी करने योग्य और न करने योग्य आचरण की मर्यादाएं बनाई हैं। इन सब का संबंध पर्यावरण संतुलन कायम रखने से है। इनमें से कुछ मर्यादाओं ने वन संरक्षण में भूमिका का निर्वाह किया। कुछ के कारण भूक्षरण रोका जा सका। हवा पानी को प्रदूषण से बचाने में कुछ ने कवच का काम किया। कुछ ने धरती को समृद्ध बनाया। विनाश की वर्जना ने भारत में जैव विविधता के संरक्षण में योगदान किया। हमने बचपन से ही सीखा है कि प्रकृति हर रूप में पूजनीय है। इसी से गाय, बैल, हाथी, घोड़ा, सर्प आदि की केला, तुलसी, जैसी वनस्पतियों तक की पूजा का प्रावधान रहा है। यहां तक कि पृथ्वी, नदी, पहाड़, औजार, वाहन, हथियार, पुस्तक, ग्रंथ, स्लेट, स्याही, चूल्हा, दीपक, बर्तन को भी पूज्य मानने की परंपरा रही है।

शायद ही कोई सभ्यता ऐसी हो जो हिंदू सभ्यता की तरह प्रकृति के भंडार और सौंदर्य का इस तरह आस्वादन करती हो। उनके लिए सौंदर्य और पूर्णता पर्यायवाची हैं। जिस तरह पूर्णता दिव्य स्वरूप है, जो भी सुंदर है, उनके लिए दिव्यता ईश् ‍ वरीय है। इस तरह हिंदू प्रकृति के सौंदर्य को ईश् ‍ वर की कृति का सौंदर्य मानते हैं। उन्होंने सूर्योदय, सूर्यास्त की सुषमा, पहाड़, वृक्ष, फूल, जल प्रपात के सौंदर्य को निहारा। व्यावहारिकता के आधार पर जन सामान्य की इच्छाओं के प्रति सदाशय होकर धर्म ने सुंदर वस्तुओं के उपयोग की अनुमति दी गई है।

भौतिकवाद का दार्शनिक आधार ध्वस्त हो चुका है। भौतिकवादी जिंदगी से तमाम समस्याएं पैदा हुईं और बढ़ रही हैं, जिनका कोई समाधान नहीं है। आज सारा विश् ‍ व समाधान के लिए पूर्व की ओर देख रहा है। कुंठा, संत्रास, ध्वंस से ग्रसित पश् ‍ चिम को पूर्व के दर्शन में आशा की किरण दिखाई दे रही है। हिंदुत्व में हर व्याधि का समाधान दे सकने वाली शक्ति और क्षमता है परंतु इसके लिए पहले हम हिंदुओं को उस जीवन दर्शन के अनुसार जीना होगा। दुनिया का पथ प्रदर्शन करना अतीत में भी हमारा पावन कर्तव्य रहा है और हर परिस्थिति में हमें वही कार्य करना है ताकि निकट भविष्य में विश् ‍ व पर्यावरण का संकट टाला जा सके। हमें इस धर्म कार्य के लिए सुसज्जित होना है।

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: biodivercityecofriendlyforestgogreenhindi vivekhindi vivek magazinehomesaveearthtraveltravelblogtravelblogger

विशेष प्रतिनिधि

Next Post

मोदी युग में पर्यावरण संरक्षण

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0