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सीबीआई के छापों की आग झुलसा सकती हैं अखिलेश का दामन

सीबीआई के छापों की आग झुलसा सकती हैं अखिलेश का दामन

by प्रणय विक्रम सिंह
in राजनीति
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उत्तर प्रदेश की नौकरशाही सकते में हैं। फिर एक बार अवैध खनन का साया सीबीआई के छापों की शक्ल में साहब बहादुर के बंगलों में नुमाया हुआ है। अवैध खनन घोटाले की लपटों की रोशनी में प्रतिष्ठित आईएएस अफसरों के बंगलों से नगदी व सम्पत्ति के दस्तावेज बरामद हुये हैं।

खनन की कथित खुराफात कुछ इस तरह रही कि जिलाधिकारी बुलंदशहर अभय सिंह व आईएएस अधिकारी विवेक को सीबीआई के सामने मुजरिम की तरह सहमे -ठिठके अपने बयान दर्ज कराने के लिये विवश होना पड़ा। हैरत तो यह सुन कर हुई कि बंगले से नोटों की इतनी गड्डियां बरामद हुई कि गिनने के लिये मशीन तक मंगानी पड़ी। सीबीआई ने कथित रूप से अभय कुमार सिंह के आवास से 47 लाख रुपये की नकदी बरामद की है। इसके अलावा देवरिया के पूर्व अपर जिला अधिकारी (एडीएम) (अब आजमगढ़ में सीडीओ) देवी शरण उपाध्याय के घर से 10 लाख रुपये बरामद हुए हैं।

सवाल यह है कि आखिर एक वेतनभोगी अधिकारी के पास इतनी अकूत सम्पत्ति की बरामदगी क्या बयान करती है। जाहिर है यह रकम अवैध मदों के माफर्त वजूद में आई होगी।

दरअसल अवैध खनन, भ्रष्ट नौकरशाही और सियासत का रिश्ता चोली-दामन की तरह है। और जब कभी कोई ईमानदार अफसर अवैध खनन के नाले में अपने हाथ धोने से मना कर देता है तो उसका हश्र दुर्गा नागपाल की तरह होता है। लेकिन आईएएस अधिकारी बी.चंद्रकला से लेकर नौकरशाह अभय सिंह के बंगलों पर पड़ते सीबीआई के छापे, सूबे में बदलती कार्य संस्कृति का ऐलान कर रहे हैं।

शायद यह उसी का परिणाम है कि डीएम अभय सिंह, आजमगढ़ के मुख्य विकास अधिकारी देवीशरण उपाध्याय और कौशल विकास मिशन और प्रशिक्षण और सेवायोजन विभाग के निदेशक विवेक कुमार को उनके मौजूदा पद से हटाकर प्रतीक्षारत सूची में डाल दिया गया।

अब सवाल यह है कि जिस अवैध खनन को लेकर सीबीआई की टीम यूपी की खाक छान रही है उस अपराध की गर्भनाल कहां से जुड़ी हुई है।

दरअसल उत्तर प्रदेश की पिछली दोनों हुकूमतों के दौरान नियम-कानून की जम कर धज्जियां उड़ाई गई थीं। साल 2012 में अवैध खनन पट्टों को लेकर हाईकोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई थी।जिस पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने 2013 में आदेश दिया था कि अब कोई भी नया पट्टा नहीं दिया जाएगा और पुराने पट्टों का नवीनीकरण भी नहीं होगा।

इस दौरान 10 महीने के करीब अभय सिंह जनपद फतेहपुर के डीएम थे और हाई कोर्ट के आदेश के बावजूद जिले में खनन जारी रहा।

जिसके बाद जुलाई 2016 में इलाहाबाद हाईकोर्ट कोर्ट ने यूपी के सात जिलों में अवैध खनन मामले में सीबीआई जांच के आदेश दिए थे जिसमें, फतेहपुर, सहारनपुर, कौशांबी, हमीरपुर, शामली, देवरिया और सिद्धार्थनगर शामिल थे।

सीबीआई कई सालों से अवैध खनन मामले की जांच कर रही थी। जांच के दौरान सीबीआई को पता चला कि अवैध खनन से हुई काली कमाई की मलाई खाने में कई सफेदपोश और अधिकारी शामिल हैं। अब सीबीआई, यह पता लगाने के लिये कि अवैध खनन से जुटाई गई काली कमाई की किस-किस तरह बंदरबांट हुई और किसने उस कमाई से क्या-क्या निवेश किए आदि कड़ियों को जोड़ने में जुट गई है। ताकि मनी ट्रेल के जरिए कोर्ट में केस को आसानी से साबित किया जा सके।

इसी क्रम में सोशल मीडिया पर काफी सक्रिय रहने वाली महिला नौकरशाह बी.चंद्रकला पर भी जनवरी माह में सीबीआई ने शिकंजा कसा था।

दरअसल यह सब अवैध खनन घोटाले की कड़ियां मात्र हैं जिन्हें जोड़ कर उस सिरे तक पहुंचा जा सकता है जिसकी सरपरस्ती में अवैध खनन को राष्ट्रीय कार्य की भांति अंजाम दिया गया था। विदित हो कि अवैध खनन घोटाले मामले में सीबीआई ने पूर्व खनन मंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति का नाम आरोपी नंबर वन के तौर पर दर्ज किया है। एफआईआर में यूपी के खनन विभाग के पूर्व प्रमुख सचिव, जीवेश नदंन और विशेष सचिव संतोष कुमार का नाम भी दर्ज है। इसी एफआईआर में बुलंदशहर के डीएम अभय कुमार का भी नाम है। कुल सात लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज है जिसमें आपराधिक साजिश रच कर अवैध तरीके से लीज माइनिंग पट्टे, तीन साल के लिए दिए जाने का आरोप है। साथ ही चोरी और धोखाधड़ी की धाराएं भी एफआईआऱ में शामिल हैं।

यहां यह जानना भी आवश्यक है कि 2012 से 2017 के दरम्यान मुख्यमंत्री रहे अखिलेश यादव के पास 2012-2013 के बीच खनन विभाग का अतिरिक्त प्रभार था। इससे उनकी भूमिका भी जांच के दायरे में आ जाती है। उनके बाद 2013 में गायत्री प्रजापति खनन मंत्री बने थे। लिहाजा जांच की लपटें सिर्फ अधिकारियों तक ही सीमित नहीं रहेंगी, वो सपा सुप्रीमों अखिलेश यादव के दामन को भी झुलसा सकती हैं। यह बात समाजवादी पार्टी के लिये कतई अनुकूल नहीं होगी। लेकिन जब बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से होय।

 

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