हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
१७ जातियों को एससी में शामिल करने हेतु प्रस्ताव भेजें योगी सरकार

१७ जातियों को एससी में शामिल करने हेतु प्रस्ताव भेजें योगी सरकार

by प्रणय विक्रम सिंह
in विशेष, सामाजिक
0

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के जिस फैसले को माना जा रहा था मास्टर स्ट्रोक, उसे केंद्र की भाजपा सरकार ने बता दिया असंवैधानिक। जी हां बात हो रही 17 पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने के यूपी सरकार के फैसले की। दरअसल केंद्रीय मंत्री थावर चंद गहलोत ने राज्यसभा में कहा कि यह पूरी तरह से असंवैधानिक है क्योंकि किसी जाति को किसी अन्य जाति के वर्ग में डालने का काम संसद का है।

अगर यूपी सरकार इन 17 जातियों को ओबीसी से एससी में लाना चाहती है तो उसके लिए एक निर्धारित प्रक्रिया है और राज्य सरकार ऐसा कोई प्रस्ताव भेजेगी तो हम उस पर विचार करेंगे, लेकिन अभी जो आदेश जारी किया है वह संवैधानिक नहीं है, और यह किसी भी विधि न्यायालय में मान्य नहीं है।

ज्ञातव्य है कि यदि योगी सरकार इन 17 जातियों को ओबीसी से एससी वर्ग में लाना चाहती है तो उसे अविलंब इस आशय का प्रस्ताव विधानसभा व विधान परिषद से पास करा कर केंद्र सरकार को भेजना चाहिये। जैसा कि केंद्रीय मंत्री थावर चंद गहलोत ने कहा भी है। केंद्र में भाजपानीत सरकार होने के कारणयोगी आदित्यनाथ के प्रयास के फलीभूत होने की संभावना बढ़ जाती है।

यहसंयोग से, चौथी बार था कि राज्य सरकार द्वारा 17 पिछड़ी जातियों को अनुसूचित वर्ग में शामिल करने का प्रयास किया गया। इससे पहले, सपा सरकार ने इन 17 जातियों कहार, कश्यप, केवट, मल्लाह, निषाद, कुम्हार, प्रजापति, धीवर, बिन्द, भर, राजभर, धीमर, वाथम, तुरहा, गोडिय़ा, मांझी और मछुआरा को अनुसूचित वर्ग में शामिल करने का प्रयास किया था, लेकिन कानूनी हस्तक्षेप के कारण ऐसा करने में विफल रहे। मुलायम सिंह यादव शासन द्वारा पहला प्रयास तब किया गया था, जब 2004 में उसने एक प्रस्ताव पेश किया था। तत्कालीन सपा सरकार ने पिछड़े वर्ग की 17 जातियों को अनुसूचित वर्ग में शामिल करने के लिए उप्र लोक सेवा अधिनियम, 1994 में संशोधन किया। चूंकि, किसी भी जाति को अनुसूचित जाति घोषित करने की शक्ति केंद्र के पास है, इसलिए केंद्र की सहमति के बिना उत्तर प्रदेश की तत्कालीन सरकार का फैसला निर्थक साबित हुआ। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने बाद में इस कदम को असंवैधानिक और व्यर्थ घोषित कर फैसले को रद्द कर दिया था। इसके बाद बहुजन समाजवादी पार्टी (बसपा) शासन में 6 जून 2007 को कैबिनेट की बैठक में उन सिफारिशों को खारिज कर दिया गया जो सपा ने भेजी थीं। वर्ष 2012 में सपा सरकार बनने के बाद 15 फरवरी 2013 को कैबिनेट और विधानसभा से प्रस्ताव पारित कराकर फिर केंद्र सरकार को भेजा। केंद्र ने इस पर विचार नहीं किया तो अखिलेश यादव सरकार ने दिसंबर 2016 में 17 अति पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने का शासनादेश लागू किया था। हालांकि इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल होने के कारण इसे लागू नहीं कराया जा सका।

ज्ञात हो कि उत्तर प्रदेश में 66 उपजातियों का प्रतिनिधित्व करती हुई 20.7 फीसदी दलित आबादी है। इन्हें उत्तर प्रदेश में 21 फीसदी आरक्षण मिल रहा है। यदि 17 अति पिछड़ी जातियां भी शामिल होती हैं तो दलित समुदाय की उपजातियों की संख्या 83 पहुंच जाएगी। वहीं, उत्तर प्रदेश में ओबसी समुदाय को 27 फीसदी आरक्षण मिल रहा है, जिनमें ओबीसी में 79 जातियां शामिल हैं। उत्तर प्रदेश में ओबीसी समुदाय की आबादी करीब 52 फीसदी है, जिनमें मुस्लिम ओबीसी भी शामिल हैं। इस तरह से अगर योगी सरकार के द्वारा की सिफारिश को मंजूरी मिलती है तो 17 अतिपिछड़ी जातियां अलग हो जाती हैं तो 62 उपजातियां बचेंगी। ऐसे में ओबीसी के 27 फीसदी आरक्षण में जहां जातियां कम होंगी तो अनुसूचित जाति के आरक्षण में जातियां बढ़ेंगी।

यहां यह जानना आवश्यक है कि अति पिछड़े होने की वजह से यह न तो पिछड़ी जातियों का लाभ उठा पा रहे थे और न ही दलितों का। ऐसे में इन जातियों के अनुसूचित जाति में शामिल होने से इन्हें आरक्षण का वास्तविक लाभ होगा। किंतु अनुसूचित वर्ग में जातियों की संख्या तो बढ़ जायेगी किंतु आरक्षण का प्रतिशत कम ही रहेगा।

विशेषज्ञों का मत है कि इसी कारण पहले सपा और अब अन्य पार्टियों का प्रयास, ओबीसी समुदाय को लुभाने के क्रम का हिस्सा भर है। जबकि बसपा का इस मुद्दे पर विरोध, खुद को दलित हितों का एक मात्र रखवाला साबित करने का प्राकट्य भर लगता है।

खैर, इन सबके दरम्यान केंद्र सरकार द्वारा यूपी सरकार को दी गई नसीहत, सियासी हितों की बिसात पर संवैधानिक नियमों को मात देने की कोशिशों पर लगाम लगाने का काम करेगी। अगर ऐसा होता है तो यह समाज, संविधान और सियासत सभी के हक में होगा।

 

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: hindi vivekhindi vivek magazineselectivespecialsubjective

प्रणय विक्रम सिंह

Next Post
 जीवन का मूल्य

 जीवन का मूल्य

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0